बैकुण्ठपुर@बैकुण्ठपुर विधायक को शिष्टाचार कौन सिखाए?

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क्या बैकुण्ठपुर विधायक हैं घमंड से लबरेज है?
क्या विधायक अपने मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से भी शिष्टाचार नहीं सिख पाईं?

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 26 अगस्त 2023 (घटती-घटना)। बैकुंठपुर विधायक को शिष्टाचार कौन सीखा रहा है? यह सवाल इसलिए उत्पन्न हो रहा है क्योंकि अभी एक तस्वीर सामने नजर आ रही  है सोशल मीडिया में और यह तस्वीर बहुत पुरानी नहीं है 15 अगस्त के बाद की है तस्वीर, जिसमें क्षेत्रीय सांसद और विधायक की उपस्थिति में वरिष्ठ कांग्रेसी व कांग्रेस के दो बार के विधायक प्रत्याशी और वर्तमान जिला पंचायत उपाध्यक्ष अपनी मांगों क्षेत्र से जुड़ी को लेकर अपनी क्षेत्रीय विधायक को ज्ञापन सौंपते नजर आ रहे हैं, लेकिन ज्ञापन लेने का तरीका विधायक का कुछ अटपटा था, ऐसा लगा कि वह शिष्टाचार को बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही हैं, उन्हें जब ज्ञापन दिया जा रहा था उस समय ना उन्होंने खड़ा होना उचित समझा और ना ही ज्ञापन लेने के लिए उन्होंने अपने आप को ही आगे करते हुए ज्ञापन लिया, शिष्टाचार विरोधी तरीके से उन्होंने ज्ञापन को ग्रहण किया और ऐसा लगा कि वह अपने पद के घमंड में लबरेज है, हम इसलिए ऐसा कह रहे हैं क्योंकि स्थानीय विधायक से उम्र में राजनीति में जिला पंचायत उपाध्यक्ष बड़े हैं पर इसके बावजूद उन्हें ज्ञापन जिस तरीके से लेना था और अपने अंदर के आक्रोश को जाहिर नहीं करना था पर वही चीज आवेदन लेने के दौरान उनके अंदर देखने को नहीं मिला, आक्रोश उन्होंने जाहिर कर दिया ज्ञापन ग्रहण करने के तरीके ने कई सवाल खड़े कर दिए, जबकि वहीं बगल में बैठी सांसद मुस्कुरा रहीं थीं पर विधायक न जाने किस दुनिया में खोई हुई थीं, यदि शिष्टाचार की बात की जाए तो वर्तमान विधायक को अपने ही मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से सीख लेनी चाहिए, मुख्यमंत्री व एक मंत्री को लेकर मुख्यमंत्री का सम्मान वाला व्यवहार देखना चाहिए, उनसे सीखना चाहिए पद में बड़े हैं पर उम्र व राजनीति में वह उपमुख्यमंत्री व एक मंत्री से अपने आप को अनुज जैसा मानते हैं, यही वजह है कि उपमुख्यमंत्री का मुख्यमंत्री का पैर छूकर आशीर्वाद लेती हुआ भी तस्वीर हाल फिलहाल में ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, मुख्यमंत्री अपने से वरिष्ठ रविंद्र चौबे का भी पैर छूते कई बार देखे गए हैं, क्या इन सब तस्वीरों को विधायक ने नहीं देखा या फिर देखकर उन्होंने कुछ नहीं सीखा? वर्तमान विधायक ने जिस तरह से जिला पंचायत उपाध्यक्ष के ज्ञापन को ग्रहण किया वह भूल गई कि वह व्यक्ति कौन है, उनसे उम्र में बड़े हैं राजनीति में भी पुराने हैं और इस समय अविभाजित कोरिया जिले के जिला पंचायत उपाध्यक्ष है, जिनमे तीनो विधानसभा शामिल हैं, क्या उन्हें यह समझ में नहीं आया कि जब एक वरिष्ठ व्यक्ति मुझे ज्ञापन सौंपने आ रहा है तो मैं उसे आदर  के साथ ग्रहण करूं अनादर न करूं? क्या यह सब के पीछे विधायक को अपने पद का घमंड है या फिर वह जानबूझकर विरोधी समझकर अपने ही पार्टी के पदाधिकारी को दुश्मन मान बैठी हैं? जबकि सरगुजा संभाग के महाराजा व वर्तमान उपमुख्यमंत्री जिनकी सहज सरल व्यवहार उन्हें सबसे अलग बनाता है कितने लोगों के हमले के बावजूद उन्होंने कभी नहीं आपा खोया, अपने पार्टी के लोगों से ही उन्होंने अपमानित होना पड़ा फिर भी उन्होंने अपने पार्टी के लोगों के लिए आज तक गलत शब्दों का प्रयोग नहीं किया, अपने शिष्टाचार में वह बने रहे। वैसे जिला पंचायत उपाध्यक्ष का जिस तरह ज्ञापन देने के दौरान विधायक ने अपमान किया उससे यह जाहिर भी हुआ की वह उन्हे अपना सबसे बड़ा विरोधी और प्रतिद्वंदी मानती हैं। राजनीति में माना जाता है दोस्त दुश्मन जैसा कुछ नहीं होता, आपस में विरोधी दल के लोग भी शिष्टाचार निभाते हैं भले ही सदन में और मंचों पर वह एक दूसरे को लेकर कितना भी अक्रोशित क्यों न नजर आएं क्यों न आरोप प्रत्यारोप करें लेकिन जब बात संबंध की आती है सब एक नजर आते हैं जो बैकुंठपुर विधायक को सीखने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री रहते हुए,आपस में विपक्षी होते हुए भी डॉक्टर रमन सिंह छुआ करते थे डॉक्टर रामचंद्र सिंहदेव का पैर,लिया करते थे आशीर्वाद
शिष्टाचार अंतर्गत पैर ही छूकर उसका प्रदर्शन किया जाए यह अनिवार्य नहीं है और न ही इसे बहुत अनिवार्य कहा जा सकता है, शिष्टाचार प्रदर्शित करने के लिए व्यवहार में मधुरता,अपने से उम्र और अनुभव में बड़े के सामने उसके याचक बनकर आने की स्थिति में खड़े होकर उसकी याचना शामिल की जा सकती है,पद प्रतिष्ठा और राजनीतिक श्रेष्ठता क्षणिक है और उसमे तो शिष्टाचार ही सबसे प्रमुख व्यवहार है जिससे विरोधियों का भी दिल जीता जा सकता है,इसका एक उदाहरण डॉक्टर रमन सिंह की भी तस्वीर है जो डॉक्टर रामचंद्र सिंहदेव के पैर छूते नजर आ सकते हैं जबकि वह उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और डॉक्टर रामचंद्र सिंहदेव विपक्षी दल से विधायक थे। कहने का तात्पर्य यह भी है की शिष्टाचार अंतर्गत पैर न छूकर भी उसका प्रदर्शन किया जा सकता है और यदि पद में कोई ऊंचे पद में है और याचक नीचे पद में तो वह भले कुर्सी का प्रेमी हो, कुर्सी से उठने में उसे यह डर हो की कुर्सी पर कोई और बैठ जायेगा कुर्सी छीन जायेगी तो ऐसे में वह मुस्कुराकर कम से कम कुर्सी पर ही आगे बढ़कर याचना पत्र ले सकता है और सामने खड़े याचक स्वरूप वरिष्ठ का सम्मान कर सकता है।


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