कोरिया@क्या खबर से तत्कालीन प्रभारी डीपीएम कोरिया व उनकी पत्नी के नर्सिंग इंस्टीट्यूट की छवि हुई खराब या पहले से ही इनकी छवि थी खराब?

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-रवि सिंह-
कोरिया,11 मार्च 2024 (घटती-घटना)।
घटती-घटना में छपे समाचार से अक्सर सम्बंधित अधिकारी व कर्मचारी असहज अथवा असहमत नहीं होते पर अपवाद स्वरूप कभी-कभी किसी अधिकारी व कर्मचारी को अपने रुतबे और अपनी कमाई के ग्मान में ऐसा महसूस होने लगता है कि अखबार ने उसकी कार्यप्रणाली पर अंगुली उठाकर उसे क्षेत्र की जनता और यारो-दोस्तो परिजनों आदि की नजरों से गिरा दिया है। वह यह भूल जाते हैं कि उनके और उनके मातहतों के कार्य व्यवहार से ताल्लुक रखने वाली जनता अपनी आपबीतियों के आधार पर अगर पहले से ही उन्हें भ्रष्ट न मान रही होती तो क्षेत्र में किंवदतियों की तरह चर्चित बातें अखबार तक पहुंचती ही नहीं और न उनके छपने-छापने का कोई सवाल ही पैदा हो सकता था। एक बात यह भी ध्यान देने की है कि ऐसे अधिकारी की कृपादृष्टि से निहाल होने वाले उनके मातहतों और बाहरी लोगों के सिवाय आम जनता के बीच का एक भी जागरूक नागरिक सम्बंधित अखबार को फोन से, पत्र से, मेसेज करके या स्वयं पहुंचकर यह कहने की चेष्टा नहीं करता कि अखबार ने साहब साहिबा की कार्यशैली या साहबगिरी पर अंगुली उठाकर गलती कर दी, वो तो अपनी तनखाह के अलावा सपने में भी हराम की कमाई को छू भी नहीं सकते। बहरहाल, घटती घटना को एक प्रभारी डीपीएम व उनकी पत्नी की ओर से अधिकृत वकील साहब ने उनकी मान-सम्मान की हानि करने का आरोप लगाते हुए सिविल और क्रिमिनल केस ठोकने लिए 5 दिनों का अल्टीमेटम दिया है। आजाद हिंदुस्तान में दसियों साल तक कड़ी मेहनत कर के जनता के विश्वास को हासिल करने वाले अखबारों को ऐसे नोटिस मिलते रहना आम बात है। हमे भी यह एक नोटिस मिला है, जो शिरोधार्य है। हमारे जागरूक पाठकों के लिए घटती-घटना में इस मामले की सारी जानकारियां यथा समय तो दी ही जाएंगी (हस्ब मामूल) मगर फिलहाल इतना जरूर कहना चाहेंगे कि किसी अखबार पर मानहानि के मुकदमे की बात सभ्य समाज में तब तक कोई विवेकशील नागरिक सोचना भी ठीक नही समझता जब तक अंतिम रूप से यह साबित नहीं हो जाता कि सम्बंधित अखबार ने सचमुच पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ही अमुक सामग्री प्रकाशित की थी। और याद रखिए कि अखबार का पूर्वाग्रह सिर्फ इसी बात से अदालत में स्वीकार्य हो पाता है कि समाचार से आहत पक्ष की ओर से प्रकाशित सामग्री को गलत साबित करने वाले तथ्य पंजीकृत डाक से प्रकाशनार्थ भेजे जाने के बावजूद अखबार ने उनको नहीं छापा, अपने पाठकों/आम नागरिकों तक असली सच नही पहुंचने दिया। हमे जो नोटिस मिला है उसमें वकील साहब ने कोई स्पष्टीकरण नही दिया, सिर्फ प्रभारी डीपीएम को ईमानदारी की मिसाल बताते हुए हमको माफीनामा छपने अन्यथा व अवैध वसूली का आरोप लगया, साथ ही प्रभारी डीपीएम व उनकी पत्नी से माफी मांगने को कहा गया, मुकदमा झेलने की चेतावनी दी है। प्रकाशन के लिए उचित शदो में प्रभारी डीपीएम व पत्नी का पक्ष हमे मिलता तो उसे प्रकाशित करके हमे बेशक खुशी होती। पर धमकी या चेतावनी देने में ही न्याय नजर आता है तो फिर 5 दिन की मियाद खत्म होते ही अगर घटती घटना के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं किया गया तो स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को नाहक ही धमकी देने और पदाधिकार के दम पर साहबगिरी दिखाने का मुकदमा माननीय उच्च न्यायालय में घटती-घटना अवश्य दायर करेगा। सम्बंधित जन कृपया नोट कर लें….दैनिक घटती-घटना नोटिस का प्रकाशन इसलिए कर रहा है ताकि समाचार के पाठकों को भी इसकी जानकारी रहे की लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को सच लिखना कितना कठिन हो गया है।
पत्रकार को दिए लीगल नोटिस को वाट्सऐप समूह में डालकर क्या अपने आप कोपाक साफ साबित करना चाह रहे हैं?
तत्कालीन प्रभारी डीपीएम व उनकी पत्नी जिनका दैनिक घटती-घटना के खबर प्रकाशन से छवि खराब हुआ है, उस छवि को सुधारने के लिए अधिवक्ता से लीगल नोटिस बनवा कर वाट्सऐप समूह में वायरल कर क्या अपने आपको पाक साफ साबित कर पाएंगे? जन चर्चा में उनकी छवि कितनी पाक साफ है यह वह खुद भी जानते हैं, प्रभारी डीपीएम व उनकी पत्नी की खबर से खराब हुई छवि सही हो गई क्या लीगल नोटिस को वाट्सऐप समूह में डालकर?
अपने ही अधिवक्ता को क्यों दे रहे गलत जानकारी प्रभारी डीपीएम कोरिया की नहीं है उनके विरुद्ध कोई शिकायत,जबकि है कई शिकायत
कोरिया जिले के प्रभारी डीपीएम ने लगता है अपने ही अधिवक्ता को गलत जानकारी दे डाली है जिसकी वजह से उनके अधिवक्ता ने भी पत्रकार को भेजे नोटिस में यह उल्लेखित किया है की डीपीएम की छवि विभाग में बेदाग है और उनकी कभी कोई शिकायत नहीं हुई है। वैसे प्रभारी डीपीएम की एक नहीं कई शिकायतें हैं जिन्हे वह अपने अधिवक्ता को बताना भूल गए हैं। अब अधिवक्ता के माध्यम से भेजे गए कानूनी नोटिस में वह पत्रकार से और संपादक से साक्ष्य की मांग भी कर रहे हैं। वैसे सिविल सर्जन का पत्र जो उनके लिए ही लिखा था जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन कोरिया ने और उसका एक एक शब्द कितना मान बढ़ाने वाला था डीपीएम कोरिया का पत्र पढ़कर समझा जा सकता है। सिविल सर्जन ने तो पत्र में यह तक लिखा था की बिना अनुमति या आवश्यक कार्य डीपीएम जिला चिकित्सालय में प्रवेश ही न करें और आवश्यक होने पर वह अनुमति लेकर ही प्रवेश का प्रयास करें।
स्थानांतरण आदेश का भी डीपीएम नहीं कर रहे पालन, क्या यही है उनकी अच्छी छवि जो खराब हो रही है
प्रभारी डीपीएम कोरिया राज्य कार्यालय से जारी स्थानांतरण आदेश का भी पालन नहीं कर रहे हैं। वह जिला छोड़कर जाने से बचना चाह रहे हैं। जो शासकीय कर्मचारी शासन के आदेश की ही अवहेलना कर रहा हो वह यदि खुद को स्वास्थ्य विभाग के लिए फायदेमंद बता रहा है या किसी खबर से उनकी छवि धूमिल हो रही है तो वह झूठ कह रहा है कहा जा सकता है वही डीपीएम कह रहे हैं आरोप लगाकर ।
पत्रकार पर अवैध मांग का भी लगाया है आरोप,आरोप झूठा यह जानते हैं डीपीएम फिर भी खुद को पाक साफ बताने एक बहाना उनका
डीपीएम कोरिया पत्रकार पर अवैध मांग का आरोप लगा रहे हैं। वह यह आरोप झूठा लगा रहे हैं यह वह भलिंभांति जानते हैं फिर भी वह आरोप लगा रहे हैं। वैसे पत्रकार ने न ही उन्हे फोन किया न कभी मुलाकात हुई फिर अवैध मांग सपने में कर गया क्या पत्रकार यह भी सवाल खड़ा हो रहा है। अवैध मांग की बात सरासर झूठ का पुलिंदा है क्योंकि ऐसी बातें आरोप तभी समाने आता है जब किसी मामले में पत्रकार सत्य के साथ आगे बढ़ रहा होता है।


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