- कृषि विज्ञान केंद्र कोरिया ने 15 एकड़ भूमि पर 41.27 लाख रुपए खर्च कर एक हजार नारियल के पौधे व औषधीय पौधे लगाए थे जो जीवित नहीं रहे
- क्या प्रशासन के लिए पौधे लगाना सिर्फ औपचारिकता या फिर महत्वपूर्ण दायित्व?
- मनरेगा से 41 लाख रुपए खर्च के बाद भी पौधे नहीं रहेगी जीवित…लाखों खर्च करने के बावजूद पौधे को पेड़ नहीं बनाया जा सका क्यों?
-रवि सिंह-
कोरिया,16 जून 2024 (घटती-घटना)। दिन प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन हो रहा जिसकी सिर्फ एक वजह है पेड़ों की कमी, इस समय पेड़ों की कमी मनुष्य जीवन पर कितना असर डाल रही है यह किसी से छुपा नहीं है 2024 की गर्मी भी इस बात का एहसास दिला गई कि पेड़ कितना जरूरी है और जिंदगी के लिए पेड़ अब कितना महत्वपूर्ण हो चुका है इसी बीच हम उन पलों को भी याद करें जब पोधे को लगाने में हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं पर खर्च किए गए पैसे सिर्फ पौधे लगाने तक ही रहते हैं वह पौधे पेड़ क्यों नहीं बन पाए यह सवाल बड़ा होता जा रहा है? इसके पीछे की सिर्फ एक मुख्य वजह है पौधे लगाने में भी भ्रष्टाचार, पौधे लगाते हैं काम और दिखाया जाता है ज्यादा और उसके आड में लाखों का भ्रष्टाचार हो जाता है, मानव अपनी ही जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा है और मानव वह भी है जो पौधों के नाम पर भ्रष्टाचार कर रहा है जबकि पौधे से पेड़ यदि बनेगा तो उसका लाभ सभी को होना है पर इसके बावजूद जिम्मेदार विभाग भ्रष्टाचार करने पर आतुर क्यों? वही जिस विभाग पर पौधे लगाना और पेड़ बचाने की जिम्मेदारी है वह भी विभाग इस खराब पर्यावरण का जिम्मेदार है वह विभाग के ईमानदारी से अपना काम नहीं कर रहा जिस वजह से पेड़ नष्ट हो रहा है और पौधों से पेड़ तैयार नहीं हो रहा है वन विभाग अपने मूल कर्तव्य से भटक कर सिर्फ भ्रष्टाचार व निर्माण में व्यस्त है उसे भी पेड़ों की जरूरत नहीं है?
मिली जानकारी के अनुसार कोरिया जिले के ग्राम पंचायत फूलपुर के शंकरपुर में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत कृषि विज्ञान केंद्र कोरिया ने 15 एकड़ भूमि पर 41.27 लाख रुपए खर्च कर एक हजार नारियल के पौधे व औषधीय पौधे लगाए थे पर यहां एक भी पौधा जीवित नहीं बचा है। सिंचाई सुविधा के अभाव में पौधे मर गए। आपको बता दें कि नारियल के पौधे जिस भूमि पर लगे थे वह जमीन पथरीली और टीले पर है। सिंचाई व्यवस्था के लिए केवीके ने यहां बोर खनन भी करवाया, लेकिन बोर में पानी नहीं मिला। झुमका बांध से पाइप कनेक्शन कर पानी लाने की योजना भी आगे नहीं बढ़ सकी। जिले में नारियल की मांग 12 महीने रहती है, इसे देखते हुए केवीके ने 6 से 8 माह के नारियल पौधों का रोपण किया था। पौधे बढ़ने भी लगे थे, लेकिन सिंचाई सुविधा के अभाव में पौधे जीवित नहीं बचे। केवीके ने मनरेगा के तहत तीन अलग-अलग स्वीकृति में कार्य को पूरा किया था। इसके तहत 15 एकड़ भूमि का समतलीकरण, फेंसिंग, गड्ढा खनन के साथ पौधे लगाए गए थे। विभाग के अनुसार साल 2020-21 में शुरू हुए कार्य में पहली प्रशासकीय स्वीकृति 13.09 लाख रुपए की मिली थी। इसमें श्रमिक लागत पर 8.38 लाख रुपए व सामग्री पर 4.71 लाख रुपए खर्च किए गए थे। दूसरी स्वीकृति 14.37 लाख थी, श्रमिक लागत 8.56 लाख व सामग्री पर 5.81 लाख रुपए लगे थे। वहीं तीसरी स्वीकृति 13.18 लाख रुपए थी। इसमें श्रमिकों को 3.55 लाख का भुगतान व सामग्री पर 9.63 लाख रुपए खर्च हुए।
केवीके से जानकारी लेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे
अब पौधौं के सूखने के बाद जिला पंचायत के सीईओ आशुतोष चतुर्वेदी का कहना है कि आपके माध्यम से जानकारी सामने आई है, लेकिन केवीके के अनुसार इसमें आशा अनुरूप सफलता नहीं हुई। सीईओ ने कहा कि केवीके से जानकारी लेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।