कोरिया@गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचा आरक्षक…कहता रहा ऑक्सीजन लगाओ मुझे अटैक आया है…पर नहीं समझ पाईं डॉक्टर चली गई जान

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  • हार्ट अटैक आने पर अस्पताल समय पर पहुंचा आरक्षक प्राथमिक उपचार के लिए,अस्पताल की लापरवाही ऐसी कि नहीं दे पाए प्राथमिक उपचार।
  • आरक्षक को ऑक्सीजन की थी जरूर और वह कह रहा था ऑक्सीजन लगाओ अटैक आया है पर 10 मिनट तक कोई ऑक्सीजन भी नहीं लगा पाया।
  • प्राथमिक उपचार की जगह रेफर करना ज्यादा उचित समझा डॉक्टर ने आरक्षक को।

-रवि सिंह-

कोरिया 01 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। एमसीबी जिले के चिरमिरी थाना में पदस्थ आरक्षक विश्वजीत सिंह जो की पटना झूमरपारा के निवासी थे छुट्टी लेकर अपने निवास धान कटाई और मिसाई के लिए आए हुए थे और धान कटाई के दौरान काम करते हुए उन्हें अचानक सीने में दर्द हुआ और सांस लेने में दिक्कत आने लगी जिसके बाद तत्काल उन्हें पटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्राथमिक उपचार के लिए लाया गया पर प्राथमिक उपचार उन्हें नहीं मिल सका जिस वजह से उनकी जान चली गई। समय पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच चुके आरक्षक वहां डॉक्टर के सामने कह रहे थे कि मुझे हार्टअटैक आया है और सांस लेने में दिक्कत हो रही है मुझे ऑक्सीजन लगाओ पर ऑक्सीजन लगाने में भी देरी की गई, कई तरीके से अस्पताल के तरफ से लापरवाही देखी गई जिसका खामियाजा आरक्षक को  जान देकर चुकानी पड़ी।
मिली जानकारी के अनुसार 27 नवंबर को आरक्षक विश्वजीत सिंह अपने झूमरपारा घर के पास धन कटवा रहे थे साथ ही मिसाइ भी हो रही थी इसी बीच उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह गिर गए,जिन्हें तत्काल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पटना प्राथमिक उपचार के लिए लाया गया यदि वहां पर जानकार विशेषज्ञ डॉक्टर होते तो उन्हें प्राथमिक उपचार देकर बचाया जा सकता था, स्थिति ऐसी वहां पर निर्मित हुई की खुद आरक्षक विश्वजीत डॉक्टर को बता रहे थे कि मुझे दिल का दौरा पड़ा है और मुझे सांस लेने में दिक्कत आ रही है मुझे ऑक्सीजन दिया जाए पर वहां पर उपस्थित डॉक्टर उसे ऑक्सीजन भी नहीं दे पाए तकरीबन 10 मिनट उन्हें बिना ऑक्सीजन के रहना पड़ा, और इस बीच प्राथमिक उपचार देने के बजाए डॉक्टर ने उन्हे अन्यत्र रेफर करना ज्यादा उचित समझा यदि डॉक्टर उन्हें समय पर ऑक्सीजन लगा देते और उन्हें हार्ट संबंधित प्राथमिक उपचार दे देते तो शायद विश्वजीत सिंह आज सभी के बीच जीवित होते,विश्वजीत सिंह के परिजनों का भी डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप है अब ऐसे में देखना यह है कि इस मामले की जांच होगी या फिर ठंडा बस्ते में ही मामला रह जायेगा।
लापरवाही पर एक नजर
वैसे पूरे मामले की सीसीटीवी जो पटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की है वह भी सामने आई है जिसमे भी देखा जा सकता है की जब दिल का दौरा पड़ने के बाद विश्वजीत सिंह को लेकर उनके परिजन अस्पताल पहुंचे तब एकमात्र महिला चिकित्सक ड्यूटी पर मौजूद थीं जो विश्वजीत सिंह को देखने तो तुरंत पहुंची लेकिन उन्होंने किसी भी निर्णय पर पहुंचने में देर कर दिया। जानकारों की जो स्वास्थ्य मामले के जानकार हैं के अनुसार जब दिल का दौरा पड़ता है और मरीज की स्थिति नाजुक नजर आती है तब मरीज को सीपीआर सहित ऑक्सीजन  जैसा कोई एक विकल्प अधारित उपचार दिया जाता है साथ ही मरीज को तत्काल ऑक्सीजन भी देने का प्रयास किया जाता है। विश्वजीत सिंह के मामले में अस्पताल का जो सिसिटिवि फुटेज सामने आया है उसके अनुसार विश्वजीत सिंह को प्राथमिक उपचार के नाम पर कोई भी उपचार प्रदान नहीं किया गया है, जबकि वह खुद ऑक्सीजन लगाने की मांग करते रहे लेकिन उन्हे ऑक्सीजन भी विलंब से लगाया गया। विश्वजीत सिंह को किसी तरह बोतल चढ़ाया गया और उन्हे रेफर करके अपनी जिम्मेदारी से डॉक्टर बचती नजर आईं यह वीडियो देखकर समझा जा सकता है। कुल मिलाकर लापरवाही हुई और विश्वजीत सिंह को अपनी जान से हांथ धोना पड़ा, वहीं उनके परिजनों को भी अपने घर के एक सदस्य से हांथ धोना पड़ा। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जहां अच्छी व्यवस्था का ढोल लगातार पीटा जाता है और जनप्रतिनिधि लगातार इसे अपनी उपलब्धि बताते हैं ऐसे में इस तरह की लापरवाही बताती है की घटना बताती है की सबकुछ ढोल है ऊपर से बजता है अंदर से खोखला है।
प्राथमिक उपचार की जगह रेफर करना कितना उचित?
किसी गंभीर अवस्था वाले मामले में यदि मरीज को रेफर करके कोई डॉक्टर उसकी जान बचाने के प्रयास का दावा करता है तो यह कितना उचित कहा जायेगा यह भी सवाल उठ रहा है। किसी मरीज को पहले प्राथमिक उपचार देना है उसे रेफर करना है यह तय करने का काम वैसे तो डॉक्टर का ही है फिर भी जितनी देर में रेफर करने का निर्णय लिया जाना है उतनी देर में भी उसे प्राथमिक उपचार मिलता रहे यह तय क्यों रहता स्वास्थ्य मामले में यह भी सवाल है। विश्वजीत सिंह आरक्षक मौत मामले में भले ही गंभीर स्थिति जैसा मामला माना जा रहा है उनके स्वास्थ्य को लेकर उस दौरान के लेकिन जो कुछ हुआ अस्पताल में वह भी सही नही कहा जा सकता। विश्वजीत सिंह को एकमात्र बोतल टांगने सहित ऑक्सीजन वह भी विलंब से प्रदान करने के अलावा डॉक्टर ने कुछ किया है तो केवल रेफर किया है।
गंभीर थी स्थिति और मरीज को तत्काल अच्छी जगह इलाज के लिए भेजना ही थी मंशा तो ऐसी स्थिति में केवल एंबुलेंस के ड्राइवर और परिजनों का भरोसे?
विश्वजीत सिंह को गंभीर स्थिति में पटना अस्पताल में उपस्थित डॉक्टर ने जिला चिकित्सालय ले जाने की सलाह दी, इस दौरान डॉक्टर लगभग जान चुकी थीं की विश्वजीत सिंह की हालत नाजुक है। डॉक्टर ने रेफर करने में तो विलंब नहीं किया क्योंकि उन्हे भी आभास हुआ की मरीज को आगे ले जाने की जरूरत है लेकिन मरीज के साथ केवल परिजनों को  भेज देना वह भी एंबुलेंस ड्राइवर के साथ कितना उचित यह भी सवाल है। कहने को कई तरह की सुविधा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध हैं लेकिन गंभीर अवस्था के मरीज को आगे ले जाने के लिए जबकि जहां मरीज हैं वहां के डॉक्टर के हांथ खड़ा करने के बाद केवल ड्राइवर और परिजनों के भरोसे भेज देना कितना उचित है यह भी सवाल है। कोई एक सहायक इस दौरान जो चिकित्सा क्षेत्र का जानकर हो क्यों नहीं भेजा गया यह प्रश्न भी लोग पूछना चाह रहे हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कर्मचारियों की भी नहीं है कमी,समय पर फिर भी नहीं उपलब्ध रहते कर्मचारी यह भी देखी जाती है स्थिति
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पटना में यदि बात कर्मचारियों की हो तो कम कर्मचारी कार्यरत नहीं हैं,लेकिन अक्सर देखा गया है की जब जरूरत पड़ती है तब कर्मचारी नदारत नजर आते हैं। आरक्षक विश्वजीत सिंह के मामले में भी यही देखने को मिला। जब गंभीर अवस्था में विश्वजीत सिंह पटना अस्पताल लाए गए तब अस्पताल स्टाफ के अधिकांश लोग उपस्थित नहीं थे,डॉक्टर भी निर्णय लेने में जरा विलंब करती देखी गईं जबकि ऐसे मामलो में सक्रियता से ही जान बच पाती है। कुल मिलाकर सब कुछ त्रुटिपूर्ण रहा विश्वजीत सिंह मामले में यह कहना गलत नहीं होगा।


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