लेख@ पत्रकारों का कौन?

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लेख@सच्ची पत्रकारिता में जीवनभर नुकसान अधिक उठाना पड़ता है और पत्रकारिता को माध्यम बनाने वाले हमेशा मौज में रहते है…
पत्रकार को वैसे तो संविधान मे चौथा स्तंभ माना गया है लेकिन उसे लिखित तौर पर कोई भी विशेषाधिकार नही है। पत्रकार को स्वतंत्रता भी एक आम नागरिक जैसी है। कलमकार सब कुछ छोड़कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है। अगर उसके क्षेत्र में देर रात शराब बिक रही है ,डग्गामार वाहन चल रहे हों,अवैध खनन हो रहा हो,क्षेत्र में अवैध मादक पदार्थ बिक रहा हो,रात भर बीच चौराहे पर अवैध ठेले खुमचे लगे हों,क्षेत्र में पर्स या चेन लूट हो,शराब पी कर रईस जादों के द्वारा बीच चौराहे पर हंगामा करने की खबर हो ,अगर उसे उजागर कर दिया तो उसी समाज के लोग जो की काली कमाई कर रहे होते है। हमेशा अपनी नजरो मे चढ़ाए रहते है कब मौका मिले प्रहार कर दे। पुलिस भी पत्रकारों पर पैनी नजर बनाए रखती है कहा मौका मिले दे धमके। दो चार फर्जी मुकदमा लिखकर जेल की सलाखो मे भेज दे। सरकार भी पत्रकारो से आशा व्यक्त करती है की उसके खिलाफ कोई टीका टिप्पणी न करे। न्यायालय भी पत्रकारो के लिए कुछ खास नही कर पाते। इन सब कठिनाइयों के बीच रहकर एक बेबाक लेखक अपनी लेखनी से समाज की कुरुतियो की सफाई करता रहता है। अब ऐसी स्थिति मे अवैतनिक पत्रकार का माई बाप बचा उसका अपना संगठन या बैनर जिसके लिए वह कार्य करता है। कुछ परिस्थितिया ऐसी होती है जहां बैनर भी अपना हाथ खीच लेता है और सारा दारोमदार स्वयं अपने आपके सिर मथ जाता है। परिवार,बीबी,बच्चे भी अपने आपको को कोसते है। जनाब बताइए इस हाल मे एक अवैतनिक पत्रकार के ऊपर क्या गुजरती होगी। क्या समाचार एजेंसियां इन सब चीजो के बारे सोचती है? क्या सरकार ऐसे पत्रकारों के बारे मे सोचती है? क्या न्यायालय ऐसे कलमकारो के जीवन को भी पढ़ते है।यह अपने स्वयं के विचार है आप भी अपने विचार रख सकते है।
आदित्य गुप्ता
अम्बिकापुर,सरगुजा


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