- प्रधान आरक्षक इतने योग्य हैं की सुराग वाले मामले को तो सुलझा लेते हैं जो कोई भी सुलझा सकता है पर बिना सुराग वाले मामले क्यों अब तक अनसुलझे हैं?
- प्रधान आरक्षक क्या किसी सुपर टीम का हिस्सा…जिस वजह से उनका हर थाना क्षेत्र की उपलब्धि वाले मामले से उनकी कड़ी जुड़ जाती है?
- पटना थाना क्षेत्र की कई चोरियों के मामले आज भी अनसुलझे हैं आखिर उसे क्यों नहीं सुलझा पाई इस प्रधान आरक्षक के सहारे कोरिया पुलिस?
- क्या सुपर कॉप प्रधान आरक्षक हर अधिकारियों के आंख के तारे हैं…जिन पर सभी की विशेष मेहरबानी रहती है
- 300 से अधिक कर्मचारी वाले जिले में एक प्रधान आरक्षक ही सुर्खियों में क्यों रहते हैं?
-रवि सिंह-
कोरिया,20 जनवरी 2024 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में 300 से अधिक पुलिसकर्मी हैं और चार थाने वाले कोरिया जिले में जिला विभाजन से पहले 12 थाने थे और तकरीबन 1000 से अधिक पुलिस कर्मी थे अविभाजित जिले में, उस समय भी एक प्रधान आरक्षक जिसका सुपर कॉप का नाम पड़ चुका है वह सुर्खियों में रहते थे सुर्खियों की वजह उनकी अच्छी कार्यप्रणाली नहीं रही है, पुलिस के लिए छवि खराब करने वाले पुलिसकर्मी की कार्यप्रणाली कैसी होती है इसका सबूत खुद ब खुद शिकायतों के तौर पर पुलिस के पास कई पड़ी होगी, कई बार तो कार्यवाही होते-होते प्रधान आरक्षक किसी ऊंची पकड़ की वजह से बच भी निकले और कई मामलों में तो जांच को इन्होंने प्रभावित कर दिया…जिस दिन भी कोई ईमानदार व स्वच्छ छवि वाला अधिकारी आ गया और जांच कर ली तो कार्यवाही भी हो सकती है पर ऐसा कब होगा इसका तो पता नहीं, क्योंकि इनके पास एक खूबी इतनी अच्छी है कि किसी भी अधिकारी को अपने प्रभाव में कर लेते हैं…कुछ अधिकारी तो इन्हें कमाऊ समझकर साथ रखते हैं जिसका फायदा यह बखूबी उठाते हैं। वैसे कई अधिकारी इन्हें काफी होनहार मानते हैं उनका यह मानना है की काफी तेज कर्मचारी है कोई भी मामला सुलझा देते हैं पर इस भरोसे के साथ कई ऐसे मामले भी हैं जिसे यह प्रधान आरक्षक सुलझाने के बजाय पुलिस विभाग को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं और पुलिस को छवि पर दाग लगा देते हैं। अधिकारियों से एक सवाल है वह सवाल यह है कि आपके पास 300 से अधिक कर्मचारी है पर क्या एक ही ऐसा प्रधान आरक्षक है जो काफी विशेष है जो कोई भी बड़े से बड़े मामला सुलझा सकता है? पर यदि ऐसा है तो कई ऐसे चोरी के मामले पिछले 1 साल में हुए जो आज भी नहीं सुलझा पाए, उन मामलों को क्या इस प्रधान आरक्षक को नहीं दिया गया जो उसे सुलझा सके? या फिर इस प्रधान आरक्षक को वही मामला दिया जाता है जो सुलझे सुलझाए रहते हैं, बस उसका नाम वहां पर रखकर इसकी उपलब्धि उन्हे दिलाई जा सकती है? पदस्थ कहीं रहते हैं पर इनका हस्तक्षेप हर थाना क्षेत्र की उपलब्धियां में जुड़ जाता है, आखिर ऐसा क्यों? क्या बाकी थाना क्षेत्र के कर्मचारियों पर अधिकारियों का भरोसा नहीं या फिर वह कर्मचारी कोई भी मामला सुलझाने की क्षमता नहीं रखते?
शिकायत और मामलों के बावजूद प्रधान आरक्षक पर अधिकारी रहते हैं मेहरबान
प्रधान आरक्षक की कई शिकायतें हैं वहीं मामले भी प्रधान आरक्षक पर हैं जिससे वह प्रभाव के कारण बचे हुए हैं। प्रधान आरक्षक पर शिकायतों व मामलों के बावजूद अधिकारी क्यों मेहरबान हैं यह बड़ा सवाल है। कई शिकायतें जिले में होते हुए भी हर मामले में इन्हे भेजना जोड़ना यह दर्शाता है की यह कितने जुगाड़ू हैं। विभाग के अधिकारियों पर कितनी पकड़ है इनकी। कई मामले यह जिले में रहकर ही अपने ऊपर के दबाए बैठे हैं जिनमे जांच हो तो शायद यह दोषी भी साबित हो जाएं।
क्या एक प्रधान आरक्षक के चक्कर में 300 से अधिक पुलिसकर्मियों को नीचा दिखाने का प्रयास?
कोरिया जिले में कुल चार पुलिस थाने हैं वहीं यहां कुल दो पुलिस सहायता केंद्र हैं जिले में कानून व्यवस्था सम्हालने के लिए लगभग 320 पुलिसकर्मी कार्यरत हैं, जिले में 3320 पुलिसकर्मियों के कार्यरत होने के बावजूद हर पुलिस थाने में एक प्रधान आरक्षक की ही धमक है, कोई भी मामला हो जहां श्रेय की बात आती है कार्यकुशलता की बड़ाई की बात आती है केवल एक प्रधान आरक्षक का नाम शामिल कर दिया जाता है और उसे श्रेय देना अधिकारी नहीं भूलते। प्रधान आरक्षक की हर मामले में हर पुलिस थाने में दखल और उपलब्धियों में हिस्सेदारी देखकर यही कहा जा सकता है की क्या अन्य किसी पर विभाग को विश्वास नहीं है क्या अन्य को एक प्रधान आरक्षक के मुकाबले कमत्तर मानते हैं जिले के आला अधिकारी?
सिर्फ एक प्रधान आरक्षक के चक्कर में सारे पुलिसकर्मियों का मनोबल क्यों तोड़ने का प्रयास?
जिले में एक प्रधान आरक्षक को इतनी छूट दी गई है की वह बिना वर्दी कहीं भी दिख जायेंगे,किसी भी पुलिस थाने में उन्हे जाकर हस्तक्षेप का अधिकार है, उन्हे हर उपलब्धि में जोड़ना एक नियम बन चुका है। पदस्थ जहां हैं वहां छोड़कर दिनभर इन्हे घूमते ही देखा जा सकता है। प्रधान आरक्षक के कारण जिले के पुलिसकर्मियों का मनोबल भी टूट रहा है क्योंकि सभी को उनके निर्देश पर काम करना पड़ रहा है। अब सवाल यह है की एक प्रधान आरक्षक के कारण क्यों जिले के 320 पुलिसकर्मियों का मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
एक नशे के विरुद्ध कार्यवाही में उन्हें उपलब्धि में जोड़ फिर पुलिस सवालों के घेरे में ?
पटना थाना के अंतर्गत एक नशे के विरुद्ध कार्यवाही की गई उस कार्यवाही में एक प्रधान आरक्षक की उपलब्धि भी जोड़ी गई जबकि यह प्रधान आरक्षक जो उस थाना क्षेत्र में पदस्थ भी नहीं है बताया जाता है कि यह अभी रक्षित केंद्र में पदस्थ है, इसके बावजूद दूसरे थाना क्षेत्र की कार्यवाही में जाकर नाम जुड़वा लेना और उसे अपनी उपलब्धि साबित करना कहीं ना कहीं बाकी पुलिसकर्मियों के लिए उनका मनोबल तोड़ने जैसा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि लगातार इनका पटना थाना क्षेत्र में आना जाना लगा रहता है अब इसकी वजह जो भी हो अब यह किस सुपर टीम के सदस्य हैं जिनका हर थाना क्षेत्र में दखल रहता है यह तो वही अधिकारी जाने जो इन्हें अपने आंखों का तारा बना रखे हैं।