- पांच एफआईआर वाले आरोपी को पकड़ने अंबिकापुर पुलिस हुई नाकाम प्रार्थी
- की मदद से दो आरोपी बलरामपुर जिले में पकड़े गए,एक अभी भी फरार…
- अंबिकापुर पुलिस पीडि़त के पिता के शिकायत पर अपराध को दर्ज कर लिया पर पीडि़त का बयान लेना जरूरी नहीं समझा
- पीडि़त गंभीर चोट की वजह से 3 दिन तक अस्पताल में रहा भर्ती पर पुलिस उसका मुलहिजा रिपोर्ट भी लगाना जरूरी नहीं समझी
- क्या अंबिकापुर सिटी कोतवाली के पुलिस आरोपी को संरक्षण देने धाराओं के साथ किया खेल…पीडि़त के बयान के बिना वह पीडि़त के मेडिकल रिपोर्ट के बिना अपराध के धाराओं में की मनमानी?
- कोतवाली पुलिस आरोपी के हित की करती है बात पर पीडि़त को करती है नजरंदाज
–भूपेन्द्र सिंह-
अंबिकापुर,04 फरवरी 2024(घटती-घटना)। भारत देश में न्याय के लिए कानून व्यवस्था बनाई गई है पर कानून व्यवस्था यदि न्याय दिलाने के लिए काम ना करें तो फिर ऐसी व्यवस्था का क्या काम? इस व्यवस्था के आड़ में पुलिस विभाग को देखने वाले सिर्फ अपना पैकेट गरम कर रहे हैं पर वहीं न्याय पाने वाला सिस्टम से लड़ाई लड़ रहा है,ऐसा कब तक चलेगा यह बड़ा सवाल है? अंबिकापुर पुलिस का एक नया ही कारनामा सामने आया है कारनामे को यदि समझा जाए तो पुलिस कहीं ना कहीं पूरी तरीके से आरोपी को संरक्षण दी है प्रार्थी के अनुसार आरोपी को पकड़वाने के लिए पुलिस के पास रोज चाकर लगता रहा पर पुलिस 3 महीने में भी आरोपी को पकड़ नहीं पाई, अम्बिकापुर पुलिस पकड़ने में नाकाम रही प्रार्थी खुद जानकारी मिलने पर आरोपी को पकड़ने बलरामपुर जिला गया जहां बलरामपुर पुलिस की मदद से दो आरोपियों को पकड़ा गया पर एक आरोपी अभी भी फरार है आरोपी को पकड़ने के दौरान आरोपी बचने के चक्कर में एक व्यक्ति के ऊपर गाड़ी भी चढ़ा दिया उस पर भी आज तक मामला पंजीयत करने से पुलिस घबरा रही है शिकायत पुलिस थाने में पड़ा है पर उसकी पावती देने में पुलिस आनाकानी कर रही है,जहां पुलिस प्रार्थी के पिता के शिकायत पर अपराध पंजीकृत किया उनका बयान लिया पर प्रार्थी का बयान लेना उचित नहीं समझा जबकि प्रार्थी को गंभीर छोटी आई थी प्रार्थी तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती था गंभीर चोट होने के बावजूद जो धाराएं पुलिस को आरोपी के विरुद्ध उपयोग कर लगानी थी उस धाराओं को ना लगाना पड़े क्या इस वजह से पुलिस पीडि़त का बयान नहीं लिया और उसका मुलायजा रिपोर्ट भी शक के दायरे में है। ऐसा सवाल अब उत्पन्न इसलिए हो रहा है क्योंकि जो धाराएं पुलिस ने लगाया वह जमानती था जिस पर पुलिस ने थाने से ही मुचलके पर दोनों को छोड़ दिया। अंबिकापुर कोतवाली के पुलिस कर्मचारी विवेचक सतीश उपाध्याय ने कहीं ना कहीं आरोपी को संरक्षण ही दिया धाराओं के साथ खेल कर आरोपी को जमानत दिलाने में उनकी अहम भूमिका मानी जा रही है। ऐसा हम नहीं प्रार्थी का आरोप है जिसकी शिकायत प्रार्थी ने सरगुजा आई.जी.,पुलिस अधीक्षक सरगुजा से भी की है।
यह है मामला
मिली जानकारी के अनुसार मायापुर अंबिकापुर निवासी सुमित गुप्ता अपने मित्र सूरज गुप्ता को 17 नवंबर मतदान दिवस के दिन सुबह 10ः00 बजे उसके घर घुटरापारा छोड़ने जा रहा था इसी बीच चांदनी चौक नानंदाउ पान ठेला के पास मायापुर निवासी विक्की गुप्ता उर्फ विकेश एवं घुटरापारा निवासी दीपक उर्फ दीपू गुप्ता मिल गए और सुमित गुप्ता को पुरानी लड़ाई झगड़ा की बात को लेकर गाली-गलौज करने लगे, जिस पर वह मामले को जैसे तैसे कर शांत कर वहा से निकलकर इसकी शिकायत अंबिकापुर कोतवाली में देने पहुंचा जहां पर थाना प्रभारी मौजूद नहीं थे पर उसने लिखित शिकायत दे कर आया पर वहां पर मौजूद पुलिसकर्मी ने उसे पावती नहीं दी कहा कि 1 घंटे बाद आकर ले जाना,1 घंटे बाद जब वह अपने शिकायत की पावती लेने जा रहा था उसी समय फिर से मायापुर निवासी विक्की गुप्ता व दीपक गुप्ता मिल गए और सुमित गुप्ता को गाली-गलौज करने के बाद उसे लड़ाई करने लगे और एक युवक ने लोहे की रोड से उसके ऊपर प्राणघातक घमला कर दिया और फिर उसे हाथ-मुक्का और डंडे से खूब मारे जिस वजह से सुमित बुरी तरीके से घायल हो गया और उसे घायल अवस्था में ही जिला अस्पताल मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए ले जाया गया,जहां पर डॉक्टरों ने गंभीर चोट भी बताई इसके बाद उसके परिजन वहां पहुंचे और परिजनों ने मारपीट की घटना की शिकायत फिर थाने में दर्ज कराई जिसके बाद मामला तो पुलिस ने पंजीकृत कर लिया पर आरोपियों को पकड़ने में उनकी दिलचस्पी बिल्कुल भी नहीं है, खुले आम वह घूम रहे हैं और पीडि़त को गाली-गलौज उसके घर में जाकर कर रहे हैं और धमकी दे रहे हैं की रिपोर्ट वापस ले लो नहीं तो ठीक नहीं होगा ऐसे में अंबिकापुर के कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठता है कि आखिर क्या पुलिस आरोपियों को संरक्षण देती है इतने गंभीर मामले में उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही।
आरोपी है आदतन
जिस आरोपी को लेकर पीडि़त परेशान है वह आरोपी आदतन है इसके ऊपर अंबिकापुर सहित बलरामपुर थाने में 5 अपराध अभी तक दर्ज है अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आरोपी कितने स्वच्छ छवि का है जिसे पुलिस गिरफ्तार करने से बच रही है या फिर हो सकता है कि पुलिस प्रयास कर रही है पर आरोपी पकड़ा ना जा रहा हो, पर यदि आरोपी अपने फोन से पीडि़त को धमका रहा है गाली गलौज कर रहा है फिर भी पुलिस नहीं पकड़ पा रही है तो फिर पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठता है।
पुलिस से कैसे करें न्याय की उम्मीद?
अंबिकापुर पुलिस पूरी तरीके से एजेंट बनकर काम कर रही है अपराधी वहां पर आते हैं पर लोगों को डरा धमका कर या फिर सांठ-गांठ कर उसे मामले को वहीं पर दबा दिया जाता है,यही वजह है कि वहां पर कानून व्यवस्था पूरी तरीके से चरमरा चुकी है वहां पर बैठे पुलिस कप्तान भी इसे गंभीरता से नहीं ले पा रहे हैं आलम यह होता जा रहा है की अंबिकापुर सिटी कोतवाली के अंतर्गत गुंडागर्दी हावी होती जा रही। और सबसे अजीब बात तो यह है कि पुलिस को जहां लोगों के न्याय के लिए आनी चाहिए वहां पर वह आरोपियों को ही संरक्षण करते देखे जाते हैं, पुलिस पर शहर के लोगों का यह भी आरोप है कि वहां पर पुलिस एजेंट की तरह काम करती है और पैसे लेने देने पर अपराध दर्ज होते हैं और धाराएं बढ़ती और कम होती हैं।
अधीक्षक से ही रह गई है क्योंकि स्थानीय अधिकारी व पुलिस तो आरोपी को संरक्षण देने में जुटे हुए हैं।
जांच अधिकारी की खानापूर्ति जारी
मामला गंभीर है एक व्यक्ति को काफी चोटे आई हैं पर इसके बावजूद जांच अधिकारी हाथ पर हाथ धरे धरे बैठे हुए हैं आरोपी को पकड़ने में उनकी दिलचस्पी बिल्कुल नहीं है और ऐसा लग रहा है कि आरोपी को संरक्षण भी यही दे रहे हैं।
क्या आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री का था खास इस वजह से पुलिस ने दिया संरक्षण?
जिन आरोपियों के विरुद्ध गंभीर धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध होना था और तत्काल गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजना था उसके लिए प्रार्थी को पुलिस के खूब चक्कर लगाने पड़े फिर भी पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई, प्रार्थी को खुद आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए मशक्कत करनी पड़ी तब जाकर आरोपी गिरफ्तार हुआ। उसके बावजूद भी पुलिस ने धाराओं में खेल कर आरोपियों को जमानत मुचलके पर दे दी, ऐसे में सवाल यह उठता है क्या अंबिकापुर पुलिस आरोपियों को इसलिए संरक्षण दी क्योंकि वह पूर्व कैबिनेट मंत्री के गरीबी थे? क्योंकि कई ऐसी तस्वीर आरोपियों का साथ मंत्री जी के इर्द-गिर्द देखी गई,जो इस और इशारा करती हैं कि आरोपी कहीं ना कहीं मंत्री जी के काफी खास थे। क्या आरोपियों की गिरफ्तारी न हो इसलिए उसे समय के तत्कालीन मंत्री पुलिस वालों को मना कर रखा था? इस वजह से पुलिस गिरफ्तारी में दिलचस्पी नहीं दिख रही थी? आज जब गिरफ्तारी हो भी गई तो भी कई गंभीर धाराओं से पुलिस उन आरोपियों को बचाती दिखाई दी।