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बैकुण्ठपुर/अंबिकापुर@क्या किसी कार्यवाही पर संदेह व्यक्त करना गलत या संदेह व्यक्त करना अपराध है?

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  • अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का भी है एक निर्णय,रिपोर्ट सही गलत हो सकती है,यही अभिव्यक्ति की आजादी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में सही या ग़लत हो सकता है,लेकिन अपने विचार रखने की स्वतंत्रता का अधिकार हर किसी को है।
  • क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दबाने का प्रयास कर रही कोरिया पुलिस?
  • क्या पुलिस की कमियां बताने वाले पत्रकार हाशिये पर रहते हैं?
  • पुलिस अपनी कमियां को क्यों पचा नहीं पाती?
  • क्या पत्रकार के लिए पुलिस का महिमा मंडल करना है सुरक्षा का विश्वास है?
  • क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को अपना रोड़ा मानती है कोरिया पुलिस?
  • किसी मामले को संज्ञान में डालो तो पुलिस को दिक्कत और यदि पुलिस की कमियों को दिखा तो पुलिस को दिक्कत।
  • क्या कोरिया पुलिस की कमियों को दिखाना खतरे से खाली नहीं?
  • एक बार फिर खबरों के प्रकाशन पर नोटिस जारी कोरिया पुलिस घिरी आलोचना में।
  • पूरे मामले को लेकर दैनिक घटती-घटना का खुला पत्र।

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर/अंबिकापुर 19 सितम्बर 2023 (घटती-घटना)। वर्तमान शासन काल में पत्रकारिता करना काफी कठिन काम हो चला और वह भी उस समय जब जिम्मेदारों की कमियां बताई जाए तब, कमियों का एहसाह करवाना ही पत्रकार के लिए बड़ी मुसीबत है, जब तक महिमा मंडन कीजिए तब तक पत्रकारिता और पत्रकार दोनों सुरक्षित हैं, यदि कमियां दिखाएं या बताया तो फिर सुरक्षा भूल जाइए और कार्यवाही के लिए तैयार रहीए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दबा के रखना उनके सुख को प्रदर्शित करता है और उनके कमियों की आड़ बनी रहती है। पिछले कुछ सालों से कमियों को बताने व आलोचना करने वाले पत्रकारों को पुलिस झूठे एफआईआर व नोटिस भेज कर दबाने का चौतरफा का प्रयास कर रही है? यदि कार्यवाही में कोई संदेह निर्मित होता है तो क्या उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता? यदि पुलिस की कार्यवाही में कहीं कमी है और संदेह के दायरे में दिख रही है तो उस बात का उल्लेख करना पत्रकार के लिए खतरे से खाली नहीं? वैसे लगातार कोरिया पुलिस की कार्यप्रणाली ऐसी ही देखी जा रही है, पत्रकार जो निष्पक्ष है खबरों के मामले में जो समझौता नहीं करता उसको लेकर कोरिया पुलिस छपा छपाया नोटिस तैयार रखती है।
कोरिया पुलिस ने हाल फिलहाल में कई कार्यवाहियां की हैं और उन कार्यवाहियों को लेकर कोरिया पुलिस ने कई प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की है वहीं कुछ मामलों को छोड़ दें तो कई मामलों में कार्यवाहियों को लेकर जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है, किसी भी प्रेस विज्ञप्ति में जारी करने वाले का हस्ताक्षर व सील नहीं होता, क्या इस तरह का प्रेस विज्ञप्ति जारी करना न्याय विरुद्ध नहीं है? जबकि न्यायालय भी कहता है की प्रेस विज्ञप्ति जारी करने वाले का हस्ताक्षर व सील होना ही प्रेस विज्ञप्ति की पुष्टि करता है, क्या यह उसमे कहीं न कहीं यह देखा गया है की उन कार्यवाहियों में कमियां हैं या कुछ छूट रहा है ऐसा नजर आया है और उन्ही कमियों को लेकर घटती घटना ने समाचार का प्रकाशन किया है। समाचारों में घटती-घटना ने पुलिस कार्यवाही का एक ही पक्ष नहीं प्रकाशित किया गया है कई सूत्र जनित जनचर्चा भी सुनकर समझकर समाचारों का प्रकाशन किया गया है, जिसमे यदि कमियां बताई भी गईं हैं पुलिस कार्यवाही की तो पुलिस की सफलता का भी उल्लेख किया गया है, लेकिन कोरिया पुलिस कमियों को लेकर इतनी व्यग्र नजर आ रही है की लगता है उसे कमियां सुनने का जरा भी धीरज नहीं है। वह केवल बड़ाई अपनी सुनने की आदि है और यदि किसी ने उसकी कार्यवाहियों में कोई कमी निकाली वह उस पत्रकार के विरुद्ध अपराध पंजीबद्ध करने से भी पीछे नहीं हटने वाली, साथ ही वैधानिक कार्यवाही की चेतावनी तो आम हो गई है। घटती-घटना के पत्रकार को एक बार फिर पुलिस ने नोटिस जारी किया और वह नोटिस भी 91 का जो कहीं से भी नियम विरुद्ध  है, जानकारों की माने तो 91 का नोटिस अपराध पंजीकृत करने के बाद ही जारी किया जाता है, पर यहां तो पुलिस ने  91 का नोटिस ऐसे ही जारी करती है और उसमें अपराध क्रमांक का कोई भी जिक्र नहीं होता, साथ ही पुलिस का यह भी कहना है की खबर में अमर्यादित व अविधिक शब्द है, पुलिस के लिए झोलझाल अमर्यादित अविधिक शब्द माना जा रहा, पर क्या पुलिस अमर्यादित व अविधिक शब्द की परिभाषा जानती है?

पुलिस द्वारा भेजा गया नोटिस
दैनिक घटती-घटना के तरफ से भेजा गया जवाब

91 के नोटिस पर उच्च न्यायालय बिलासपुर के एक फैसले
माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के एक फैसले के अनुसार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि मामला धारा 154 सीआरपीसी के तहत दर्ज नहीं है। ऐसे में आप 91 धारा सीआरपीसी का नोटिस कैसे जारी कर सकते हैं? पुलिस को ये अधिकार मिलता है कि वो एफआईआर दर्ज करने से पहले वो अनुसंधान और जांच करें। इसमें आप धारा 91 सीआरपीसी का नोटिस जारी नहीं कर सकते हैं।  हाईकोर्ट की तरफ से तब कहा गया कि प्रारम्भिक जांच में पुलिस के द्वारा धारा 91 सीआरपीसी नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है। आज्ञापत्र क्रामंक 678/2020 केस ला राजेश्वर शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य का अवलोकन करना आपको आवश्यक होगा।

दैनिक घटती-घटना के सुधि पाठकों से जानना चाहेगे कि इस खबर में कौन सा शब्द अमर्यादित एवं अविधिक भाषा का उपयोग हुआ है?

पुलिस की आपत्ति इस पर
क्रमांक-पु.अनु.अधि./नोटिस/सो.मी/रीडर/एम 01 2023 दिनांक 11/09/2023  के नोटिस में विषयांतर्गत लेख है कि “”आर क्लब बार में कोरिया पुलिस की 05 घंटे चली रेड लगभग साढ़े चार लाख की शराब हुई जप्त””” फिर नीचे लेख है कि “” कार्यवाही से भले ही कोरिया पुलिस अभी संदेह के घेरे में है, लेकिन कार्यवाही होना ही बड़ी बात है। फिर नीचे उल्लेख है कि “”हेडिंग तलाशी तो…………….आर क्लब बार का, फिर नीचे लेख है कि “”सुत्रों का यह भी कहना है कि कार्यवाही में झोलझाल भी किया गया। अब इसमें कौन सा शब्द अमर्यादित है एवं अविधिक भाषा का उपयोग हुआ है यह क्यों स्पष्ट नहीं किया गया है? पर यदि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ)- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आपके द्वारा भेजा गया नोटिस विधिसंगत नहीं है, नोटिस में विषयांतर्गत लेख है कि “”आर क्लब बार में कोरिया पुलिस की 05 घंटे चली रेड लगभग साढ़े चार लाख की शराब हुई जप्त””” फिर नीचे लेख है कि “” कार्यवाही से भले ही कोरिया पुलिस अभी संदेह के घेरे में है, लेकिन कार्यवाही होना ही बड़ी बात है। फिर नीचे उल्लेख है कि “”हेडिंग तलाशी तो…………….आर क्लब बार का, फिर नीचे लेख है कि “”सुत्रों का यह भी कहना है कि कार्यवाही में झोलझाल भी किया गया। उक्त चारों अलग अलग विषयांतर्गत प्रश्न लगाऐं गये हैं, ऐसे में नोटिस में यह कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि, पुलिस की छवि किन लाईनों के वजह से धुमिल हुई, नोटिस में वास्तविक तौर पर जिन लाईनों पर आपत्तियां थी उन्हें स्पष्ट तौर पर लेख कर पुछा जाना चाहिए था।
अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का भी है एक निर्णय,रिपोर्ट सही गलत हो सकती है,यही अभिव्यक्ति की आजादी
दैनिक घटती-घटना के पत्रकार को जिस तरह से एक खबर के आधार पर नोटिस भेजकर कोरिया पुलिस ने परेशान करने का प्रयास किया है उसे यदि सुप्रीम कोर्ट के ताजा मामले के अनुसार और निर्णय के अनुसार देखा जाए तो वह अभिव्यक्ति की आज़ादी का उलंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसाग्रस्त क्षेत्र पहुंचे एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के चार सदस्यों के खिलाफ दर्ज प्रकरण को रद्द क्यों न किया जाए ऐसा कार्यवाही के दौरान कहा था, वहीं शिकायतकर्ता को यह कहा था की वह स्थापित करे की विभिन्न जाति समूहों के बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की वजह से दुश्मनी बढ़ेगी। कोर्ट ने कहा की पत्रकार सही या गलत हो सकते हैं पूरे देश में हर दिन गलत चीजें रिपोर्ट हो रही हैं तो क्या अथॉरिटी पत्रकार पर मुकदमा चलाएगी? मामला जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने लिया है संज्ञान। मणिपुर हिंसा की रिपोर्ट पर एडिटर्स गिल्ड के ख़िलाफ़ केस अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ–कोर्ट हिंसाग्रस्त मणिपुर संबंधी एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट को लेकर राज्य पुलिस द्वारा दायर एफआईआर को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, इस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि गिल्ड अपनी रिपोर्ट में सही या ग़लत हो सकता है, लेकिन अपने विचार रखने की स्वतंत्रता का अधिकार हर किसी को है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में गिल्ड की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें इसके सदस्यों के खिलाफ की गई कार्रवाई को चुनौती दी गई है, सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा, यह मानते हुए कि उन्होंने जो कहा वह झूठ है और आपका कहना है कि हर पैराग्राफ झूठा है, लेकिन किसी लेख में गलत बयान देना धारा 153 ए के तहत अपराध नहीं होता, यह त्रुटिपूर्ण हो सकता है, त्रुटिपूर्ण चीजें देश भर में हर दिन रिपोर्ट की जाती हैं, क्या आप धारा 153 ए के लिए पत्रकारों पर मुकदमा चलाएंगे? सीजेआई ने कहा कि ईजीआई मणिपुर हिंसा के पक्षपातपूर्ण मीडिया कवरेज के बारे में अपनी रिपोर्ट में सही या गलत हो सकता है, लेकिन अपने विचार रखने के लिए उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। जब शिकायतकर्ताओं ने बार-बार ईजीआई द्वारा अपनी रिपोर्ट के माध्यम से मणिपुर में किए गए नुकसान का उल्लेख किया तो सीजेआई बोले, मुद्दा उठाया है तो हमें पहले इस बारे में बताइए कि इन अपराधों हुए  हलफनामा दायर करें,इसे रिकॉर्ड पर रखें, शिकायतें और एफआईआर क्यों रद्द नहीं की जानी चाहिए…
पुलिस के नोटिस से जुड़े कुछ सवाल:-

  • सवाल:- भेजे गए नोटिस में किस पुलिस अधिकारी के द्वारा यह नोटिस भेजा गया है?
  • सवाल:- यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है,यह नोटिस किसने भेजा है? और किसके द्वारा भेजा गया है? नोटिस भेजने वाले अधिकारी का नाम नहीं होने से यह समझ पाना असंभव है?
  • सवाल:- आपके द्वारा नोटिस भेजे जाने से पहले क्या आपके द्वारा जनसंपर्क विभाग छत्तीसगढ़ से अथवा छत्तीसगढ़ शासन से किसी भी प्रकार की कोई अनुमति ली गई है, अथवा नहीं?
  • सवाल:- क्या उक्त प्रकाशन के संबंध में आपसे किसी ने कोई शिकायत की है या फिर आपने स्वत: संज्ञान लिया है? 
  • सवाल:- क्योंकि नोटिस में शिकायतकर्ता का नाम और नोटिस भेजने वाले अधिकारी का नाम दोनों नहीं है?
  • सवाल:- आपके द्वारा किस आधार पर यह तय किया गया कि पुलिस की छवि धुमिल हुई?
  • सवाल:- क्या प्रकाशन से जो छवि धुमिल हुई उसे नापने का आपके पास कोई पैमाना है?
  • सवाल:- आपके द्वारा जारी नोटिस में यह उल्लेख है कि अमर्यादित एवं अविधिक भाषा का उपयोग किया गया यह स्पष्ट करना आवश्यक था कि उक्त प्रकाशन के आधार पर क्या कोई प्रकरण पंजीबद्ध हुआ है, अथवा नहीं?
  • सवाल:- पुलिस प्रकाशन के बाद सोशल मीडिया पर वायरल खबर की विवेचना एवं पुलिस की कार्यशैली पर होने वाले प्रभाव एवं धुमिल होने की विवेचना किस आधार पर करती है?
  • सवाल:- क्या दैनिक घटती-घटना एक जागरूक अखबार के तौर पर जो की लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी है,यह खबर प्रकाशन नहीं करता तो क्या उक्त समाचार का स्वरूप बदल जाता?
  • सवाल:- क्या जारी प्रेस नोट में यह उल्लेख है कि किन किन तरह की खबर का प्रकाशन किया जाये? 
  • सवाल:- भेजे गये नोटिस को क्यों ना गलत तरीके से की गई छापेमारी का आधार माना जाये?
  • सवाल:- 5 घंटे की कार्यवाही में पूरा जिला जान गया कि छापा एक कथित होटल में पड़ा और जब विज्ञप्ति आई तो पता चला की छापा आर क्लब बार में पड़ा तो इस कार्यवाही को झोलझाल ना कहे तो क्या कहेगे, आप ही स्पष्ट करे?
  • सवाल:- यह बात सूत्रों के हवाले से कही गई है की कार्यवाही जिसमें की गई कार्यवाही में झोलझाल माना जा रहा है, यदि झोलझाल नहीं था तो फिर पुलिस ने इस मामले में अपना बयान क्यों नहीं जारी किया और मीडिया को भी अंदर जाने से क्यों रोका  गया था?
  • सवाल:- पूरी खबर में क्या सिर्फ पुलिस को दो लाइन ही पसंद नहीं आई बाकी सारी लाइन पुलिस के लिए सही है?
  • सवाल:- पुलिस अपनी कमियों का खबर से ही संज्ञान क्यों लेती है जब पुलिस को कमियां बताई जाती है तो उस पर संज्ञान क्यों नहीं लेती?
  • सवाल:- यदि पुलिस के कार्यवाही में झोलझाल नहीं है तो पुलिस वहां का सीसीटीवी फुटेज व कार्यवाही के दौरान पुलिस द्वारा बनाई गई वीडियो उपलब्ध कराए? सारे सबूत पुलिस के पास ही उपलब्ध है?
  • सवाल:- कौन सा शब्द अमर्यादित है एवं अविधिक भाषा का उपयोग हुआ है यह क्यों स्पष्ट नहीं किया गया है?
  • सवाल:- इस नोटिस का जवाब संतोषजनक नहीं मिलने पर निवेदन है हमें बताएं कि आगे हमारे द्वारा क्या कार्यवाही की जाए?

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