कोरिया/सुरजपुर @अपने विरुद्ध हुई शिकायत की जांच करवाने से घबरा रहे और दूसरे के विरुद्ध शिकायत कर जांच की कर रहे मांग…गजब डीपीएम साहब!

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-रवि सिंह-
कोरिया/सुरजपुर 28 मई 2024 (घटती-घटना)। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रोकने के लिए बहुत आसान सा तरीका अपनाया जाता है या तो झूठे मामले या फिर शिकायत और लोकतंत्र के चौथ स्तंभ की जिम्मेदारी निभाने वाला शिकायत करने वाले और उनकी कमियां दिखाने से पीछे हट जाता है,यह प्रयास आज से नहीं लंबे समय से चला रहा है पर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो लोकतंत्र और चौथे स्तंभ को बचाने का जिम्मा लिए हैं जो ऐसे लोगों से भी टकराने को तैयार है, खबर प्रकाशन पर अधिकांश बार यह आरोप लगता है की खबर तथ्यहीन है,कई बार ऐसी खबरें तथ्यहीन छप भी जाते हैं,उसकी वजह यह है की पत्रकार के पास जांच की जिम्मेदारी नहीं होती पत्रकार के पास दस्तावेज जुटाने के साधन नहीं होते,दस्तावेज जुटाने का साधन सिर्फ एक होता है वह सूचना का अधिकार जिसे देने में भी शासकीय विभाग के पसीने छूट जाते हैं फिर पत्रकार अपनी जासूसी व अपने संसाधनों के तहत जानकारी जुटाता है और खबर को तथ्यों के साथ प्रकाशित करने का प्रयास करता है और उसका उद्देश्य यह होता है की खबरों पर संज्ञान लिए जाए और कमियों को दूर किया जाए पर जिनकी कमियां उजागर होती हैं और उनकी खबर प्रकाशित होती है वह खबर उनके विरोध में होता है जिनके लिए वह खबर तथ्यहीन होते हैं,पर खबर तथ्यहीन है इसका प्रमाण कौन देगा? क्या जांच करने वाले जिम्मेदार उन तथ्यों की जांच कर जो खबर में छपी थी और क्या उसमें तथ्यहीन पाया गया? यह प्रमाण खबर जिसके विरुद्ध छपा उसे दे रहा है या फिर जिनके विरुद्ध खबर छपी वह खुद ही जांच करके खबर को तथ्यहीन साबित करने का प्रयास कर रहा है? जब खबर तथ्यहीन हो सकती है तो फिर शिकायतकर्ता की शिकायत भी तथ्यहीन ही होगी तब तो शिकायतकर्ता व खबर प्रकाशन करने वाले को जेल होना तय है पर जांच तो होनी ही चाहिए!
आखिर क्यों विरुद्ध में छपी खबर तथ्यहीन होती है और पक्ष में छपी खबर तथ्य के साथ होती?
पांच जिले वाले सरगुजा संभाग में एक स्वास्थ्य विभाग के डीपीएम पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बने हुए हैं उनके खिलाफ शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है जांच की मांग हो रही है पर जांच हो नहीं रही और जो जांच हो रही है उसमें क्या कार्रवाई हो रही है वह दोषमुक्त पाए जा रहे हैं या दोषी हैं? यह सब चीज भी दबाई-छिपाई जा रही है यह सारी चीज दस्तावेजों में है पर दस्तावेज जांच करने वाले के पास है,खबर भी जो तथ्यों के साथ प्रकाशित हुई है उसमें भी मामले की जांच की मांग की गई है,पर जिसके विरुद्ध लगातार खबर छप रही है उसकी कमियों की खबर छप रही है वह इस समय आग बबूला हो चुका है, इस समय वह अपना मूल काम छोड़कर समाजसेवी की भूमिका में आ गया है शिकायतकर्ता बना बैठा है,तनख्वाह सरकार की ले रहा है पर काम व शिकायतकर्ता का कर रहा है,इस समय सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम डॉक्टर प्रिंस जायसवाल पत्रकारों को जेल भेजने की ठान चुके हैं,अब लगता है कि पत्रकारों का खबर लिखना और जेल जाना आम हो जाएगा, क्योंकि तथ्यों के साथ कमियों को बताना लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का काम नहीं रह गया,अब तो अधिकारियों के गलत काम करने वालों के साथ हाथ मिलाकर चलना ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का काम हो गया है, यदि उनके साथ हाथ मिलाकर चलेंगे तो लोकतंत्र का चौथ स्तंभ सही है यदि उन्हें उनकी कमियां बताएंगे तो लोकतंत्र का चौथ स्तंभ तथ्यहीन हो जाता है।

अपने विरुद्ध हुई शिकायत की जांच करवाने से घबरा रहे और दूसरे के विरुद्ध शिकायत कर जांच की कर रहे मांग…
कुछ ऐसा ही इस समय सरगुजा संभाग में देखने को मिल रहा है स्वास्थ्य विभाग के एक प्रभारी डीपीएम है डॉक्टर प्रिंस जायसवाल जिनकी कमियों की शिकायत सभी अधिकारियों के टेबल पर पड़ी हुई है जांच की जिम्मेदारी भी उन्हें अधिकारियों के ऊपर है पर जांच करेगा कौन यह सवाल है? क्योंकि डीपीएम प्रभावशाली है पर पत्रकार को प्रभावशील बता रहे हैं,प्रभारी डीपीएम को अब तो डॉक्टर कहना भी असमंजस की स्थिति उत्पन्न होता है क्योंकि अब उनके डॉक्टर लिखने पर भी शिकायत हो चुकी है और उनकी डिग्री को फर्जी बताकर जांच की मांग की जा रही है,अब ऐसे में क्या उनके लिए डॉक्टर लिखना चाहिए या फिर जांच रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए? प्रभारी डीपीएम अपनी नजर में काफी पाक-साफ है सिर्फ अपने विभाग में ही वह कमियों के कीचड़ में धसे हुए हैं,दैनिक घटती-घटना के पत्रकार पर प्रभारी डीपीएम ने आरोप लगाया है कि उनके विरुद्ध छप रही खबर तथ्यहीन है पर उन्होंने खबरों की जांच अपने किसी प्रशासनिक अधिकारी से कराकर यह निर्णय ले लिया की खबर तथ्यहीन है? जबकि पाठकों की माने तो खबर तथ्यों पर आधारित है और जांच का विषय है जो सभी समाचारों में दिया गया है, खबर दैनिक घटती-घटना के पत्रकार के द्वारा लगाई जा रही है पर शिकायत संपादक की हो रही है ऐसे में सवाल यह भी उठना है की प्रभारी डीपीएम मानसिक बीमारी से ग्रसित है,और क्या किसी अंबिकापुर निवासी राजस्व अधिकारी के मार्गदर्शन पर चल रहे हैं। वैसे संपादक के विरुद्ध अब सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम शिकायत लेकर सामने आएं हैं जिसे वह मिडिया समूहों में खुद भेज रहे हैं क्योंकि उनका यह भी दावा है की बड़े समाचार पत्रों सहित बड़े पत्रकारों को वह अपने वश में कर चुके हैं और वह उनके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर सकते और जो हिम्मत करेगा वह उनसे बचेगा नहीं क्योंकि प्रशासनिक उनकी पकड़ ऊंची है भ्रष्टाचार के कारण उनके पास इतने धन व संसाधन है की वह ऐसे लोगों को कोई भी नुकसान आर्थिक शारीरिक पहुंचा सकते हैं।

क्या जासूसी करने का काम पत्रकार का नहीं है?
दैनिक घटती-घटना में 9 मई 2024 को खबर प्रकाशित होती है जिसमें सवाल किया जाता है कि सीजी 16 नंबर वाली इनोवा कार से कौन आया था जिससे मिलने कोरिया के पूर्व डीपीएम संकल्प हॉस्पिटल अंबिकापुर पहुंचे थे? शायद यह सवाल करना भी प्रभारी डीपीएम को अच्छा नहीं लगा उन्होंने कहा कि पत्रकार उनकी जासूसी कर रहे हैं पर सवाल यह उठता है कि आखिर पत्रकार उनकी जासूसी(पूछ-परख) क्यों ना करें? जब उनका कार्यस्थल सूरजपुर है और वहां पर वह न होकर अंबिकापुर किसी निजी अस्पताल में देखे जा रहे हैं तो सवाल तो उठता है? जबकि इस बात की जानकारी उनके खुद के अधिकारी मुख्य चिकित्सा एवम स्वास्थ्य अधिकारी को भी नहीं थी कि वह संकल्प अस्पताल गए हुए हैं आखिरकार कार्यदिवस के दिन उनका संकल्प अस्पताल में निजी काम से कार्यालय समय पर जाना आखिर इसकी जानकारी उन्होंने किसको दी? क्या यह उनके कार्य संहिता के विपरीत नहीं था? उनके अधिकारी बता रहे थे कि वह रायपुर गए हुए हैं पर वही वह शिकायत में बता रहे हैं की संकल्प अस्पताल में थे आखिर संकल्प अस्पताल का सीसीटीवी फुटेज इनके लिए क्यों नहीं प्रशासनिक अधिकारी ने जांच कराई? खुद की कमियों के प्रकाशन से इतना तिलमिला चुके हैं प्रभारी डीपीएम की न जाने अपने आप को क्या कर ले पर अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास बिल्कुल नहीं कर रहे, तत्काल में वह सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम है पर अपने कार्यालय समय पर उनका पहुंचना मुश्किल सा लगने लगा है यह कार्यालीन समय में कोरिया के थाना,एसपी,कलेक्टर के कार्यालय घूमते दिख जाएंगे पर वही अपने कार्यस्थल पर समय पर नहीं पहुंचेंगे क्या यह सब कमियां खबरों में प्रकाशित करना गुनाह है और यदि गुनाह है तो फिर सजा तो मिलनी ही चाहिए।
उनका अपने कार्यों में ध्यान कम अपने नर्सिंग कॉलेज में ध्यान ज्यादा…
सुरजपुर जिले के प्रभारी डीपीएम जिले के स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी के लिए काम करने नहीं गए हुए हैं। वह अपने नर्सिंग कॉलेज की बेहतरी के लिए ही काम करते हैं यह वह लगातार साबित कर रहे हैं। उनका नर्सिंग कॉलेज बैकुंठपुर में है और जिसको लेकर भी कई शिकायत है लेकिन उसकी जांच न हो और उनका व्यवसाय चलता रहे यह उनका मुख्य काम है। नर्सिंग कॉलेज को ही वह ज्यादा समय प्रदान भी करते हैं।
खुद का नर्सिंग कॉलेज चला रहे नियम विरुद्ध तरीके से
उनका खुद का नर्सिंग कॉलेज नियम विरुद्ध है। उनके नर्सिंग कॉलेज की जांच की जाए तो काफी अनियमितता पाई जायेगी। वैसे बता दें की डीपीएम सूरजपुर का नर्सिंग कॉलेज कभी जांच के दायरे में नहीं आएगा और वहां नियम विरुद्ध उसका संचालन होने उपरांत भी कार्यवाही नहीं होगी क्योंकि उनका खुद दावा है की जिले के बड़े अधिकारी उनकी गिरफ्त में है।
डॉ. प्रिंस का खुद ही विभागीय शिकायत काफी है आखिर अपनी ही शिकायतों पर जांच क्यों नहीं करवा रहे हैं और क्यों नहीं जांच कर कर बता दे रहे हैं कि पत्रकार तथ्यहीन खबर प्रकाशित कर रहा है…
डॉक्टर प्रिंस जायसवाल की विभागीय शिकायत काफी है। कई शिकायतों के बावजूद वह केवल जुगाड से संविदा में एनएचएम विभाग देख रहे हैं वह भी जिला सूरजपुर का। अब उन्हे शिकायतों के बाद ही कोरिया जिले से हटाया गया था यह भी सर्वविदित है। वैसे उनकी शिकायतों पर जब खबर का प्रकाशन होता है वह खबर को तहथ्यहीन बताते हैं। अब जब उनके अनुसार उनकी शिकायत और शिकायत के आधार पर प्रकाशित खबर तथ्यहीन है और यह वह ही तय कर रहे हैं तो वह क्यों नहीं अपनी शिकायतों की जांच करा लेते हैं और शिकायत तथ्यहीन होने का प्रमाणपत्र जारी करवा लेते हैं। बता दें की वह जब यह खुद दावा करते हैं की सरकार किसी की हो उनका भ्रष्टाचार शिष्टाचार है और उच्च अधिकारियों का भी वह मुंह बंद करना जानते हैं तो वह क्यों नहीं शिकायतों का समाधान अपने पक्ष में नहीं करा लेते हैं।
जब न्यायालय में परिवाद दायर कर चुके हैं तो फिर क्यों पुलिस से शिकायत कर रहे हैं ?
डीपीएम सूरजपुर प्रिंस जायसवाल काफी बौखला गए हैं। बता दें की वह न्यायालय में पत्रकार के विरुद्ध परिवाद दायर कर चुके हैं लेकिन अब वह पुनः शिकायत का भय दिखा रहे हैं जबकि पत्रकार और संपादक से उन्हे लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। वैसे उन्हे न्यायालय पर भी भरोसा नहीं है या उन्हे भय है की न्यायालय जाने से उन्हीं का पोल खुलेगा इसलिए वह मौन हैं यह कहना गलत नहीं होगा।
दैनिक घटती-घटना न्यायालय के लिए भी तैयार अब माननीय न्यायालय से ही करेंगे प्रभारी डीपीएम की जांच की मांग?
दैनिक घटती-घटना अब न्यायालय जाने और वहीं से न्याय की मांग के लिए तैयार है। अब वह वहीं से डीपीएम के सारे मामले की जांच करवाने के लिए मांग करेंगे। डीपीएम के विरुद्ध उपलब्ध और प्रकाशित की गई सभी खबरों को सबूतों को लेकर अब माननीय न्यायालय में ही आमना-सामना होगा और वहीं से भ्रष्टाचार के इस दंभ में डूबे व्यक्ति के कर्म की जांच होगी।
माननीय न्यायालय में ही अब तय होगा खबर तथ्य पर आधारित है या फिर तथ्यहीन है?
प्रभारी डीपीएम सुरजपुर वहीं प्रभारी डीपीएम कोरिया रह चुके प्रिंस जायसवाल को लेकर अब जो कुछ तय होना है वह माननीय न्यायालय में ही तय होगा। अब न्यायालय में ही यह भी तय होगा की वह किस स्तर तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। वैसे प्रिंस जायसवाल कांग्रेस शासनकाल से लेकर वर्तमान भाजपा शासनकाल तक किस तरह डीपीएम बनते चले आ रहे हैं उनके द्वारा किस तरह नियम विरुद्ध तरीके से नर्सिंग कॉलेज का संचालन किया जा रहा है सभी मामले के तथ्य वहीं प्रस्तुत किए जाएंगे। उनकी योग्यता और डिग्री और नियुक्ति भी जांच का विषय क्यों न बने यह भी न्यायालय के समक्ष मांग की जाएगी।
सूरजपुर के प्रभारी डीपीएम ऐसा कौन सा गलत काम कर रहे हैं जिस वजह से वह पत्रकार की जासूसी (पूछ-परख) से डर रहे हैं?
वैसे सूरजपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी डीपीएम कौन सा गलत काम कर रहे हैं जिसकी वजह से वह पत्रकार की जासूसी से डर रहे हैं। क्या वह सच में जब अंबिकापुर में संकल्प हॉस्पिटल में नजर आए तब कोरिया जिले के किसी अधिकारी के साथ वह कोई गुप्त बैठक वहां कर रहे थे। वैसे निजी अस्पतालों और अधिकारियों के बीच के रिश्ते किसलिए प्रगाढ़ होते हैं यह अब सभी को मालूम है और निजी अस्पताल अब कहीं न कहीं अर्थ मामलों में व्यवसाय मामले में अधिकारियों के साथ हिस्सेदारी भी कायम पर रहे हैं जो एक सर्वविदित सत्य साबित होता जा रहा है और क्या ऐसी ही कोई बैठक अंबिकापुर में थी जब डीपीएम सुरजपुर को झूठ बोलकर वहां जाना पड़ा यह बड़ा सवाल है।

सोशल मीडिया पर शिकायत वायरल कर आखिर क्या साबित करना चाह रहे डॉक्टर प्रिंस?
कोरिया जिले के स्वास्थ्य विभाग को दीमक की तरह चट कर चुके वर्तमान में सूरजपुर जिले के प्रभारी डीपीएम अब खुद मिडिया समूहों में खासकर सोशल मिडिया समूहों में एक शिकायतकर्ता और एक समाजसेवी की भूमिका में समाने आ रहे हैं और शिकायत डालकर खासकर खुद के विरुद्ध खबर प्रकाशित करने वाले पत्रकार के विरुद्ध संपादक के विरुद्ध वह क्या कार्यवाही चाहते हैं क्या साबित भी करना चाहते हैं यह बड़ा सवाल है। शासकीय विभागों में पदस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों के हिसाब से सूरजपुर जिले के प्रभारी डीपीएम इकलौते ऐसे अधिकारी हैं जो खुलेआम भ्रष्टाचार भी करते हैं और समाचार प्रकाशन पर पत्रकार और संपादक को धमकी भी शिकायत की देते हैं। कुल मिलाकर वह क्या साबित करना चाहते हैं यह बड़ा सवाल है।


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