लेख @ न्याय की लड़ाई में हार-जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है सच्चाई की विजय

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हमारे समाज में मीडिया का कॉरपोरेट तंत्र फल-फूल रहा है पर पत्रकारिता गहरे संकट में है। असल में पत्रकारिता प्रोफेशनल और ऑब्जेक्टिव होकर ही की जा सकती है। मौजूदा मीडिया उद्योग को प्रोफेशनलिज्म और ऑब्जेक्टिविटी हरगिज मंजूर नहीं! हमारे यहां पत्रकार तो बहुत हो गये हैं. टेलीविजन और अखबार भी बहुत हैं, पर पत्रकारिता बहुत कम है। रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह! टीवी में उसका संपूर्ण लोप हो चुका है! सिर्फ कुछ वेबसाइटों और कुछ अंग्रेजी अखबारों तक वह सीमित हो गई है! कुछेक हिन्दी अखबारों में वह यदाकदा किसी खास खबर या विश्लेषण में झलकती है! यह बड़ा संकट है!
आज चारण पत्रकारिता के इस दौर में,पत्रकारिता बची ही कहां है? सारे मालिक और सी ई ओ सिर्फ¸ कमाई में लगे हैं तो ऐसे में आप लिखने पढ़ने वाले से क्या उम्मीद रख सकते हैं? अगर आपने बढç¸या लिखा, शासन-प्रशासन की बखिया उधेड़ी तो सी ई ओ आपको बाहर का रास्ता दिखाने में तनिक भी अपने संवाददाताओं के प्रति संवेदना उनकी मर जाती है पता नही क्यों…मेरे पत्रकार साथियों। खैर चाहते हो तो कुछ भी गुड़ गोबर लिखकर चुपचाप तनख्वाह लेते रहो, परिवार पलता रहेगा। आपके आसपास के कई साथी भी तो आजीविका के लिए नौकरशाह बनकर लोकतंत्र में पत्रकारिता के माध्यमसे अपनी चौथी भूमिका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष निभा रहे हैं।
शहर हो या गांव, विकास की बात हो या समस्याओं की दस्तक,हर खबर सटीक और सच के साथ सबसे पहले आपके पास।मेरे क्रांतिकारी साथियों आपकी बेबाक और गहरी पत्रकारिता ने हमेशा सच का साथ दिया है और सभी को प्रेरित किया है।आपका समर्पण और निडरता समाज के लिए अनमोल हैं।
आदित्य गुप्ता
अम्बिकापुर, सरगुजा(छ.ग.)


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