बैकुण्ठपुर/ पटना@शिकायत के बावजुद आखिर किस का संरक्षण प्राप्त है मोटल संचालक को…की शासकीय जमीन पर कर रहा अवैध निर्माण?

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-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर/पटना,24 जनवरी 2024(घटती-घटना)। पर्यटन विभाग द्वारा बनाये गये मोटल जो कोरिया जिले के बैकुण्ठपुर विकासखण्ड ग्राम पंचायत चिरगुड़ा के एनएच 43 पर स्थित है। जो पिछले कुछ सालों से जीर्णषीर्ण स्थिति निर्मित हो गयी थी। पूर्व प्रदेश की सरकार ने इसे न जाने लीज पर दिया या फिर निजी व्यक्ति के हाथ विक्रय कर दिया है? जिसकी सूचना सार्वजनिक नहीं परंतु जानकारी के मुताबिक किसी शासकीय सम्पत्ती को शर्तो के अनुसार लीज में देने का प्रावधान जरूर है। लीज में प्राप्त मोटल का निजी व्यक्ति के हाथ लगने से वह वहां से व्यवसाय जरूर कर रहा है पर निजी सम्पत्ती की तरह मोटल परिसर में निजी निर्माण भी हो रहा है। जिसकी शिकायत ग्राम पंचायत के सरपंच के साथ ग्रामीणों ने तहसीलदार वह कलेक्टर साहब से लगभग तीन माह पहले की थी। जिस पर न तो आज तक किसी जिम्मेदार अधिकारी ने यहां आकर पूरे मामले का निरीक्षण किया और न ही कोई कार्यवाही हो सकी क्या कलेक्टर साहब को भी मोटल संचालक ने अपने पैसे के मायाजाल में फंसा रखा है? नहीं तो क्या कारण है कि षिकायत के बावजुद निर्माण की गति नहीं रूक रही है और मोटल संचालक ढंके की चोट पर निर्माण कार्य को पूर्ण करने के कगार पर है।

मोटल बना रिर्सोट,मंहगी इतनी की आम आदमी पहुंच से दूर…
हांलाकि मोटल मूल रूप से होटल है जो यात्रा के दौरान सुविधा के तौर पर यात्रियों के लिये बनाया जाता है, मोटल में सुविधाजनक पार्किंग स्थान उपलब्ध होता है। मोटल वाणिज्यिक और व्यवसायिक यात्रियों के साथ सम्मेलन, बैठक मे भाग लेने वाले व्ययक्तिों के साथ छुट्टियां बिताने के लिये पर्यटकों की सेवा करता है। जिसकी सुविधा के लिये पर्यटन विभाग ने करोड़ो खर्च कर बनाया था ताकि इसका लाभ पर्यटकों को मिल सके पर यह निजी हाथों में जाते है इसके जगह की संरचना और मोटल के उद्देश्य को हटाकर रिसॉर्ट का नाम दे दिया गया आम तौर पर रिसॉर्ट बड़े-बड़े जगहों पर होते है जो महंगे के साथ आमतौर पर पर्यटन स्थानों पर बनाये जाते है। जहां पर्यटक घूमने,मौज मस्ती करने आते है। एनएच 43 में बने इस मोटल का उद्देष्य से विपरीत इसे हॉटल, रिर्सोट और अब निजी निर्माण कर ढाबा की तैयारी में लीजधारक लगा हुआ है।
मोटल शासन का पर सूचना पटल में लिखा जा रहा अपना निजी नाम कैसे?
मोटल संचालक द्वारा भले ही शर्तो के आधार पर मोटल से लीज प्राप्त किया हो पर क्या यह सही है कि मोटल किस विभाग ने बनाया, किस सरकार के नेतृत्व में बना तथा इसके उद्घाटन में कौन अधिकारी, जनप्रतिनिधि शामिल थे लिखा हुआ नाम मिटाकर अपने प्रतिष्ठान का निजी नाम लिख सके। मोटल संचालक द्वारा किये जा रहे अतिक्रमण और शासकीय मोटल का अपने मन मुताबिक किय जा रहे परिवर्तन से क्षेत्र के लोगों में नाराजगी है। आखिर मोटल में नाम का परिवर्तन करने का अधिकार किसने दे दिया लीज व्यवसाय को?
क्षेत्र में एकमात्र ऐसा स्थान जहां अपने विवाह के लिय जगह मिलता था वाजिब दाम में
दादागिरी के साथ हो रहे अतिक्रमण से लोगों कहना है कि मोटल निजी हाथों मे जाने से जरूर सुव्यस्थित हो गया पर इस तरह मनमानी तरीके निर्माण करेंगे तो विवाह के लिये जगह छोटा पड़ जायेगा। भींड की स्थिति में वाहन पार्किंग के लिये भी समस्या होगी, एनएच 43 में होने वजह से इस मोटल की सामने में बची जगह इसे सुंदर छवि प्रदान करती है पर मोटल के सामने निर्माण हो रहे कमरा यदि बनेगा तो मोटल की सुंदरता खराब हो जायेगी।
अधिकारी नहीं सुनेंगे तो आखिर सुनेगा कौन
प्रशासनिक अधिकारी आम जनता के लिये नियुक्त होता है। आमजनों की समस्याओं, शिकायत के निदान कर न्याय दिलाने का काम करते है पर पूर्व सरकार मे ज्यादातर अधिकारी अपने मनमानी करके खूब मनमानी किये अब प्रदेश में नयी सरकार की व्यवस्था लागू हुयी है इसके बावजुद दिये गये शिकायतों पर किसी का कोई ध्यान नहीं है। आम लोगों की शिकायती आवेदन सिर्फ कार्यालयों तक आवक-जावक तक जाती है पर उस पर संज्ञान लेने के लिये जिम्मेदार अधिकारी कब अपनी भूमिका निभायेंगे? लोग परेशान होते है जिस पर न्याय की आस में वह जिम्मेदार अधिकारी को अपनी आपबीति सुनाते है और तरीका भी यही होता है पर अधिकारी सुनेंगे नहीं तो आखिर सुनेगा कौन?


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