@ दम है तेरे दमन में कितना…देखा है और देखेंगे….
@ पिता के चिता की आग भी नहीं बुझी… और सरकार ने संपादक के व्यवसायिक परिसर पर चलाया बुलडोजर…
@ दैनिक घटती-घटना के कलम बंद अभियान का असर…
@ विष्णु का सुशासन नारा देने वाली सरकार का असली चेहरा उजागर…
@ मानवता हुई शर्मसार…छुरी-लोटा लेकर बैठे दैनिक घटती-घटना अखबार के संपादक को हिंदू मान्यताओं के विरूद्व आना पड़ा घटना स्थल…
@ संपादक को क्रियाकर्म की अवस्था में देख होने लगी सरकार के कार्यवाही की निंदा…
@ खुद के स्टॉफ और विभाग के खिलाफ छप रही कमियों को दबाने स्वास्थ्य मंत्री ने रचा षडयंत्र…
-रवि सिंह-
रायपुर/अम्बिकापुर,30 जुलाई 2024 (घटती-घटना)। हिन्दू मान्यता के अनुसार यदि किसी घर में सदस्य का निधन हो जाए उस घर में अंतिम क्रिया कर्म तक मुखाग्नि देने वाले व्यक्ति को बाहर आने जाने की मनाही होती है, लेकिन प्रदेश में विष्णु का सुशासन नारा देने वाली सरकार के राज में वह मान्यता भी चूर-चूर हो गई,जब एक पुत्र द्वारा मुखाग्नि के चंद दिनों बाद ही सरकारी कार्यवाही के दौरान मजबूरन घटना स्थल पर जाकर बैठना पड़ा। पिता के चिता की आग भी अभी ठंडी नहीं पड़ी हो…उस पुत्र पर प्रदेश की सरकार ने ऐसा कहर बरपाया है… वह सिर्फ इसलिए कि एक अखबार के संपादक के नाते उनके द्वारा कलम बंद अभियान चलाया जा रहा है…। कलम बंद अभियान भी इसलिए की अखबार में छप रही वास्तविक खबरों को बंद कराने पहले विज्ञापन रोका जाता है,और उसके विरोध स्वरूप अखबार यह जानने की कोशिश करता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री यह बतलाये कि आखिर किन खबरों का प्रकाशन किया जाए लेकिन इन सभी से प्रदेश के बाहुबली स्वास्थ्य मंत्री को इतनी तकलीफ हुई कि उन्हंोने पहले अपने विवादित भतीजे से अखबार के संपादक के कब्जे की जमीन को लेकर शिकायत कराई और आनन-फानन में उसे जमींदोज करने का षडयंत्र रच डाला लेकिन मंत्री जी…यह बिकाऊ कलमकार नहीं हैं…और ना ही आपके दमन से डरने वाले लोग हैं…। आज आपने व्यावसायिक परिसर जिसमें प्रेस कार्यालय भी है उसे उजाड़ा है। हो सकता है कल अपने शक्ति का उपयोग करते हुए घर भी उजाड़ने आ जाएं। लेकिन यह विदित हो कि जब तक संपादक सह अखबार के निडर पत्रकारों पर ही बुलडोजर नहीं चला दिया जाता…तब तक यह अभियान चलेगा…और पहले से ज्यादा तेज चलेगा…। दम है तेरे दमन में कितना देखा है और देखेंगे…।
अंतिम संस्कार के पांच दिनों में ही हुई कार्यवाही
घटती-घटना अखबार के संपादक अविनाश सिंह हैं उनके बीमार पिता का निधन विगत 2४ जुलाई को ही अंबिकापुर में हुआ था ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण संपादक अविनाश सिंह ने ही पिता के मृत शरीर को मुखाग्नि दी है। प्रदेश की विष्णु देव सरकार के द्वारा संपादक के नमनाकला स्थित व्यावसायिक परिसर को कब्जा का आरोप लगाते हुए रविवार को अलसुबह तोड़ने की कार्यवाही शुरू हुई। दो दिन पूर्व नोटिस दिया गया और परिस्थिति को देखते हए संपादक के द्वारा समय की मांग की गई लेकिन उसे नहीं माना गया और अंततः मानसिक रूप से प्रताçड़त करने के लिए व्यावसायिक परिसर को जमींदोज कर दिया गया। जिस संपादक पुत्र के पिता का निधन हुए अभी 13 दिन भी व्यतीत नहीं हुआ हो उस पर की गई कार्यवाही की अब सर्वत्र निंदा हो रही है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज को दबाने के लिए प्रदेश सरकार का यह कदम निंदनीय है यह एक आम आदमी भी कह रहा है।
क्या चिता की आग को जवाब दे पाएंगे स्वास्थ्य मंत्री?
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि इन दिनों अखबार के संपादक पितृशोक में हैं और उनके द्वारा ही मुखाग्नि दी गई है। यह सब कुछ जानते हुए भी प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने छप रही खबरों से क्षुब्ध और बदले की भावना से ग्रसित हो यह कार्यवाही कराई। सवाल धधक रहे हैं…कि जिस घर में शोक पड़ा हो…पुत्र अंतिम क्रियाकर्म कर रहा हो…और जिस पुत्र के पिता की चिता की आग अभी ठंडी भी ना पड़ी हो…उस पर इस प्रकार की कार्यवाही की गई है…। आवाज दबाने के लिए यह कार्यवाही पूरी योजना के साथ की गई। हिंदू मान्यता के आधार पर ही सवाल उठ रहे हैं…कि क्या प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल उस चिता की आग को जवाब दे पाएंगे…क्या कि जिस पर पुत्र ने आग लगाई हो… वह तो अभी बुझी ही नही थी…कि आपने दमन का रूप अख्तियार कर लिया…। इतनी जल्दबाजी आखिर क्यों थी मंत्री जी…।
हिंदू मान्यताओं को तोड़ने सरकार ने किया विवश
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी के निधन पर 10 वें दिन शुद्वि और 13 वें दिन ब्रम्हभोज सह शांति का कार्यक्रम संपन्न होता है। इस बीच मुखाग्नि देने वाले व्यक्ति को घर से बाहर आने जाने की मनाही होती है,लेकिन सरकार ने संपादक के पिता के निधन के पांचवे दिन ही रविवार को उनके व्यावसायिक परिसर को अवैध कब्जा बतलाते हुए तोड़ने का काम किया जबकि लगभग पिछले ३५-४० वर्षो से वहां कब्जा बना हुआ है और मामला न्यायालय में चल रहा है। सरकार ने अखबार की आवाज दबाने के लिए यह कार्यवाही तो की लेकिन इससे सरकार ने हिंदू मान्यता को तोड़ने पर संपादक को विवश भी कर दिया। उस स्थल पर संपादक को कब्जाधारी होने के नाते आना भी जरूरी था,इसलिए उन्हें विवश होकर आना पड़ा। सरकार के नुमाइंदो ने स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के इशारे पर संपादक को विरोध करने पर जेल भेजने की तैयारी भी कर डाली थी…लेकिन यह कलमवीर योद्वा है…जो नियम और कानूनों से अच्छी तरह से वाकिफ है।
संपादक को शोकग्रस्त देख पसीजा लोगों का दिल
घटती-घटना अखबार के संपादक का व्यावसायिक परिसर नमना कला में स्थित है,और यहीं परिसर में प्रेस कार्यालय भी है। रविवार दिवस सरकारी दमन के दौरान अखबार के संपादक को अपने अन्य सामानों की सुरक्षा के मद्देनजर वहां आना आवश्यक था,इसलिए वे उसी वेषभूषा में वहां मौजूद थे जिस वेशभूषा को पहनकर अंतिम क्रिया कर्म किया जाता है। संपादक को छूरी-लोटा लेकर उस स्थल पर आने के लिए विवश करना इस सरकार का असली चेहरा भी उजागर करता है। संपादक को उस अवस्था में वहां मौजूद देखकर लोगों का दिल पसीज गया और लोगों ने सरकार के उक्त कार्यवाही की जमकर निंदा की।
अखबार के कलम बंद अभियान से हो रही सरकार की किरकिरी
उल्लेखनीय है कि घटती-घटना अखबार के द्वारा पिछले कई महीनों से स्वास्थ्य विभाग की कमियों का खबर किया जा रहा है। सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के साथ ऐसे-ऐसे अधिकारियों की टोली है जो कि विवादित हैं। ऐसे-ऐसे दलालों का साथ है जो कि संघ और खुद भाजपा के विरोधी रहे हैं। खुद स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे प्रभारी डीपीएम फर्जी मार्कशीट के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। उनके द्वारा कोरोना काल मे जमकर एनएचएम के पैसे की बंदरबाट की गई। स्वास्थ्य का हाल ऐसा है कि विधायकों द्वारा विधानसभा में मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। इन्हीं सब बातों का प्रकाशन अखबार द्वारा किया जा रहा था जो कि स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल को पसंद नहीं आया तो उन्होंने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज दबाने का नया रास्ता अपनाया। उनके द्वारा एक माह पहले अखबार को मिलने वाला विभागीय विज्ञापन बंद करा दिया गया। जिसके बाद अखबार ने यह पूछते हुए कलम बंद अभियान चला दिया कि अब प्रदेश के मुख्यमंत्री,स्वास्थ्य मंत्री और जनसंपर्क के मुखिया खुद यह बतायें कि आखिर किन खबरों का प्रकाशन किया जाए। अखबार द्वारा एक माह से कलम बंद अभियान जारी है,इस अभियान का मुद्दा विधानसभा सत्र में भी विधायक देवेन्द्र यादव ने उठाया। लगातार कलम बंद अभियान से प्रदेश सरकार की किरकिरी भी हो रही है जिसके बाद सरकार ने अखबार की आवाज दबाने के लिए ऐसा कदम उठाया है।
पहले कराई भतीजे से शिकायत फिर कार्यवाही
घटती-घटना अखबार द्वारा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के तथाकथित भतीजे सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम प्रिंस जायसवाल के खिलाफ खबरों का प्रकाशन कर यह बतलाया जा रहा था कि किस प्रकार उनके द्वारा स्वास्थ्य विभाग को दीमक की तरह चट किया जा रहा है,उनके कार्यशैली के कारण किस प्रकार स्वास्थ्य विभाग में आए दिन विवाद हो रहा है। यही नहीं उनके फर्जी डिग्री के बारे में भी खबरों का प्रकाशन किया जा रहा था। इससे स्वास्थ्य मंत्री का भतीजा भी क्षुब्ध था, मंत्री ने मई महीने में अखबार के संपादक के उक्त व्यावसायिक परिसर के खिलाफ शिकायत कराई थी। विवादित भतीजे द्वारा शिकायत के बाद उक्त कार्यवाही से पहले सरकार ने नगरीय क्षेत्रों में शासकीय भूमि के आबंटन/ व्यवस्थापन / फ्र ी होल्ड के संबंध में जारी निर्देश और परिपत्र को निरस्त करने का आदेश भी आनन-फानन में जारी किया। आदेश जारी होने के दिन ही संपादक को नोटिस जारी करने की तिथि अंकित की गई लेकिन संपादक को वह पत्र 26 जुलाई की शाम प्राप्त हुआ। तत्काल ही संपादक ने पत्र लिखकर समय देने की मांग की लेकिन उसे दरकिनार कर एक दिन बाद तोड़-फोड़ की कार्यवाही की गई।
व्यावसायिक परिसर तोड़ड़ने स्वास्थ्य मंत्री ने रचा षडयंत्र
स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी तमाम कमियों के प्रकाशन से मंत्री श्यामबिहारी पहले से क्षुब्ध थे, इसके बाद कलम बंद अभियान शुरू किया गया। इस पर उनके तेवर और बदलते गए। सूत्रों का कहना है कि इस पर स्वास्थ्य मंत्री ने खुद षडयंत्र रचते हुए अपने विशेष सहायक आशुतोष पांडेय को इस काम की जिम्मेदारी दी। सरकार के मुखिया विष्णुदेव साय तक भी आधी-अधूरी जानकारी दिग्भ्रमित कर उन्हें विश्वास में लिया गया। जिसके बाद सरगुजा जिला प्रशासन को कार्यवाही के निर्देश जारी किए गए। कार्यवाही के दौरान प्रशासनिक तैयारी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसकी तैयारी कई दिनों से की गई थी। इस दौरान कार्यवाही में शामिल अधिकारियों ने भी दबी जुबान से सीएम हाउस और स्वास्थ्य मंत्री के व्यक्तिगत रूचि होने की बात स्वीकारी।
क्या खुद को बाहुबली समझने लगे हैं स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल?
माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी यह शांत प्रदेश है,भोले-भाले आदिवासी भाई-बहनों का प्रदेश हैं। जहां संस्कृति और संस्कारों का खासा महत्व है, ऐसे में आपने पितृशोक में पड़े संपादक के व्यावसायिक परिसर पर कार्यवाही कराकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज को भी दबाने का कुत्सित और विफल प्रयास किया है। संभावना है कि आप खुद को एक मंत्री के रूप मे बाहुबली समझते होंगे लेकिन इतना सनद रहे कि वक्त की मार बहुत तगड़ी होती है,अभी आप पर पद और सत्ता का घमंड सर चढ़कर बोल रहा है। वक्त आने पर अखबार आपको आपके इस कदम का एहसास भी खुद कराएगा।
अब क्या खुद संपादक व सह पत्रकारों पर चलवाएंगे बुलडोजर?
माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी…यह कलम की आवाज है जो दबेगी नहीं…आपने पितृशोक में व्यस्त एक पुत्र पर कहर बरपाया है… आपने कोशिश की है कि इससे अखबार की आवाज दब जाएगी…कमियों का प्रकाशन रूक जाएगा…लेकिन मंत्री जी… यह डरपोक और बिकाउ कलमकार नही हैं …जो इस दमनपूर्वक कार्यवाही पर रूक जाएंगे…। शोक काल में आपने जो कदम उठाया है…वह सभ्य समाज में कतई स्वीकार नहीं है…। हमारा अभियान जारी रहेगा…और तीव्र गति से जारी रहेगा…। व्यावसायिक परिसर को अवैध कब्जा बतलाते हुए आपने तोड़वाने का काम तो कर दिया लेकिन इससे आवाज दबेगी नहीं इसके लिए आपको बाहुबली का परिचय देते हुए खुद संपादक और पत्रकार पर बुलडोजर चलाना पड़ेगा। आप यह कदम कितना जल्दी उठाते हैं यह संपादक सह पत्रकार को बेसब्री से इंतजार है।
प्रदेश की यह पहली घटना है जिसमें अखबार की आवाज दबाने का यह घटिया नमूना देखा गया
प्रदेश सरकार ने सरगुजा जिला प्रशासन के माध्यम से यह कार्यवाही कराई पूरे कार्यवाही की रचना स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल ने की। एक अखबार में छप रही खबरों से विभागीय कमियों को ठीक ना कर उल्टे अखबार को ही नेस्तनाबुद करने की यह कोशिश की गई है। जिसकी प्रदेश भर में निंदा हो रही है। लोगो का यह कहना है कि प्रदेश के इतिहास में यह पहली घटना है जिसमें कि अखबार की आवाज दबाने के लिए इस प्रकार का कृत्य किया गया है। यह घटिया नमूना इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला।
क्या अन्य कब्जाधारियों के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत कर पाएंगे स्वास्थ्य मंत्री?
खुद को बाहुबली समझने वाले प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल से प्रत्यक्ष रूप से एक सवाल उठाना लाजमी है कि आपके द्वारा संपादक के व्यावसायिक परिसर को अवैध कब्जा बतलाते हुए तोड़वाया गया है। इस प्रदेश में और खासकर आपके विधानसभा में ही कब्जाधारियों की संख्या काफी अधिक है,क्या आप अन्य कब्जाधारियों के खिलाफ ऐसी कार्यवाही करा पाएंगे या सिर्फ ओछी और निम्न स्तर की राजनीति का परिचय देते हुए आपने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज को दबाने का काम किया है।