सरगुजा/रायपुर@छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को लेकर उनके समर्थक अलग-अलग अनुमान लगा रहे हैं वहीं आम जनता की पसंद डॉ रमन सिंह माने जा रहे है…

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-विशेष संवाददाता-
सरगुजा/रायपुर 08 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ है और तीन राज्यों में भाजपा की सरकार आ चुकी है तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री बनने के लिए जद्दोजहद शुरू है, समर्थक अपने-अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदारों का समर्थन करके सोशल मीडिया सहित कई न्यूज़ चैनलों में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की खबर चलवा रहे हैं, कोई यज्ञ कर रहा है तो कोई अलग तर्ज पर अपना दावा रख रहा है लेकिन कोई यह नहीं जानना चाहता है कि जनता किसे मुख्यमंत्री देखना चाहती है, इसी वजह से कई बार गलत फैसला ले लिए जाते हैं, लेकिन यदि जनता की राय पर विचार किया जाएगा तो वह व्यक्ति मुख्यमंत्री पद और प्रदेश के लिए ज्यादा अच्छा होगा,क्योंकि जनता के जनाधार ने ही सरकार दिलाई है इसलिए जनता से पूछ कर ही मुख्यमंत्री बनाना ज्यादा उचित होगा, नहीं तो छत्तीसगढ़ में पुरानी कांग्रेस सरकार के जैसा हाल एक बार फिर दोहराया जा सकता है, छत्तीसगढ़ प्रदेश में मुख्यमंत्री के दावेदारों के कई नाम चल रहे हैं और उनके समर्थक उनके लिए खूब जोर जोर से प्रचार प्रसार कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री उन्हें ही मिल जाए पर वही जो प्रचार नहीं कर रहे सिर्फ उनके दिल में ही यह दफन है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हो उनकी बातें भाजपा के विशेष नेतृत्व तक कैसे पहुंचेगी यह भी बड़ा सवाल है, कई जिले के आम लोगों से बातचित में पता चला कि सभी लोग पुराने मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को ही इस बार भी मुख्यमंत्री बनता देखना चाह रहे हैं, इसकी वजह पूछने पर उनका कहना है कि उनके नेतृत्व में उन्होंने 15 साल देखा है अब यदि किसी नए के हाथ में प्रदेश की कमान तत्काल दिया जाता है तो हो सकता है कि कांग्रेस की सरकार जैसा हाल ना हो जाए, डॉ. रमन सिंह ने 15 साल बहुत अच्छे तरीके से छत्तीसगढ़ को चलाया और एक अलग पहचान प्रदेश को दी थी, वही पहचान आगे भी बरकरार रहे इसलिए डॉ. रमन सिंह का ही मुख्यमंत्री बनना ज्यादा अच्छा होगा छत्तीसगढ़ के लिए। वैसे यदि प्रदेश में इस बार के चुनाव को समझा जाए तो प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से चेहरा जहां भूपेश बघेल थे जो लगभग तय चेहरा थे भले ही टी एस सिंहदेव अलग विश्वास में थे वहीं भाजपा ने भले ही अपना चेहरा मुख्यमंत्री का समाने नहीं रखा था फिर भी डॉ. रमन सिंह को लेकर ही लोगों के मन में एक विचार चल रहा था जो लगातार चुनाव प्रचार के दौरान सुनने और देखने को मिलता था और जनचर्चा भी यही रहती थी की भाजपा की सत्ता में वापसी होने पर डॉ.रमन सिंह ही प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे।
कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पांच साल डॉक्टर रमन सिंह का विरोध किया
कांग्रेस ने भी अपने पांच साल के कार्यकाल में डॉक्टर रमन सिंह को ही सबसे ज्यादा बदनाम करने का प्रयास भी किया, वहीं स्वयं मुख्यमंत्री रहते हुए भूपेश बघेल ने भी डॉक्टर रमन सिंह को अपने कार्यकाल के पांच सालों तक किसी न किसी तरह घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस से प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यहां तक की डॉक्टर रमन सिंह के विरुद्ध प्रत्याशी भी अपने सबसे करीब के व्यक्ति को बनाया और कहीं न कहीं उन्हे निपटाने का पूरा प्रयास किया जिसमे वह असफल रहे। डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल के कई विकास कार्यों को लेकर भूपेश बघेल ने जांच की भी बात की कई काम को रोका भी डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को उन्होंने सिरे से बंद करने का काम किया जिससे भी जाहिर हुआ की भूपेश बघेल सहित कांग्रेस की पूरी सरकार भी अपना प्रमुख प्रतिद्वंदी डॉक्टर रमन सिंह को ही मानकर चल रही थी और उन्हे घेरे रखने की पूरी कोशिश वह पूरे पांच साल करते रहे। जांच सहित कई आरोप भी डॉक्टर रमन सिंह पर भूपेश बघेल सहित उनकी सरकार ने लगाए कोई भी वह साबित नहीं कर पाए और सत्ता से बेदखल हो गए लेकिन कांग्रेस अपने सत्ता काल के दौरान डॉक्टर रमन सिंह को लेकर ही उनकी लोकप्रियता को लेकर ही परेशान देखी गई।
रमन के पन्द्रह साल के कार्यकाल का तोड़ कांग्रेस का पास भी नहीं था
भाजपा ने प्रदेश में शानदार वापसी की और कहीं न कहीं इस दौरान जनता ने डॉक्टर रमन सिंह के पन्द्रह साल के कार्यकाल को देखकर ही पुनः भाजपा को प्रदेश की कमान सौंपी है ऐसे में डॉक्टर रमन सिंह की जगह किसी अन्य पर दांव लगाना भाजपा के लिए उसके भविष्य के लिए खतरनाक न साबित हो जाए यह उसे ध्यान रखना होगा। डॉक्टर रमन सिंह बतौर मुख्यमंत्री कभी भी अक्रामक होकर राजनीति करते नहीं देखे गए उन्होंने कभी भी सत्ता में रहते हुए भाजपा संगठन से भी तालमेल खराब नहीं किया उनके कार्यकाल में विधायकों से भी उनके उनकी नजदीकी बनी रही और कभी उनके विरोध में स्वर विधायकों के नहीं उठे जबकि कांग्रेस के पांच सालों के कार्यकाल में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस में न तो संगठन के साथ सत्ता का तालमेल देखा गया न ही विधायकों को ही एकजुट देखा गया कुल मिलाकर सत्ता में रहते हुए कांग्रेस का आंतरिक कलह लगातार पांच सालों तक जारी रहा जिसका नतीजा परिणामों को देखकर लगाया जा सकता है।
मुख्यमंत्री की रेस में यह भी है…
वैसे यदि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की रेस में शामिल भाजपा नेताओं का नाम देखा जाए तो रेणुका सिंह,अरुण साव,ओ पी चौधरी भी इस दौड़ में शामिल हैं लेकिन सभी डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में उनके बेहतर कार्यकाल के साक्षी रह चुके हैं यहां तक की ओ पी चौधरी ने उन्हीं के नेतृत्व आईएएस की नौकरी छोड़कर भाजपा का दामन थामा था,इधर पांच सालों के विपक्ष के कार्यकाल में भी डॉक्टर रमन सिंह ही विपक्ष की तरफ से सत्ताधारी दल के लिए मुख्य मुद्दा थे यह भी कहना गलत नहीं होगा,कुल मिलाकर इस बार का भी चुनाव भले ही भाजपा ने चेहरा आगे नहीं किया था डॉक्टर रमन सिंह के ही चेहरे पर चुनाव लड़ा था जैसा जनता का मानना है ऐसे में उनकी अनदेखी भी भाजपा करने वाली है ऐसा लगता नहीं है।
डॉक्टर रमन सिंह के पन्द्रह साल के कार्यकाल की उपलब्धियों में यह शामिल
वैसे डॉक्टर रमन सिंह के पन्द्रह साल के कार्यकाल की उपलधियों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में धान के समर्थन मूल्य को लेकर उनकी चिंता हमेशा दिखी थी वहीं उनका लोक सुराज जैसा अभियान भी काफी लोकप्रिय हुआ था जिससे प्रशासनिक कसावट बनी ही रही थी प्रदेश में नौकरशाहों को लेकर भी उनका कार्यकाल ऐसा था की अराजकता देखने सुनने को नहीं मिली थी शिक्षाकर्मी प्रथा का अंत भी डॉक्टर रमन सिंह की ही देन थी जिससे प्रदेश में कांग्रेस शासनकाल में मृत घोषित कर दिए गए शासकीय शिक्षक संवर्ग को उन्होंने जीवित किया था। डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में ही चावल नमक चना जैसी योजनाएं लागू हुईं थीं जो आज पूरे देश में धीरे धीरे लागू हो रही योजना है चावल वाले बाबा ऐसे ही उनका नाम नहीं पड़ा था उनकी गरीबों को लेकर सोच ही इसका मूल था, रायपुर शहर में स्काई वाक योजना जिसे वर्तमान सरकार ने रोक दिया था अब उसके भी पूरा होने की उम्मीद रायपुर वासियों को है वह भी डॉक्टर रमन सिंह की एक बेहतर योजना सोच थी जो शहर की सुंदरता के लिए महत्वपूर्ण साबित होती।
कांग्रेस के हार का दोषी ईवीएम
आज कांग्रेस ईवीएम पर दोष देकर खुद को सांत्वना दे रही है जबकि खुद कांग्रेस पहले ही चरण के मतदान के बाद समझ चुकी थी की बस्तर सहित 20 सीटों पर उसे नुकसान हो चुका है और जिसके बाद ही महिलाओं के लिए 15 हजार की घोषणा खुद मुख्यमंत्री को करनी पड़ी जिसमे कांग्रेस विलंब कर गई जबकि सत्ता विरोधी लहर आगे निकल चुकी थी, कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुईं इसके पीछे की एक और वजह भी यह रही की अधिकांश जगह जहां परिणाम उलट आए वहां कार्यकर्ता भी अपने अपने प्रत्याशी को निपटाने में लगे हुए थे और वह सत्ता तो चाह रहे थे लेकिन अपना प्रत्याशी वह विधानसभा में नहीं भेजना चाहते थे और इसी तरह एक एक करके प्रत्याशी हारते चले गए और भाजपा ने कांग्रेस के आंतरिक कलह की वजह से जीत दर्ज कर ली। अब भाजपा सत्ता में वापसी कर चुकी है और सामने लोकसभा का चुनाव है और प्रदेश में 11 लोकसभा सीटें हैं जहां भाजपा को अधिकतम सीटें निकालनी हैं केंद्र की सत्ता तक जाने के लिए इसके लिए उसे सोच समझकर ही मुख्यमंत्री का चेहरा तय करना होगा जिसके लिए डॉक्टर रमन सिंह से बेहतर चेहरा शायद ही कोई साबित हो क्योंकि जनता के मन में फिलहाल उन्हीं का नाम सबसे ऊपर है। वैसे भाजपा निर्णय लेने में सभी पहलुओं पर विचार करती है और वह जरूर जनता की भावनाओ का ध्यान रखेगी ऐसा लगता है।


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