रायपुर@सीजी राजभवन में पेडिंग में पड़े हैं ये 9 विधेयक

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सुप्रीम कोर्ट ने की है गंभीर टिप्पणी,3 दिसंबर के बाद तेज हो सकती है राजनीति


रायपुर,27 नवम्बर 2023 (ए)।
राजभवन में लंबे समय तक लंबित रहने वाले विधेयकों को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की थी। एक मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि विधानसभा से पारित विधेयक से यदि राज्यपाल असहमत हैं तो वे विधेयक को निलंबित नहीं कर सकते, ऐसे विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेजना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को नया सियासी मुद्दा मिल गया है। छत्‍तीसगढ़ में करीब 9 विधेयक राजभवन में विचाराधीन हैं। इनमें कुलपति की नियुक्ति के नियमों में संशोधन, आरक्षण सांशोधन और एक विश्‍वविद्यालय का नाम बदलने सहित अन्य शामिल हैं। विधानसभा से पारित इन विधेयकों पर राजभवन ने अब तक न अपनी सहमति दी है और न ही सरकार को लौटाया है। सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी के बाद प्रदेश कांग्रेस की तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष दीपक बैज ने इसको लेकर भाजपा पर निशाना साधा है।
बैज ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में विपक्ष की भूमिका निभाने में भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से नाकाम रही है। नकारे जाने के बाद अब केवल झूठ और षडयंत्रों की राजनीति कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में राज्य विधान सभा द्वारा पारित सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण बढ़ाने के उद्देश्य से पारित 76 प्रतिशत नवीन आरक्षण विधेयक सहित नौ कानून लंबे समय से राज्यपाल की सहमति के लिए लंबित हैं, उनमें से कई 2020 की शुरुआत से हैं भाजपाईयों के साजिश के चलते राजभवन में रोके गए हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बैज ने कहा है कि विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को अनुमोदित करने में राजभवन में “अत्यधिक देरी” को चुनौती देने के लिए अनेको याचिकाएं दायर है, जिसके सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने राज भवन में विधेयकों को रोके जाने के मुद्दे पर कड़ी टिप्पणी की और राज्यपालों को समझाइए देते हुए यह कहा कि चुनी हुई राज्य सरकारों के द्वारा पारित विधेयक के संदर्भ में राजभवन को तत्परता बरतनी चाहिए। किसी भी तरह से विटो पावर के रूप में विधेयकों को लंबित रखना अनुचित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बैज ने कहा है कि भाजपा का राजनैतिक चरित्र मूलतः लोकतंत्र विरोधी है। संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्य की विधानसभा के द्वारा पारित विधेयक के संदर्भ में राजभवन के दायित्व का उल्लेख है, लेकिन विपक्ष के द्वारा शासित राज्यों में राजभवन को आड़ में दुर्भावना पूर्वक वीटो के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जो सर्वथा अनुचित है। जन सरोकार के महत्वपूर्ण विधेयक को रोकना तीन चौथाई से बड़ी बहुमत से निर्वाचित सरकार का अपमान है, विधायिका का अपमान है, छत्तीसगढ़ की जनता का अपमान है।
छत्‍तीसगढ़ राजभवन में 9 विधेयक लंबित हैं। इन्‍हें 2020 से 2022 के बीच विधानसभा ने पारित किया था। लंबित विधेयकों में महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2020, छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2020, पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ (संशोधन) विधेयक 2020, छत्तीसगढ़ कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2020, शामिल हैं। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2020, छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020, छत्तीसगढ़ सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक 2020, और छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 और छत्तीसगढ़ शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक।विश्वविद्यालय विधेयकों में संशोधन किया। इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय विधेयकों में से एक, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, विश्वविद्यालय का नाम बदलकर चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय करने का प्रावधान करता है। ये सभी विधेयक राज्यपाल अनुसुइया उइके के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा पारित कर सहमति के लिए राजभवन भेजे गए थे, जो भाजपा के षडयंत्रों के चलते आजतक लंबित है।


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