हमारे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र में नारी रुपेण दैवीय आस्था व जनविश्वास के प्रतिमूर्ति को देवी एवं माता की संज्ञा प्राप्त है। ग्राम्यांचल की लोक-आराध्य देवी मातादाई, बूढ़ीदाई, कंकालीन, शीतला, दुर्गादाई, बहीदाई, सतबहिनी, चंडीदाई, महामाई आदि रूप में सर्वत्र विराजित हैं, जिन पर लोगों की अपार श्रद्धा व भक्ति भाव देखते ही बनता है। ग्रामीण अपने हार्दिकभाव को श्रद्धापुष्प अर्पित कर इन देवियों के चरणों पर आशा व विश्वास का दीप जलाते हैं। ह्रदय से निकलने वाली दैवीय भावना की तरंगे जिव्हा से मुखरित होती हैं, जो लयबद्ध लोकगीत बनती है। धार्मिक अनुष्ठान के अवसर पर नवरात्र पर्व विशेष पर गाये जाने वाला लोकगीत जसगीत कहलाता है। जसगीत अर्थात यशगीत लोक आराध्य देवी के रूप-सौंदर्य, शौर्य-पराक्रम एवं कृपा विशेष के यश गान की लोक प्रस्तुति की जसगीत है। नौ दिनों तक निजी एवं सार्वजनिक स्थान के जोत-जँवारा एवं देवी-स्थापत्य स्थल पर देवी को शक्ति रूपेण जगद्जननी को गीत के जरिये आमंत्रित किया जाता है। लोक विश्वास है कि देवी के आमंत्रित होने पर नवरात्रि को शुभ मानी जाती है। इस समय समस्त देवतागण एवं सारा ब्रह्मांड माता के साथ आमंत्रित होते हैं।
नेवता नेवत के हो… जग रच
महामाई…नेवता नेवत के हाँ…
ब्रह्म ल नेवतेंव विष्णु ल नेवतेंव
नेवतेंव कैलाश पति ला
राजा इंदरदेव वहू ल नेवतेंव
नेवता नेवत के हो…जग रचौं…
शब्द संरचनाः
अन्य लोकगीतों की तरह जसगीत में भी प्रथम दो पंक्तियाँ मुखड़ा होती है, जो हो माँ, हे माता, दाई, भवानी....के साथ लयबद्ध होती है। पद संख्या दो या तीन होती है।आजकल जसगीत प्रतियोगिताओं में किसी देवी के कथा प्रसंग को लेकर लंबी जसगीत की रचना होने लगी है। इनकी पद संरचना में देवी के गुणों का बखान प्रश्नोत्तर रूप में होता है। प्रश्नोत्तर के पंक्तियों के गायन के पश्चात मुखड़े को गाया जाता है। इस तरह एक विशेष गायन शैली पचरा कहलाता है। पचरा के पंक्ति सर्वप्रथम गायकप्रमुख के द्वारा गाया जाता है, फिर समूहगान होता है। देवी स्थापना दिवस के स्थिति, तिथि,साज-सज्जा, भेंट-चढ़ावा कथाप्रसंग के मुताबिक पचरा गाया जाता है। पचरा लोगों के लोक वाद्ययंत्रों के सुमधुर ध्वनि के साथ वीर, क्रोध, शांत, करुणा, भक्ति रसों का रसपान कराता है। देवीय से भक्त प्रभावित हो कर नाचने-गाने और झूमने लगते हैं। पचरा की बानगी प्रस्तुत है-
तुम खेलव दुलरवा
रनबन रनबन हो….
का पूजा लेवय बाल बरमदेव
का पूजा लेवय गोरंइयाँ
का पूजा लेवय बन के रक्सा
हो रनबन हो….
नरिहर लेवय बाल बरमदेव
कुकरा लेवय गोरंइयाँ
भँइस्सा लेवय बन के रक्सा
हो रनबन हो… तुम खेलव…।
देवी के रूप-सौंदर्य का दर्शनः
जसगीत का प्रथम व महत्वपूर्ण भाग है सिंगार गीत। सिंगार यानी श्रृंगार करना नारी सुलभ प्रवृत्ति है। नारी सुंदरता का प्रतीक मानी जाती है। सुंदरता नारी के भौतिक गुणों को अवगत कराती है। प्राकृतिक सौंदर्य प्राप्त होने पर भी नारी में अतिरिक्त बाह्य सौंदर्य प्राप्त होने पर भी नारी में अतिरिक्त सौंदर्य अर्जन करने का स्वभाव होता है। नवरात्र के प्रथम दिवस से ही आराधक नारी रूपेण देवी स्वरूपा जगदम्बे को श्रृंगार सामग्री जैसे सिंदूर, बिंदी, कुमकुम, चूड़ी, चुनरी, साड़ी, आभूषण आदि से अलंकृत देवी की पाषाण प्रतिमा में सजीवता उभरती है।पंचमी तिथि विशेष महत्व रखता है। रूप-सौंदर्य का देवी-जसगीत कुछ इस तरह होती है-
मइया पचरंग पचरंग
करत हे सिंगार हो माँ…
पचरंग परदा परयो भवन हे
पचरंग कलस बनाई
पचरंग दरी बने पचरंगी
पचरंग साज सजाई
हो मइया पचरंग….।
शौर्य-पराक्रम का वर्णनः
शांति रुपेण माता जगदंबा शक्ति का रूप होती है। दुर्गा, काली, भवानी की संज्ञा प्राप्त देवी पाप, अधर्म,अन्याय का नाश करती है। दुर्गा-महिषासुर संग्राम के कथा प्रसंग में देवी के शौर्य-पराक्रम व वीरता का वर्णन जसगीत में सुनने को मिलता है। सिंह पर सवार
सशस्त्र देवी दुर्गा का रणभूमि में कूच करने का वृतांत जसगीत के लोकधुन की प्रस्तुति होती है। यह कथा प्रसंग नारी को शक्ति दायिनी व पाप हारिणी के रूप में चित्रित करता है; साथ ही यह भी संदेश देता है कि पुरुष प्रधान समाज में नारी अपने यथोचित स्थान पाने के लिए शांति मार्ग की अतिरिक्त आवश्यकता पड़ने पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर समस्त नारीजाति को जीवन जीने का अधिकार निर्धारित करती है-
महिषासुर मारन बर हो
चले हो दुरगा दाई
सिंह मा हो के सवार….
एक हाथ धरे तलवार
दूसर हाथ मा कटारी
महिसासूर संग करै लड़ाई भारी
चम चम चमके हो तलवार
चले हो…।
देवी के प्रति सेवा भावनाः
नवरात्र पर्व के दौरान लोगों के हृदय में देवी के प्रति सेवा भाव सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। माता सेवागीत में जगद्जननी के प्रति आराधक के सेवा भाव का जिक्र होता है। भक्त देवी को भौतिक वस्तुएँ अर्पित कर माता सम्मान की भावना रख सेवाभाव को और प्रबल करता है; साथ ही दूसरों को भी अपनी सेवाभावना को व्यक्त करने की कुछ इस तरह अनुरोध करता है,जो सेवागीत कहलाता है।
गुथौ हो मालिन माईं बर फुलगजरा
कउने फूल के अजरा गजरा
कउने फूल के हार
कउने फूल के माथ-मकुटिया
सोला ओ सिंगार… गुथौ हो….
चम्पा फूल के अजरा गजरा
चमेली फूल के हार
सेवती फूल के माथ-मकुटिया
सोला ओ सिंगार…गुथौ हो मालिन…।
विदाई का भाव जसगीतः
नवमीं तिथि देवी का विदाई-दिवस होता है। नौ दिनों तक माता-पुत्र एवं देवी-भक्त का संबंध कायम रहता है। सेवा, समर्पण, मान-सम्मान, भक्ति, आशीष का ही समय होता है यह नवरात्र पर्व। देवी और भक्त,अतिथि-आतिथेय सा संबंध नौ दिवस तक बनाये रखता है। अष्नटमीं को हवन होता है।नवमीं के दिन देवी-प्रतिमा व ज्योत-जँवारा के विसर्जन के समय भक्तगण भाव विहल हो जाते हैं। विदाई बेला का दृश्य-चित्रण जसगीत के लोकधुन में बड़ा मर्मस्पर्शी होता है।
तोला कइसे भेजँव दाई
तोला कइसे भेजँव ना…
होगे तोर जाये के बेरा
रो रो के मँय मर जइहौं
तोला कइसे भेजँव ओ…।
टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला
घोटिया-बालोद छत्तीसगढ़