आठ विधानसभाओं सहित चार जिलों में नहीं मिला भाजपा को जीतने योग्य कोई दावेदार जिसे वह बना पाती उम्मीदवार?
कोरबा लोकसभा से एक बार भाजपा ने दिया था स्थानीय उम्मीदवार,तब जीतकर भी बेहतर साबित नहीं हुए थे भाजपा सांसद
अब प्रत्याशी होंगी बाहरी,कोरबा क्षेत्र जैसे बड़े क्षेत्रफल वाले लोकसभा क्षेत्र में पूरी तरह दौरा कर पाएंगी संभव नहीं
सरोज पाण्डेय के लिए जीत की केवल एक ही उम्मीद,प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के भरोसे किस्मत तय होगी उनकी?
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,05 मार्च 2024 (घटती-घटना)। आखिरकार कोरबा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया, कोरबा लोकसभा से भाजपा ने वर्तमान में राज्यसभा सांसद वहीं दुर्ग निवासी सरोज पाण्डेय का नाम तय किया है बतौर उम्मीदवार वहीं अब लोकसभा क्षेत्र से नाम का ऐलान होने का बाद यह भी तय हो गया की कोरबा लोकसभा क्षेत्र से चार जिलों सहित आठ विधानसभाओं में से एक भी योग्य एवम स्थानीय दावेदार भाजपा को बतौर उम्मीदवार पसंद नहीं आया और आखिरकार दुर्ग से आने वाली राज्यसभा सांसद को पार्टी ने टिकट देकर चुनाव लड़ने मैदान में उतार दिया। कोरबा लोकसभा जो की क्षेत्रफल की दृष्टि से बड़ा लोकसभा क्षेत्र था और जहां यह माना जा रहा था की भाजपा कम से कम स्थानीय उम्मीदवार को मौका देगी जिससे क्षेत्र में उम्मीदवार पूरा दौरा भी कर सके और वहीं यदि जीत मिलती है तो वह क्षेत्र से जुड़ा रहे और पूरे क्षेत्र का समुचित विकास वह कर सके और अपनी निधि भी वह जरूरी जगहों पर प्रयोग कर सके।
भाजपा को कोरबा लोकसभा सीट से स्थानीय उम्मीदवार इसलिए भी घोषित करना था जैसा लोगों का मानना था की क्षेत्र में एक ही बार स्थानीय उम्मीदवार कोई चुनाव जीता था वहीं उसके बाद जीत दर्ज करने वाली उम्मीदवार भी स्थानीय नहीं हैं जो वर्तमान में सांसद हैं और स्थानीय नहीं होने की वजह से उनका लगाव भी समझ में आता रहा है जो आम लोगों से पूरे आठ विधानसभा के नहीं जुड़ पाया पांच सालों में वैसा ही पहले भी रहा जब वर्तमान सांसद के पति बतौर सांसद निर्वाचित हुए थे और जिनका भी लगाव क्षेत्र से कायम नही हो पाया था और जो केंद्रीय राज्यमंत्री रहते हुए भी क्षेत्र को समय नहीं दे पाते थे साथ ही वह न ही क्षेत्र का विकास ही कर पाए जिसके बाद भाजपा ने जैसे ही उस समय स्थानीय उम्मीदवार कोरबा से घोषित किया वह चुनाव जीत गए और उन्हे केवल स्थानीय होने का ही फायदा मिला था यह कहना गलत नहीं होगा।
भाजपा को कोरबा लोकसभा सीट से हमेशा के लिए अपराजित रहने कर सकते थे प्रयास
वैसे स्थानीय होकर भी भाजपा से निर्वाचित हुए सांसद कोरबा पूरे लोकसभा क्षेत्र के लिए वह काम नहीं कर सके जिससे की उन्हे बाद में कभी क्षेत्र की जनता चुनने का विचार बनाए उन्हे हमेशा क्षेत्र से गायब रहने की ही उपाधि मिली रही जबकि वह चाहते भाजपा को कोरबा लोकसभा सीट से हमेशा के लिए अपराजित रहने प्रयास कर सकते थे। खैर कोरबा लोकसभा सीट पर इस बार चौथी बार चुनाव होना है। पहली बार सीट कांग्रेस के खाते में गई थी तब चरणदास महंत सांसद निर्वाचित हुए थे दूसरी बार में उन्हे क्षेत्र से हमेशा बाहर रहने दूरी बनाए रखने साथ ही लोकसभा क्षेत्र से बाहर का उम्मीदवार मानकर लोगों ने स्थानीय उम्मीदवार पर भरोसा जताया वहीं स्थानीय उम्मीदवार जो भाजपा के थे उनके भी क्षेत्र से पलायन साथ ही दूरी कायम करने के कारण जब तीसरी बार भाजपा ने स्थानीय उम्मीदवार ज्योतिनंद दुबे को मैदान में उतारा तो उन्हे भी क्षेत्र से भाजपा सांसद की दूरी बनाए रखने का नुकसान हुआ और वह चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी से हार गए। इस बार भी कांग्रेस से चुनाव चरणदास महंत परिवार से ही कोई लड़ेगा ऐसा माना जा रहा है वहीं वर्तमान में वह खुद चूंकि नेता प्रतिपक्ष हैं इसलिए उनकी जगह उनकी पत्नी जो वर्तमान में सांसद हैं वह या उनके पुत्र को कांग्रेस उम्मीदवार बना सकती है।
अब टक्कर भाजपा कांग्रेस में चेहरे का भी होगा और स्थानीय बाहरी मुद्दा का भी
अब टक्कर भाजपा कांग्रेस में चेहरे का भी होगा और स्थानीय बाहरी मुद्दा भी चुनाव में जरूर समाने आएगा क्योंकि यह लोकसभा हमेशा से सांसदो की अनदेखी और उनकी क्षेत्र से दूरी के लिए प्रसिद्ध चला आया है और इस बार भाजपा ने जिसे उम्मीदवार बनाया है वह न तो पहले कभी क्षेत्र में नजर आईं थीं प्रचार या लोगों से सम्पर्क में और आगे भी चुनाव यदि वह जीत जाती हैं तो वह क्षेत्र में नजर आएंगी इसकी भी पूरी गारंटी नहीं है। राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय भाजपा की कद्दावर नेता हैं और वह केंद्रीय स्तर पर प्रथम पंक्ति की नेता हैं जिनका संगठन में दबदबा है, उनका ज्यादा समय राष्ट्रीय स्तर पर ही पार्टी के कार्यक्रमों में व्यतीत होना है ऐसा मानना गलत नहीं होगा और ऐसे में वह क्षेत्र में कितना समय दे पाएंगी यह समझा जा सकता है। भाजपा से उम्मीदवार बनकर उन्हे चुनाव लडना है और चुनाव जीतने के बाद उन्हे क्षेत्र में कम ही लोग देख पाएंगे और उनका पूरे लोकसभा क्षेत्र में दौरा भी संभव नही हो सकेगा चुनाव होने तक बाद में भी यह संभव नहीं होगा यह माना जा रहा है।
भाजपा ने जब जब कोरबा लोकसभा से तय किया ब्राह्मण प्रत्याशी मिली हार,क्या इस बार मिलेगी जीत?
भाजपा ने कोरबा लोकसभा सीट से दो दो बार ब्राह्मण उम्मीदवारों को मौका दिया है, दो दो बार कोरबा लोकसभा सीट से ब्राह्मण ही उम्मीदवार बनाए गए लेकिन दोनो ही बार भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा जबकि एकबार तो मोदी लहर में भी इस सीट से ब्राम्हण उम्मीदवार ज्योतिनंद दुबे चुनाव हार गए जबकि देशभर में कई ऐसे भी भाजपा उम्मीदवार चुनाव जीत गए जिनके जितने के आसार कम थे। वैसे भाजपा ने एक बार इस सीट से पिछड़ा वर्ग उम्मीदवार को मैदान में उतारा था उसने चुनाव में तत्कालीन केंद्रीय राज्यमंत्री को पटखनी दे डाली थी यह भी इस सीट पर देखने को मिल चुका है।
क्या मोदी लहर में चुनाव लड़ने कोरबा लोकसभा से उम्मीदवार बनी हैं या मोदी लहर में ही उन्हे जीत की उम्मीद है?
वैसे वह मोदी लहर में चुनाव लड़ने कोरबा लोकसभा से उम्मीदवार बनी हैं मोदी लहर में ही उन्हे जीत की उम्मीद है और उसके अलावा उनके पास कोई और ऐसी उपलब्धि या आने वाले समय के लिए कोई आश्वासन नहीं है जो वह क्षेत्र के लोगों को दे सकें और जिससे लोग प्रभावित होकर उन्हे चुनने का विचार कर सकें। मोदी लहर एकमात्र उनके लिए चुनावी सफलता का आधार होगा। वैसे कोरबा लोकसभा सीट से भाजपा ने तीसरी बार ब्राह्मण उम्मीदवार को मौका दिया है। चौथी बार होने जा रहे चुनावों में से दो बार पहले भी ब्राह्मण उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं भाजपा से लेकिन वह चुनाव हार गए थे वहीं जब भाजपा ने एक बार पिछड़ा वर्ग समुदाय से उम्मीदवार घोषित किया था वह चुनाव जीत गए थे। वहीं कांग्रेस से भी दो बार से सांसद चुना जा रहा परिवार पिछड़ा वर्ग समुदाय परिवार है यह भी एक विषय है जिसके बाद कहा जा सकता है की सरोज पाण्डेय के लिए मोदी लहर की जरूरत पड़नी ही पड़नी है वह आराम से चुनाव जीत रही हैं ऐसा कहना जल्दबाजी होगा।
बहुत वृहद क्षेत्रफल का है कोरबा लोकसभा क्षेत्र,बाहरी क्षेत्र के उम्मीदवार के लिए कठिन होगा प्रचार अभियान सहित जीत का लक्ष्य
कोरबा लोकसभा सीट बड़े क्षेत्रफल का लोकसभा क्षेत्र है। इस लोकसभा सीट पर स्थानीय कोई उम्मीदवार होता उसके लिए जीत का लक्ष्य आसान होता। कोरबा लोकसभा सीट पर कम समय में हर जगह पहुंचकर प्रचार कर पाना,अपनी प्राथमिकताएं क्षेत्र को लेकर बता पाना बाहरी क्षेत्र के किसी उम्मीदवार के लिए संभव नहीं। भाजपा उम्मीदवार क्षेत्र से बाहर की हैं और उन्हे काफी मेहनत भी करनी होगी लेकिन इस लोकसभा क्षेत्र में मेहनत के बाद भी हर जगह प्रत्याशी का पहुंच पाना संभव नहीं है। स्थानीय प्रत्याशी होने पर या जो लोग टिकट की दौड़ में थे इस सीट से उनके प्रत्याशी होने पर उन्हे कम मेहनत करनी पड़ती क्योंकि उन्होंने क्षेत्र का भ्रमण जारी रखा हुआ था और आधा उनका भ्रमण हो चुका था। अब घोषित प्रत्याशी के लिए यही एक काम कठिन होगा जो उनके जीत के लक्ष्य के बीच बड़ी चुनौती होगी। वैसे वह जीतकर भी पूरे क्षेत्र में पांच सालों तक बनी रह सकेंगी यह मानना जरा मुश्किल है क्योंकि वह भाजपा की बड़ी नेत्री हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता माना जाता है जिस वजह से उनकी व्यस्तता क्षेत्र की बजाए राष्ट्रीय स्तर पर ही ज्यादा नजर आएगी।
कोरबा लोकसभा सीट पर सांसद रहते हैं क्षेत्र से गायब यह हमेशा रही है शिकायत,बाहरी प्रत्याशी होने की वजह से यह भी एक विषय भाजपा प्रत्याशी के लिए होगी कठिन चुनौती
कोरबा लोकसभा सीट से आज तक जो भी सांसद निर्वाचित हुआ है वह क्षेत्र से नदारद ही रहता चला आया है ऐसी हमेशा से शिकायत चली आई है क्षेत्र की जनता की। अब चूंकि भाजपा ने इस बार क्षेत्र से बाहर का उम्मीदवार मैदान में प्रत्याशी बतौर उतारा है ऐसे में यह माना जा रहा है की भाजपा प्रत्याशी के लिए यह विषय काफी चुनौती वाला विषय रहेगा। उन्हे क्षेत्र के सभी लोगों को यह आश्वस्त करना होगा की वह अन्य सांसदो की तरह केवल चुनाव जीतने और जीतकर क्षेत्र से हमेशा के लिए पलायन करके गायब रहने वाली साबित नहीं होगी,वह क्षेत्र में हर जगह पहुंचने और एक एक ग्राम तक विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयास करने वाली सांसद साबित होगी। तभी उनके लिए यह सीट आसान होगी। वैसे आज तक के सांसदों के निज सचिव और उनके प्रतिनिधि ही उनकी क्षेत्र में उपस्थिति को प्रमाणित करते आए हैं कार्यालयों में उनके प्रतिनिधि बतौर बैठकर जाकर उनका हाजिरी लगाते आए हैं, निर्वाचित सांसद नदारद ही रहते आए हैं यह हर दल की स्थिति में देखा गया है।