क्या इस आदेश की जगह स्वास्थ्य सुविधा में आए इतना सुधार की न करे कोई खुद ही विडियोग्राफी-फोटोग्राफी इसका नहीं रखना था स्वास्थ्य विभाग को ध्यान?
माननीय उच्च न्यायालय में दायर याचिका में पारित आदेश का उल्लेख कर स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव ने जारी किया आदेश…
अब शासकीय अस्पतालों में इलाज के दौरान की फोटोग्राफी और विडियोग्राफी होगी प्रतिबंधित
अस्पताल में इलाज के दौरान फोटो,वीडियो बनाने पर रोक…फर्श पर बच्चे की डिलीवरी के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया आदेश
अस्पतालों में चिकित्सकों के रहने के साथ ही मानकों का पालन करने के निर्देश…मरीज की निजता भंग न हो, स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया आदेश।
–रवि सिंह –
रायपुर/सरगुजा 20 जून 2024 (घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग काफी सुर्खियों में है,वह भी तबसे जबसे स्वास्थ्य विभाग को लेकर मंत्री जी के बड़े बड़े दावे केवल दावे साबित हो रहे हैं और वहीं प्रदेश की शासकीय स्वास्थ्य व्यवस्था जहां वेंटीलेटर पर पहुंचती जा रही है। बता दें की प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के बड़े बड़े दावे जब स्वास्थ्य मामले में खोखले साबित हो गए और जब स्वास्थ्य व्यवस्था पटरी पर ला पाना मुश्किल नजर आने लगा स्वास्थ्य विभाग को तब अब प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग नई तरकीब के साथ आगे आता नजर आ रहा है जिसमे अब प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को और उसकी कमियों को दिखाना प्रतिबंधित होगा और जिसका निर्देश जारी कर दिया गया है?
बता दें की सरगुजा में शासकीय स्वास्थ्य सुविधा की पोल खोलती एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी कर दी गई थी और जिसको लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य व्यवस्था मामले में स्वास्थ्य विभाग की काफी फजीहत हुई थी और जिसको लेकर कार्यवाहियां भी की गई थीं लेकिन जब कार्यवाहियों के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की कमियां दूर होंगी यह विश्वास खुद स्वास्थ्य विभाग के ही जिम्मेदार अधिकारियों को नही रह गया उन्होंने कमियां छिपाने का नया तरीका ढूंढ निकाला। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर सभी शासकीय अस्पतालों मेडिकल कॉलेजों को यह निर्देशित कर दिया है की कोई भी इलाज संदर्भित विडियो और फोटो सोशल मीडिया पर प्रसारित न हो। स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव का आदेश यह तो बताता है की कैसे कमियां छिपाई जाएं और फोटो विडियो न खींचने के आदेश का कैसे पालन किया जाए कैसे अब शासकीय अस्पतालों को दुनिया का अजूबा साबित कर फोटो विडियो से दूर रखा जाए वहीं कैसे स्वास्थ्य सुविधा बेहतर हो इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कोई फिक्र या कोई चिंता है यह या इस बात का आदेश में कोई उल्लेख नहीं है। जारी आदेश में भले ही माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पारित एक आदेश का उल्लेख है जो निजता हनन का विषय है उल्लेखित हो लेकिन उसमे क्या यह भी लिखा है की अपनी कमियां छिपाने कोई जिम्मेदार विभाग लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सम्हालने वाला विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाए केवल उस पर पर्दा डालकर उसकी कमियां ही छिपाने प्रयासरत रहेगा? प्रदेश में आए दिन स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती तस्वीरें साथ ही समाचार प्रकाशित होते रहते हैं, कई बार खुद नेताओं की भी स्वीकारोक्ति सामने आई है की कैसे शासकीय अस्पताल या तो रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं या फिर जहां इलाज के आभाव में लोग परेशान हो रहे हैं या दम तोड दे रहे हैं। अब स्वास्थ्य विभाग आने वाले समय में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल कोई खोल सकेगा इस बात से तो निश्चिंत रहेगा लेकिन वह कैसे सुधार लायेगा व्यवस्था में वह बताना नहीं चाहता। न उपलध मशीनें काम कर रही हैं अस्पतालों की न ही विशेषज्ञ चिकित्सक ही हर जगह मौजूद हैं जो इलाज कर जान बचा लें प्रदेश के जरूरतमंद लोगों की। विभाग में कुछ देखने सुनने को है तो वह है केवल खरीदी निर्माण और इलाज के नाम पर राशि बंदरबाट की। वाहन व्यय, गोदाम के नाम पर स्वास्थ्य मद की राशि का बंदरबांट, कई अन्य तरकीब के साथ राशि की बंदरबांट केवल विभाग में जारी है स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल है यह बात किसी से छिपा नहीं है।
फर्श पर बच्चे की डिलीवरी के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया आदेश
सरगुजा जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवानगर में फर्श पर प्रसव की घटना के बाद सरकार सख्त हो गई है। इस संवेदनशील मुद्दे को उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद राज्य सरकार की ओर से आदेश जारी किए गए हैं। सरकार ने शासकीय अस्पतालों में उपचार करा रहे व्यक्तियों की शासकीय अथवा गैर शासकीय व्यक्तियों के द्वारा इस प्रकार फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी नहीं करने के आदेश जारी किए हैं, जिससे मरीज की निजता भंग होती हो।इस आदेश का सख्ती से पालन कराने के निर्देश हैं। इसी प्रकार संस्थागत प्रसव के लिए अधिकारियों को गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व, प्रसव के दौरान तथा प्रसव पश्चात प्रबंधन के लिए तय मानकों का पालन करने निर्देशित किया गया है। लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज पिंगुआ की ओर से जारी आदेशों के पीछे नवानगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की वह घटना कारण है जिसमें शासकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मचारियों के अस्पताल से गायब रहने के कारण महिला का फर्श पर ही प्रसव हो गया था।इस घटना का एक वीडियो भी प्रसारित हुआ था। स्वास्थ्य सेवाएं के उपसंचालक डा. डीके ने कहा कि मरीजों के हित को ध्यान में रखते हुए शासन की तरफ से आदेश जारी किया गया है। इससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। इलाज से संबंधित यदि कोई शिकायत है तो अस्पताल अधीक्षक से किया जा सकता है।
ध्यान रखें निजता का न हो उल्लंघन
अपर मुख्य सचिव मनोज पिंगुआ ने जारी आदेश में कहा है कि नवानगर की घटना का वीडियो प्रसारित किए जाने की जितनी निंदा की जाए यह कम होगी पर विभाग की लापरवाही कितनी है इस पर कुछ नहीं कहा। इस प्रकार की घटना की वीडियोग्राफी नहीं की जानी चाहिए। महिलाओं के वीडियो या किसी भी व्यक्तिगत सामग्री को बिना उनकी अनुमति के प्रसारित करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह कई कानूनी और सामाजिक समस्याओं को भी जन्म दे सकता है।
प्रसव सुविधा को लेकर सरकार ने जारी किया आदेश
नवानगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की घटना कि भविष्य में पुनरावृत्त रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी आदेश में प्रसव पूर्व, प्रसव के दौरान तथा प्रसव के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं के तय मानक का पालन करने कहा गया है। आदेश में कहा गया है कि गृह से स्वास्थ्य संस्थाओं के मध्य प्रसव पीड़ा शुरू होने पर मितानिन के माध्यम से नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र को दूरभाष के माध्यम से सूचित किया जाना चाहिए। साथ ही परिवहन के लिए सामान्य अवस्था में 102 महतारी एक्सप्रेस तथा जटिल अवस्था में 108 संजीवनी एक्सप्रेस के माध्यम से घर से स्वास्थ्य संस्था में पहुंचने के लिए समन्वय किया जाना चाहिए।
क्या छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग ने अपनी कमियां छिपाने का खोज निकाला नायाब तरीका?
छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव का जारी आदेश यह बताता है की अब इलाज के दौरान की कोई वीडियो फोटो लेना वर्जित होगा जिसके लिए अस्पतालों को खासकर शासकीय अस्पतालों को निर्देशित किया गया है। एक तरह से इस आदेश को इस तरह देखा जा रहा है की स्वास्थ्य विभाग ने अपनी कमियां छिपाने का नायाब तरीका निकाल लिया है। विभाग किसी भी स्थिति में स्वयं की कार्यप्रणाली में सुधार नहीं लाने वाला वह अब कई तरह के प्रतिबंध के सहारे ही अपनी कमियां छिपाएगा यह जारी आदेश के बाद तय हो गया।
अपने कर्मचारियों व डॉक्टरों की लापरवाही के लिए सख्त नहीं विभाग पर कमियां उजागर ना हो इसके लिए पूरा प्रयास?
शासकीय स्वास्थ्य विभाग का प्रदेश में कैसा हाल है यह किसी से छिपा नहीं है। मजबूरी में ही लोग शासकीय अस्पताल जाना चाहते हैं वहीं आपात स्थिति और अतिशीघ्र किसी जरूरत पर वह शासकीय अस्पताल जाते हैं वह भी उन सुविधाओं के लिए पहुंचते हैं जो उन्हे वहां से रेफर उपरांत आगे बेहतर मिल सकती हैं। कुल मिलाकर शासकीय अस्पतालों में लोग खुद को रेफर कराने पहुंचते हैं और रेफर होकर आगे बेहतर इलाज प्राप्त कर पाते हैं। शासकीय अस्पतालों में जिला अस्पतालों का भी ऐसा ही हाल है और यह कहना गलत नहीं होगा की शासकीय अस्पतालों से लोगों का विश्वास उठ चुका है। शासकीय अस्पतालों की इस स्थिति के पीछे किसका हांथ है यह भी सभी जानते हैं। आज शासकीय अस्पतालों में सुविधा उपलध कराने वहां जांच सुविधा सहित इलाज की सुविधा प्रदान करने डॉक्टरों सहित अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति है और वह अपना काम बेहतर ढंग से नहीं कर रहे हैं जिस कारण लोगों का विश्वास शासकीय अस्पतालों से कम हो रहा है वहीं विभाग अब अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए उनकी कार्यप्रणाली सुधर सके इसके लिए कोई आदेश निकालने की बजाए ऐसे आदेश निकाल रहा है जिससे विभाग के कर्मचारियों को और अधिक स्वतंत्रता मिल सके और वह अपनी मनमानी जारी रख सकें। जरूरी है की कर्मचारियों सहित डॉक्टरों की कार्यप्रणाली किसी तरह सुधारी जाए और इस संबध में आदेश निकाला जाए।
स्वास्थ्य विभाग का नया आदेश बना आलोचना का कारण
स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव का नया जारी आदेश जिसमे इलाज के दौरान की विडियो फोटो निकालना प्रतिबंधित किया गया है मामले में बता दें की अब विभाग की ही आलोचना हो रही है और अब लोगों का कहना है की विभाग अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं लाना चाहता वह अपनी कमियां छिपाकर ही केवल अपनी साख बचाना चाहता है जो आदेश से स्पष्ट है।
अपर मुख्य सचिव को तब क्यों नहीं आया निजता का ध्यान जब कर्मचारी व डॉक्टरों के द्वारा मरीज के साथ होता है दुर्व्यवहार?
कभी कभी नहीं प्रतिदिन ओपीडी में जिला चिकित्सालय हों या खंड चिकित्सालय डॉक्टर और कर्मचारियों द्वारा मरीजों से दुर्व्यवहार किया जाता है जिसे मरीज इसलिए ध्यान से निकाल देते हैं क्योंकि उन्हे प्रथम अपने इलाज की चिंता होती है। फोटो विडियो प्रतिबंध मामले में यह भी स्वास्थ्य विभाग पर सवाल उठता है की तब के लिए क्या है उसके पास विकल्प, क्या मरीज अपमान या तिरस्कार झेलकर ही इलाज का लाभ ले यही मंशा है विभाग की वह अपने साथ होने वाली किसी ज्यादती को लेकर कोई प्रतिक्रिया न दे कोई सबूत तैयार न करे। मरीज के हित का और उसके सम्मान सहित उसके अधिकारों का भी ध्यान रखना चाहिए था विभाग को आदेश जारी करने के दौरान।
जब अस्पताल में नहीं मिलती एंबुलेंस अस्पताल में नहीं होते डॉक्टर अस्पताल में नहीं होती दवाइयां ऐसी स्थिति के लिए कड़े आदेश क्यों नहीं निकलते?
कई कर अस्पताल में मरीज जब गंभीर हालत में पहुंचता है इलाज के लिए न डॉक्टर होते हैं तत्काल में न एंबुलेस मिल पाता है न ही दवाइयां ही मिल पाती हैं और तब आक्रोश या किसी शिकायत उद्देश्य से कोई परिजन मरीज का वस्तुस्थिति की विडियो फोटो निकाल लेता है वहीं वह उसे शिकायती लहजे में सुधार की अपेक्षा के साथ साझा कर देता है क्या ऐसे मामले में भी प्रतिबंध लागू होगा यह आदेश में स्पष्ट होना चाहिए वहीं अब लोगों का कहना है की डॉक्टर एंबुलेंस और दवाइयां समय पर न उपलध हो अस्पतालों में तो अस्पताल के कर्मचारियों डॉक्टरों पर क्या कार्यवाही होगी इसको लेकर भी आदेश कड़े निकलने चाहिए जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था पटरी पर आ सके केवल कमियों पर ही पर्दा न डालकर विभाग को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए यह लोगों का मानना है।
दुविधा भरा आदेश की पूरी तरह स्पष्ट नहीं…क्या चाहते हो स्वास्थ्य विभाग के अपर सचिव?
आदेश भी अपने आप में स्पष्ट नहीं है विभाग क्या चाहता है अवर मुख्य सचिव क्या आदेश करना चाह रहे हैं यह स्पष्ट नहीं है जारी आदेश अनुसार लोग दुविधा में…क्या केवल महिला मरीजों के इलाज के दौरान की विडियो फोटो प्रतिबंधित होगी निकालनी या फिर सभी मरीजों के मामले में लागू होगा आदेश, क्या इलाज के दौरान की कोई अप्रिय स्थिति जिसमे दुर्व्यवहार का कोई मामला हो उसका भी विडियो फोटो निकालना प्रतिबंधित होगा? अस्पताल में एक मामला प्रदेश के ही सुरजपुर जिले से सामने आया था जहां जिला अस्पताल में पशु विचरण कर रही थी क्या ऐसे भी विडियो फोटो निकालना प्रतिबंधित होगा यह कई मामले हैं जिनको लेकर आदेश में स्पष्टता होनी थी। दुविधा भरा आदेश इस लिए मना जा रहा है क्योकि जिला चिकित्सालय व मेडिकल कॉलेज सहित अस्पताल सार्वजनिक जगह में आते हैं यहां पर लगभग लोग का स्वास्थ्य से संबंधित आना जाना पड़ता है सार्वजनिक जगह पर निजात का उल्लंघन कायम नहीं होता ऐसा जानकारो का मानना है। वही प्रसव एक कमरे में होता है जहां पर वैसे भी किसी का जाना वर्जित होता है महिलाओं से संबंधित जगह पर वार्ड अलग रखा जाता है पर वहां पर भी उनके परिजनों सहित लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
क्या स्वास्थ्य सुविधा 24 घंटे नहीं मिलनी चाहिए…पुलिस सुविधा बिना छुट्टी के और स्वास्थ्य सुविधा में छुट्टी जो जीवन से जुड़ा हुआ विषय है?
स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव ने एक आदेश जारी कर यह तो स्पष्ट कर दिया की अब स्वास्थ्य विभाग की कमियां कोई उजागर नहीं करेगा लेकिन उन्होंने इसी तरह यह आदेश जारी नहीं किया की प्रदेश के लोगों को 24 घण्टे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके इसको लेकर भी शासकीय अस्पताल प्रयास करें या ऐसे जारी आदेश का पालन करें। जब पुलिस की सुविधा कानून व्यवस्था की दृष्टि से 24 घंटे की है आम लोगों के लिए तो स्वास्थ्य मामले में ऐसा क्यों नहीं है। अक्सर यह बात सामने आ रही है की केवल शासकीय अस्पतालों में एक दो एमरजेंसी डॉक्टर बैठाकर यह साबित किया जा रहा है की शासकीय अस्पताल 24 घंटे सेवा प्रदान कर रहे हैं जबकि केवल डॉक्टर के भरोसे ही हर इलाज संभव नहीं होना है और पूरा स्वास्थ्य अमला जब तक 24 घंटे उपलब्ध नहीं रहेगा अस्पतालों में किसी भी आपात स्थिति में मरीज को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिलना नामुमकिन है। इसलिए जरूरी है की 24 घंटे सुविधा उपलद्ध हो अस्पतालों में शासकीय इसलिए यह प्रयास किए जाने चाहिए निर्देश जारी किए जाने चाहिए की हर तरह की सुविधा के साथ अस्पताल तैयार रहें केवल डॉक्टरों के भरोसे ही न रहे अस्पताल जांच और अन्य आवश्यक जरूरी सेवा देने वाले भी उलब्ध रहें हर पल तभी सम्भव हो सकेगा 24 घंटे का इलाज।
छुट्टी के दिन यदि दुर्घटना का कोई मामला जिला अस्पताल पहुंच जाता है तो रेफर के अलावा कोई विकल्प नहीं
शासकीय अस्पतालों में छुट्टी के दिन यदि कोई गंभीर मामला या कोई दुर्घटना मामला पहुंच जाता है तब देखा जाता है की रेफर के अलावा कुछ नहीं करते शासकीय अस्पताल के डॉक्टर जिसमे जिला चिकित्सालयों का भी यही हाल है। छुट्टी के दिन अस्पताल का अमला जिसमे शासकीय अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर को यदि छोड़ दिया जाए जो एमरजेंसी ड्यूटी करता है तो अन्य सुविधा प्रदाता अवकाश पर रहते हैं और यही हाल रात्रिकाल में भी होता है और छुट्टी के दिन या रात में कोई गंभीर मरीज जिसमे दुर्घटना से जुड़ा कोई मामला यदि अस्पताल पहुंचता है तो यह देखा जाता है की उसे जिला चिकित्सालय से भी अन्यत्र रेफर करना पड़ता है क्योंकि ऐसी स्थिति में जांच और मशीन का उपयोग कर मरीज की तत्कालीन स्वास्थ्य की जानकारी जुटाने का जिम्मा सम्हालने वाले अवकाश पर होते हैं या दिन का काम खत्म कर रात में घर में आराम कर रहे होते हैं और फिर अकेले डॉक्टर करे तो करे क्या वह भी रेफर कर अपनी जिम्मेदारी से या तो बच निकलता है या फिर वह रेफर करना ही उसकी मजबूरी होती है।
छुट्टी के दिन ना तो कोई टेस्ट होता है ना सीटी स्कैन ना ही सोनोग्राफी,मरीज को भागना पड़ता है निजी संस्थाओं के पास
छुट्टी के दिन और रात के समय जिला चिकित्सालय में न तो सिटी स्कैन की सुविधा मिलती है न ही सोनोग्राफी की न ही किसी जांच की, दुर्घटना जैसे मामले अवकाश दिवस न सामने आएं ऐसा भी संभव नहीं है ऐसे में मरीजों को लेकर उनके परिजनों को निजी अस्पतालों का ही रुख करना पड़ता है और शासकीय अस्पताल औचित्यहीन साबित हो जाते हैं। अब इस समस्या को लेकर कोई आवाज नहीं उठा सकेगा यह भी स्पष्ट कर दिया स्वास्थ्य विभाग ने। स्वास्थ्य विभाग का हालिया जारी आदेश बताता है की स्वास्थ्य विभाग खासकर शासकीय अस्पताल को लेकर स्वास्थ्य विभाग कोई कमी दिखाए जाने पर रजामंद नहीं है और इसलिए वह अब प्रतिबंध लगाकर स्वास्थ्य विभाग की छवि बेहतर साबित करने का प्रयास करेगा।
स्वास्थ्य विभाग में जारी भ्रष्टाचार को लेकर भी स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं
प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग केवल अब खराब छवि कोई प्रकाशित न करे इस हिसाब से काम कर रही है। अपनी कमियां विभाग की सुधारने की बजाए स्वास्थ्य विभाग उन पर पर्दा ही पड़ा रहे यह चाहता है। स्वास्थ्य विभाग के पूर्व के भ्रष्टाचार वर्तमान में जारी भ्रष्टाचार को लेकर भी स्वास्थ्य विभाग कोई कार्यवाही करेगा लगता नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग एक मात्र रास्ता अख्तियार कर चुका है और वह यह है की कुछ भी हो जाए व्यवस्था में सुधार का वह पक्षधर नहीं वह पक्षधर है तो पर्दा डालकर कमियों को छिपाने के मामले में और वही वह कर रहा है।