@ क्या पैसे दो और प्रभार लो… की नीति चल रही स्वास्थ्य विभाग में…जिसे समर्थन दे रहे हैं स्वास्थ्य मंत्री…?
@ 17 डॉक्टरों समेत सीएमएचओ व सिविल सर्जन बदले गए… जिसकी सूची पर उठ रहे कई सवाल…सूची देखकर सेटिंग की आ रही गंध…
@ नियमित नियुक्ति की बजाय…मेडिकल अफसर को सीएमएचओ का प्रभार…
@ सीनियरों को दरकिनार कर…जूनियरों को मिल रहा प्रभार…सेटिंग नहीं तो क्या है…?
–रवि सिंह-
रायपुर/अंबिकापुर, 03 अगस्त 2024 (घटती-घटना)। स्वास्थ्य मंत्री के विभाग में जो कुछ चल रहा है वह किसी से छुपा नहीं है उनके हर एक बात पर वहीं स्वास्थ्य विभाग की सुविधाओं को लेकर लोगों का विश्वास खत्म हो चुका है। स्वास्थ्य मंत्री के विभाग में ऐसा लग रहा है कि सब कुछ सेटिंग व पैसे पर ही आधारित है। जिसकी जितनी तगड़ी सेटिंग उतना अच्छा जगह तय माना जा रहा है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं यह बात पूरा प्रदेश कह रहा है। पर शायद स्वास्थ्य मंत्री के कान तक यह बात नहीं पहुंच रही है क्योंकि उनके कान तक पहुंचाने वाले उनके सलाहकार ही उनकी लुटिया डूबने का काम कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री के आंखों के सामने लोगों के लिए काम करने की इच्छा खत्म हो चुकी है। वैसे प्रशासनिक अधिकारियों व दलालों से घिर गए हैं हर जगह दलाली प्रथा चल रही है। अभी हाल ही में आए डॉक्टरों की तबादला सूची पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया है । वह इसलिए लगा हुआ है…क्योंकि स्वास्थ्य मंत्री ने सूची में गंभीरता नहीं दिखाई… सिर्फ सेटिंग वालों को ही मौका दिया…जो नियमित पद है उन्हें नहीं भरा गया… मेडिकल ऑफीसरों को ही प्रभार देकर लूट की छूट उन्हें दे दी गई…और स्वास्थ्य विभाग की फजीहत कराने के लिए छोड़ दिया गया। ज्ञात हो की शासन ने सोमवार को 17 मेडिकल अफसर समेत सीएमएचओ व सिविल सर्जन का तबादला किया है। शासन के आदेश में मेडिकल अफसरों को भी प्रभारी सीएमएचओ का प्रभार दिया गया है। एक एमबीबीएस डॉक्टर के अंडर एमडी-एमएस डिग्रीधारी डॉक्टर काम करेंगे। हालांकि नियम में सीएमएचओ के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर होना जरूरी नहीं है, लेकिन जानकारों के अनुसार विशेषज्ञ डॉक्टर को ही सीएमएचओ का प्रभार दिया जाना चाहिए। एक सीएचसी का मेडिकल अफसर जब जिले को संभालता है, तब उनके अंडर कई विशेषज्ञ डॉक्टर होते हैं। यही नहीं, सिविल सर्जन वही डॉक्टर बन सकता है, जिनके पास एमडी या एमएस की डिग्री हो। यानी विशेषज्ञ डॉक्टर हो। सारंगढ़ के मेडिकल अफसर डॉ. एफआर निराला को वहीं सीएमएचओ का प्रभार दिया गया है। ऐसे ही जिला अस्पताल बलौदाबाजार में पदस्थ मेडिकल अफसर अब उसी जिले में सीएमएचओ का काम देखेंगे। सवाल उठता है कि क्या जिला अस्पताल में कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है, जिन्हें सीएमएचओ बनाया जाए। बीएमओ डॉ. विजय खोग्रागडे मोहला-मानपर डॉ. यशवंत ध्रुव प्रभारी सिविल सर्जन बीजापुर को बेमेतरा का सीएमएचओ का प्रभार दिया गया है। इसी तरह मेडिकल अफसर बीजापुर डॉ. अजय रामटेके को दंतेवाड़ा सीएमएचओ, डॉ. रामेश्वर शर्मा को पेंड्रा मरवाही, डॉ. कपिल देव पैकरा को सूरजपुर, डॉ. रत्ना ठाकुर को बीजापुर में सीएमओ पदस्थ किया गया है। डॉ. आयुष जायसवाल बैकुंठपुर के सिविल सर्जन, डॉ. अवधेश पाणिग्रही सक्ती के सीएमओ बनाया गया है। वहीं डॉ. आरके चतुर्वेदी बस्तर के प्रभारी सीएमओ को जिला अस्पताल में मेडिकल अफसर पद पर डिमोट कर दिया गया है। डॉ. आई नागेश्वर राव, पेंड्रा मरवाही के सीएमओ को जिला अस्पताल में मेडिकल अफसर पदस्थ किया गया है। उन्हें भी पदावनत कर दिया गया है। डॉ. आरएस सिंह सूरजपुर के प्रभारी सीएमओ को शिशु रोग विशेषज्ञ पदस्थ किया गया है। मेडिसिन विशेषज्ञ व बलौदाबाजार के प्रभारी सीएमओ को वहीं जिला अस्पताल में पदस्थ किया गया है। डॉ. शेषराम मंडावी अब मोहला मानपुर के सीएमओ के बजाय जिला अस्पताल में मेडिकल अफसर होंगे। डॉ. संतराम चुरेंद्र प्रभारी सीएमओ बेमेतरा को जिला अस्पताल में पैथोलॉजी विशेषज्ञ के रूप में पदस्थ किया गया है।
क्या सूरजपुर जिला हुआ दामादों के लिए आरक्षित
सूरजपुर जिले में तो यह प्रतीत होने लगा है की यहां के सीएमएचओ का पद नेताओं पूर्व विधायकों के दामादों के लिए आरक्षित हो गया है। पहले यहां कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेस के पूर्व विधायक के दामाद को सीएमएचओ बनाया गया था वहीं भाजपा की सरकार आते ही यहां भाजपा के पूर्व विधायक के दामाद को सीएमएचओ बना
दिया गया। देखा जाए तो प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग अब केवल सेटिंग वाला विभाग और कमाई के जरिए वाला विभाग हो गया है और जिसे मौका मिल रहा है वह लोगों के स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर इस विभाग में लूट ही मचाना चाहता है जो अभी भी जारी है। न योग्यता की जरूरत न ही वरिष्ठता का कोई पैमाना फर्जी डिग्री और फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र ही जैसे स्वास्थ्य विभाग की पहचान हो गई है यह कहना गलत नहीं होगा। वैसे वर्तमान में मरीजों के इलाज की बजाए जेब भरने और अपनों को उपकृत करने का ही खेल विभाग में जारी नजर आ रहा है। मरीज आज और बुरी स्थिति में हैं।
पैसा प्रभार पॉवर की नीति हुई हावी?
स्वास्थ्य विभाग में पैसा,प्रभाव,पॉवर की नीति हावी हो गई है। पैसा ही विभाग की अब पहचान हो गया है। वैसे जो पैसा देकर पद पाएगा वह कमाएगा ही और क्यों निशुल्क सेवा देगा यह समझा जा सकता है। आज स्थिति यह है की कई डॉक्टर पैसा लेते देते पकड़े जा चुके हैं उन पर कार्यवाही भी हो चुकी है वहीं अब प्रशासनिक पदों पर भी लेनदेन से नियुक्ति दी जा रही है जो सूचना है और ऐसे में भ्रष्टाचार कम होने की बजाए बढ़ेगा यह कहना गलत नहीं होगा।
डॉ. रामेश्वर शर्मा की वापसी ने उठाया बड़ा सवाल
डॉक्टर रामेश्वर शर्मा का बलरामपुर जिले से सीधे सीएमएचओ जीपिएम बन जाना कई सवाल खड़े करता है। पूर्व की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जिसपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों उसे भाजपा की सरकार में उपकृत करना वह भी स्वास्थ्य मंत्री के प्रभार जिले में जिम्मा देना यह ऐसे ही हजम होने वाला मामला नहीं है। डॉक्टर साहब ने इसकी भारी कीमत चुकाई है आगे भी उनका जमकर भ्रष्टाचार का वादा है यह सूत्रों का कहना है जिस आधार पर उन्हें पद दिया गया है।वैसे डॉक्टर साहब का कोरोना आपदा काल कोरिया के लोग नहीं भूल सके हैं कैसे आपदा को अवसर उन्होंने बनाया था यह लोगों को याद है वहीं उनके व्यवहार से भी लोग वाकिफ हैं जो स्वास्थ्य विभाग के लिए आखिरी कील वाला मामला होगा।