अम्बिकापुर @ कलम बंद का इक्कीसवां दिन @ खुला पत्र @आखिर क्यों अखबार के शासकीय विज्ञापन पर लगा रोक…क्या छप रही कमियों को रोकने का है प्रयास?

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-रवि सिंह-
कोरिया,20 जुलाई 2024 (घटती-घटना)।
राजनीति के बदलते परिवेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का स्थान खत्म होता दिख रहा है इसकी वजह सिर्फ है सत्ता का दुरुपयोग। आजादी से लेकर आज तक कई बार सत्ता परिवर्तन देखने को मिला जिसमें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ जो कि पत्रकारिता है जिसकी भूमिका अहम रही है। पत्रकारिता का उद्देश्य हमेशा ही लोकतंत्र को संतुलित करने का होता रहा है यही वजह थी कि पत्रकारिता में सिर्फ कमियों का प्रकाशन हुआ करता था ना कि पत्रकार कोई कार्यवाही करता था लेकिन पत्रकार के बताए गए कमियों पर संज्ञान जरूर लिया जाता था। आज के परिवेश में कमियों को दिखाने वाले पत्रकारों व संपादकों की अब खैर नहीं रही जबकि कमी दिखाने पर कभी कलेक्टर नाराज तो कभी एसपी नाराज और तो और कभी सत्ता दल के विधायक व मंत्री नाराज होते है। वजह सिर्फ उनकी कमियों को खबरों के माध्यम से उनके सामने रखने मात्र से पत्रकार संपादक व अखबार के प्रति उनकी नाराजगी और द्वेष की भावना पनप रही है। इसके पीछे की एक मुख्य वजह यह भी है कि इनका कच्चे आँख कान का होना क्योंकि यह आँख कान के कितने कच्चे हो चुके हैं कि इन्हें इनकी कमियां दिखाने व बताने पर इनके लोग ही उन्हें उनकी कमियां देखने नहीं देते उन्हें सिर्फ पत्रकारों के प्रति भड़काते हैं। उन्हें यह बताते हैं कि आप तो कुछ भी कर सकते हैं, आप पत्रकार पर अपराध भी पंजीकृत करा सकते हैं,पत्रकार को जेल भी भिजवा सकते हैं,आर्थिक नुकसान के लिए अखबार का सरकारी विज्ञापन रोक सकते है ये सब कुछ आपके हाथ में है। आप क्यों यह सब नहीं करते कुछ ऐसा ही प्रचलन इस समय देखने को और सुनने को मिल रहा है। सरकार किसी भी पार्टी की बने, उदाहरण के तौर पर कई है जो किसी से छुपा नहीं है। कमियों को ना तो बड़े अधिकारी पचा पा रहे हैं.और ना ही सत्ता पक्ष के विधायक व मंत्री बचा पा रहे हैं.और कमी में सुधार लाने के बजाए कमियों का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं.जो कहीं ना कहीं इन्हें आगामी चुनाव में नुकसान ही पहुंचाएगा। जो कि बीते लोकसभा में इसका नुकसान देखने को भी मिला और आगे भी नुकसान उठाना पड़ेगा। ब्यूरोक्रेसी में शासन भी जनप्रतिनिधियों का गुलाम बना हुआ है जनप्रतिनिधि जैसा कहेंगे प्रशासन,शासन-व्यवस्था वैसा चलेगा सही गलत का फैसला लेने का अधिकार उनके पास भी नहीं रहा। अब सारे अधिकार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हाथ में आ गया है। यही वजह है कि उनके मनमानी जनता का आशीर्वाद मिलते ही बढ़ जाता है, जनता भी मतदान के समय अपना महत्वपूर्ण मत देकर एक मजबूत लोकतंत्र की कल्पना करती है पर वह मजबूत लोकतंत्र जनता के लिए 5 साल के लिए सबक बन जाता है। इस समय हम मौजूदा भाजपा की बनी छत्तीसगढ़ सरकार की बात कर रहे हैं जिसके मंत्री उनकी कमियों की खबर प्रकाशित होने से घबरा गए और घबराहट में अखबार पर दबाव बनाने का एक नया तरीका निकाल लिया। वह तरीका है शासकीय विज्ञापन रोककर आर्थिक क्षति देने का…लगातार एक मंत्री जी की खबर उनकी कमियों के प्रकाशित हो रही जिसके बाद मंत्री जी के मौखिक आदेश पर तुगलकी फरमान जारी हो गया।.वह फरमान था जनसंपर्क विभाग के संचनालय आयुक्त का वह भी मौखिक…जिसमें दैनिक घटती-घटना का बिना कोई नोटिस जारी किए शासकीय विज्ञापन रोका गया। ताकि कमियों की खबर प्रकाशित न हो सके, या फिर ना की जाए…? इसके विरूद्ध कलमबंद अभियान की शुरूआत हो गयी है, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के विभाग जनसंपर्क के द्वारा स्वास्थ्य मंत्री श्री श्यामबिहारी जायसवाल के विभाग के संबंधित समाचारों के प्रकाशन पर जनसंपर्क संचनालय के आयुक्त सह संचालक आईपीएस श्री मयंक श्रीवास्तव के मौखिक आदेश पर घटती-घटना के शासकीय विज्ञापन पर रोक लगाकर दबाव बनाने से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के मूलभूत हक पर कुठाराघात के विरूद्ध कलमबंद अभियान की शुरुआत हुईजो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए काला दिवस जैसा होगा ?


ये बात बिल्कुल सही है कि मीडिया देश की ज़रुरत है, बिना इसके हम स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं। संपादक,मालिक और पत्रकार,सभी एक ढर्रे पर चल रहे हैं, सभी बदलाव की बात करते हैं,मगर कोई बदलना ही नहीं चाहता है। देश का स्वघोषित चौथा स्तंभ डगमगा रहा है। अपने विचारों से,अपने कर्तव्यों से बचा लो,अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि पहले के तीन स्तंभ भी चौथे स्तंभ के लिए गंभीर नहीं है। उन्हें लगता है कि चौथे स्तंभ की जरूरत ही नहीं है? हम सब इस देश के आम नागरिक हैं मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरी पत्रकारिता क्षेत्र में कभी रुचि होगी पर अचानक समय के साथ रुचि बढ़ी और लोगों के लिए उनकी आवाज बनना अच्छा लगने लगा पर नहीं पता था कि उनकी आवाज बनना खुद के लिए कठिन हो जाएगा। आवाज भले ही हम दूसरे की बन रहे हैं पर समस्या खुद के लिए खड़ी हो रही है? क्योंकि जिनके लिए आवाज बन रहा हूं वह उस आवाज को बचाने के लिए प्रयत्न नहीं कर रहे हैं,पत्रकारिता की कोई पढ़ाई नहीं की पर काम करते-करते अनुभव होता गया,पत्रकारिता क्या है उसका उद्देश्य क्या है यह काम करते-करते ही समझ आया और यह भी समझ आया की चौथे स्तंभ की जरूरत ही नहीं है? और यह भी समझ आया की पत्रकारिता करना कठिन है।


140 करोड़ की आबादी होने के कारण देश में कई समस्याएं हैं, जो कुंडली मार कर बैठी हुई हैं। इन सबसे निपटने के लिए सरकार प्रयास कर रही होगी। हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, जहां हम अपनी पसंद की सरकार चुनते हैं। सरकार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की मदद से जनता के बीच में काम करती है,इन्हें देश का आधारभूत खंभा भी कहते हैं,हालांकि, समाज में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, वह जनता और सरकार के बीच एक पुलिया का काम करती है, इस कारण मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। समाज में मीडिया की भूमिका पर बात करने से पहले हमें यह जानना चाहिए कि मीडिया क्या है? मीडिया हमारे चारों ओर मौजूद है, जो टी.वी. शो हम देखते हैं,संगीत जो हम रेडियो पर सुनते हैं,पत्र एवं पत्रिकाएं जो हम रोज पढ़ते हैं, यह हमारे चारों ओर यह मौजूद होता है, तो निश्चित सी बात है इसका प्रभाव भी समाज के ऊपर पड़ेगा ही, लोकतंत्र के चार स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता हैं, स्वाभाविक-सी बात है कि जिस सिंहासन के चार पायों में से एक भी पाया ख़राब हो जाये, तो वह अपनी आन-बान-शान गंवा देता है, मीडिया की महत्ता को समझाते हुए अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने कहा था, यदि मुझे कभी यह निश्चित करने के लिए कहा गया कि अख़बार और सरकार में से किसी एक को चुनना है, तो मैं बिना हिचक यही कहूंगा कि सरकार चाहे न हो, लेकिन अख़बारों का अस्तित्व अवश्य रहे।


देश में सभी परियोजनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम कार्यपालिका का होता है, विधायिका का काम जनता के लिए उन योजनाओं का बनाना होता है, देश में कानून-व्यवस्था और एक स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण के लिए न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। मीडिया का काम एक निगरानी की तरह होता है, कहीं भी गड़बड़ी होती है,उसे तुरंत प्रकाश में लाता है मीडिया। कभी-कभी न्याय पालिका भी सरकार के कामों पर कमेंट या सवाल उठाती है, जिसे न्यायिक सक्रियता कहते हैं,विधायिका और कार्यपालिका तो एक-दूसरे के पूरक होते ही हैं, मीडिया और सरकार के बीच के रिश्ते हमेशा अच्छे नहीं हो सकते, क्योंकि मीडिया का काम ही है सरकारी कामकाज पर नज़र रखना,लेकिन वह सरकार को लोगों की समस्याओं, उनकी भावनाओं और उनकी मांगों से भी अवगत कराने का काम करता है और यह मौक़ा उपलब्ध कराता है कि सरकार जनभावनाओं के अनुरूप काम करे!


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