कोरिया@क्या जिला चिकित्सालय अवकाश दिवस एवं रात के समय में पूरी तरह बन जाता है रेफर सेंटर?

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-रवि सिंह-
कोरिया,17 जून 2024 (घटती-घटना)। कोरिया जिले का जिला चिकित्सालय केवल रेफर सेंटर बनकर रह गया है यह कहना गलत नहीं होगा क्योंकि अब ऐसा लोग भी कहने लगे हैं। जिला चिकित्सालय में गंभीर स्थिति में यदि कोई मरीज आता है और यदि मामला दुर्घटना से जुड़ा होता है तो प्रायः देखा जाता है की उसे रेफर ही कर दिया जाता है वहीं गभीर किसी बीमारी के मामले में ही ऐसा ही देखा जाता है। यह स्थिति और तब ज्यादा नजर आती है जब या तो मरीज रात्रिकालीन समय में पहुंचता है या फिर वह अवकाश दिवस पहुंचता है। अस्पताल में इलाज प्रारंभिक उसका शुरू किया तो जाता है लेकिन इसी बीच मरीज के परिजन को यह भी समझा दिया जाता है की रेफर के लिए तैयार रहें।बता दें की ऐसा इसलिए ज्यादा देखने को मिलता है छुट्टी के दिनों में और रात्रिकालीन समय में क्योंकि ऐसे समय में केवल डॉक्टर अस्पताल में मौजूद रहते हैं एक दो वह भी एमरजेंसी वाले वहीं अन्य सुविधा जिसमे जांच सुविधा मशीन जांच सुविधा का जिम्मा सम्हालने वाले प्रशिक्षित कर्मचारी सम्मिलित होते हैं वह इस समय उपस्थित नहीं रहते जिस कारण से डॉक्टर भी मरीज को रेफर ही करने में विश्वास रखते हैं।
बता दें की जांच करने वाले और मशीन ऑपरेटर विशेषज्ञ अवकाश दिवस और रात्रिकालीन समय में उपस्थित नहीं रहते और जिस वजह से डॉक्टर भी मरीज की स्थिति भांप नहीं पाते और उन्हे मजबूरी में भी मरीज को रेफर करना पड़ता है। बैकुंठपुर के जिला चिकित्सालय में तो यह प्रायः घटने वाली घटना है और यह देखा जाता है की अवकाश का दिन हो या रात का समय दुर्घटना मामले में सिटी स्कैन की सुविधा मरीज को नहीं मिल पाती वहीं अन्य जांच सुविधा भी मरीज को नहीं मिल पाती इसलिए मरीज के परिजनों को रेफर के लिए तैयार रहना पड़ता है और इस दौरान कई बार मरीज सुविधायुक्त अस्पताल पहुंचकर बच भी जाते हैं और कई बार कइयों को जान से भी हांथ धोना पड़ जाता है। रेफर वाले मरीजों को सुविधा भी निजी अस्पतालों में मिल पाती है और इस तरह शासकीय अस्पतालों के औचित्य पर ही सवाल खड़ा हो जाता है।
स्वास्थ्य विभाग में जारी भ्रष्टाचार को लेकर भी स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं
प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग केवल अब खराब छवि कोई प्रकाशित न करे इस हिसाब से काम कर रही है। अपनी कमियां विभाग की सुधारने की बजाए स्वास्थ्य विभाग उन पर पर्दा ही पड़ा रहे यह चाहता है। स्वास्थ्य विभाग के पूर्व के भ्रष्टाचार वर्तमान में जारी भ्रष्टाचार को लेकर भी स्वास्थ्य विभाग कोई कार्यवाही करेगा लगता नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग एक मात्र रास्ता अख्तियार कर चुका है और वह यह है की कुछ भी हो जाए व्यवस्था में सुधार का वह पक्षधर नहीं वह पक्षधर है तो पर्दा डालकर कमियों को छिपाने के मामले में और वही वह कर रहा है।
क्या कमियों को छिपाने का अच्छा बहाना ढूंढ लिया छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग ने…अब कमियां दिखाना निजता का उलंघन?
छत्तीसगढ़ प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग काफी सुर्खियों में है, वह भी तबसे जबसे स्वास्थ्य विभाग को लेकर मंत्री जी के बड़े बड़े दावे केवल दावे साबित हो रहे हैं और वहीं प्रदेश की शासकीय स्वास्थ्य व्यवस्था जहां वेंटीलेटर पर पहुंचती जा रही है। बता दें की प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के बड़े बड़े दावे जब स्वास्थ्य मामले में खोखले साबित हो गए और जब स्वास्थ्य व्यवस्था पटरी पर ला पाना मुश्किल नजर आने लगा स्वास्थ्य विभाग को तब अब प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग नई तरकीब के साथ आगे आता नजर आ रहा है जिसमे अब प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को और उसकी कमियों को दिखाना प्रतिबंधित होगा और जिसका निर्देश जारी कर दिया गया है? बता दें की सरगुजा में शासकीय स्वास्थ्य सुविधा की पोल खोलती एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी कर दी गई थी और जिसको लेकर प्रदेश के स्वास्थ्य व्यवस्था मामले में स्वास्थ्य विभाग की काफी फजीहत हुई थी और जिसको लेकर कार्यवाहियां भी की गई थीं लेकिन जब कार्यवाहियों के बाद भी स्वास्थ्य विभाग की कमियां दूर होंगी यह विश्वास खुद स्वास्थ्य विभाग के ही जिम्मेदार अधिकारियों को नही रह गया उन्होंने कमियां छिपाने का नया तरीका ढूंढ निकाला। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर सभी शासकीय अस्पतालों मेडिकल कॉलेजों को यह निर्देशित कर दिया है की कोई भी इलाज संदर्भित विडियो और फोटो सोशल मीडिया पर प्रसारित न हो। स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव का आदेश यह तो बताता है की कैसे कमियां छिपाई जाएं और फोटो विडियो न खींचने के आदेश का कैसे पालन किया जाए कैसे अब शासकीय अस्पतालों को दुनिया का अजूबा साबित कर फोटो विडियो से दूर रखा जाए वहीं कैसे स्वास्थ्य सुविधा बेहतर हो इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कोई फिक्र या कोई चिंता है यह या इस बात का आदेश में कोई उल्लेख नहीं है। जारी आदेश में भले ही माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पारित एक आदेश का उल्लेख है जो निजता हनन का विषय है उल्लेखित हो लेकिन उसमे क्या यह भी लिखा है की अपनी कमियां छिपाने कोई जिम्मेदार विभाग लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सम्हालने वाला विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाए केवल उस पर पर्दा डालकर उसकी कमियां ही छिपाने प्रयासरत रहेगा? प्रदेश में आए दिन स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती तस्वीरें साथ ही समाचार प्रकाशित होते रहते हैं, कई बार खुद नेताओं की भी स्वीकारोक्ति सामने आई है की कैसे शासकीय अस्पताल या तो रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं या फिर जहां इलाज के आभाव में लोग परेशान हो रहे हैं या दम तोड दे रहे हैं। अब स्वास्थ्य विभाग आने वाले समय में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल कोई खोल सकेगा इस बात से तो निश्चिंत रहेगा लेकिन वह कैसे सुधार लायेगा व्यवस्था में वह बताना नहीं चाहता। न उपलध मशीनें काम कर रही हैं अस्पतालों की न ही विशेषज्ञ चिकित्सक ही हर जगह मौजूद हैं जो इलाज कर जान बचा लें प्रदेश के जरूरत मंद लोगों की। विभाग में कुछ देखने सुनने को है तो वह है केवल खरीदी निर्माण और इलाज के नाम पर राशि बंदरबाट की।
छुट्टी के दिन यदि दुर्घटना का कोई मामला जिला अस्पताल पहुंच जाता है तो रेफर के अलावा कोई विकल्प नहीं
शासकीय अस्पतालों में छुट्टी के दिन यदि कोई गंभीर मामला या कोई दुर्घटना मामला पहुंच जाता है तब देखा जाता है की रेफर के अलावा कुछ नहीं करते शासकीय अस्पताल के डॉक्टर जिसमे जिला चिकित्सालयों का भी यही हाल है। छुट्टी के दिन अस्पताल का अमला जिसमे शासकीय अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर को यदि छोड़ दिया जाए जो एमरजेंसी ड्यूटी करता है तो अन्य सुविधा प्रदाता अवकाश पर रहते हैं और यही हाल रात्रिकाल में भी होता है और छुट्टी के दिन या रात में कोई गंभीर मरीज जिसमे दुर्घटना से जुड़ा कोई मामला यदि अस्पताल पहुंचता है तो यह देखा जाता है की उसे जिला चिकित्सालय से भी अन्यत्र रेफर करना पड़ता है क्योंकि ऐसी स्थिति में जांच और मशीन का उपयोग कर मरीज की तत्कालीन स्वास्थ्य की जानकारी जुटाने का जिम्मा सम्हालने वाले अवकाश पर होते हैं या दिन का काम खत्म कर रात में घर में आराम कर रहे होते हैं और फिर अकेले डॉक्टर करे तो करे क्या वह भी रेफर कर अपनी जिम्मेदारी से या तो बच निकलता है या फिर वह रेफर करना ही उसकी मजबूरी होती है।
छुट्टी के दिन ना तो कोई टेस्ट होता है ना सीटी स्कैन ना ही सोनोग्राफी,मरीज को भागना पड़ता है निजी संस्थाओं के पास
छुट्टी के दिन और रात के समय जिला चिकित्सालय में न तो सिटी स्कैन की सुविधा मिलती है न ही सोनोग्राफी की न ही किसी जांच की, दुर्घटना जैसे मामले अवकाश दिवस न सामने आएं ऐसा भी संभव नहीं है ऐसे में मरीजों को लेकर उनके परिजनों को निजी अस्पतालों का ही रुख करना पड़ता है और शासकीय अस्पताल औचित्यहीन साबित हो जाते हैं। अब इस समस्या को लेकर कोई आवाज नहीं उठा सकेगा यह भी स्पष्ट कर दिया स्वास्थ्य विभाग ने। स्वास्थ्य विभाग का हालिया जारी आदेश बताता है की स्वास्थ्य विभाग खासकर शासकीय अस्पताल को लेकर स्वास्थ्य विभाग कोई कमी दिखाए जाने पर रजामंद नहीं है और इसलिए वह अब प्रतिबंध लगाकर स्वास्थ्य विभाग की छवि बेहतर साबित करने का प्रयास करेगा।
क्या स्वास्थ्य सुविधा 24 घंटे नहीं मिलनी चाहिए…पुलिस सुविधा बिना छुट्टी के और स्वास्थ्य सुविधा में छुट्टी जो जीवन से जुड़ा हुआ विषय है?
स्वास्थ्य विभाग के अवर मुख्य सचिव ने एक आदेश जारी कर यह तो स्पष्ट कर दिया की अब स्वास्थ्य विभाग की कमियां कोई उजागर नहीं करेगा लेकिन उन्होंने इसी तरह यह आदेश जारी नहीं किया की प्रदेश के लोगों को 24 घण्टे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके इसको लेकर भी शासकीय अस्पताल प्रयास करें या ऐसे जारी आदेश का पालन करें। जब पुलिस की सुविधा कानून व्यवस्था की दृष्टि से 24 घंटे की है आम लोगों के लिए तो स्वास्थ्य मामले में ऐसा क्यों नहीं है। अक्सर यह बात सामने आ रही है की केवल शासकीय अस्पतालों में एक दो एमरजेंसी डॉक्टर बैठाकर यह साबित किया जा रहा है की शासकीय अस्पताल 24 घंटे सेवा प्रदान कर रहे हैं जबकि केवल डॉक्टर के भरोसे ही हर इलाज संभव नहीं होना है और पूरा स्वास्थ्य अमला जब तक 24घंटे उपलध नहीं रहेगा अस्पतालों में किसी भी आपात स्थिति में मरीज को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिलना नामुमकिन है। इसलिए जरूरी है की 24 घंटे सुविधा उपलद्ध हो अस्पतालों में शासकीय इसलिए यह प्रयास किए जाने चाहिए निर्देश जारी किए जाने चाहिए की हर तरह की सुविधा के साथ अस्पताल तैयार रहें केवल डॉक्टरों के भरोसे ही न रहे अस्पताल जांच और अन्य आवश्यक जरूरी सेवा देने वाले भी उपलध रहें हर पल तभी सम्भव हो सकेगा 24 घंटे का इलाज।


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