अम्बिकापुर @कलम बंद का 51 वां दिन खुला पत्र @क्या पत्रकारिता हार गई…कहां गए वे लोग… जो पत्रकारों से न्याय की उम्मीद करते थे ?

Share


अम्बिकापुर,21 अगस्त 2024 (घटती-घटना)। क्या लोगों के लिए न्याय प्राप्ति में अहम भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता सत्ता के सामने हार गई…? यह सवाल इसलिए उत्पन्न हो रहा है क्योंकि लोकतंत्र का… चौथा स्तंभ…अब गिनती में ही रह गया है। सिर्फ चौथा स्तंभ कहलाना ही उसकी पहचान रह गई है…पर उसका अधिकार नहीं रह गया। क्योंकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दबाना सत्ता की आवश्यकता के हाथ में है…। सत्ता जैसे चाहेगी…वैसे लोकतंत्र को दबाएगी…क्योंकि अब आवाज को दबाना ही सत्ता में दोबारा वापसी करने का रास्ता हो गया है। अभी हाल ही में सत्ता के नशे में चूर छत्तीसगढ़ शासन के मंत्री और मंत्री के दबाव में शासन-प्रशासन बेशर्मी से सारी हदें पार की…शायद यह फिर कभी और भी दोहराई जा सकती है,क्योंकि प्रशासन और अधिकारी भी सत्ता के दबाव में कठपुतली ही बना हुआ है। सही और गलत में फर्क तो अब उन्हें देखने आता ही नहीं,उन्हें सिर्फ आती है तो अपनी कुर्सी पर जमे रहने का मोह,कुर्सी की मोह भी ऐसी है कि मंत्री चाहे तो शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों से कुछ भी करवा सकते हैं। कुछ भी का मतलब आप समझ सकते हैं कि कुछ भी…छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार की सरगुजा अंचल के एक दैनिक घटती-घटना अखबार पर हुई कार्यवाही विष्णु देव साय सरकार के सुशासन की पोल भी खोल दी और लोकतंत्र को दबाने में विष्णु देव साय सरकार भी पीछे नहीं…यह भी बात साफ कर दी। पर सवाल यहीं खत्म नहीं होता। जिन लोगों को न्याय दिलाने के लिए पत्रकारिता काम करती है,वे लोग भी नामर्दों की तरह पत्रकारिता की इज्जत व आबरू लूटने तमाशा देखते रहते हैं। पर सवाल यह भी उठता है कि क्या ये नपुंसक हैं या फिर अपने आप को मुर्दा ही मान चुके हैं? और अपनी उम्मीद सिर्फ पत्रकारिता से अपनी खबर लगवाकर पूरी करने तक ही रखते हैं। पत्रकार की लड़ाई में हिस्सा क्यों नहीं बनते…? क्या वे भी उतने ही स्वार्थी हैं, जितना की सत्ता और शासन-प्रशासन होती है..? इस समय में शर्म की तो बात ही अलग हो गई है… क्योंकि अब शर्म की चिंता भी ना तो सत्ता में है…और ना सत्ता के शीर्ष पर बैठे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में और ना ही शासन-प्रशासन में…क्योंकि अब बेशर्मी शब्द को दरकिनार करके ही कमाई का जरिया इख्तियार हो सकता है। सिर्फ यही उद्देश्य है कि बेशर्मी शब्द को भूलकर आगे की रणनीति तय होती है। पत्रकारिता का गला सिर्फ चंद लोग नहीं, वे सारे लोग भी घोंट रहे हैं जो पत्रकारिता की आबरू को लूटते देख रहे हैं। पत्रकारिता को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ एक पर नहीं है। खुद पत्रकारिता के समाज से लेकर पत्रकारिता जिसके लिए होती है वह भी उसके उतने ही जिम्मेदार हैं। समाज का पतन खंड-खंड में नहीं होता वरन समाज के सारे घटक एक साथ एक गति से पतित होते हैं। भौतिकवाद की लालसा में आज समाज के सभी घटकों में पतन दृष्टिगोचर हो रहा है। पत्रकारिता भी समाज का अंग है,अतः एव उसमें भी इसी तारतम्य में पतन होना स्वभाविक है। यह अच्छी बात है कि समाज में अगर पतन के लक्षण विद्यमान हैं तो इसे उन्नति की ओर ले जाने वाले लोग भी बड़ी संख्या में है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बहुत से अच्छे लोग हैं। लोकतांत्रिक समाज में स्वतंत्र प्रेस स्वतंत्रता की आधारशिला है। सत्ता में बैठे लोगों को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है। पत्रकारिता,जिसे अक्सर लोकतंत्र की इमारत का चौथा स्तंभ कहा जाता है,एक शक्ति गुणक के रूप में कार्य करती है, जिसका काम घटनाओं की जानकारी देना और उनका विश्लेषण करना और जनता को शिक्षित करना है। पत्रकारिता के मूल्य-निष्पक्षता,स्वतंत्रता,सत्य को प्राथमिकता देना और हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ को बुलंद करना-लोकतंत्र में अपनी भूमिका को पूरा करने में इसकी मदद करते हैं। हालाँकि,ऐसे युग में जहाँ पत्रकारिता सनसनी से प्रेरित,आँखों को लुभाने वाली सामग्री बनाने वाली फैक्ट्री में बदल गई है,जहाँ गति को विषय-वस्तु से ज़्यादा प्राथमिकता दी जाती है,तथ्य अक्सर पीछे छूट जाते हैं और जवाबदेही और ईमानदारी की कमी होती है। इससे भी बदतर खबर को मालिक और अन्य सत्ता संरचनाओं के हितों की सेवा के लिए डिज़ाइन किया गया है। आज मीडिया के पास अक्सर अपना खुद का राजनीतिक और व्यावसायिक एजेंडा होता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता पर संदेह होता है। जो पत्रकार और जिनकी पत्रकारिता अपने आप को राजनीतिक और व्यवसायिक एजेंडे से दूर रखकर अपने स्वतंत्रता पर उठने वाली प्रत्येक उंगली को निराधार साबित करते हैं,उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। जिसका ताजा उदाहरण सरगुजा आंचलिक का दैनिक घटती-घटना अखबार, उसके पत्रकार और संपादक हैं।
‘एक पत्रकार की पहली निष्ठा जनता के प्रति होनी चाहिए। और स्वतंत्र रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत,दलों, संगठनों के दबाव में नहीं आना चाहिए। बल्कि सच्चाई को उजागर करना चाहिए।’’
…डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम,पूर्व राष्ट्रपति
‘‘लोकतंत्र की सफलता या विफलता उसके पत्रकारिता पर आधारित रहता हैं।’’
…स्कॉट पेली
‘‘हम पत्रकारिता में लोकप्रिय होने के लिए नहीं आते। यह हमारा कर्तव्य होता है कि, हम सच्चाई की तलाश करें और जब तक जवाब नहीं मिले तब तक अपने नेताओं पर लगातार दबाव डालें।’’
…हेलन थॉमस
मैं खोज हूँ, मैं विचार हूँ …
मैं अभिव्यक्ति की पुकार हूँ,
मैं सत्य का प्रसार हूँ,
मैं पत्रकार हूँ।
किसी सच की,तलाश में
या किसी शक के,आभास में
मैं किसी लाचार का विचार हूँ
या किसी नेता पर प्रहार हूँ
मैं पत्रकार हूँ।


Share

Check Also

शाहजहांपुर,@ दोस्त के कहने पर युवक ने सुहागरात का बनाया वीडियो

Share शाहजहांपुर,26 अक्टूबर 2024 (ए)। एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. जहां …

Leave a Reply