कोरिया@आखिरकार घटती-घटना की एक और खबर पर लगी मुहर,जिलाध्यक्ष ने ले ही लिया भईयालाल राजवाड़े की जीत का श्रेय

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  • खुद की पीठ थपथपा रहे भाजपा जिलाध्यक्ष कृष्ण बिहारी जायसवाल।
  • कागजी कार्यकारणी के अनेक सदस्य चुनाव में थे निष्क्रिय।
  • क्या सिर्फ बैकुंठपुर विधानसभा के लिए ही थे जिलाध्यक्ष,जबकि सोनहत क्षेत्र में नही थी रुचि?

-रवि सिंह-
कोरिया 06 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। घटती घटना की एक और खबर पर मुहर लग गई, घटती घटना ने पहले ही यह आशंका जाहिर की थी की कोरिया भाजपा जिलाध्यक्ष बैकुंठपुर विधानसभा में जीत का श्रेय अकेले ही लेंगे और वैसा होता नज़र भी आने लगा। बैकुंठपुर से निर्वाचित हुए विधायक भईयालाल राजवाड़े को जैसे ही जीत मिली वैसे ही जिलाध्यक्ष ने उनकी परछाईं बनने का काम किया और अब उन्ही के साथ वह राजधानी में डंटे हुए हैं और बड़े नेताओं से विधायक के साथ मुलाकात कर रहे हैं और सोशल मीडिया में खुद ही भेंट मुलाकात का मामला साझा कर रहे हैं। जिलाध्यक्ष यह पूरी तरह साबित करते नजर आ रहे हैं की बैकुंठपुर विधानसभा से जीत उनकी मेहनत से तय हो सकी है जबकि यदि परिणामों पर गौर किया जाए तो भईयालाल राजवाड़े की जीत का श्रेय किसी एक व्यक्ति को जाता नजर नहीं आ रहा है। इस बार भईयालाल राजवाड़े की जीत का अंतर बताता है की जनता ने उन्हें खुद हाथों हांथ लिया है और उन्हे लोगों का स्वस्फूर्त समर्थन मिला है।
वैसे जिलाध्यक्ष का चुनाव जितने के बाद पहला दायित्व यह होना चाहिए था की वह अपने कार्यकर्ताओं के बीच जाते और उनका हौसला और बढ़ाते साथ ही सभी की पीठ ठोककर उन्हे जीत की शुभकामनाएं देते जिससे कार्यकर्ता भी उत्साहित होता और आगे ऊर्जा के साथ पार्टी हित में जुटा रहता लेकिन जिलाध्यक्ष ने ऐसा करना उचित नहीं समझा उन्होंने सबसे पहले जीत दर्ज कर चुके प्रत्याशी के साथ रायपुर जाना उचित समझा और उनके साथ बड़े नेताओं से मुलाकात उन्हे ज्यादा उचित समझ में आया जबकि क्षेत्र में कार्यकर्ता उत्साह मनाने पांच साल के वनवास के बाद के समय का जश्न मनाने आतुर था जो धीरे धीरे अब धूमिल होती उम्मीद उनकी होती जा रही है। जीत का उत्साह कार्यकर्ता भी अपने नेताओं और नेतृत्व कर्ताओं के साथ मनाना चाहता है वह इसके लिए उत्सुक रहता है जिसको लेकर जिलाध्यक्ष की गंभीरता नहीं देखी गई।
सोनहत विकासखंड में ज्यादा ध्यान नहीं दिया
बता दें की जिलाध्यक्ष ने जीत दर्ज करने के बाद जब सभी बड़े नेताओं के साथ मुलाकात कर ली तब उन्हे फुरसत मिली तब जाकर उन्होंने सोशल मिडिया में भी जनता और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया जबकि यह काम भी उन्हे जीत दर्ज करते ही करना था। जिलाध्यक्ष पूरे चुनाव के दौरान केवल बैकुंठपुर विधानसभा में ही सक्रिय नजर आए उन्होंने अपने ही जिल के सोनहत विकासखंड में ज्यादा ध्यान नहीं दिया जबकि वहां से भी भाजपा प्रत्याशी चुनावी मैदान में थीं जो अलग विधानसभा था। वैसे जिलाध्यक्ष की कार्यकारणी के कितने सदस्यों ने पूरे मनोयोग से भाजपा प्रत्याशी के लिए काम किया यह भी उन्हे निष्क्रिय रहने वाले सदस्यों पर भी ध्यान देना था चुनाव परिणामों के बाद जो वह करना भूल गए और फिलहाल जीत दर्ज कर चुके विधायक के साथ वह राजधानी में डटे हुए हैं। भाजपा वैसे अनुशासित दल है कार्यकर्ता भी अनुशासन मामले में धैर्यवान है लेकिन कार्यकर्ता भी जीत दर्ज होने के पश्चात खुद की पीठ थपथपाने वाला हांथ खोजता है और यदि पीठ थपथपाने वाला हांथ ही पहले अपना हित और अपना लाभ देखने लगेगा तो कार्यकर्ता का मनोबल टूटना स्वाभाविक है।
कार्यकर्ता का मनोबल टूटता सकता है
वैसे प्रदेश की राजधानी में जीत दर्ज कर चुके विधायकों को बुलाया गया था बैठक भी विधायक दल की ही होनी थी इसके बावजूद वहां संगठन के लोगों का जमावड़ा किस बात के लिए लगा है यह समझ से परे विषय है। हर दल में सभी स्तर के कार्यकर्ता होते हैं कोई आर्थिक रूप से सुदृढ़ होता है कोई कमजोर होता है और कमजोर कार्यकर्ता अपने लिए सत्ता आते ही सबसे पहले संगठन से उम्मीद करता है की वह उसके उत्साह में शामिल हो वहीं यदि ऐसा तत्काल नहीं होता कार्यकर्ता का मनोबल टूटता है कहीं न कहीं क्योंकि चुनाव में जितना एक प्रत्याशी अपनी साख बचाने प्रयासरत रहता है संगठन प्रयासरत रहता है उससे ज्यादा कार्यकर्ता साख को लेकर जमीनी स्तर पर कार्य करता है और लड़ने भिड़ने भी तैयार रहता है जो असल मायने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है ऐसे में सबसे पहले संगठन को कार्यकर्ता की ही पीठ थपथपानी चाहिए।
भईयालाल राजवाड़े को भी अपने कदम फंकफुंककर रखने की जरूरत
इस बार भईयालाल राजवाड़े को भी अपने कदम फंकफुंककर रखने की जरूरत है, जनता ने वर्तमान विधायक को केवल इसीलिए अपना समर्थन नहीं दिया क्योंकि वह कुछ सीमित लोगों के बीच घिरी रहीं आम लोग उनसे मिलने कतार में ही खड़े रह गए अब यदि ऐसा भईयालाल राजवाड़े के साथ भी होने लगा तो उनकी सर्व सुलभ मानी जाने वाली छवि को निश्चित नुकसान पहुंचेगा जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बेहतर बिलकुल नहीं होगा। वैसे जिलाध्यक्ष अकेले राजधानी में पहुंचे हैं ऐसा नहीं है विधायक के साथ उनके साथ कुछ ऐसे भी लोग तस्वीरों में नजर आ रहे हैं जो पूरे पांच साल क्षेत्र में नजर नहीं आए थे चुनाव आते ही जिन्हे क्षेत्र में देखा गया था लेकिन आज वह विधायक के साथ राजधानी की सैर पर हैं।


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