अम्बिकापुर @ कलम बंद का अट्ठाईसवां दिन @ खुला पत्र @भाई स्वास्थ्य मंत्री का ओएसडी…क्या इस वजह से सीनियर को दरकिनार कर जूनियर को बनाया गया सूरजपुर का सीएस?

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रवि सिंह-
रायपुर/अम्बिकापुर, 27 जुलाई 2024 (घटती-घटना)।
मंत्री जी अपने ओएसडी के साथ-साथ उनके परिवार का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं। चूंकि ओएसडी संजय मरकाम के एक भाई अजय मरकाम चिकित्सक हैं। वे शिशु रोग विशेषज्ञ हैं। वरिष्ठता के क्रम में काफी नीचे हैं। चूंकि स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी सगे भाई हैं इसलिए नियमों को दरकिनार करते हुए वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए अजय मरकाम को ही सूरजपुर जिला चिकित्सालय का सीएस बना दिया गया है। यह हाल है प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग का… और विभाग के मंत्री जी का…कि ओएसडी के परिवार का भी पूरा पूरा ख्याल रख रहे हैं। जिन्हें दायित्व सौंपा गया है वह जिला चिकित्सालय को भी अच्छे से नहीं चला पा रहे हैं। आलम यह है कि वहां के शौचालय तक में ताले लगे रहते हैं जिसकी शिकायत सीएमएचओ तक पहुंचती है जब जिला चिकित्सालय को नहीं चला पा रहे हैं तो ऐसे में जिम्मेदारी देना कहीं ना कहीं गलत फैसला ही कहा जाएगा?
ज्ञात हो कि प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल सत्ता और पद के घमंड में मस्त हैं…विभाग में सुविधाएं दम तोड़ रही हैं…शासकीय चिकित्सालयों में मरीज कराह रहे हैं… मजबूरी है कि गरीबी के कारण निजी चिकित्सालय जा नहीं सकते। इन सबके बीच लोगों की भावनाओं और हो रही परेशानियों को देखते हुए जब घटती-घटना अखबार ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए समस्याओं को मंत्री जी के सामने रखने की कोशिश की तो मंत्री द्वारा लगातार अनदेखी की जाती रही। सलाहकार ना जाने क्या सलाह देते रहे कि तमाम कमियों को नजरअंदाज करते-करते आज स्वास्थ्य सुविधा प्रदेश भर में वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी हैं। लगातार खबरों का प्रकाशन सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया गया कि व्यवस्था में सुधार हो आम जन को लाभ मिल सके लेकिन यह मंत्री जी को नागवार गुजरा उन्होने कमियों को दूर करने का प्रयास तो नहीं किया लेकिन लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की आवाज को कुचलने का कुत्सित प्रयास जरूर किया जिसकी आज सर्वत्र निंदा हो रही है। सत्ता के नशे में चूर मे मंत्री जी ने अपनी ओछी मानसिकता का परिचय देते हुए घटती-घटना अखबार को मिलने वाले विभागीय विज्ञापनों पर मौखिक आदेश देते हुए सिर्फ इसलिए रोक लगवा दिया ताकि विभाग की कमियों का प्रकाशन बंद कर दिया जाए। कमियों को छुपाया जाए, जबरन की वाहवाही की जाए, लेकिन नहीं। यह लोकतंत्र में असंभव है, जो दिखेगा उसे लिखा ही जाएगा…कमियां बताई ही जाएंगी…यह आपकी समझ है कि आप उसे किस रूप में लेते हैं। बहरहाल कुठाराघात के विरूद्व कलम बंद अभियान के तहत घटती-घटना अखबार द्वारा मंत्री से बार-बार सवाल किया जा रहा कि आप खुद ही तय करें कि किन खबरों का प्रकाशन किया जाए लेकिन मंत्री अभी तक खबरों का चयन नहीं कर पाए हैं।

इसी कड़ी में आगे यह बतलाना जरूरी है कि आखिर स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल द्वारा अपने साथ किस प्रकार एक दागी अफसर को लेकर काम किया जा रहा है। जब साथ में दागी अफसर और स्टॉफ होंगे तो फिर विभाग की दशा में सुधार कैसे होगा। आखिर कैसे जनता की भलाई के लिए काम होंगे। बात है मंत्री जी के ओएसडी यानि की विशेष सहायक की। इस पद पर मंत्री जी ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजय मरकाम को पदस्थ किया है। संजय मरकाम पर आरोप है कि वे फर्जी दिव्यांग प्रमाण के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। इस संबंध में सूक्ष्मता से जांच और कार्यवाही भी लंबित है। ओएसडी श्री मरकाम पूर्व में जहां भी पदस्थ रहे वहां भी वे विवादित ही रहे हैं। फर्जी दिव्यांग प्रमाण-पत्र की जांच और कार्यवाही इसलिए लंबित है कि पिछली सरकार के मुखिया भूपेश बघेल के ओएसडी अरूण मरकाम थे जो कि संजय मरकार के सगे भाई हैं।

स्वास्थ्य मंत्री के तथाकथित भतीजे की डिग्री फर्जी है। यह आरोप पहले से ही लग रहे थे। वहीं अब डिग्री को लेकर नया आरोप लगा है जिसमें यह कहा जा रहा है की डिग्री दूरस्थ शिक्षा पद्धति से प्राप्त की गई है जबकि जिस पद पर स्वास्थ्य मंत्री के तथाकथित भतीजे की नियुक्ति हुई है उसमें भर्ती के लिए जो शर्त थी उसके अनुसार डिग्री नियमित पद्धति परीक्षा प्रणाली वाली होनी चाहिए थी। अब आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो शिकायतकर्ता जाने लेकिन यदि बात उठी है तो कुछ न कुछ सच्चाई जरूर है जिसकी जांच होनी चाहिए। जांच होगी निष्पक्ष होगी इसमें संशय है क्योंकि मामला स्वास्थ्य मंत्री के भतीजे से जुड़ा हुआ है। अब स्वास्थ्य मंत्री क्या जांच का आदेश देंगे क्या जांच निष्पक्ष होगी क्या कार्यवाही होगी यदि डिग्री फर्जी होगी कई सवाल हैं जिनके जवाब स्वास्थ्य मंत्री को देना होगा।

स्वास्थ्य मंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी का दिव्यांग प्रमाण-पत्र फर्जी है जिसके आधार पर वह नौकरी कर रहे हैं यह आरोप भी लगता रहा है और हाल ही में दिव्यांग संघ ने नामजद शिकायत कर कार्यवाही की मांग की है। वैसे स्वास्थ्य मंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी स्वास्थ्य मंत्री के यहां इसलिए संलग्न भी हैं जो सूत्रों का कहना है की जिससे यदि कभी दिव्यांग प्रमाण-पत्रों की जांच की बात सामने आए तो स्वास्थ्य विभाग के मंत्री के कारण वह बच निकलें क्योंकि दिव्यांगता की जांच स्वास्थ्य विभाग से ही होनी है वहीं वह चूंकि श्रवण बाधित बनकर नौकरी कर रहे हैं इसलिए उनके प्रमाण-पत्र के फर्जी होने की पूरी संभावना है और उन्हे स्वास्थ्य मंत्री का ही सहारा है। वैसे स्वास्थ्य मंत्री विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी की शिकायत के बाद भी इसलिए मामले में मौन हैं क्योंकि उनका वादा है ऐसा भी सूत्रों का कहना है। वैसे दिव्यांग संघ की शिकायत के बाद स्वास्थ्य मंत्री क्या विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी को खुद से दूर करते हुए उसकी जांच कराते हैं यह बड़ा सवाल है और यह दिव्यांग लोगों के हक भी सवाल है।

प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री काफी सुर्खियों में हैं और वह प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ करने के मामले में सुर्खियों में नहीं हैं बल्कि वह अपने तथाकथित भतीजे सहित अपने विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी को लेकर सुर्खियों में हैं जिनमें से उनके भतीजे से ऊपर फर्जी डिग्री के सहारे नौकरी करने का आरोप है भ्रष्टाचार का आरोप है वहीं विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी के ऊपर फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनने का आरोप है। दोनों के लिए स्वास्थ्य मंत्री ढाल बने हुए हैं वहीं गलत लोगों के विरुद्ध समाचार प्रकाशित करने के कारण स्वास्थ्य मंत्री और सरकार एक अखबार के पीछे पड़े हुए हैं जो की सच का प्रकाशन कर रहा है। कुल मिलाकर भ्रष्ट लोगों के लिए या आरोपित लोगो के लिए सरकार और स्वास्थ्य मंत्री ढाल बनने का काम कर रहे हैं और इसके लिए वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी कुचलने तैयार हैं।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया निष्पक्ष और स्वतंत्र होना चाहिए, परंतु वर्तमान में न्याय के लिए पत्रकारों को कलम बंद आंदोलन करना पड़ रहा है। यह अत्यंत विडंबना की बात है कि जब एक पत्रकार भ्रष्टाचार के प्रमाण सहित खबर प्रस्तुत करता है, तो शासन और स्वास्थ्य मंत्री इस पर कोई कार्रवाई नहीं करते? अब सरकार से लोग सोशल मीडिया पर स्वतंत्र सवाल पूछ रहे हैं और वह जानना चाह रहे हैं की क्या सच लिखने पर सरकार की कमियां दिखाने पर या भ्रष्टाचार उजागर करने पर कलम बंद करने का ही दबाव सरकार डालेगी सभी पर।

आपके पास स्वास्थ्य विभाग के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों के प्रमाण होने के बावजूद इस मामले पर कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया गया है?

क्या आप तत्काल एक निष्पक्ष जांच समिति बैठा सकते हैं जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रिंस जायसवाल पर लगे आरोपों की जांच करे और सच्चाई सामने लाए?

पत्रकारों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करने की सुरक्षा कब दी जाएगी ताकि वे बिना किसी डर के समाज के लिए सच्चाई उजागर कर सकें? छत्तीसगढ़ शासन से निवेदन है कि वे इस मुद्दे पर संज्ञान लें और उचित कार्रवाई करें, ताकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मजबूत और स्वतंत्र बना रहे।


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