किसी सांसद को निलंबित करने से उसके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे मतदाताओं के अधिकार पर पड़ता है ‘गंभीर असर’
नई दिल्ली,30 अक्टूबर 2023 (ए)।आप नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि किसी सांसद को निलंबित करने से उसके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे मतदाताओं के अधिकार पर ‘गंभीर असर’ पड़ता है। चड्ढा को इस साल अगस्त में चयन समिति में नाम शामिल करने से पहले पांच राज्यसभा सांसदों की सहमति नहीं लेने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था।
अनिश्चितकालीन निलंबन चिंता का कारण’
आप राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा के निलंबन का मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सीजेआई ने एजी से पूछा कि इस तरह के अनिश्चितकालीन निलंबन का असर उन लोगों पर पड़ेगा जिनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है। विशेषाधिकार समिति के पास सदस्य को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की शक्ति कहां है? क्या इससे विशेषाधिकार का उल्लंघन होता है? यह लोगों के प्रतिनिधित्व के बारे में है। हमें उन आवाज़ों को संसद से बाहर न करने के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए। एक संवैधानिक न्यायालय के रूप में यह चिंता का एक गंभीर कारण है। अनिश्चितकालीन निलंबन चिंता का कारण है।
सीजेआई ने पूछा-क्या यह विशेषाधिकार का उल्लंघन है?
सीजेआई ने एजी से कहा कि क्या उन्होंने जो किया है उससे सदन की गरिमा कम होती है? एक सदस्य, जिसे चयन समिति का हिस्सा बनने के लिए अन्य सदस्यों की सहमति को सत्यापित करना चाहिए था, ने प्रेस को बताया कि यह जन्मदिन के निमंत्रण कार्ड की तरह था, लेकिन क्या यह विशेषाधिकार का उल्लंघन है? अगर सदन में बयान देने वाले किसी व्यक्ति को 5 साल जेल की सज़ा हो जाए? आनुपातिकता की भावना होनी चाहिए। क्या ये ऐसा उल्लंघन है जहां किसी को अनिश्चित काल के लिए निलंबित किया जाना चाहिए? यदि वह स्पीकर को पत्र लिखकर माफी मांगना चाहते हैं, तो क्या इसे स्वीकार कर लिया जाएगा। मामला बंद कर दिया जाएगा या हमें सुनवाई करनी चाहिए और इस पर कानून बनाना चाहिए? वह हम कर सकते हैं।
कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता :एजी
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल और राघव चड्ढा के वकील से लिखित दलीलें जमा करने को कहा है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई तीन नवंबर को होगी। अटॉर्नी जनरल आर वेकंटरमणी ने कहा कि इस मामले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। ये संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। अगर अदालत सुनवाई करती है तो संसद का असम्मान कर रही है।
खाली घोषित हो सकती है सीट
राघव चढ्ढा के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि 60 दिन तक अगर हाउस में नहीं गए तो सीट खाली घोषित हो सकती है। ऐसे में कैसे अनिश्चित काल तक सस्पेंड किया जा सकता है। राघव चढ्ढा ने राज्यसभा से अपने निलंबन को चुनौती दी है। अगस्त में चड्ढा को निलंबित किया गया था। राघव की तरफ से दलील दी गई है कि उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला नहीं बनता। अगर मामला बनता भी है, तो नियम 256 के तहत उन्हें सिर्फ उसी सत्र तक के लिए निलंबित किया जा सकता था। मामला अभी संसद की विशेषाधिकार कमेटी के पास है।
माफी मांगने को तैयार हैं चड्डा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम विशेषाधिकार हनन के विस्तृत विषय या विशेषाधिकार समिति के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देंगे। कोर्ट के सामने जो विचार का मुद्दा है वो अनिश्चित काल तक राज्यसभा से राघव चड्डा का निलंबन है। हमें ये भी विचार करना है कि कोर्ट इस मामले में किस हद तक दखल दे सकता है। राघव की ओर से कहा गया कि उनकी मंशा राज्यसभा की महिमा को कम करने की नहीं थी। वो इस मामले में माफी मांगने को तैयार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दिया था बड़ा दखल
इससे पहले भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा दखल हुआ था. निलंबन पर राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी किया गया था और जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल से सहायता मांगी थी। एससी ने कहा था कि वह इस बात की जांच करेगा कि क्या किसी सदस्य को जांच लंबित रहने तक निलंबित किया जा सकता है। एससी यह भी जांच करेगा कि क्या सज़ा अनुपातहीन थी।
सीजेआईडी वाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि अदालत को यह जांचने की जरूरत है कि क्या किसी सदस्य को जांच लंबित रहने तक निलंबित किया जा सकता है। आनुपातिकता का मुद्दा ये है कि क्या किसी सदस्य को निलंबित करने के लिए नियम 256 लागू किया जा सकता है। वकील शादान फरासत ने कहा कि ऐसा करने की कोई शक्ति नहीं है। इसे सत्र से परे नहीं किया जा सकता है। इसे सत्र से आगे बढ़ाने के लिए अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता। ये विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं है।