रायपुर@17 चोसिंगों की मौत का मामला गरमाया

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रायपुर,11 फरवरी 2024 (ए)। रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी, वाटिका एनिमल सेंचुरी की कस्तूरी बल्लाल, संकल्प गायधानी और एनिमल राइट्स कार्यकर्ता डॉ. किरण आहूजा ने वन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कहा है कि नया रायपुर की जंगल सफारी जू में नवम्बर में 5 दिनों में 17 चोसिंगों की मौत की जांच रिपोर्ट 25 दिनों पहले आ जाने के बाद भी वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही न कर दोषियों को बचाया जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री से मांग की गई है कि वह छत्तीसगढ़ वन विभाग को आदेशित करें कि दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करें और छत्तीसगढ़ के जंगलों में वन्य प्राणियों की हो रही मौतों की जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच दल भिजवायें।
जंगल सफारी में जब चेसिंगों की मौतें हो रही थी तब वहां के वरिष्ठ पशु चिकित्सक का अवकाश नियंत्रितकर्ता अधिकारी डायरेक्टर जंगल सफारी द्वारा निरस्त कर दिया गया था फिर भी वे अनुपस्थित रहे। अवकाश निरस्त करने के बावजूद सर्वोच्च में से एक पद पर बैठे हुए वरिष्ट अधिकारी ने उनका अवकाश स्वीकृत किया जबकि छत्तीसगढ़ अवकाश नियम प्रावधानित करते हैं कि सिर्फ नियंत्रितकर्ता अधिकारी ही अवकाश स्वीकृत कर सकता है। 25 नवंबर को मरे सभी चोसिंगों की मौत का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया।
परंतु सभी चोसिंगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई गई और वे भी 30 नवंबर को। संविदा पर कार्यरत कनिष्ठ पशु चिकित्सक अवकाश निरस्त करने के बावजूद 25 नवंबर को अनुपलब्ध रहीं उसके बावजूद भी उनके द्वारा 25 नवंबर की तारीख में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दस्तखत किया गया। जब चोसिंगों की मौत हो रही थी तब 26 नवंबर की दोपहर 2:30 से लेकर 27 नवम्बर तक की सुबह तक कोई भी पशु चिकित्सक जंगल सफारी में चिकित्सा हेतु उपलब्ध नहीं था। जंगल सफारी के सहायक संचालक को 24 नवंबर की रात 10 बजे ही वन्य प्राणियों की विषम परिस्थिति की सूचना दूरभाष पर दी जा चुकी थी परंतु वह तीन दिनों पश्चात जंगल सफारी पहुंचे। 25 नवम्बर को किये गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में दर्ज समय के अनुसार 15-15 मिनट में एक चोसिंगा का पोस्टमार्टम करना बताया गया है जबकि एक चेसिंगा का पोस्टमार्टम करने में कम से कम 1 घंटा लगता है।


केद्रीय वन मंत्री को बताया गया है कि 29 जनवरी पता चला कि छत्तीसगढ़ के सूरजपुर वन मंडल में एक हथिनी को करंट से मौत के घाट उतार कर सूरजपुर वनमण्डल में 12 टुकडों में गाड दिया गया और वन विभाग को इसका पता 15 दिनों बाद चला।


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