बैकुण्ठपुर@विधानसभा 2023 में सरगुजा संभाग में राजनीतिक रूप से उपेक्षित साहू समाज का क्या रुख होगा?

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  • बैकुंठपुर विधानसभा में साहू समाज के नेताओं की बैठकें लगातार जारी।
  • अपने समाज के उत्थान के लिए कर सकते हैं भाजपा और कांग्रेस दोनों का इस चुनाव में बहिष्कार।
  • समाज के नेताओं का मानना जब तक दोनों पार्टियों को नहीं सिखाएंगे सबक नहीं मिलेगा प्रतिनिधित्व का मौका।
  • क्या समाज के नाराज होने से तीसरे विकल्प को मिल सकता है बल।
  • बैकुंठपुर विधानसभा में लगभग 25000 है साहू समाज के वोटरों की संख्या जो तय करेगें किसी भी प्रत्याशी का भाग्य।
    -रवि सिंह-
    बैकुण्ठपुर 08 नवम्बर 2023 (घटती-घटना)। सरगुजा संभाग में अन्य पिछड़े वर्ग समुदाय से सर्वाधिक जनसंख्या सर्व साहू समाज की है। प्रत्येक विधानसभा में फैले साहू समाज पूरी तरह चुनाव को प्रभावित करते हैं। इसी को ध्यान रखते हुए साहू समाज ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों से संभाग में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए पुरजोर तरीके से टिकट की मांग की थी। परंतु पर्याप्त संख्या बल होने के बाद भी पूरे संभाग के 14 सीटों में से कहीं भी साहू समाज को प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला। जबकि साहू समाज का मानना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मिलकर जब राजवाड़े समाज को संभाग में तीन टिकट दी तो संभाग में एक टिकट हमारे समाज का भी बनता था। बात करें बैकुंठपुर विधानसभा की तो भाजपा और कांग्रेस दोनों से समाज के नेताओं ने दमदार तरीके से टिकट की मांग रखी और कांग्रेस के पार्टी प्रत्याशी घोषित होने तक साहू समाज की एक नेत्री का नाम पैनल में था, परंतु अंत समय तक निराशा ही हाथ लगी और समाज के किसी भी नेता को किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया। जबकि वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन में कार्यरत गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, साहू समाज से ही आते हैं। बैकुंठपुर विधानसभा में साहू समाज के वोटरों की संख्या लगभग 25000 है। बावजूद इसके साहू समाज को प्रतिनिधित्व का मौका न मिलने पर समाज पूरी तरह नाराज चल रहा है, और सामाजिक नेताओं की लगातार बैठकें विभिन्न स्थानों पर हो रही हैं। सूत्रों की माने तो यह बैठक समाज के उज्जवल भविष्य के दशा और दिशा तय करने के लिए हो रही हैं, और जहां तक निकल कर बात सामने आ रही है, यह तय माना जा रहा है कि जब तक साहू समाज के लोग भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों का झंडा उठाकर पीछे-पीछे घूमेंगे, समाज को नेतृत्व का मौका नहीं मिलेगा। लगातार हो रही बैठकों का निष्कर्ष यह निकलकर सामने आ रहा है, कि जब तक पूरा समाज इन दोनों पार्टियों द्वारा घोषित प्रत्याशियों का बहिष्कार कर तीसरे विकल्प के बारे में ना सोचे तब तक समाज का उत्थान संभव नहीं है।
    जब संभाग में राजवाड़े समाज को तीन टिकट, तो साहू समाज को एक भी क्यों नहीं
    साहू समाज के नेताओं का मानना है कि जब पूरे संभाग में दोनों पार्टियों ने मिलकर राजवाड़े समाज को तीन टिकट दिया, तो पर्याप्त संख्या बल होने के बाद भी पूरे संभाग में साहू समाज को एक टिकट क्यों नहीं दिया। प्रबल संभावना थी कि भाजपा या कांग्रेस दोनों में से कोई एक पार्टी बैकुंठपुर विधानसभा से साहू समाज को टिकट दे सकती है। यदि ऐसा होता तो समस्त साहू समाज एकजुट होकर उनके लिए कार्य करता। परंतु ऐसा हो नहीं पाया। अभी स्थिति यह है कि साहू समाज के लोग दोनों पार्टियों से और उनके शीर्ष में बैठे हुए नेताओं से नाराज चल रहे हैं, और लगातार बैठक कर आने वाले चुनाव के लिए अपनी रणनीति को साझा कर रहे हैं। बैठकों में साहू समाज के भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के नेता बराबर शिरकत कर रहे हैं। और एकमत में दोनों पार्टियों को सबक सिखाने की बात कर रहे है।
    बैकुंठपुर विधानसभा में निर्णायक रहती है साहू समाज की भूमिका
    पर्याप्त संख्या बल होने के कारण बैकुंठपुर विधानसभा में साहू समाज की भूमिका निर्णायक रहती है। पहले इन्हें भाजपा का कैडर वोट माना जाता था, परंतु विगत चुनाव में प्रत्याशी रहे छत्तीसगढ़ शासन के भूतपूर्व खेल मंत्री भैया लाल राजवाड़े द्वारा कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग सर्व साहु समाज के लिए किया गया जो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को नागवार गुजरा, और उन्होंने भैया लाल राजवाड़े का बहुतायत में बहिष्कार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि श्रीमती अंबिका सिंह देव को आसान जीत हासिल हुई। इस बार भी स्थिति लगभग वही है, साहू समाज भैया लाल राजवाड़े से पिछली बार की तरह ही नाराज है। परंतु कांग्रेस प्रत्याशी अंबिका सिंहदेव के साथ भी साहू समाज का तालमेल ठीक नहीं बैठ रहा है। और इसी कोढ में खाज वाली बात यह हो गई की पर्याप्त संख्या बल होने के कारण पूरे संभाग में साहू समाज को प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला, जिससे पूरा समाज नाराज चल रहा है।
    क्या एकमत होकर तीसरे विकल्प को समर्थन दे सकता है साहू समाज?
    सूत्रों के अनुसार लगातार हो रही साहू समाज की बैठकों से निकलकर यह बात सामने आ रही है कि अपने राजनीतिक उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें तब तक मौका नहीं मिलेगा जब तक कांग्रेस और भाजपा दोनों के समक्ष अपनी ताकत का एहसास न कराया जाए। इसके लिए साहू समाज के नेताओं का मानना है कि जब तक इस चुनाव में हम अपने संख्या बल का एहसास नहीं करेंगे, दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों का ध्यान हमारी ओर नहीं जाएगा और निष्कर्ष यह निकलकर सामने आ रहा है कि यदि समस्त साहू समाज के लोग बैकुंठपुर विधानसभा में यदि किसी तीसरे विकल्प की ओर अग्रषित होते हैं, तो निश्चित है की समाज की ताकत का एहसास दोनों राजनीतिक पार्टियों को होगा और भविष्य के लिए विचार करने को मजबूर हो जाएंगे। पर संशय इस बात का है कि क्या सभी पार्टी में फैले साहू समाज के नेता एकमत होकर ऐसा फैसला लेने की हिम्मत कर पाएंगे। यदि ऐसा हुआ तब तो समाज की एकता सर्वविदित होगी, अन्यथा बिखराव में पड़े रहने से कुछ भी हासिल होने की संभावना नगण्य है।
    साहू समाज का तीसरा विकल्प चुनने के लिए तीन विकल्प सामने हैं
    छत्तीसगढ़ में स्थापित दो राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस दोनों से रुष्ट चल रहे साहू समाज के नेताओं के समक्ष बैकुंठपुर विधानसभा में तीन अन्य पार्टियों का विकल्प खुला है। देश की तीसरी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी। जनता जोगी कांग्रेस से भी साहू समाज का प्रत्याशी मैदान में है, परंतु मूल निवास बैकुंठपुर विधानसभा न होने के कारण संशय की स्थिति बरकरार है। इसके अतिरिक्त एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी भी साहू समाज से मैदान में है। बैकुंठपुर विधानसभा में मुख्यतः भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मध्य मुकाबला है। भाजपा और कांग्रेस से नाराज साहू समाज यदि एकमत होकर आम आदमी पार्टी या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का रुख करता है, तो निश्चय ही भाजपा और कांग्रेस के लिए इस विधानसभा में बड़ी मुश्किल खड़ी होगी। ज्ञातव्य हो की गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को प्रदेश में एक जाति विशेष की पार्टी ही माना जाता है, और आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी अन्य पिछड़े वर्ग से आते हैं। अब आने वाले समय में देखने वाली बात यह होगी कि साहू समाज एकजुट होकर किस प्रकार का निर्णय करता है।
    भाजपा और कांग्रेस दोनों से नाराज साहू समाज, समाज के रुख का इंतजार
    दोनों पार्टियों से टिकट न मिलने की दशा में समाज वैसे ही नाराज चल रहा है। इस पर कोढ में खाज वाली बात यह है कि विगत विधानसभा चुनाव में वर्तमान भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी भैयालाल राजवाड़े द्वारा कचरा शब्द का प्रयोग पूरे समाज को नागवार गुजरा था। वही अंत समय तक पैनल में नाम होने के बाद भी कांग्रेस नेत्री का टिकट फाइनल न होना कांग्रेस से नाराजगी के मुख्य वजह है। अब देखने वाली बात यह है कि सामाजिक बैठकों से जो बातें निकलकर सामने आ रही है, उसमें बार-बार कचरा शब्द के प्रयोग वाले बयान पर समाज के नेता आपत्ति जाता रहे हैं। उन्हें आपत्ति इस बात की भी है की लगभग 5 साल बीत जाने के बाद भी आज तक भैया लाल राजवाड़े ने सार्वजनिक तौर पर साहू समाज से अपने बयान के लिए माफी नहीं मांगी है। पर अभी भी बहुत से साहू समाज के लोग भाजपा प्रत्यशी के समर्थक है।
    साहू समाज से दो प्रत्याशी बैकुंठपुर विधानसभा में मैदान पर,समाज की प्रतिष्ठा लगी दांव पर
    विधानसभा चुनाव 2023 में साहू समाज से दो प्रत्याशियों ने ताल ठोकी है। जिसमें से एक प्रत्याशी जोगी कांग्रेस से तथा दूसरा प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है। हालांकि यह दोनों प्रत्याशी इस विधानसभा के नहीं है, परंतु उनके मैदान मे उतरने पर पूरे साहू समाज के प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। क्योंकि 25000 वोटों का दम भरने वाला साहू समाज यदि इस चुनाव में अपने समाज का वोट भी प्रत्याशियों को नहीं दिला पाया, तो आने वाले समय में समाज की एकता पर सदैव प्रश्नचिन्ह बना रहेगा और पार्टीयों से टिकट पाकर जनप्रतिनिधि बनने की लालसा सदैव अधूरी रहेगी।
    जो अपना घर जोड़ नहीं पाए आज समाज को एकजुट करने निकले हैं
    साहू समाज का एक बड़ा चेहरा जिनकी अगुवाई में लगातार बैठकें जारी हैं, के बारे में सुनाई दे रहा है कि जो अपना स्वयं का घर एक नहीं कर पाए, वह समाज को एकजुट करने निकले हैं। विगत पंचायत चुनाव में जब यह स्वयं जनपद का चुनाव लड़ रहे थे, तो उनके विरोध में उनके सगे भाई ने चुनाव लड़ा था। साहू समाज को एकजुट करने की बैठक में यह नेता अगुवाई कर रहे हैं, और यह दल बदल में भी माहिर रहे हैं। विगत चुनाव के ठीक पूर्व इन्होंने जोगी कांग्रेस का दामन थामा था। बाद इसके चुनाव के समय इन्होंने कांग्रेस में वापसी की थी। अब इनके स्वयं की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह है, तो समाज वाले तरह-तरह की बातें तो करेंगे ही। बड़ी संख्या में व्याप्त साहू समाज की है विडंबना रही है, की इस समाज में नेताओं की संख्या अधिक है, और सब अपनी मुर्गी की तीन टांग बताने की जुगत में लगे रहते हैं। यही कारण है कि राजवाड़े समाज की तुलना में पूरा साहू समाज बिखरा हुआ है, और इसी कारण संभवत साहू समाज को अब तक प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला है।

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