- ये छत्तीसगढ़ है लोग धान ही नहीं धनिया भी बोना जानते हैं,ऐसी भी हार पर जारी रही प्रतिक्रिया?
- पूरे प्रदेश में निष्ठावान कार्यकर्ताओं का करते रहे संहार और मीडिया में बोल रहे थे अबकी बार 75 पार…परिणाम ऐसा आया कि खुद 35 नहीं कर पाए पार।
- क्या कोरिया सरगुजा महल की राजनीति पर भी लग सकता है पूर्ण विराम?
- कोरिया पैलेस को मिली पहली बार हार,कोरिया का अजेय किला डहाने भईयालाल राजवाड़े पर भाजपा का विश्वास हुआ कारगर साबित।
-रवि सिंह-
सरगुजा/कोरिया 05 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ प्रदेश की कांग्रेस की अहंकारी सरकार के विधायक कर रहे थे अपने ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का तिरस्कार और उम्मीद लगाए बैठे थे कि करेंगे इस बार 75 पार, जब परिणाम आया तो 35 पार भी नहीं कर पाए जो जादुई आंकड़ा था सरकार बनाने का, अपने अहंकार में ऐसा गिरे कि कांग्रेस की पूरी लंका ही लग गई, मुझे यहां यह लिखने से बिल्कुल भी गुरेज नही कि छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व.अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के विकास की बेहतर नींव रखी पर उनके अहंकार ने कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया। वही स्थति फिर बनी, भूपेश बघेल ने भी छत्तीसगढ़ के बेहतर विकास के लिए अच्छे कदम उठाए पर उनकी हठधर्मिता एवं अहंकार ने कांग्रेस को सत्ता से एक बार फिर दूर कर दिया है। वहीं पूरे चुनाव भर भूपेश का भरोसा भूपेश का भरोसा रखते रहे परंतु भूपेश का भरोसा नहीं चला चली तो मोदी की गारंटी चली, जब परिणाम आया तो कुछ ऐसा ही देखने को मिला, सरगुजा संभाग पूरा साफ हो गया और बस्तर में आधा से अधिक सीट भाजपा की झोली में चली गई, कुछ ऐसा ही हाल बिलासपुर रायपुर और दुर्ग में भी देखने को मिला अच्छे-अच्छे मंत्रियों को हारना पड़ा और ऐसे परिणाम की उम्मीद भी नहीं थी जो परिणाम इस बार देखने को मिले जहां लोग बिल्कुल नहीं मान रहे थे कि भाजपा की सरकार बनेगी वहां पर भाजपा के सरकार बनना तय हो गया। छत्तीसगढ़ में कई चैनल के एग्जिट पोल भी फेल हो गए परिणाम जब आया तो एग्जिट पोल के एक्सपर्ट भी आश्चर्यचकित हो गए होंगे कि ऐसा परिणाम उन्होंने भी नहीं सोचा था।
वैसे अनुमानों में फलोदी सट्टा बाजार ने छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार की घोषणा कर दी थी और 52 सीटों का उसका आंकलन सोशल मिडिया पर देखा जा रहा था 1 दिसंबर से लेकिन घटती घटना इसकी पुष्टि नहीं करता की वह किसकी तरफ से जारी आंकड़ा था। वैसे इस विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की जनता ने एक बार फिर पूर्ण बहुमत से भाजपा को सत्ता की चाभी सौंप दी है और अब पांच साल के लिए प्रदेश में भाजपा की ही सरकार रहने वाली है। कांग्रेस की इस चुनाव में सबसे बड़ी कमजोरियों में एक और कमजोरी देखने को मिली जो यह रही की सोशल मिडिया में कांग्रेस की तरफ से सरकार की उपलब्धियों सहित सरकार की जारी योजनाओं की बजाए भाजपा पर आरोप वाले पोस्ट ज्यादा डाले गए और बाहरी भीतरी ही ज्यादातर कांग्रेसी करते रहे वहीं भाजपा ने अपनी बेहतर रणनीति से काम किया और धीरे से बड़ी जीत चुरा ली। अब कांग्रेस के पास अगले पांच साल केवल विपक्ष में बैठने के अलावा कोई काम नहीं है वहीं भाजपा अब पूरी ऊर्जा से लोकसभा की तैयारी में जुट जाने वाली है जो देखा जायेगा। इस चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस के 9 कैबिनेट मंत्री भी चुनाव हार गए खुद उप मुख्यमंत्री चुनाव हार गए वहीं मुख्यमंत्री भी बहुत ही कम मतों के अंतर से जीत दर्ज कर सके। कांग्रेस की तरफ से एक गलती और रही जो चुनाव के दौरान देखने को मिली वह यह रही की ज्यादातर चुनाव प्रचार केवल मुख्यमंत्री के चेहरे पर लड़ा गया अपनी ही योजनाओं को वह जनता तक नहीं पहुंचा सके प्रचार में जो उसकी हार का कारण बना।
कोरिया पैलेस को इस बार के चुनाव में पहली बार हार का मुंह देखने पड़ा
कोरिया से भी कांग्रेस को बड़ी हार मिली,कोरिया पैलेस इस बार के चुनाव में पहली बार हार का मुंह देखने मजबूर हुआ और अब यह इतिहास में दर्ज हो गया की कोरिया पैलेस परास्त हो गया। कोरिया पैलेस की राजनीति को जानने वालों की माने तो यह ऐसी रियासत थी की जिसने जब भी हार की संभावना देखी खुद को चुनाव से अलग कर लिया यह पहला मौका था जब पहले से ही पैलेस के चेहरे का विरोध था जिसके बावजूद पैलेस के चेहरे ने चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा। अभी तक यह एकमात्र अजेय किला माना जाता था प्रदेश का जो इस चुनाव में परिणामों के अनुसार डह गया पराजित हुआ।
एक फौजी ने मंत्री अमरजीत भगत को हराया रोका विजय रथ
अमरजीत भगत का विजय रथ इस बार एक फौजी ने रोक दिया। सीतापुर से लगातार अजेय बने चले आ रहे वर्तमान में प्रदेश के खाद्य मंत्री साथ ही मुख्यमंत्री के सबसे खास माने जाने वाले विधायक अमरजीत भगत भाजपा की पंद्रह सालों की सरकार के दौरान भी कभी हार का मुंह नहीं देखे थे,इस बार उन्हे एक आम फौजी ने बुरी तरह परास्त कर दिया। अमरजीत भगत ने इस चुनाव में हार से बचने के लिए हर पैंतरा अपनाया लेकिन उनकी हार गए टल नहीं सकी। एक फौजी ने सेना से सेवा निवृत्ति लेकर घर वापस आकर अमरजीत भगत को राजनीतिक विश्राम प्रदान कर दिया कम से कम पांच सालों के लिए। वैसे इस बार अमरजीत भगत की हार भी पहले से ही तय मानी जा रही थी और जो देखने को भी मिली,वैसे अब उनके उस दावे को लेकर चर्चा है जिसमे उन्होंने खुद की मूंछ मुड़ाने की बात कही थी सरकार कांग्रेस की नहीं बनने की स्थिति में,अब देखना है वह अपना यह वादा निभाते हैं की नहीं।
कई मंत्री सहित प्रदेश अध्यक्ष वर्तमान व पूर्व दोनों हारे
प्रदेश की सत्ता में काबिज कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ा झटका इस चुनाव में यह रहा कि उसके 9 मंत्री चुनाव हार गए। उप मुख्यमंत्री की हार,प्रदेश अध्यक्ष सहित पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवम वर्तमान में मंत्री बनाए गए मोहन मरकाम की हार,मुख्यमंत्री के खास सलाहकार रहे रविंद्र चौबे,मोहम्मद अकबर की हार,शिव डहरिया रुद्र गुरु की हार बताती है की किस तरह कांग्रेस सत्ता से दूर हुई। इस चुनाव में रामपुकार सिंह,खेलसाय सिंह जैसे पुराने कांग्रेसी नेता भी अपना विधानसभा नहीं बचा सके। कुल मिलाकर कांग्रेस को भले चुनाव में 35 सीटों पर जीत मिल सकी लेकिन उसके बड़े बड़े चेहरे चुनाव में हार का मुंह देखने मजबूर हो गए। कद्दावर माने जाने वाले रविंद्र चौबे को एक आम नागरिक ने मात दे दी जबकि उसका कोई राजनीतिक अनुभव था ही नहीं।
क्या महल की राजनीति भी हुई खत्म?
सरगुजा कोरिया पैलेस को इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा,जशपुर राजघराने को भी हार का मुंह देखना पड़ा। राजघराने के लोग दोनों दलों से प्रत्याशी थे किसी को सफलता मिलती नहीं देखी गई,अब इन परिणामों के बाद क्या यह माना जाए की राजघराने की राजनीति अब प्रदेश में समाप्त हो गई। परिणामों के बाद यह कहना कोई गलत बात भी नहीं होगा। वैसे सरगुजा महराज ने अपने पूर्व के बयान को फिलहाल परिणामों के बाद वापस ले लिया है जिसमे उन्होंने आगे चुनाव नहीं लड़ने की बात कही थी अब वह फिर आगे चुनावी मैदान में दिखेंगे यह उन्होंने परिणामों के बाद कहा है।
छत्तीसगढ़ में एग्जिट पोल भी हुआ फेल
छत्तीसगढ़ में सभी एग्जिट पोल भी परिणाम बता पाने में असफल रहे। एक सट्टा बाजार मात्र 1 दिसंबर को प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की घोषणा किया था जो सट्टा बाजार का ही आंकड़ा था इसको लेकर घटती घटना पुष्टि नहीं करता लेकिन उसको छोड़कर किसी एग्जिट पोल में भाजपा की सरकार इस बहुमत के साथ बन रही है नहीं देखने को मिला था।
सरगुजा में जीरो का बदला जीरो से लिया भाजपा ने
सरगुजा संभाग में पिछले चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था सभी 14 सीटों पर भाजपा को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इससे सीख ली और पूरे पांच साल रणनीति बनाते रहे जिसका परिणाम यह रहा कि जब मतपेटी खुली सरगुजा में कांग्रेस का 2023 विधानसभा चुनावों में सूपड़ा साफ हो गया पूरे 14 सीटों पर भाजपा काबिज हो गई यहां तक की उप मुख्यमंत्री की एकमात्र सीट को अजेय किला कांग्रेस का माना जा रहा था जहां भी भाजपा जीत दर्ज कर गई।
सरगुजा से एक सीट बचाने के लिए रात के 10 बजे तक चलती रही रिकाउंटिंग फिर भी नहीं मिली जीत
सरगुजा की अंबिकापुर की विधानसभा सीट काफी हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही थी कांग्रेस पार्टी के नजरिए से।इस सीट से खुद उप मुख्यमंत्री प्रत्याशी थे वहीं उनके विरुद्ध भाजपा ने कभी उन्ही के साथ रहने वाले राजेश अग्रवाल को टिकट दिया था वह भी बिल्कुल अंतिम समय में। यहां भी उप मुख्यमंत्री चुनाव हार गए। इस सीट का परिणाम कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में लाने के लिए रात 10 बजे तक रिकाउंटटिंग कराई जाति रही लेकिन उसके बावजूद परिणाम को कांग्रेस यहां से बदल नहीं सकी। कांग्रेस के लिए प्रदेश की यह सबसे बड़ी हार थी क्योंकि उप मुख्यमंत्री इस बार खुद को मुख्यमंत्री मानकर चल रहे थे जो सपना उनका सपना ही रह गया।
मुख्यमंत्री भी मात्र 18000 वोट से जीत सके चुनाव
प्रदेश के मुख्यमंत्री भी मात्र 18000 मतों से ही जीत दर्ज कर सके।जो सत्ता विरोधी लहर बताने के लिए काफी है। मुख्यमंत्री के खिलाफ भाजपा ने उन्ही के भतीजे को चुनावी मैदान में उतारा था जिन्होंने उन्हे कई बार गणना के दौरान पीछे किया लेकिन अंत में मुख्यमंत्री चुनाव 18000 के अंतर से जीत गए। देखा जाए तो यह भी भाजपा के लिए बड़ी सफलता रही क्योंकि भाजपा ने मुख्यमंत्री को भी एक तरह से परेशान किए रखा और उनके क्षेत्र में उनकी घेराबंदी करे रखी।
ब्राह्मण समाज ने बीजेपी का भरपूर समर्थन किया
ब्राह्मण समाज का भाजपा को खुलकर समर्थन प्राप्त हुआ। मुख्यमंत्री के पिता के बयानों की वजह से कहें या कुछ और इस बार ब्राह्मण समाज ने भाजपा के साथ ही जाना उचित समझा जबकि माना जाता था की ब्राह्मण समाज कांग्रेस के पक्ष में जाया करता था। ब्राह्मण समाज का मोहभंग क्यों हुआ कांग्रेस से यह भी कांग्रेस के लिए चिंतन का विषय होना चाहिए।
संवर्ण,ओबीसी से लेकर आदिवासियों का भी वोट भारतीय जनता पार्टी को मिला
इस बार भाजपा को हर वर्ग का समर्थन मिला। सामान्य वर्ग,पिछड़ा वर्ग,आदिवासी समुदाय ने भाजपा का खुलकर साथ दिया। सभी वर्गों ने एक तरफा समर्थन भाजपा को दिया और कांग्रेस की बड़ी बड़ी घोषणाएं जनता ने दरकिनार करते हुए भाजपा का साथ दिया। कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा की जीत में सभी वर्गों का योगदान रहा और भाजपा को केवल पांच सालों के वनवास के बाद ही जनता ने फिर से सत्ता की चाभी सौंप दी।
कर्मचारियों ने भी कांग्रेस का नहीं दिया इस चुनाव में साथ
बात प्रदेश के कर्मचारियों की यदि होगी तो उन्होंने भी सत्ताधारी कांग्रेस का साथ नहीं दिया। माना जाता है की कर्मचारियों को पहली बार महंगाई भत्ते के लिए हड़ताल करना पड़ा था वहीं संविदा कर्मचारी घोषणा पत्र के वादे से मुकरने के कारण नाराज थे इसी तरह पंचायत सचिव भी नाराज थे जिन्होंने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में देरी नहीं की जैसे ही उन्हे मौका मिला।