@ 9 महीने वाली सरकार के कार्यकाल में पत्रकारों से जुड़े कई मामले आ गये सामने
@ क्या पत्रकारों से कमियां दिखाने का अधिकार मौजूदा सरकार छीन रही…
@ संविधान में मूल अधिकार का भी पत्रकार नहीं कर पाएंगे इस्तेमाल?
@ क्या संविधान से चलना भी अब इस सरकार में दूभर हो जाएगा?
-रवि सिंह-
अम्बिकापुर,25 अगस्त 2024 (घटती-घटना)। देश का भविष्य लोकतंत्र के चार स्तंभों पर टिका है पर क्या चार स्तंभ मजबूती से खड़े हैं या फिर एक स्तंभ के लिए दो स्तंभ मुसीबत बन खड़े हैं, चौथे स्तंभ की सुरक्षा इस समय मुख्य मुद्दा बन चुकी है संविधान का रीड की हड्डी कहे जाने वाला अनुच्छेद 19 इस समय कमजोर होता दिख रहा है, इसी पर रोक लगाने की तैयारी हो रही है। संविधान में अधिकार तो पर अधिकार कस्टमर करना किसी मुसीबत से काम नहीं है,संविधान पर ही खतरा मंडरा रहा है क्योंकि अनुच्छेद 19 के तहत काम करने वाले पत्रकार अधिकारों का उपयोग करके अपराधी बनते जा रहे हैं। सरकार की कमियों को इस अधिकार के तहत दिखाना उनके लिए अपराध की श्रेणी में आना हो गया? छत्तीसगढ़ के 9 महीने वाली सरकार पत्रकारों पर ही कहर बरफा रही है। वर्तमान सरकार के 9 महीने के कार्यकाल में कई पत्रकारों पर अलग-अलग तरीके से हमले हो रहे हैं। सारे हमले राजनीतिक व प्रशासनिक कहे जा रहे हैं। किस तरीके से षडयंत्र राजनीतिक प्रशासनिक हो रहे हैं कि पत्रकारों के लिए जीना मुहाल हो रहा है। या तो बिकने के पत्रकारिता करने की आदत डाली जा रही है और ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों को अपराधी बनाया जा रहा है… जो स्वाभिमान नहीं बेच रहा वह अपराधी बन रहा…और जो स्वाभिमान बेच रहा वह सरकार के साथ चल रहा…जैसी स्थिति इस समय निर्मित है। उससे तो यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की हत्या हो रही है …और हत्या करने वाला कोई बाहर का व्यक्ति नहीं है संविधान की बात कहने वाले ही लोग हैं। अब इस समय पत्रकारों का ही आंदोलन शुरू हो चुका है और सरकार से गुहार लगानी पड़ रही है कहीं फर्जी एफआईआर दर्ज हो रहे हैं…तो कहीं कोई विधायक खुलेआम धमकी दे रहा है…। स्थिति तो यह है कि मंत्री विधायक की खबर लगने पर अखबार के प्रतिष्ठान भी तोड़े जा रहे हैं अब यह तोड़फोड़,अपराधी बना का चालान न जाने इस सरकार को कहां तक विकास करने का मार्गदर्शन दे रहा है? और कहां तक इस सरकार से लोगों का भरोसे की उम्मीद थमी रहेगी? यह भी सोचनीय विषय बना हुआ है। देश की दो स्तंभ तो अपने आप को इतना मजबूत समझ रहे हैं की चौथे स्तंभ को गिराकर भी देश की जिम्मेदारी उठा लेंगे ऐसा उनका मनोबल है। क्या यही वजह है कि एक स्तंभ को नेस्तनाबूत करने के लिए दो स्तंभ काम कर रहे हैं…क्या चौथे स्तंभ की जरूरत अब देश को नहीं है… या फिर चौथ स्तंभ तीनों स्तंभों का स्वर्थ सिद्धि में बाधा बन रहा है… जिस वजह से उसे हटाना ही ज्यादा उचित है। पढ़ना आपको संविधान है पर चलना आपके लिए संविधान के तहत काफी कठिन है बात तो संविधान की होती है पर संविधान के साथ चलने में कई रोड़े आते हैं। कुछ ऐसा ही नजर छत्तीसगढ़ में देखने को मिल रहा है। साक्षात के उदाहरण इस समय खड़े हो चुके हैं मुंह बंद करने व कलम बंद करने की तैयारी है। गांधी के देश में बुलडोजर व फर्जी प्रकरण कोई कार्रवाई माना जा रहा है। चौथा स्तंभ को अब सिर्फ उम्मीद है भी तो देश के पहले स्तंभ से यानी कि न्यायपालिका से न्यायपालिका की अब चौथे स्थान के लिए सहारा बन सकती है और चौथा स्तंभ को भी अभिनयपालिका से ही उम्मीद है।
बदले की भावना से घटती-घटना समाचार-पत्र कार्यालय पर चला बुलडोजर
खबरों के प्रतिशोध में जहां मौजूदा सरकार ने नियम को ही निरस्त कर दिया और शासन प्रशासन को खुली छूट दे दी एक अखबार के प्रतिष्ठा को नेस्तनाबूत करने की और ऐसा लगा कि उन्होंने कोई जंग जीत ली हो, लेकिन अखबार के प्रतिष्ठान टूटने से सरकार की छवि कितनी धूमिल होगी इस बात का अंदाजा शायद उन्हें भी नहीं था, लेकिन कार्यवाही तो उन्होंने कर दी पर इस कार्यवाही से सरकार की थू-थू वाली स्थिति हो गई है, मौजूदा सरकार व प्रशासन में बैठे लोगों को तो सिर्फ प्रतिशोध निकालना था वहीं शासन में बैठे मंत्रियों की बात मानी और एक अखबार के मालिक के प्रतिष्ठान को जमींदोज करके सिर्फ अपना प्रतिशोध निकाला, प्रतिशोध को पूरा करने के लिए प्रतिष्ठान को नेस्तनाबूत करने की प्रक्रिया रची गई थी जिसका हिस्सा बने थे वह लोग जो अखबार की खबरों से कुंठित हो चुके थे,जिस मामले में भले ही लोगों को लग रहा था कि मामला शांत है पर इस शांत मामले आने वाला समय सरकार को भी कचोटेगा। कार्यवाही अंबिकापुर में दैनिक घटती-घटना संपादक के विरुद्ध हुई उसे कुछ समय के लिए टाला भी जा सकता था…और चूंकि संपादक पित्रशोक में थे उन्हें समय कम से कम 13 दिवस का दिया जा सकता था… जो नहीं दिया गया…यह एक विद्वेष माना जा सकता है प्रशासन-शासन का। जहां कार्यवाही हुई या जिस शहर में कार्यवाही हुई वहां वह एकमात्र ऐसा मामला होता अतिक्रमण का समझ में आती कार्यवाही की अन्य पर भी हुई कार्यवाही लेकिन ऐसा नहीं देखने सुनने को मिला एकमात्र कार्यवाही हुई पूरे प्रदेश में जो द्वेष ही मानी जायेगी। उन्होंने यह भी कहा की 152 प्रतिशत जमा कर शासकीय भूमि पर वर्षों का कब्जा बहाल किया जाना पूर्व सरकार का एक निर्णय था जिसे वर्तमान सरकार ने कैबिनेट में निरस्त किया लेकिन जब निरस्त ही किया तो क्या एकमात्र व्यक्ति के लिए निरस्त किया यह एक बड़ा प्रश्न है जो जवाब मांग रहा है।
पत्रकारों की गाड़ी में गांजा रखकर फर्जी तरीके से एफआईआर
छत्तीसगढ़ सुकमा जिले के चार पत्रकार साथी अवैध रेत खनन पर समाचार कवरेज करने गये थे, उसी दरम्यान पत्रकारों की गाड़ी में गांजा रखकर फर्जी तरीके से एफआईआर दर्ज कर थाना में बैठा दिया गया। बता दें कि सुकमा जिले के कोंटा थाना क्षेत्र और आन्ध्र प्रदेश के चितूर थाना क्षेत्र जो छत्तीसगढ़ आन्धप्रदेश का बार्डर है। कोंटा,चितूर के बीच अवैध उत्खनन व परिवहन का काम धड़ल्ले से चल रहा है। अवैध उत्खनन पर समाचार कवरेज करने गये चार पत्रकार साथी बप्पी राय,धर्मेन्द्र सिंह,मनीष सिंह,निशु त्रिवेदी के वाहन पर गांजा रखकर फर्जी तरीके से मामला दर्ज करा दिया गया। फर्जी एफआईआर दर्ज कराने में अवैध खनन माफिया और कोंटा थाना प्रभारी की मुख्य भूमिका रही है। बहरहाल कोंटा थाना प्रभारी को निलंबित कर जेल भेज दिया गया है। गांजा तस्करी के मामले में साजिश के तहत् फर्जी तरीके से फंसाने का यह पहला मामला है। अवैध उत्खनन पर खबर बनाने गये पत्रकार साथी खुद ख़बर बन गये। दोनों राज्यों के बार्डर वाले थाने के देखरेख में अवैध उत्खनन का कारोबार फल-फूल रहा है। इसे रोका जाना आवश्यक है। संविधान में लोकतंत्र का चौथे स्तंभ के द्वारा अवैध काले कारनामे को उजागर करने एवं आम जनता, समाज के सामने सच्चाई का आईना दिखाने का कार्य पत्रकार के द्वारा किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य है कि पत्रकारों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है।
पत्रकार को धमका रहे विधायक
छत्तीसगढ़ में भाटापारा के विधायक हैं इंद्र साव। दो लोगों के जमीन विवाद का मसला था, इनमें से एक का पक्ष लेते हुए थाने पहुंच गए और दूसरे के ऊपर कार्रवाई का दबाव बनाने लगे,यहां तक की थाने में धरने पर बैठ गए, एनडीटीवी के पत्रकार दीपेंद्र शुक्ला ने इस पूरे मसले को लेकर खबर बना दी तो फोन कर पत्रकार को धमकाने लगे,पत्रकार की फोटो देकर उसके पीछे अपने गुर्गे लगा दिए,पत्रकार को डराने की कोशिश होने लगी,पत्रकार ने एसपी बलौदाबाजार-भाठापारा से इसकी शिकायत की है, कांग्रेस और भाजपा के तमाम आला नेताओं तक बात पहुंचा दी गई है, सीएम हाउस तक भी बात पहुंची है,सरकार की ओर से पत्रकार को सुरक्षा मुहैया कराई गई है, मगर केवल कुछ दिन की सुरक्षा से कुछ नहीं होगा? मामले की निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई भी होनी चाहिए थी जो नहीं हुई।
पत्रकार को कार से कुचलने का प्रयास
ज्ञात हो कि शासकीय भूमि पर अतिक्रमण कर खेती करने के मामले में ग्रामीणों की शिकायत पर प्रशासन द्वारा कार्यवाही करने तथा उक्त मामले की खबर अखबार में प्रकाशित करने से नाराज अतिक्रमणकारी ने पत्रकार पर जानलेवा हमला करते हुए उसे कार से कुचलने का प्रयास किया जिसकी शिकायत पत्रकार द्वारा बसंतपुर थाने में दी गई है। वाड्रफनगर विकासखंड के ग्राम पंचायत बसंतपुर में स्थित शासकीय भूमि पर स्वास्थ्य विभाग में सुपरवाईजर दिनेश यादव व अन्य के द्वारा कब्जा किया गया था जिसकी शिकायत करने पर तहसीलदार ने भूमि पर निर्माण या खेती करने पर रोक लगा दी थी इसके बाद भी भूमि पर अतिक्रमणकारियों ने खेती कर दी इस संबंध में रिहन्द टाइम्स द्वारा खबर का प्रकाशन किया गया था वहीं प्रशासन द्वारा खबर को संज्ञान में लेकर कार्यवाही करते हुए खेती को जप्त कर पंचायत के सुपुर्द कर दिया गया। इससे अतिक्रमणकारी दिनेश यादव द्वारा बसंतपुर में अखबार के प्रतिनिधि पत्रकार रामहरि गुप्ता से द्वेष रखते हुए उसे धमकी दी जा रही थी आज सुबह जब पत्रकार रामहरि गुप्ता गांव के सोसयटी दुकान से पैदल अपने घर की ओर जा रहा था उसी समय हाईस्कूल की ओर से दिनेश यादव अपनी कार से आ रहा था रामहरि गुप्ता को देखकर उसने अचानक कार की रफ्तार बढ़ा दी तथा उसपर कार चढ़ाने का प्रयास किया। तेज रफ्तार में अपनी ओर कार को आता देखकर सतर्क हो चुके रामहरि गुप्ता ने एक और छलांग लगाकर स्वयं को बचाया।
पत्रकार पर जानलेवा हमला का आरोप
बता दें कि बालोद जिले के गुरुर थाना क्षेत्र में दिन दहाड़े एक पत्रकार पर कातिलाना हमला हुआ जिसके बाद पत्रकार अधमरे हालत में कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती भी रहा,लेकिन गुरुर पुलिस थाना प्रभारी तूल सिंह पट्टावी के द्वारा कई दिन बीत जाने के बाद भी हमलावर आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया हैं। जानकारी के मुताबिक गुरुर पुलिस थाना प्रभारी तूल सिंह पट्टावी द्वारा आरोपियों को जान बुझकर गिरफ्तार नही किया जा रहा था जिससे कि पत्रकार पर जानलेवा हमले के आरोपी कोर्ट से अग्रिम जमानत ले सके। थाना प्रभारी अपने मंसूबे में सफल भी रहे जिसके बाद पत्रकार पर हुए कातिलाना हमले के मुख्य आरोपी पूर्व विधायक भैय्या राम सिन्हा ने कोर्ट से अग्रिम जमानत भी ले ली।
राजधानी रायपुर में वरिष्ठ पत्रकार के अपहरण का प्रयास
राजधानी रायपुर में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले पत्रकारों के साथ हो रहे उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला वरिष्ठ पत्रकार मनोज शुक्ला के अपहरण और महिला पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार का है। इस गंभीर मामले में पुलिस द्वारा आरोपियों पर मात्र मामूली धाराएं लगाकर पल्ला झाड़ने की घटना ने पत्रकारों में आक्रोश पैदा कर दिया है।