लेख@ बेचारा रावण

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दशहरे की शाम थी। मैं अपनी पत्नी तथा छोटी पोती कशिश के साथ पुराने आई.टी.आई. ग्राउफंड में रावण,कुंभकर्ण तथा मेघनाथ के पुतले जलने के उत्सव को देखने गया था। पहले श्री रामचन्द्र तथा रावण में, लक्ष्मण तथा मेघनाथ में तथा पिफर कुंभकर्ण में युद्ध होता हुआ दिखाया गया जिसमें रावण, कुंभकर्ण तथा मेघनाथ की मृत्यु के बाद उनके पुतले जल गये। धीरे-2 लोग वहां से जाने लगे। लगभग रावण तथा उसके परिवार के जलने का दशहरे का यह त्योहार समाप्त हो चुका था। कुछ लोग जले हुए इन पुतलों के पास आकर तमाशा देखने लगे और मैं, मेरी पत्नी तथा पोती भी उनमें से ही थे। सबके जाने के बाद जब मैं भी जाने लगा तो मुझे एक धीमी सी आवाज़ सुनाई दी ‘‘बाऊजी, बाऊजी !’’ मैंने पीछे मुड़कर देखा, वहां कोई नहीं था जब चलने लगा फिर वहीं आवाज़ सुनाई दी ‘‘हां बाऊजी जी, यह मैं हीं हूॅं रावण। इन्होने बेशक मुझे जला दिया हो, लेकिन सच्ची बात यह है कि मैं मरा नहीं। श्रीरामचन्द्र ने जिस रावण को मारा था, वह तो अकेला था, लेकिन आजकल तो हर घर में रावण मौजूद हैं, उसे मारने के लिये इतने श्री रामचन्द्र कहां से लाओगे। मैं ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ तथा पोलस्त्य मुनि का पौत्रा था। मैंने चारों वेदों तथा आठों पुराणों का अध्ययन किया हुआ था। मैं शिवजी का अनन्य भक्त था तथा दस बार अपने सिर उखाड़कर शिवजी को भेंट कर दिये जिन्हें दुबारा आरोपित कर दिया गया जिसके कारण मुझे दशानन अर्थात दस सिरों वाला कहा जाता है। मैंने अपने पराक्रम के द्वारा काल को भी जीत रखा था और अमृतपान भी कर रखा था जिससे मृत्यु भी मुझे पराजित नहीं कर सकती थी मेरे पिता एक मुनि तथा माता राक्षसी थी अतः मैं राक्षस प्रवृति का बना तथा दैत्यराज बन गया। जब श्रीराम, लक्ष्मण तथा सीता वन में भटकते भटकते मेरे राज्य में आये तो मेरी बहन श्रुपणखा लक्ष्मण पर मोहित हो गई जिसने उसके साथ विवाह करने के बदलें में उसकी नाक ही काट ली। क्या कोई भाई अपनी बहन की इस प्रकार से दुर्गति तथा अपमान को सहन कर सकता है। अतः मैंने इसका बदला सीता हरण के द्वारा लिया। आप ही मुझे बताओ कि इस युग में कितनी बहनों का अपहरण, बलात्कार, गैंगरेप हो रहा है, क्या किसी भाई ने मेरी तरह बहन की आबरू बचाने के लिये या फिर अपराधी को सज़ा देने के लिये मेरी तरह जोखिम लिया। मेरे चरित्र पर लोग जितना मर्जी है, लांछन लगायें लेकिन मैंने अपहरण के बाद सीता को अशोक वाटिका में अलग महिला सुरक्षा कर्मियों की देखरेख में रखा और उसे छुआ भी नहीं। आजकल तो कोई लाचार महिला किसी भी पुरुष के हाथ लग जाये उसकी इज़्ज़त आबरू बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता। क्या आपने मेरे राज्य में किसी महिला/बेटी के साथ पिता, सुसर, पड़ोसी, शिक्षक, धर्मगुरु या बुजुर्ग के द्वारा बलात्कार/गैंगरेप की बात सुनी है। हद हो गई है भई, मेरे से सीता के अपहरण तथा अपने बल/बुद्धि के अहंकार की गल्ती क्या हो गई जो दुनिया युगों युगांतर से मेरे तथा मेरे पुतलों को जलाकर असत्य पर सत्य की विजय होने का पर्व मना रही है। अगर मेरे में सारे अवगुण ही अवगुण होते तो श्रीराम मेरे मरने से पहले लक्ष्मण को मेरे से शिक्षा लेने के लिये क्यों भेजते। मैं मानता हूं कि मेरे छोटे भाई, विभीषण की श्रीराम में आस्था और श्रद्धा थी। लेकिन उसे तो हर हाल में मेरे साथ होना चाहिये था? अपने कुल के साथ गद्दारी करके श्रीराम का साथ निभाकर मेरे तथा लंका के पतन के लिये बेशक इसे बाद में लंका का राजा बना दिया है, लेकिन इस गद्दारी के लिये उस पर सारी दुनिया आज भी थू-थू करती है। क्या कोई इस बात को सहन करेगा कि कोई भाई अपने भाई/परिवार के साथ विश्वासघात करे। मुझे इस बात की भी हैरानी होती है कि बेशक श्रीराम विष्णु का अवतार थे लेकिन मेरा वध करने के बाद सीता की पवित्राता जांचने के लिये उससे अग्नि परीक्षा कराकर बाद में धोबी के ताना मारने के बाद गर्भावस्था में उसे बालमीकि ऋषि के आश्रम में क्यों छोड़ दिया। श्रीराम के इस दोष के बावजूद भी लोग उनको युगपुरुष/मर्यादा पुरुष के तौर पर पूजते हैं। बेशक मुझे में बहुत दोष थे, फिर भी मुझे जिस तरह हर वर्ष दशहरे पर जलाया जाता है, उससे मेरी आत्मा को पीड़ा होती है। लोग हर साल रामलीला का आयोजन करके कुछ सीखते और सुधरते क्यों नहीं? ये कहकर रावण चुप हो गया। मुझे रावण की इस व्यथा पर तरस तो आया लेकिन मैं बचपन से लेकर अब तक जो कुछ सुनता आया था, रावण के बारे में उस विचार को दिमाग से हटा ना सका। काश! हम रावण की विद्वता,अपनी बहन के प्रति स्नेह/त्याग, कुल के प्रति वफादारी ,परमात्मा ;शिव के प्रति अनन्य भक्ति भावना तथा युद्ध कला के बारे में कुछ सीख सकते।
रोहतक


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