-अविनाश सिंह-
अम्बिकापुर,07 जनवरी 2024 (घटती-घटना)। लगभग पॉच दशक से सार्वजनिक मंच पर अपनी कविताओं से श्रोताओं की वाह-वाही लूटने वाले सरगुजिहा छत्तीसगढ़ी रमायन के रचयिता श्री वंशीधर लाल ने विगत २४ दिसम्बर २०२३ को सार्वजनिक मंच से सन्यास लेने की घोषणा कर अपने चाहने वालों को सकते में डाल दिया। स्मरणीय है कि म.प्र. छत्तीसगढ़ सरकार के आदिम जाति कल्याण विभाग में उच्चतर माध्यमिक विध्यालय के प्राचार्य पद सेवा निवृत हो श्री लाल रचना धर्मिता में समर्पित भाव से जुड़ गये । इस बीच उनकी कई पुुस्तके प्रकाश में आयी जिनमें सरगुजिहा छ.ग. रमायन को आम लोगों ने हाथ-ओ-हाथ लिया इसका विमोचन तात्तकालीन छ.ग. सरकार के मंत्री की रामविचार नेताम के कर कमलों से दिनांक १४/१२/२०१० को स्थानीय उच्च विश्रामगृह अम्बिकाुपर में किया गया । पुस्तकों के प्रकाशन का क्रम अनवरत जारी है। (१) ओह धृतराष्ट्री-खण्ड कावा २ सरगुजा-गीतों के गवाक्षों से-गीत संग्रह ३. गुलदस्ता-ए-गीतओं-गजल ४. बात आम आदमी की-भाव्य संग्रह ५. आओ हम याद करें-भारत के लालन को।
कविता संग्रह-इनके अतिरिक्त अनेक पुस्तके मुद्रण की प्रतीक्षा में है जिनमें दैनिक समाचार पत्र घटती घटना में प्रकाशित-हमर सियान सरगुजिहा बोली में धारावाहिक भारत के विशिष्ट महापुरूषों की जीवनी उल्लेखनीय है। यहां यह स्मरणीय है कि आदिवासी संत श्री गहिरागुरू जी के जीवन पर आधारित गहिला पचीसी हिन्दी और सरगुजिहा बोली में प्रकाशित है। ०२. ज्ञातका है कि श्री लाल का साहित्य जीवन एक समय सरगुजा के कालापानी के नाम से मुख्यालय सामरी तहसील के कुसमी मुख्यालय से प्रारम्भ हुआ जव उन्होने लिखा कुसमी कश्मीर है,जिला सरगुजा का (सन्१९६७) यह परवान चढ़ा तत्कालीन रायपुर जिला वर्तमान में गरियाबन्द जिला) के पाण्डुका नामक गाँव में जहां के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता के रूप में पदस्थ रहें। वहां क्षेत्रीय वातावरण इतना रोचक रहा कि श्री लाल ने खूब लिखा। इस तारम्य में पैरी साहित्य परिबद् पाण्डुका के गठन में योगदान किया और पैरी प्रवाह नामक पत्रिका के वार्षिक अंकों को वहां सेवा कार्य करते हुए सम्पादन भी किया । वहीं से आकाशवाणी रायपुर में कविता पाठ का भी अवसर पाया। घटती-घटना परिवार से श्री लाल का संबंध एक मौलिक रचना-हनुमान पचासा-के प्रकाशन से हुआ। एक ही इस प्रकाशन के बाद श्री लाल अवैतनिक स्तम्भ लेखक के रूप में वर्षों तक इस परिवार की सेवा में लगे रहे और परिवार ने अपनी क्षमता के अनुरूप उन्हें १७.११.२०१२ सम्मान संस्था से विदा किया। इस बीच श्री लाल को जिला स्तर से लेकर राज्यस्तर तक के अनेक सम्मान से अलंकृत किया गया साथ ही देश की अनेक संस्थाओं ने उनकी कृति-सरगुजिहा छ.ग. रमायन के लिये सम्मानित किया। आकाशवाणी केन्द्र अम्बिकापुर द्वारा समय-समय पर प्रसारण हेतु उन्हें आमंत्रित किया गया। स्मरणीय है कि श्री बीडी लाल सेवानिवृत के पश्चात् सन् २००५ से अम्बिकापुर में अपने परिवार के साथ स्थायी रूप से रहने लगे हैं। इस अवधि में नगर की विशिष्ट साहित्यिक संस्था भारतेन्दु कला और साहित्य परिवाद से गम्भीरता पूर्वक जुड़े रहे और अपनी समर्पण प्रवृति के आधार पर संख्या के संस्थापक स्व0 श्री जे.एन मिश्रा के प्रिय पात्र बने रहे और अब शारीरिक कष्टों के कारण संस्था और अन्य मंचीय कार्यक्रमों से सन्यास की घोषणा कर दी है। अपने प्रारम्भिक दिनों की चर्चा करते हुए श्री लाल ने बताया की उनका जन्म उ.प्र.के वाराणसी क्षेत्र जिला चन्दौली के एक अविकसित छोटे से गॉव डेढ़ावल में हुआ और इंटर मीडिएट तक की परीक्षा गॉव में रह कर उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् बी.एच.यू. से वाराणसी नगर में रह कर ग्रेजुएशन तथा गोरखपुर विश्व विध्यालय से बी.एड. की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् सरगुजा में आजीविका की तलाश में पहुँच शिक्षक के रूप में कार्य प्रारम्भ किये। पिता स्व. श्री रामनारायण लाल और माता श्रीमती शुभवन्ती देवी को याद करते हुए श्री लाल भातुक हो उठे रूधे कंठ से वोले कि पिता का अनुशासन और माँ की ममता ने उन्हें इस मुकाम तक पहुॅचाया है। साक्षात्कार के अंतिम पड़ाव पर श्री लाल ने नगर की साहित्येक संस्थाओं-भारतेन्दु कला साहित्य समिति-राष्ट्रीय कवि संगम-तुलसी साहित्य समिति और निश्छल साहित्य (सरगुजिहा) समिति लखनपुर सरगुजा के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होंने अपने साथ उन्हें जोड़ रखा था और मंच पर भावनाओं को व्यक्त करने का सु अवसर दिया था। दैनिक घटती-घटना के प्रति आभार व्यक्त किया जिन्होने समय-समय पर गद्य और पद्य दोनों प्रकार की रचनाओं को अपने पत्र में स्थान दिया जिनकी संख्या बहुत बड़ी है।
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