सुरजपुर,@तेंदूपत्ता तोड़ने से मनाही…गुरुघासीदास नेशनल पार्क क्षेत्र में रहने वाले 2500 हैं परिवार परेशान

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-ओंकार पाण्डेय-
सुरजपुर,18 मई 2024 (घटती-घटना)। एक अजीबो गरीब फरमान सुने को मिला की गुरु घासीदास नेशनल पार्क क्षेत्र में तेन्दूपत्ता तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए मनाही है,लेकिन मध्यप्रदेश के ग्रामीण यहां आकर तेन्दूपाा तोड़ रहे हैं। इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी है। उनका कहना है कि मध्यप्रदेश वाले तो पार्क में तेन्दू के बड़े पेड़ों को काटकर उसकी पत्ती तोड़ रहे हैं और जंगल उजड़ रहा है, तो जंगल में लकड़ी माफिया का राज है, लेकिन पार्क के अफसर उसे नहीं रोक पा रहे हैं, उल्टे हमें तेन्दूपत्ता तोड़ने नहीं दिया जाता है। सूरजपुर के ओड़गी ब्लॉक के करीब 10 गांव के 2500 परिवार गुरुघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र में रहते हैं, जहां तेन्दू पत्ता खरीदने के लिए वन विभाग ने केंद्र नहीं खोला है। इसकी वजह से वे तेन्दूपत्ता नहीं तोड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे तोड़ना भी चाहें तो उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कहकर उन्हें डराया जाता है। इसके कारण वे पत्ता नहीं तोड़ रहें हैं। उनका कहना है कि मध्यप्रदेश हमारे क्षेत्र से लगा हुआ है। मध्यप्रदेश के सोनभद्र जिले के लोग बाइक में तेन्दूपत्ता तोड़ने इसी पार्क में आते हैं, लेकिन उन्हें नहीं रोका जाता है।
रिजर्व फॉरेस्ट होने के कारण विभाग द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने पर प्रतिबंध लगा.. वनवासी तेंदूपत्ता तोड़ने की योजना से वंचित हैं..
जिले के दूरस्थ क्षेत्र चांदनी-बिहारपुर से लगे ग्राम पंचायत खोहिर, के बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा व तेलई पाठ रसोकीमें पिछले कई दशक से यहां के वनवासी व ग्रामीणों द्वारा जंगल पर आजीविका निर्भर होने के बावजूद तेंदूपत्ता नहीं तोड़ा जाता है, उक्त गांव के लोग बेरोजगारी व शासन की छोटी-छोटी योजनाओं का लाभ न मिल पाने से काफी परेशान हैं, दरअसल उक्त गांवों का क्षेत्र गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान पार्क क्षेत्र चांदनी बिहारपुर के जंगल बैकुंठपुर, कोरिया के अधीन है, रिजर्व फॉरेस्ट होने के कारण विभाग द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, गौरतलब है कि बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा एवं तेलई पाठ मूलतः आदिवासी, पंडो व गरीब किसानों का क्षेत्र है. यहां पर लोग कई दशकों से निवास कर रहे हैं. ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर ही निर्भर होकर तेंदूचार, महुआ, डोरी, साल-बीज जैसेवनोपज से अपना जीवन यापन करते हैं. इसके अलावा एक रोजगार इनका तेंदूपत्ता संग्रहण भी है, प्रतिवर्ष इनको तेंदूपत्ता के सीजन का इंतजार भी रहता है कि इसे बेचकर कुछलाभ कमाने का मौका मिलेगा, उक्त सभी गांव पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के सीमापर एवं ऊंची पहाड़ी पर बसा हुआ है, लेकिन उक्त गांवों का क्षेत्र गुरुघासीदास राष्ट्रीय वन उद्यान बैकुंठपुर, कोरिया के अधीन है, रिजर्व फॉरेस्ट होने के कारण विभाग द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, इस वजह से वनवासी तेंदूपत्ता तोड़ने की योजना से वंचित हैं..
जंगल आजीविका पर निर्भरता के बावजूद नहीं तोड़ पा रहे तेंदूपत्ता…
जंगल आजीविका पर निर्भरता के बावजूद नहीं तोड़ पा रहे तेंदूपत्ता, रिजर्व फारेस्ट जंगल आजीविका पर निर्भरता के लिए जी का जंजाल बन गया है,ग्रामीणों ने बताया कि हम सभी जंगल से मिलने वाले वस्तुओं के सहारे ही है महुआ, तेंदू, चार को बेचकर चुकाते हैं कर्ज, बाजार से खाने के लिए एक वर्ष का सामान उधार ले आते हैं. फिर अगले वर्ष तेंदू,चार, महुआ को बेचकर उधार चुकाते हैं, उन्होंने कहा कि हमें तेंदूपत्ता तोड़ने की अनुमति देने के साथ ही अन्य शासकीय योजनाओं का लाभ मिले ताकि आजीविका चलाने में दिक्कत न हो। यहां खेती में बरसात की फसल मक्का,कोदो-कुटकी,अरहर की फसल अच्छी हुई तो केवल सीजन भर खाने के लिए मिल जाता है, बाकी दूसरी फसल गेंहू,जौं, चना,अलसी,आलू की फसल का लाभ बारिश की कमी व सिंचाई का साधन न होने के कारण नहीं मिल पाता है, इस वजह से यहां के ग्रामीणों का जंगल पर ही निर्भर रहना जरूरी हो जाता है. ये लोग जंगल से ही मिले तेंदूचार, महुआ आदि को ही बेचकर रोजमर्रा की वस्तुएं खाने के लिए चावल, दाल, व सब्जी, तेल, मसाला व अन्य खाद्य सामग्री लाते हैं।
बेरोजगारी इतनी कि दूसरे राज्यों में मजदूरी बना मजबूरी
ओड़गी लॉक के गांव लुल,भुण्डा,रसौकी, तेलाईपाठ,बैजनपाठ,खोहिर,रामगढ़,छतरंग सहित कई गांव है, जहां विशेष पिछड़ी जनजाति पंडो रहते हैं। यहां के युवक बेरोजगारी के कारण दूसरे राज्यों में जाकर बड़ी संख्या में काम कर रहें हैं, क्योंकि यहां मनरेगा के तहत होने वाले काम का पैसा भी समय पर नहीं मिलता, तो सिंचाई का साधन भी नहीं है कि बिना बारिश खेती कर सकें। खेती का काम खत्म होने बाद घर पर ही बैठे रहते हैं ने बताया कि अगर हमें उच्च तेन्दूपत्ता तोड़ने दिया जाता तो हर परिवार कम से कम हजार गड्डी पत्ता तोड़ता। इससे हर परिवार को चार हजार का लाभ मिलता, लेकिन ऐसा नहीं होने पर वे घरों में बैठे रहते हैं और खेती के समय खाद बीज खरीदने के लिए लोन और दुकानदारों से कर्ज लेना पड़ता है। बता दें कि अगर 2500 आदिवासी परिवार 500 गड्डी पत्ता तोड़ते तो करीब एक करोड़ इनकी जेब में पहुंचता,जो नहीं पहुंच रहा है।
आदिवासियों को योजनाओं का लाभ नहीं मिलता…
तेन्दूपत्ता संग्राहकों को न्यूनतम 500 गड्डी तेन्दूपत्ता तोड़ने पर शासन,संघ द्वारा लागू शहीद महेन्द्र कर्मा तेन्दूपत्ता संग्राहक सामाजिक बीमा सुरक्षा योजना, सामूहिक बीमा योजना, छात्रवृत्ती योजना आदि का लाभ दिया जाता है, लेकिन यहां के आदिवासी इसका लाभ लेने से भी वंचित रह जा रहे हैं।


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