@ बचा लो चौथे स्तंभ को अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है…जिम्मेदार लोगों से है अपील…
अम्बिकापुर, 05 जुलाई 2024 (घटती-घटना)।. बात बिल्कुल सही है कि मीडिया देश की ज़रुरत है,बिना इसके हम स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं,संपादक, मालिक और पत्रकार,सभी एक ढर्रे पर चल रहे हैं,सभी बदलाव की बात करते हैं,मगर कोई बदलना ही नहीं चाहता है,देश का स्वघोषित चौथा स्तंभ डगमगा रहा है,अपने विचारों से,अपने कर्तव्यों से बचा लोज्अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि पहले के तीन स्तंभ भी चौथे स्तंभ के लिए गंभीर नहीं है। उन्हें लगता है कि चौथे स्तंभ की जरूरत ही नहीं है? समाचार-पत्र राजनीतिज्ञों और अन्य सत्ताधारियों का सशक्त उपकरण बन गया है,निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए उनका मनमाना प्रयोग करते हैं,सभी अपने अधिकारों की सीमा लांघते हैं मगर क्यों? हमने व हमारे अतीत ने इस बात को सच होते भी देखा है,याद किजिए वो दिन जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था,तब अंग्रेजी हुकूमत के पांव उखाड़ने के लिए एकमात्र साधन अख़बार ही था,विश्व में अमेरिका और कई पश्चिमी देश ऐसे हैं,जहां पत्रकारिता स्वतंत्र है,भारत में भी प्रेस की अपनी भूमिका निभा रही है,हालांकि अन्य देशों की अपेक्षा हमारे देश में प्रेस के लिए कोई अलग से कानून नहीं हैं,हिन्दुस्तान में एक आम नागरिक को जो अधिकार दिया गया है,वही अधिकार प्रेस को भी दिया गया है,आर्टिकल 19(1) (ए) के अनुसार, हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया है,मीडिया को भी इसी दायरे में रखा गया है,हम आज जिस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं,वो सरकार और मीडिया है,सरकार के बिना मीडिया अधूरी है, और मीडिया के बिना सरकार,देश की समस्याओं को अख़बार या टीवी के माध्यम से मीडिया सरकार तक अपनी बात पहुंचाती है,देखा जाए,तो प्रेस की भूमिका जनप्रतिनिधि की होती है,कई बार ये प्रतिनिधि सीमा को लांघ जाते हैं,नाजी नेताओं ने ठीक ही कहा है कि यदि झूठ को दस या बीस बार बोला जाए,तो वह सच बन जाता है, समाचार पत्रों के संदर्भ में यह कथन सही उतरता है,आज समाचार पत्र राजनीतिज्ञों और अन्य सत्ताधारियों का सशक्त उपकरण बन गया है,वे अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए उनका मनमाना प्रयोग करते हैं,सभी अपने अधिकारों की सीमा लांघते हैं मगर क्यों?
@ क्या छापें माननीय मुख्यमंत्री जी?