कोरिया,@कोरिया जिला अस्पताल में दो साल से धूल खा रहे आईसीयू के सामान

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तोड़ो बनाओ की रणनीति पर जिला अस्पताल… मरीजों की सुविधाओं की नही है किसी को सुध


-रवि सिंह-
कोरिया,30 मई 2024 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के स्वास्थ्य विभाग के हाल बेहाल पर हमेशा सवाल उठाता रहा है,वहीं जिला अस्पताल में मरीजों की सुविधाओं पर ना तो सीएमएचओ को कोई लेना-देना है और ना ही सीएस इसके लिए तैयार है, बस तोडो बनाओं और सीज खाते से राशि निकालों की तर्ज पर काम हो रहा है,इसके लिए अब लोक निर्माण विभाग से प्राक्कलन तक लेना उचित नहीं समझा जा रहा है। जबकि जीवनदीप समिति के गाईडलाइन में वो शामिल है।
जानकारी के अनुसार जिला अस्पताल में सिविल के कार्यो में अब कुछ चिकित्सक लगे हुए है। वो सीधे कार्यादेश देकर निर्माण कार्य करवा रहे है। जबकि जीवनदीप समिति की गाईडलाइन कुछ और कहती है। अस्पताल प्रबंधन निर्माण एजेन्सियों से किसी भी प्रकार का प्राक्कलन नहीं ले रहा है। जीवनदीप समिति की गाइडलाइन के अनुसार 50 हजार के उपर के निर्माण कार्यो की अनुमति कलेक्टर से लेकर खुली निविदा आमंत्रित कर किया जाना चाहिए और सिविल निर्माण कार्य में निर्माण एजेंसी से प्राक्कलन लेना जरूरी है। दूसरा एल्यूमेनियम के काम में उसे वजन के आधार पर लेने का प्रावधान है,जबकि यहां फीट के हिसाब से काम करवाया जा रहा है, इसमें बिल की राशि बढ़ जाती है,जबकि लोक निर्माण विभाग के एसओआर दर 2015 के आधार पर एल्यूमेनियम के कार्य वजन के आधार पर क्रय किये जाने का नियम और इससे लेने में ज्यादा मात्रा की सामग्री प्राप्त होती है। इस तरह हमेशा ही तोड़ो और बनाओं की रणनीति पर अस्पताल प्रबंधन काम कर रहा है, अभी इसकी रफ्तार इसलिए बढ़ गयी है कि कही 4 जून के बाद आचार संहिता के हटते ही ट्रांसफर ना हो जाए।
22 बिस्तरीय आईसीयू वार्ड बना स्टोर
मरीजों की सुविधा के लिए तत्कालिन कांग्रेस सरकार ने 22 बिस्तरीय आईसीयू वार्ड का निर्माण करवाया,आटोमेटिक पलंग से लेकर तमाम वेंटिलेटर,सेंटर मॉनिटर के साथ अन्य महंगे इलैक्ट्रनिक उपकरण सीजीएमएससी के द्वारा खरीदी गई थी परन्तु आईसीयू वार्ड शुरू नहीं हो सका,अब उस वार्ड में स्टोर का सामान रखवाया जा रहा है और जिला अस्पताल की पहली मंजिल पर संचालिक आईसीयू वार्ड बेहद सकरा है जहां मरीजों को सुविधाओं का टोटा बताया जा रहा है यहां मात्र तीन बेड ही है,कुछ को बाहर बेड लगाकर इलाज करना होता है, परन्तु अस्पताल प्रबंधन को इससे कोई लेना देना नही है।
तोड़ो और बनाओ की रणनीति
जिला अस्पताल के लड बैक के सामने 2016 में श्रवण परीक्षण कक्ष हुआ करता था,एल्युमीनियम सेक्शन के तहत उसका निर्माण कराया गया था। बाद में उसे तीसरी मंजिल पर शिफ्ट कर दिया गया और उसे तोड़ दिया गया,बचा एल्युमीनियम का सामान गायब हो गया,बस मौका देखते ही अब यहां नया एल्युमीनियम सेक्शन के तहत काम करवा दिया गया है और लड बैंक के सामने की जगह को एल्युमीनियम सेक्शन से घेरने की प्रक्रिया होने वाली है, यहां थोडा खुला स्थान है और यहां मरीजांे के परिजन और लड डोनेट करने वाले आकर बैठा करते है, अब इसे पूरी तरह बंद करने की तैयारी है। तोड़ो और नया बनाओं की तर्ज पर काम हो रहा है।
डॉयलीसिस कक्ष को कर दिया शिफ्ट
पूर्व में डायलीसिस के मरीजों को बड़े हालनुमा कक्ष में रखा गया था, उस पर अस्पताल प्रबंधन ने काफी खर्च किया था अब उसे सभाकक्ष बना दिया गयाा है,जबकि यहां कभी कभार ही कोई महत्वपूर्ण बैठक होती है, उस जगह से डायलीसिस वार्ड को हटाकर उसे छोटे हाल में शिफ्ट कर दिया गया है, अस्पताल प्रबंधन का बार बार खर्च बढ़े इस पर पूरा जोर है, डायलीसिस वार्ड में नियमित एक चिकित्सक की नियुक्ति जरूरी है, वो यहां नही है, डायलीसिस के साथ नेफ्रोलॉजिस्ट का समय-समय पर विजीट जरूरी है,इसके लिए अब तक कोई प्रयास नहीं किए है,संस्था का कहना है कि नेफ्रोलॉजिस्ट ऑनलाइन मरीजो को देख लेते है। ऐसे में आप सहज अंदाजा लगा सकते है कि अस्पताल प्रबंधन मरीजों की सुविधाओं को लेकर कितना संजीदा है। डायलीसिस सिर्फ टेक्नीशियन के भरोसे हो रहा है।
व्हील चेयर और ट्राली के लिए पैसे नही
जिला अस्पताल में दूर दराज से आने वाले मरीजों के लिए व्हील चेयर और ट्रॉली की कोई व्यवस्था नही है,जब जरूरत होती है या किसी बड़े आदमी को जरूरत पड़ती है तो व्हील चेयर को निकाल कर दिया जाता है। बताया जाता है कि इसके लिए प्रबंधन में पास राशि का अभाव है, जबकि जीवनदीप समिति में तमाम निर्माण कार्य के लिए और चाय नाश्ते के खर्च के लिए राशि की कमी नही है।


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