बैकुण्ठपुर@आखिरकार बैकुंठपुर विधायक को पांचवे साल क्षेत्रीय परंपराओं सहित लोक पर्वों के महत्व का एहसाह हो ही गया!

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  • करमा लोक पर्व पर बैकुंठपुर विधायक ने किया बड़ा आयोजन,किया विधिवत पूजा पाठ।
  • करमा लोक पर्व के अवसर पर विधायक ने करमा नृत्य कर भी उपस्थित महिलाओं का दिया साथ।
  • उपवास के पारन दिवस बली भी दी गई बकरों की,बली के बकरों के साथ हुआ पारन भोज का आयोजन।
  • पांच सालों तक विधायक ने क्यों नहीं याद किया परंपराओं को लोक पर्वों को यह भी उठ रहा सवाल।
  • पांच सालों तक क्षेत्र से दूरी बनाकर चली आ रही विधायक की एकाएक सक्रियता लोक पर्वों क्षेत्रीय परंपराओं के प्रति उनकी सजगता कई मायनों में है सवालों के घेरे में।
  • चुनावी वर्ष में सहानुभूति बटोरने के फिराक में हैं बैकुंठपुर विधायक,भोज भोजन के सहारे जीत सुनिश्चित करने की है उनकी तैयारी,लोगों के बीच है यह चर्चा।

-रवि सिंह-

बैकुण्ठपुर 01 अक्टूबर 2023 (घटती-घटना)। चुनावी वर्ष में नेताओं को सब कुछ याद आने लगता है जनता उनको भगवान नजर आने लगती है, वहीं जनता को वह खुद से जोड़ने का पूरा प्रयास पांचवे साल चुनावी साल में करते हैं, वहीं कई मामलों में वह अभिनय करके भी लोगों का दिल जीतने का प्रयास करते हैं और अपने लिए सहानुभूति लेने का भरसक प्रयास करते हैं। चुनावी साल में नेताओं को सब कुछ याद आता है, हर व्यक्ति का दुख उन्हे सपने में ही दिखाई दे जाता है वहीं लोक पर्व और क्षेत्र की परंपराएं भी उन्हे याद आन लगती हैं और वह ऐसे लोक पर्व और क्षेत्रीय परंपराओं से अपना जुड़ाव साबित करने के लिए ऐसे अवसरों पर बड़े आयोजन भी करते हैं और लोक पर्वों क्षेत्रीय परंपराओं से खुद के जुड़ाव साबित करने कोई कोर कसर न्हों छोड़ते। वहीं नेताओं को खासकर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की यदि बात की जाए तो उन्हे अपने निर्वाचित होने के बाद के चार साल कुछ याद नहीं रहता और वह इस बीच अपनी ही यादों में अपनी ही व्यवस्थाओं एम उलझे रहते हैं और क्षेत्र में भी कम ही नजर आते हैं जो देखा जाता रहा है लेकिन जैसे ही पांचवा साल आता है कुर्सी जाने का खतरा सताता है उन्हे सबकुछ याद आने लगता है और फिर शुरू होता है सहानुभूति लेने का दौर और प्रयास।
क्षेत्र की परंपराओं को सामने रखते हैं नेता पांचवे साल लोक पर्व में उपस्थिति उनकी उनके तरफ से अनिवार्य की जाती है और जनता को यह जताने की पूरी कोशिश की जाती है की उनके लोक पर्व उनके ही हैं उनसे उनका जन्म जन्मांतर का रिश्ता है और वह इसी के साथ जीवन यापन करते चले आ रहे हैं। कुल मिलाकर यह पूरी तरह से साबित किया जाता है की जनता जनार्दन है और वह जो कुछ भी करती है या उसके जो भी पर्व उत्सव लोक आस्था से जुड़े विषय और क्षेत्रीय परंपराएं हैं सभी से उनका नाता कायम है। ऐसा ही कुछ अब बैकुंठपुर विधानसभा में भी देखने को मिल रहा है बैकुंठपुर विधायक चुनाव आते ही सक्रिय नजर आ रही हैं और उनकी सक्रियता भी आरंभ हुई है लोक पर्वों और क्षेत्रीय परंपराओं को लेकर जिसका हालिया उदाहरण देखने को मिला जब करमा लोक पर्व के अवसर पर विधायक ने वृहद आयोजन किया पूजा पाठ किया करमा नृत्य करते वह महिलाओं के साथ भी नजर आईं बकरों की बली भी चढ़ाई और उसके बाद वृहद भोज का आयोजन उन्होंने क्षेत्रवासियों के लिए किया। बैकुंठपुर विधायक पांच वर्षों में जो की उनका कार्यकाल है एक विधायक के तौर पर इस दौरान पहले कभी क्षेत्र की परंपराओं से जुड़ी नजर नहीं आईं लोक पर्वों में उन्होंने हिस्सा नहीं निभाया लेकिन पांचवे साल चुनावी साल उन्हे सब कुछ याद आने लगा और उन्होंने करमा पर्व पर बड़ा आयोजन कर यह जताने का पूरा प्रयास किया की यह पर्व उनका भी पर्व भी है इसको लेकर उनकी भी पूरी आस्था है उनके पूर्वज इस पर्व के साथ अपना जीवन यापन कर चुके हैं और उनका पीढ़ियों से इस पर्व से नाता है। पांच सालों में पहली बार उनकी इस तरह की लोक पर्वों के प्रति आस्था लोगों के बीच चर्चा का भी विषय रही वहीं लोगों ने इसे चुनाव की तैयारी भी कहा जो दबी जुबान से लोग कहते सुने गए।
पांचवे साल क्षेत्रीय परंपराओं सहित लोक पर्वों की याद विधायक को आना आश्चर्यजनक,लोगों ने माना चुनावी तैयारी
बैकुंठपुर विधायक अपने अब तक के कार्यकाल में जो पांचवें साल का अंतिम कुछ माह ही जिसमे बचा है में क्षेत्र में कभी लोक पर्व क्षेत्रीय परंपराओं से जुड़ती नजर नहीं आईं,उन्होंने कम ही क्षेत्र में जाना पसंद किया जो उनकी लोकप्रियता जो घटी हुई आंकी जा रही है को सुनकर समझा जा सकता है। विधायक पांच सालों के अब तक के कार्यकाल में अधिकांश समय क्षेत्र से बाहर ही रहीं क्षेत्र के लोगों ने लोक पर्व की बात हो या क्षेत्रीय परंपराओं की बात कभी विधायक को अपने साथ उन्होंने खड़ा नहीं पाया,अब ऐन चुनाव के वक्त विधायक क्षेत्र की परंपराओं सहित लोक पर्व की महत्ता खुद बता रहीं हैं शामिल हो रहीं हैं खुद आयोजन कर रहीं हैं ऐसे में लोगों के बीच यह भी चर्चा है की सबकुछ चुनावी रणनीति के तहत तय कार्यक्रम है,लोक आस्था केवल इसी वर्ष याद आना इस बात का प्रमाण है की अब वक्त सभी से नजरें मिलाकर मत मांगने का है और जब पांच साल क्षेत्र से जुड़ाव रहा ही नहीं तो कैसे जनता से समाना होगा इसका रास्ता यह निकाला गया की लोक पर्व क्षेत्र की परंपराओं को आगे किया जाए उसके सहारे जनता के विश्वास को हासिल करने का प्रयास किया जाए।
लोक पर्व क्षेत्र की परंपराओं के सहारे विधायक अब अपनी अगली पारी की कर रही हैं शुरुआत,क्या वह होंगी सफल उठ रहे सवाल
बैकुंठपुर विधायक क्षेत्र की परंपरा लोक पर्व के सहारे अपनी अगली पारी की शुरुआत करने की जुगत में लग चुकी हैं,वह अब इसी के सहारे सहानुभूति लोगों से अपने लिए समर्थन की उम्मीद में हैं ऐसा अंदाजा लगाया जाने लगा है। क्षेत्र में घटती हुई लोकप्रियता से वह चिंतित थीं यह लोगों का मानना है और यही वजह है की वह अब लोगों के बीच उनके आस्था को आधार बनाकर जाना चाहती हैं और उन्हे उनकी आस्था से जोड़कर उनसे समर्थन लेना चाहती हैं। क्षेत्र में लोक पर्व क्षेत्र की परंपराओं का काफी महत्व है और लोग इसके प्रति काफी लगाव रखते हैं,वहीं विधायक यह भांप चुकी हैं ऐसा माना जा रहा है और वह इसी क्रम में लोक आस्था क्षेत्र की परंपराओं से जुड़ाव साबित करने में लगी हुई हैं,वैसे क्या उन्हे अपने कार्यकाल के पांचवे साल ऐन चुनाव के वक्त इसका लाभ मिल सकेगा क्या क्षेत्र की जनता इस झांसे में आएगी यह बड़ा सवाल है क्योंकि विधायक अब तक के कार्यकाल में लगातार क्षेत्र से दूर चली आ रही थीं जो देखा सुना और कहा जाता है।
वर्षों पूर्व यदि राज परिवार लोक पर्व पर करता था भव्य वृहद आयोजन,तब पिछले चार सालों में क्यों विधायक ने नहीं किया कोई आयोजन सवाल यह भी है
बैकुंठपुर विधायक राज परिवार की सदस्य हैं,उनके परिवार का राजनीतिक भी इतिहास है,राज परिवार वर्षों पूर्व जैसा की दावा किया गया तरगवां ग्राम में की राजपरिवार के द्वारा करमा पूजन व भोज का आयोजन किया जाता था बली प्रथा का पालन भी किया जाता था बकरों की बली दी जाती थी,वहीं करमा देव की पूजा की जाती थी और ग्राम वासियों के साथ इसे बड़े भव्य तरीके से मनाया जाता था,यदि ऐसा था भले ही बली पहली बार की गई हो पूजा पाठ सहित अन्य आयोजन यदि पहले हुआ करते थे तो राजपरिवार की सदस्य होने के नाते उन्हें इसकी याद पांचवें साल क्यों आई,उन्हे पहले क्यों नहीं यह पता चला, ऐन चुनाव के समय जब उन्हे चुनाव लडना है उन्हे याद आया क्या यह चुनावी तैयारी से जुड़ा मामला है इसलिए उन्हे याद आया यह भी सवाल है कार्यक्रम आयोजन के बाद। वैसे जैसा क्षेत्र के लोग बताते हैं कभी तरगवां में करमा पर्व का आयोजन किया जाता था यह सही है वहीं यह आयोजन राज परिवार की जमीन पर खेती करने वाले उसका रख रखाव करने वाले किया करते थे और उन्हीं के द्वारा इसे बंद किया गया वहीं यह सब कुछ राजपरिवार की जानकारी में हुआ था जिसको लेकर राजपरिवार को इस बंद प्रथा को याद करने की भी तब सूझी जब उन्हे चुनाव लडना है और वह भी चुनाव नजदीक है। पिछले कई वर्षों में उन्हे इस परंपरा की याद नहीं आई यह भी लोग सोचकर दंग हैं।
ग्राम तरगवां में विधायक ने कराया करमा पूजन कार्यक्रम,बकरों की बली भी दी गई,बड़े क्षेत्र से लोगों को बुलाकर भोज भी दिया गया
यह मामला क्षेत्र की परंपरा साथ ही लोक पर्व के प्रति बैकुंठपुर विधायक की एकाएक जगी भावना से जुड़ा हुआ है जो ऐन चुनावी वक्त उन्हे याद कराता है की कभी उनका परिवार करमा पर्व में भव्य वृहद आयोजन किया करता था ग्राम तरगवां में जो कई वर्षों से बंद है। विधायक इस वर्ष वह आयोजन पुनः आयोजित कराती हैं करमा पूजन के लिए सभी विधि वह संपन्न करती हैं जवा जवारा के बुनाई से लेकर करमा पर्व दिवस बकायदा ग्राम तरगवां के राजपरिवार के भंडार क्षेत्र में पूजन कार्यक्रम संपन्न किया जाता है करमा नृत्य भी होता है,कई करमा नृत्य दल पहुंचकर प्रस्तुति देते हैं वहीं खुद विधायक भी महिलाओं के साथ करमा नृत्य कर परंपरा का पालना करती हैं,सुबह पारन कार्यक्रम भी आयोजित होता है बकरों की बली दी जाती है और एक बड़े क्षेत्र से लोगों को आमंत्रित किया जाता है जो भोज में शामिल होने पहुंचते हैं। वहीं पूरा मामला एक प्रश्न छोड़ जाता है की क्या चुनावी तैयारी तो यह आयोजन नहीं।
कार्यक्रम से जुड़े कुछ सवाल:-
सवाल: पांच सालों तक विधायक ने क्यों नहीं याद किया परंपराओं को लोक पर्वों?
सवाल: क्या चुनाव करीब होने की वजह से उन्हे याद आया लोक पर्वों का महत्व,क्षेत्रीय परंपराओं का महत्व?
सवाल: क्या लोक पर्वों के प्रति क्षेत्रीय परंपराओं के प्रति पांचवे साल आस्था प्रकट कर बैकुंठपुर विधायक जितना चाहती हैं चुनाव?
सवाल: यदि बैकुंठपुर विधायक इतनी ही सजग थीं लोक पर्वों और क्षेत्रीय परंपराओं के प्रति उन्होंने इसके पहले क्यों नहीं किया कोई आयोजन?


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