- कांग्रेस सरकार में तत्कालीन तहसीलदार ने कांग्रेसियों का किया था अपमान,भाजपा सरकार में एसडीएम ने पत्रकारों का किया अपमान
- जब पत्रकारों से मुख्य अतिथियों को खतरा है तो फिर कार्यक्रम में बुलाया ही क्यों जाता है ?
- क्या पुराने अधिकारी ही है फिर सत्ता के सहयोगी…जिन्हें नया प्रोटोकॉल मिला होगा?
- क्या पत्रकारों की अहमियत और इज्जत बहुत जल्द खत्म हो जाएगी?
- पत्रकारों का एक समुह इस घटना पर किया विरोध दर्ज और कर्यक्रम से चले आए…पर इस विरोध का हिस्सा व्यापारी पत्रकार नहीं बाने?
- क्या पत्रकार जिला प्रशासन की खबरों का बहिष्कार कर पाएगे…या जिले के मठाधीश पत्रकार इसे भी समझौता में तब्दील कर जाएगे?
- यह विषय विधायक एवं कलेक्टर साहब तक भी पहुची पर उन्होंने इस मामले में संज्ञान क्या लिया पता नहीं है,देखना होगा अगला कदम क्या होगा?
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,30 जनवरी 2024 (घटती-घटना)। राष्ट्र्रीय महापर्व के अवसर पर कोरिया जिले में अपमान करना परंपरा सी बन गई है पिछली कांग्रेस सरकार में राष्ट्रीय पर्व के दिवस एक तहसीलदार द्वारा कांग्रेसियों का ही अपमान किया गया था उन्हें कुर्सी से उठा दिया गया था,कुछ ऐसा ही सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार में भी देखने को मिला जब पहले ही राष्ट्र्रीय पर्व के अवसर पर गणतंत्र दिवस के दिन निमंत्रण देकर बुलाए पत्रकारों को कवरेज करने से रोका गया और उन्हें ग्राउंड से बाहर जाने को कहा गया, गणतंत्र दिवस समारोह कार्यक्रम में शामिल पत्रकारो को कवरेज करने के लिए रोक लगाई गई वहीं बैकुंठपुर एसडीएम ने कहा ग्राउंड से बाहर जाए। क्या पत्रकारों को कवरेज करके फोटो विडियो देंगी एसडीएम या फिर पत्रकारों को कार्यक्रम का लुत्फ उठाने के लिए आमंत्रित किया गया था? अंकिता सोम ने कहा पत्रकार निकल जाए ग्राउंड से बाहर,सूत्रों का कहना है की सुरक्षा की दृष्टि से पत्रकारों को रोका गया था पर यदि पत्रकारों से इतना ही असुरक्षित है कार्यक्रम तो पत्रकारों को ऐसे कार्यक्रमों में बुलाया ही क्यों जाता है? जब पत्रकारों के आने से अतिथियों को खतरा है तो ऐसे कार्यक्रमों में पत्रकारों को आमंत्रण नहीं देना चाहिए। प्रशासनिक अधिकारियों का इस समय तेवर सातवें आसमान पर है अपमान सम्मान तो इस समय जूते की नोक पर रखे हुए हैं,सम्मान से ज्यादा अपमान की घटनाएं खूब देखने को मिल रही हैं,क्या अपमान करना प्रशासनिक अधिकारियों के परंपरा में शुमार हो चुका है? पत्रकारों को कवरेज करने से रोकने को लेकर एसडीएम बैकुंठपुर की किरकिरी हो रही है वहीं प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिसे लेकर पत्रकारों में आक्रोश तो दिख रहा है पर जिन पत्रकारों में आक्रोश है उनका आक्रोश तो समझा जा सकता है पर कुछ ऐसे भी जिले के महामहिम पत्रकार हैं जिन्हें इन सब से कोई लेना-देना नहीं सिर्फ अपना व्यापार चलाना ही इनका मकसद है,इसी वजह से वह बहिष्कार के मामले से अपने आप को दूर करके अपने व्यापार को सुरक्षित कर रहे हैं,वहीं पत्रकारों का एक समूह इस घटना से आहत है और इसका विरोध कर रहा है और प्रशासन की खबरों का बहिष्कार करने की बात कह रहा है,पर जो समूह इस समय उस घटना से आहत हुआ है उन्हे वरिष्ठ पत्रकार मना कर समझाकर मामले को ठंडा बस्ते में करके सब कुछ मैनेज करने पर लगे हुए देखे गए।
क्या वर्तमान प्रशासनिक अधिकारियों में शिष्टाचार बचा नहीं?
जिस तरह पत्रकारों के साथ राष्ट्रीय पर्वों के दिन अपमानजनक व्यवहार प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है उसको देखते हुए यह प्रश्न उठता है की क्या प्रशासनिक अधिकारियों के भीतर शिष्टाचार बचा नहीं है। किसी को सम्मान के साथ बुलाकर उसका अपमान करना कैसी अतिथि सत्कार परंपरा है? यह कोरिया जिले के अधिकारियों को समझाना होगा। पुरवर्ती कांग्रेस शासनकाल में एक बार पत्रकारों का अपमान किया गया था राष्ट्र्रीय पर्व दिवस आयोजन के दौरान वहीं अब भाजपा शासनकाल में बैकुंठपुर में वैसी ही पुनरावृति देखी गई। पत्रकारों से आपत्ती थी उनकी फोटोग्राफी से तो उन्हे रोकना था उन्हे अपमानित कर बाहर जाने की चेतावनी देना कितना उचित है यह प्रशासनिक अधिकारियों को बताना चाहिए। क्या आने वाले समय में पत्रकार किसी आमंत्रण पर प्रशासन के जाने से परहेज ही रखें यह प्रशासन की मंशा है यह भी स्पष्ट करना चाहिए जिससे पत्रकार अपना मान सम्मान बचाने किसी कार्यक्रम में जाने से परहेज ही रखें।
क्या व्यापारी पत्रकारों के कारण भी उत्पन्न हो रही पत्रकारों के अपमान की स्थिति?
आज पत्रकारों में कुछ हैं जो निष्पक्ष हैं और निष्पक्ष होकर वह अपना प्रकाशन करते हैं वहीं कुछ व्यापारी किस्म में पत्रकार हैं जिनका उद्देश्य सत्य का प्रकाशन करना न होकर अपना लाभ होता है, ऐसे व्यापारी किस्म के पत्रकार ही निस्पक्ष पत्रकारों के लिए खतरा हैं, यह पहले तो नेताओं के करीबी बन जाते हैं वहीं जब कोई आयोजन होता है यह नेताओं के साथ ही मंचस्थ हो जाते हैं,नेताओं के साथ मंच पर बैठकर यह फिर अन्य पत्रकारों को भूल जाते हैं और फिर अन्य के साथ अपमान की कोई बात समाने आती भी है तो यह मौके पर मौन हो जाते हैं अनभिज्ञ हो जाते हैं,वहीं जब पत्रकार समूह कोई विरोध खड़ा करता है यह मध्यस्थ हो जाते हैं और फिर एक मध्यस्थ बनकर यह मामले को दबाने में लग जाते हैं। कुल मिलाकर यह केवल मध्यस्थ हैं और पत्रकार होना इनका लाभ का विषय है।
क्या पद पाकर प्रशासनिक अधिकारी घमंड में चूर हैं ?
प्रशासनिक अधिकारी क्या पद पाकर घमंड में चूर हैं,क्या उन्हे उनका पद लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को अपमानित करने का अधिकार देता है। सवाल कई हैं जिनका जवाब प्रशासन को देना होगा। प्रशासन को राष्ट्र्रीय पर्वों के दिन पत्रकारों के लिए भी एक निर्देश अब जारी करना चाहिए की उनकी क्या प्राथमिकताएं हैं पत्रकारों को लेकर। आज स्थिति यह है की प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा राष्ट्र्रीय पर्वों के दिन भी पत्रकारों का अपमान किया जा रहा है। अब यह क्या बनी रहने वाली परंपरा बनी रह जाएगी या फिर इसको लेकर प्रशासन सुधार लाने का प्रयास करेगा यह देखने वाली बात होगी।
क्या पत्रकारों के सम्मान के लिए प्रशासनिक अधिकारी खतरा बनते जा रहे हैं?
जिस तरह राष्ट्रीय पर्वों के दिन पत्रकारों का अपमान जारी है उसके बाद यह भी सवाल उठता है की क्या पत्रकारों के सम्मान के लिए प्रशासनिक अधिकारी खतरा बन चुके हैं। क्या प्रशासनिक अधिकारी पत्रकारों को अब अपने अनुसार चलाने का काम करेंगे वह प्रायोजित ही कुछ कर पाएंगे उनकी स्वतंत्रता बाधित रहने वाली है। कोरिया जिले में कुछ वर्षों से जो हो रहा है उसके बाद यही कहना उचित होगा की पत्रकार अब स्वतंत्र होकर कुछ लिख पाने में सक्षम नहीं हैं।