2024 के चुनाव से पहले लागू होने की संभावना नहीं
नई दिल्ली,19 सितम्बर, 2023 (ए)। कोलकाता लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिए एक तिहाई या 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला बिल 19 सितंबर यानी आज संसद भवन में गूंजा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्रीय कैबिनेट द्वारा लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया गया। खास बात यह रही कि कांग्रेस ने भी इस बिल का समर्थन किया।
इस बिल को नारी शक्ति वंदन अधिनियम दिया गया। अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। उम्मीद यह जताई गई है कि बिल पास होकर विधेयक का रूप ले लेगा। लेकिन, सभी के जहन में यह सवाल है कि कब से लागू होगा? इसका लाभ कब से मिलेगा?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नारी शक्ति वंदना अधिनियम नाम के इस बिल में कहा गया है कि महिलाओं के लिए आरक्षण नवीनतम जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद लागू होगा, जो दर्शाता है कि बदलाव 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद लागू हो सकते हैं। मतलब साफ है कि महिला आरक्षण बिल के पारित होने के बाद लागू होने में दो अहम रोड़े हैं।
बिल लागू होने के रोड़े जनगणना और परिसीमन
1881 में पहली समकालीन जनगणना देश में हुई थी। देश में अंतिम जनगणना 2011 में हुई थी। महिला आरक्षण बिल लागू होने से पहले नवीनतम जनगणना होनी है। लेकिन, 2021 की जनगणना ही अभी तक नहीं हुई है। 2026 के बाद 2031 की जनगणना होनी है। उसके बाद लोकसभा सीटों का परिसीमन होने की उम्मीद है। जिससे साफ है कि 2024 क्या, 2029 के लोकसभा चुनावों के समय भी महिला आरक्षण लागू होने का सपना अधूरा ही रह जाएगा। यानी कि महिलाओं को आरक्षण के लिए 2029 के लोकसभा चुनावों का इंतजार करना होगा?
क्या होता है परिसीमन?
परिसीमन, संसदीय या विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की प्रक्रिया है। सीटें आवंटित की जाए, दूसरे शब्दों में जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधि हों। इस प्रक्रिया को करने लिए, संविधान के अनुसार जनगणना (एक सर्वेक्षण के माध्यम से जनसंख्या की आधिकारिक गणना) के बाद किया जाना चाहिए।
राजीव गांधी ने पेश किया था महिलाओं के आरक्षण का विधेयक
संविधान 108वां संशोधन विधेयक, 2008 में महिलाओं के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं में सीटों की कुल संख्या का एक तिहाई या 33 प्रतिशत आरक्षित करने का प्रावधान करता है। यह मई 1989 में था, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था।
हालांकि, यह सितंबर 1996 में ही हुआ था, जब तत्कालीन देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने संसद में महिलाओं के आरक्षण के लिए पहली बार 81वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया था। लोकसभा में विरोध का सामना करते हुए, विधेयक को संयुक्त संसदीय पैनल के पास भेजा गया। हालांकि, 1996 में संसद भंग हो गई और विधेयक समाप्त हो गया। यह विधेयक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 1998, 1999, 2002 और 2003 में फिर से पेश किया गया। लेकिन, पारित होने में विफल रहा। पांच साल बाद, विधेयक को 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा फिर से पेश किया गया, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2010 में इसे मंजूरी दे दी और राज्यसभा ने 9 मार्च 2010 को इसे पारित कर दिया। हालांकि, विधेयक को लोकसभा में कभी चर्चा के लिए नहीं रखा गया। 2014 में इसके विघटन के बाद यह अंततः निचले सदन में समाप्त हो गया। महिला आरक्षण विधेयक 2014 और 2019 में भी बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था