- संतान के सुख-सौभाग्य, समृद्धी और सुखी जीवन की कामना के लिए किया गया छठ व्रत।
- रविवार को संध्या में डुबते सूर्य को दिया गया अर्ध्य।
- छठ पर्व को लेकर क्षेत्र में दिखा काफी उत्साह,छठ गीतों से गूँजमान रहा क्षेत्र।
बैकुण्ठपुर/पटना 19 नवम्बर 2023 (घटती-घटना)। छठी मैया देहलू आशीशीया चहके अंगना दुवार, अचरा में भर लूं सनेहिया टहके सेनुरा हमार…. बेदिया बनत दूब छिलके धरती या, त घर घर होत छठ माई के बरतिया, सुपली मओनिया मे जरे दिया बतिया त घरे घरे होता छठी माई के बरतिया, ठेकुआ छनत रमजाला जाऊरवा हो, सेहुआ शरीफवा से सजल दौउरवा हो, कन्हैया पर उखिया लचके पियरी मउरवा हो, सेहुआ शरीफवा से सजल दउरवा हो….। भइल भिनूसर अइल अरघ के वक्तीया, उगा हो सूरुजमल लेके अपन रथिया, उगा हो सूरुजमल लेके अपन रथिया, लेइ के अरघ सफल कै दा बरतिया, ता उगा हो आदित्य देव लेके अपन रथिया, ता उगा हो आदित्य देव लेके अपन रथिया‐‐‐। छठ पर्व के सुमधुर महिलाएं समूह में लोक गीत गाते हुए घर से निकली और तालाब तक गीत गाते हुये पहुंची, यह दृश्य काफी आकर्षक का केंद्र रहता है और काफी सुरीली आवाज में गाया गया गीत लोगों को पसंद आता है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर सूर्योपासना के लिए मनाया जाना वाला चार दिवसीय महापर्व नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ शनिवार को उपासकों द्वारा छठ घाट बांधा गया। रविवार की शाम पटना के श्रद्धालू झूमर व बुढा सागर तालाब में, कटकोना में एसईसीएल तालाब, गोबरी जलाशय में व्रतधारियों ने अस्तचलगमी सूर्य को पानी में खड़े होकर प्रथम अर्ध्य अर्पित किया। व्रतधारी महिला व पुरूष डूबते हुए सूर्य को फल और कंद मूल से भी अर्ध्य अर्पित किया। इस छठ महापर्व के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी़ रही। चारो-ओर छठ गीत की गूंज रही। छठ महापर्व के दूसरे दिन श्रद्धालु दिन भर बिना जल ग्रहण किए उपवास रहने के बाद सर पर फलों से सजी दौरी व सुप लेकर सूर्य देव को अर्ध्य देने तालाब घाट पहुंचे जहां महिलाएं पानी में खड़े होकर फलों से सजी सुप अस्तचलगमित सूर्य को अर्ध्य अर्पित किया और अपने घर परिवार सुख, समृद्धि की कामना की।
पूरे भारत में मनाया जाने लगा है छठ पर्व
महापर्व छठ लोक आस्था का प्रतीक है इस महापर्व का तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है दीवाली के तुरंत बाद ही बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ की तैयारियां तो रहती है पर यह महापर्व छठ लोक आस्था का प्रतीक है इस महापर्व को जहां कुछ राज्यों में मनाया जाता था पर अब धीरे-धीरे यह पर्व पूरे भारतवर्ष के हर राज्यों में मनाया जाने लगा है यह एक ऐसा पर्व है जिसमें प्राकृतिक की पूजा होती है यह पर्व प्राकृतिक से जुड़ा हुआ है और जैसे-जैसे इस पर्व की जानकारी लोगों को मिल रही है वैसे वैसे इस पर्व के आस्था से लोग जुड़ रहे हैं यही वजह है कि बहुत तेजी से यह पर्व हर तरफ होने लगा है और लोगों की आस्था इस पर्व के प्रति बढ़ी है यहां तक कि इस पर्व को करने के लिए लोगों के अंदर लालसा भी खूब जागी है और इतने कठिन पर्व को भी करने के लिए लोग अब हर्ष उत्साहित हैं, ये 4 दिवसीय त्योहार में भगवान सूर्य देवता की पूजा की जाती है, छठ का त्योहार साल में 2 बार मनाया जाता है, जिसमें पहला चैत्र शुक्ल षष्ठी और दूसरा कार्तिक माह की शुक्ल षष्ठी के दिन मनाया जाता है, 4 दिन के इस त्योहार में, 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है, संतान के सुख-सौभाग्य, समृद्धी और सुखी जीवन की कामना के लिए छठ की पूजा की जाती है, इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है, इसके बाद खरना, अर्घ्य और पारण किया जाता है, खरना के दिन चावल और गुड़ की खीर बनाई जाती है।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
इस बार छठ घाट में श्रद्धालुओं की भीड को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इन्तजाम किया गया है। घाट पर श्रद्धालुओं को रात में रहने के लिए पंडाल व लाईटिंग कि व्यवस्था भी की गई। ताकि श्रद्धालुओ को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो अर्ध्य के इस पर्व को लोग बड़ी धुम धाम से मना रहे हैं। उल्लास में पर्व के तीसरे दिन स्थानीय तालाब के छठ घाट के आसपास जम के पटाखे फोड़कर लोगो ने हर्ष प्रदर्शित किया।
छठ पर्व पर फल का अलग महत्व
छठ महापर्व पर कई तरह के फल चढ़ाए जाते हैं जैसे केला, सेव, संतरा, मुसंबी, सिंघाड़ा, अनानस, बैर, सुथनी, लालकंदा, जैसे कई कंद मूल से सूर्य देव की पूजा की जाती है यह सभी फल व्यापारी छत्तीसगढ़ के बाहर से दो दिनों पूर्व ही मंगा लेते है ताकि श्रद्धालुओं को समय पर उपलब्ध करा सकें। इस बार भी फल की सुप सजाने के लिए फल की खरीदारी में पूरे दिन जुटे रहे।श्रद्धालु के सिर पर सजा पूजा की सुप
सूर्य साधक के परिवार का प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छ परिधान में नंगे पैर सिर पर पूजा की टोकरी लिये हुए घर से छठ घाट तक पैदल पहुंचे।
यह है परंपरा
छठ पूजा में भगवान सूर्य की सातों समय की पूजा नदी, नाला तालाब के किनारे ही करने का विधान है इस पूजा की शुरूआत दीपावली के चौथे दिन हो गई थी, महिलाएं एवं पुरुष इस व्रत मे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। तीनों दिनों के दौरान व्रतधारियों द्वारा केवल चावल एवं लौकी की सब्जी का सेवन किया गया। दिवाली के छठवे दिन बुधवार को घाट में विधि-विधान के साथ पूजन किया गया। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्वामित्र ने इसी दिन गंगा नदी के घाट पर दूसरी सृश्टी के निर्माण के लिए माता गायत्री की आराधना की थी।
पुराणों में मिलता छठ व्रत कैसे शुरू हुई परंपरा की कथा
छठ व्रत की परंपरा सदियों से चली आ रही है, यह परंपरा कैसे शूरू इस संदर्भ में एक कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता है, इसके अनुसार प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी, संतान प्राप्ति के लिए महर्शि कश्यप ने उन्हें पुत्रयेश्टि यज्ञ करने का परामर्ष दिया, यज्ञ के फलस्वरूप महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, किन्तु व शिशु मृत था इस समाचार से पूरे नगर में शोक व्याप्त हो गया। तभी एक आष्चर्य जनक घटना घटी, आकाश से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा और उसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं‘ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर का स्पर्ष किया, जिससे वह बालक जीवित हो उठा, इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।