सैकड़ों की संख्या में साल्ही मोड़ पर स्वागत करने पहुंचे थे स्थानीय आदिवासी
अंबिकापुर,05 फरवरी 2024 (घटती-घटना)। राजस्थान और मध्यप्रदेश से सरगुजा के दौरे में आए चार आदिवासी विधायक दल के नेताओं का स्वागत करने सैकड़ों की संख्या में परसा ईस्ट कांता बासेन (पीईकेबी) कोयला खदान के प्रभावित ग्रामों के आदिवासी साल्ही मोड़ पर सोमवार को इकट्ठा हुए। हसदेव के मुद्दे का जायजा लेने सैलाना,मध्य प्रदेश के विधायक कमलेश्वर डोडियार, राजस्थान राज्य के धरियावाद के विधायक थावर चंद डामोर, आसपुर के विधायक उमेश डामोर और चौरासी के विधायक राजकुमार रोत के 5 फरवरी 2024 को सरगुजा पहुँचने की खबर इन ग्रामीणों को मिली थी। इस खबर से उत्साहित पीईकेबी खदान के आसपास के ग्राम परसा, साल्ही, घाटबर्रा, फतेपुर, हरिहरपुर, जनार्दनपुर इत्यादि सहित कुल 14 ग्रामों के 500 से अधिक आदिवासी ग्रामीणों का समूह साल्ही मोड़ अपने आदिवासी भाइयों के स्वागत करने का इंतजार करते रहे। लेकिन इन्हें तब निराशा हुई जब इनमें से कोई भी नेता अपने तय समय पर शाम तक वहां पहुँचा ही नहीं। जबकि रविवार को महिला सहकारी संस्था मस की महिलाओं ने खुला पत्र लिखकर विधायकों को अपने सफल उद्यमों की अवलोकन और मुलाकात के लिए आमंत्रित भी किया था।
दरअसल ग्रामीणों का यह समूह दूर प्रदेश से आ रहे विधायक दल से शिष्टाचार पूर्वक मुलाकात कर महीनों से बंद पड़ी खदान को शुरू कराने में सहयोग का अनुरोध करने वाले था। इन लोगों का कहना है कि, कुछ लोग चाहते है कि हम आदिवासी अब भी चार, महुआ, तेंदू बिनकर एवं शराब बेचकर अपना जीवन यापन करते रहे एवं विकास की मुख्य धारा से दूर रहें। जबकि हम आदिवासियों की यह मन्शा है कि हमारे बच्चे भी अच्छी पढ़ाई कर इंजीनियर और डाक्टर बने तथा अपने व अपने परिवार की उन्नति कर सके। इस दौरान गांव में आदिवासी महिलाओं द्वारा संचालित महिला सहकारी समिति की सदस्यों ने उनके द्वारा तैयार किये जा रहे विभिन्न उत्पादों का अवलोकन करने के लिए आमंत्रन पत्र भी विधायकों को भेजा था।
इसके साथ ही उन्होंने एक ज्ञापन भी तैयार किया है जिसमें ग्राम परसा,साल्ही, घाटबर्स, फतेपुर एवं समस्त प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीणों ने प्रेषित ज्ञापन में लिखा है,कि “सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखण्ड के एकमात्र कोयला परियोजना परसा ईस्ट केते बासेन विगत 12 वर्षों से संचालित है किन्तु भूमि उपलध नहीं होने के कारण छः माह पूर्व खदान का संचालन बंद हो गया था जिससे हम लोगों के रोजी-रोटी पर संकट आ गया था। इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में हम लोगों के जीविका का एकमात्र साधन यह कोल परियोजना है। इसके अलावा कुछ भी साधन नही है। क्षेत्र के हजारों लोगों की रोजी रोटी यहां की नौकरी और अन्य रोजगार से चलती है। साथ ही यहां के आदिवासी बच्चों को निःशुल्क सीबीएसई अंग्रेजी माध्यम स्कूल में कक्षा-12 तक पढाई करवाने के साथ-साथ स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सडक सभी मूलभूत सुविधाएं उपलध कराया जा रहा है। इसके अलावा यहां की दर्जनों स्वसहायता समूह के सैकड़ों महिलाएं, महिला उद्यमी स्वसहायता समूह के माध्यम से जीविकोपार्जन का कार्य कर रहे है। जिससे हम लोगों को सीधा लाभ मिल रहा है।