बैकुण्ठपुर@जिस विधायक के नेतृत्व में जनपद हारे जिला पंचायत हारे और जीती हुई नगर पालिका भी हारे क्या उसी विधायक पर दांव लगाना चाह रही है कांग्रेस?

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  • क्या बिना जनाधार वाले विधायक पर दांव लगाना कांग्रेस की मजबूरी?
  • विधायक की छवि विधानसभा में कैसी बनी हुई है यह सभी भली-भांति जानते हैं, पर क्या उच्च स्तर के नेता नहीं जानते?

-रवि सिंह-

बैकुण्ठपुर 02 सितम्बर 2023 (घटती-घटना)। पांच सालों में एक बार आने वाला त्यौहार फिर आने वाला है जिसे लेकर जोर आजमाइश जारी है बात करते हैं कोरिया जिले के बैकुंठपुर विधानसभा की जहां के विधायक का भी पांच साल का कार्यकाल पूरा होने को है और दोबारा मौका मिले इसके लिए उनका प्रयास भी पूरी तरह जारी है, प्रयास बोला जाए या फिर तय माना जाए? यदि समीकरणों को माने तो और पांच साल के कार्यकाल का मंथन करें तो इनके नेतृत्व में बैकुंठपुर जनपद पंचायत में हार पार्टी को मिल चुकी है,जिला पंचायत में भी इनके नेतृत्व में हार का ही सामना पार्टी ने किया है,पूर्ण बहुमत से पार्षद जीतकर आने के बाद भी बैकुंठपुर नगर पालिका अध्यक्ष का पद और शिवपुर चरचा नगरपालिका के उपाध्यक्ष का पद भी इन्हीं के नेतृत्व में पार्टी हार चुकी है वहीं बात करें जिला पंचायत सदस्य के उप चुनाव परिणाम की तो उसमें भी पार्टी समर्थित प्रत्याशी की बुरी तरह हार हो चुकी है फिर भी उनके ऊपर कांग्रेस दाव लगाने को तैयार है, आखिर ऐसा क्या है कि कांग्रेस उन पर दांव लगाना चाहती है? यह सवाल इस समय पूरे विधानसभा के लोगों में मन मे उठ रहा है, यदि आप क्षेत्र का दौरा करें तो सब यही जानना चाहते हैं कि आखिर उनकी उपलब्धि क्या है? संगठन के लिए उनकी उपलब्धि क्या है? पार्टी के लिए उनकी उपलब्धि क्या है? और क्षेत्र की जनता के लिए उनकी उपलब्धि क्या है? और क्षेत्र के जनता के प्रति इनका व्यवहार कैसा है? तमाम सवाल इस समय लोगों के मन मस्तिष्क में तैर रहे हैं पर जवाब में एक ही बात है की 2023 का चुनाव तो यही लड़ेंगी और ऐसा लग रहा की इनका नाम पूरी तरह से तय है और इन्हीं पर ही कांग्रेस का भरोसा है फिर भी लोग हाथ पैर मार रहे हैं कि शायद उच्च स्तरीय नेताओं को समझ में आ जाए की स्थिति बैकुंठपुर विधानसभा की क्या है और वह अपना निर्णय बदलते हुए किसी अन्य को जो टिकट के लिए उम्मीदवारी के लिए दौड़ लगा रहें हैं को मिल जाए।
विधानसभा चुनाव को लेकर काफी गहमागहमी का माहौल
विधानसभा चुनाव को लेकर काफी गहमागहमी का माहौल है और गहमागहमी के माहौल में प्रत्याशी चुनाव भी अपने आप में एक चुनौती है और सबसे बड़ी चुनौती तो बैकुंठपुर विधानसभा के लिए कांग्रेस को और भाजपा दोनों को प्रत्याशी चुनना काफी टेढ़ी खीर बना हुआ है इन दोनों पार्टियों के इस विधानसभा में अच्छे प्रत्याशी उतरना अत्यंत जरूरी है जहां भारतीय जनता पार्टी से पहले नाम पूर्व कैबिनेट मंत्री भईया लाल राजवाड़े का आ रहा है तो दूसरा और तीसरे नाम पर देवेंद्र तिवारी व शैलेश शिवहरे का माना जा रहा है, पर वही कांग्रेस की माने तो प्रत्याशी तो 52 है जिन्होंने दावेदारी भी पेश कर दी है पर अंदर खाने में यह माना जा रहा है कि वर्तमान विधायक का ही टिकट तय है और कांग्रेस पूरा मन बना चुकी है और उन्ही के ऊपर वह दांव लगाएगी और चुनाव लड़ेगी।
क्या वर्तमान विधायक को टिकट मिलने पर कोई करिश्मा ही जीत सकता है?
वैसे यदि क्षेत्र के मतदाताओं की माने तो वर्तमान विधायक के पक्ष में चुनाव परिणाम तभी जा सकता है जब कोई करिश्मा होने की संभावना बन पाएगी वरना फिलहाल वह कहीं भी चुनाव के परिणामों में जीत की स्थिति में नहीं हैं। अधिकांश समर्थक उनके पुराने उनका साथ छोड़ चुके हैं वरिष्ठ कांग्रेसी साथ ही अधिकांश कार्यकर्ता पांच सालों की उपेक्षा की भी सूची लिए घूम  रहे हैं और ऐसी स्थिति में वर्तमान विधायक  के लिए चुनाव कितना आसान होगा समझा जा सकता है। क्षेत्र में अब पांच सालों तक विधायक की सक्रीयता भी शून्य ही कही जा सकती है वहीं उनके साथ आज की स्थिति में समर्थकों की संख्या की यदि बात की जाए तो वह भी उंगलियों में गिन लिए जाने वाली स्थिति में है जो उनके सोशल मीडिया में जारी तस्वीरों से समझा जा सकता है। कुछ उनके साथ ऐसे भी समर्थक नजर आ रहे हैं आजकल जो कब किधर होंगे यह वह खुद भी नहीं जानते और आज विधायक के खास हैं और जिससे भी पार्टी कार्यकर्ता नाराज हैं।
वरिष्ठ कांग्रेस जनों सहित पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच विधायक नहीं हैं प्रत्याशी बतौर स्वीकार
बैकुंठपुर विधानसभा की यदि बात की जाए वर्तमान विधायक की यदि बात की जाए तो वह पार्टी के ही वरिष्ठ जनों सहित पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच प्रत्याशी बतौर स्वीकार्य नहीं हैं जो अधिकांशतया सुना देखा जा रहा है। 52 दावेदारों में यह भी माना जा सकता है की उनके पक्ष में ही अधिकांश अपना समर्थन देंगे लेकिन वह उन्हीं के द्वारा प्रायोजित प्रस्तुत नाम है जिनमे वह नाम भी शामिल हैं जो उनके यहां किसी लाभ से जुड़े हुए हैं शेष अन्य दावेदार विधायक के पक्ष में जाकर जनता से मत मानने का काम दिल से करेंगे यह कहना जल्दबाजी होगी वैसे असंभव है ऐसा कहना गलत नहीं होगा। यदि वर्तमान विधायक ही चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें सबसे पहले कार्यकर्ताओं से ही अपना चुनाव प्रचार आरंभ करना होगा जो उनके लिए पार्टी के लिए चुनौती होगी क्योंकि उन्हें शून्य की स्थिति से आगे बढ़ना होगा।पार्टी के वरिष्ठ जन हों या आम कार्यकर्ता सभी ने पांच साल का वनवास ही देखा है झेला है उन्हे विधायक से दुत्कार ही मिली है जो वह खुद जगह जगह स्वीकार करते सुने जा सकते हैं और उनका मानना भी है की वह विपक्ष में जिस स्थिति में थे सत्ता में आने के बाद वर्तमान विधायक के कार्यकाल में उनकी स्थिति उससे बद्तर रही है और वह विपक्ष से भी बद्तर स्थितियों से गुजरते चले आ रहे हैं।
विधायक के ही समर्थन में दावेदारी करने वाले कई इस आस में भी कहीं उनका नंबर न लग जाए,यह उनकी रणनीति
विधायक के समर्थन में अधिकांश दावेदारी प्रायोजित रूप में कराई गई है,विधायक के पक्ष में समर्थन की बात आयेगी तो यह देखा जा सकता है की किसके पक्ष में कितने लोग सहमत हैं और चूंकि मामला प्रायोजित वाला है ऐसे में अधिकांश उन्हीं के समर्थन में जाने का दावा पेश करेंगे यह तय है,लेकिन अंदर खाने की बात माने तो उनके ही कुछ करीबी खास समर्थक जिन्होंने उनके समर्थन के उद्देश्य से दावेदारी की है वह यह भी आस लगाए बैठे हैं की कहीं यदि विधायक का नम्बर नहीं लगा और बात नए चेहरे पर दांव लगाने की आए तो उन्हीं का नाम न ऐलान हो जाए और उन्हे मौका मिल जाए,वैसे इसकी संभावना कम है और यह उनकी सोच है जो दावेदारी विधायक के समर्थन में किए हुए हैं।
विधायक बांट रहीं हैं छतरी,आगे क्या कुछ और भी बांटकर वह जनता को करेंगी आकर्षित,स्व कुमार साहब इन्हीं विषयों के थे विरोधी
वर्तमान विधायक खुद जान रहीं हैं उनके लिए चुनाव जीत पाना इस बार इतना आसान नहीं है,पिछली बार विरोधी लहर में उन्हे जीत मिल सकी थी और उन्हे क्षेत्र का आम चुनावों का वह अनुभव नहीं मिल सका है जो आम स्थितियों में साथ ही जब खुद की सरकार के कार्यकाल के बाद जनता के बीच जाकर दोबारा समर्थन मांगने के दौरान जो स्थितियां सामने आती हैं वह कैसी होती हैं,पिछला चुनाव उनके लिए आसान था इस बार उन्हे जनता के बीच अपनी उपलब्धि बतानी होगी और जनता  उसके बाद समर्थन का फैसला लेगी,जनता भी पांच सालों का हिसाब लिए बैठी है,विधायक इधर छतरी भी बांट रही हैं और लोगों को खुद की तरफ आकर्षित कर रही हैं लेकिन जनता छतरी और अन्य प्रलोभनों से कितना उनके पक्ष में जायेगी यह आने वाला चुनाव परिणाम बताएगा वैसे स्व कुमार साहब चुनाव में मतदाताओं के बीच प्रलोभन के वितरण के विरोधी थे और इस तरह विधायक उनके भी पदचिन्हों से अलग जाकर काम कर रही हैं,अब क्या क्या और बंटेगा और किन प्रलोभनों से जनता को वह अपने पक्ष में करने का प्रयास करेंगी यह तो आने वाले वक्त में दिखेगा लेकिन जनता प्रलोभन लेकर भी क्या उनके पक्ष में मतदान करेगी यह कहना जल्दबाजी होगी।
विधायक ने पांच सालों में क्षेत्र से ज्यादा समय राजधानी सहित अन्य जगहों को दिया,जनता के बीच कम पहुंच सकीं विधायक
विधायक का पूरा कार्यकाल यदि क्षेत्र में उनके भ्रमण के हिसाब से देखा जाए तो उन्होंने क्षेत्र में कम ही समय दिया,वह अधिकांश तौर पर क्षेत्र से बाहर ही रहीं और वह राजधानी सहित भ्रमण पर ही हैं ऐसा लोग सुनते रहे। जनता ने अपने प्रतिनिधि को कम ही अपने बीच पाया जो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी रही,अब वह जनता को इसको लेकर क्या सफाई देंगी वह मंचो से सुना जा सकेगा यदि वह चुनाव लड़ती हैं वैसे उन्हे यह तो तय है जनता के सवालों से गुजरना पड़ेगा कई जगह उन्हे निरुत्तर होते देखा सुना जायेगा जो अभी से जनता की तैयारी में शामिल सवाल नजर आ रहे हैं।
पार्टी से सरकार से जनता नाराज नहीं, विधायक से जनता का जुड़ाव कायम न हो सका
प्रदेश की वर्तमान सरकार का जनता उतना विरोध क्षेत्र में नही कर रही जितना क्षेत्रीय विधायक का कर रही है।। जनता मानती है कहती है की विधायक का जुड़ाव जनता से नहीं हो सका वह एक निश्चित दूरी बनाकर चलती रहीं और इसका खमियाजा उन्हे भुगतना होगा जो जनता उन्हे चुनाव परिणाम से साबित करेगी,जनता की माने तो उनके और विधायक के बीच संवाद हीनता बनी रही,कुछ खास लोगों के अलावा पार्टी के ही नेता जो ग्राम स्तर के हैं उनके साथ ही जब विधायक का संवाद नही है तो आम जनता तक उनका पहुंचना इतना आसान नही।
अपने स्वयं के वार्ड पार्टी के पार्षद प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सकीं,विधायक के निवास स्थल के आस पास के दो वार्ड में भी मिली थी हार
नगर पालिका चुनाव की बात की जाए वह भी बैकुंठपुर नगर पालिका चुनाव की तो विधायक अपने वार्ड से जिसका क्रमांक 9 है से जहां वह खुद मतदाता हैं से पार्टी से पार्षद पद के प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सकीं थीं,वार्ड क्रमांक 9 जिसे पहले कांग्रेस पार्टी का गढ़ वार्ड कहा जाता था वहां कांग्रेस प्रत्याशी को 9 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा था वहीं विधायक के निवास से ही लगे हुए कहने का तात्पर्य पैलेश से लगे हुए दो अन्य वार्डों में भी पार्टी प्रत्याशी हार गए थे जिसमें वार्ड क्रमांक 19 और 20 शामिल हैं एक में निर्दलीय ने बाजी मार ली थी।। इन्हीं में से एक वार्ड ऐसा भी है जो पैलेस से लगा हुआ है और वहां मंडी अध्यक्ष एवम विधायक के खास समर्थक उनके प्रतिनिधि भी निवास करते हैं। कुल मिलाकर विधायक आज की स्थिति में अपने वार्ड में ही सबसे ज्यादा कमजोर हैं और जो एक बड़े चुनाव में बड़ी पार्टी की तरफ से उन्हे मौका देने के मामले में सवाल खड़ा करता है।
पांच सालों तक बैकुंठपुर विधायक व संसदीय सचिव मुख्य अतिथि बनने को तरसती रही,फिर भी विधायक प्रत्याशी बना तय कैसे?
बैकुण्ठपुर विधायक व संसदीय सचिव छत्तीसगढ़ शासन पांच सालों तक किसी भी बड़े शासकीय आयोजन में किसी उत्सव दिवस अवसर पर आयोजित होने वाले जिला स्तरीय कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने को तरसती रही पर एक दो मौका ही मेले होंगे  बाकी तो वह तरसती रह गई, इसके पीछे की वजह जो भी हो लेकिन उन्हीं के विधानसभा के जिला मुख्यालय में उन्हे सरकार ने कभी मुख्य अतिथि बनने का मौका नहीं दिया। कुल मिलाकर इस मामले में विधायक उपेक्षित ही बनी रहीं,आज बैकुंठपुर विधायक भले विधानसभा से टिकट की सबसे प्रबल दावेदार हैं उनका टिकट भी लगभग तय है जैसा बताया जा रहा है अब ऐसे में यह बात उठेगी जरूर की क्यों आखिर उन्हे किसी कार्यक्रम में सरकार की तरफ से जारी होने वाले मुख्य अतिथि सूची में पूरे पांच साल जगह नहीं मिला? और अचानक आखिर बड़े नेताओं को दिल कैसे पिघल गया कि उन्हें फिर से प्रबल दावेदार मानने लगे, अंदर खाने में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ की 5 साल की कमियों को दरकिनार कर दोबारा मौका देने की कवायत शुरू हो गई है?


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