बैकुण्ठपुर@पूर्ण तहसील का दर्जा मिलने के बाद भी पटना तहसील कार्यालय का हाल बेहाल,आखिर दोष किसका?

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  • सैकड़ों की संख्या में पहुंचने वाले ग्रामीणों के लिए न तो बैठने की व्यवस्था न ही उनके लिए धूप बारिश में छांव की ही व्यवस्था,कौन जिम्मेदार?
  • वहीं तहसील में चक्कर लगाने भी मजबूर हैं ग्रामीण,नहीं होता जल्द उनकी समस्याओं का निराकरण,आखिर कौन देगा ध्यान?

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 17 अगस्त 2023 (घटती-घटना)। शासकीय कार्यालयों को विकेंद्रीकृत करते हुए शासन ने यह निर्णय लिया की अब लोगों के लिए शासकीय कार्यालय नजदीक नजदीक स्थापित किए जाएं जिससे ग्रामीणों को बेवजह परेशान न होना पड़े अधिक दूरी तक किसी काम के लिए सफर न करना पड़े साथ ही राजस्व मामले में यह बात ज्यादा ध्यान दी गई और कई राजस्व अनुविभाग, कई तहसील,कई उप तहसील शासन ने खोलने का निर्णय लिया और उन्हे खोला भी गया,वहीं इसके पीछे की एक वजह ग्रामीणों को दलालों के चंगुल से बचाना भी था और जिससे अपने आस पास ही राजस्व कार्यालय होने से ग्रामीणों को किसी काम के लिए बिना किसी माध्यम सुविधा मिल सके काम उसका हो सके यह शासन की मंशा थी लेकिन शासन की मंशा कम से कम कोरिया जिले के पटना तहसील में पूरी होती नजर नहीं आ रही है।
पटना तहसील जो पूर्व में उप तहसील था उसे तहसील का दर्जा तो मिल गया लेकिन तहसील में आने वाले ग्रामीण लगातार परेशान नजर आ रहे हैं और यह परेशानी उनको तहसील अंतर्गत सुविधाओं के आभाव के कारण हो रहा है जिसके कारण वह खासे परेशान हो रहे हैं। तहसील भवन एक तो अत्यंत छोटा कम कमरों वाला भवन है वहीं वहां प्रतीक्षालय सहित अन्य सुविधाओं का आभाव है,बारिश धूप से बचने के लिए भी कोई व्यवस्था तहसील के आस पास नही है और वहीं ग्रामीणों को बैठने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। आए दिन आने वाले ग्रामीण तहसील भवन के भीतर के गलियारों में जमीन पर ही बैठे नजर आते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं वहीं कभी उनकी बारी आती है उनका समाधान होता है वरना फिर उन्हे अगले दिन आना होता है और फिर परेशानियों से दो चार होना पड़ता है। तहसील क्षेत्र के आसपास जलपान सहित अन्य कोई सुविधा भी मौजूद नहीं है लोग भूखे प्यासे भी नजर आते हैं और दिनभर बैठकर अपने काम के पूरा होने का इंतजार करते हैं।
आखिर पूर्ण तहसील का दर्जा मिलने के बाद भी क्यों तहसील अंतर्गत मूलभूत सुविधा का विस्तार कार्य आज भी जारी नहीं है…
पटना तहसील को पूर्ण तहसील का दर्जा मिल चुका है,एक बड़े ग्रामीण क्षेत्र के लिए पटना तहसील अब राजस्व मामलो के निपटारे की जिम्मेदारी निभाने वाला कार्यालय बन चुका है लेकिन तहसील अंतर्गत मूल भूत सुविधाओ का विस्तार आज तक नहीं हुआ है और न ही ऐसा कोई प्रयास नजर आ रहा है। क्यों इसको लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा है यह बड़ा सवाल है क्योंकि तहसील आने वाले ग्रामीण प्रतिदिन परेशान नजर आ रहे हैं और उनकी परेशानी समझने वाला कोई जिम्मेदार कोई सामने नजर नहीं आ रहा है।
बिचौलियों से भी ग्रामीण तहसील में हैं परेशान,क्या बैचौलियों को तहसील में बैठने का है अधिकार
तहसील में बिचौलिए भी सक्रिय हैं,ग्रामीण जो दूर दूर से आते हैं उन्हे जल्द काम कराने का वह लालच देते हैं और ग्रामीणों का आर्थिक शोषण करते हैं,क्या तहसील में बैचौलियो को बैठने का अधिकार है क्या उन्हे इसका अधिकार नियमानुसार मिला हुआ है यह भी बड़ा सवाल है। बताया जाता है की तहसील में बिचौलिए इस कदर हावी हैं की उनके बिना काम हो पाना भी मुश्किल हो जाता है और वह इसका पूरा फायदा भी उठते हैं जबकि इसको लेकर तहसील के अधिकारी कर्मचारी भी कोई विरोध दर्ज नहीं करते और वह स्वतंत्र रूप से यह काम करते रहते हैं।।
तहसील भवन भी है छोटा,उप तहसील भवन में ही संचालित है तहसील
पटना में जब उप तहसील की स्थापना हुई तब उसके लिए भवन का निर्माण हुआ जो उप तहसील के हिसाब से बनाया गया,अब जबकि तहसील का दर्जा मिल चुका है भवन उस हिसाब से छोटा है,तहसील भवन कब बनेगा कब पूरी सुविधा के साथ भवन निर्माण हो सकेगा इसको लेकर फिलहाल कोई जवाब किसी के पास नही है।
तहसील में नहीं होता जल्द समस्याओं का निराकरण,जाति निवास मामलों में भी लोग रहते हैं परेशान
जैसा कि ग्रामीणों का ही कहना है तहसील में किसी भी मामले में समस्या का समाधान समय पर नहीं होता,आए दिन उन्हे चक्कर लगाते रहना पड़ता है तब जाकर उनका काम संभव हो पाता है,जाति निवास के मामले इस समय ज्यादा तहसील में आते हैं उनमें भी विलंब आम है और जिससे लोग परेशान होते हैं।। ग्रामीणों का यह भी कहना है की तहसील का दर्जा भले पटना उप तहसील को मिल गया है लेकिन काम उसी गति से हो रहा है जैसा पहले हुआ करता था,कुल मिलाकर शासन की मंशा यहां पूरी होती नजर नहीं आ रही है जो विकेंद्रीकरण को लेकर शासन की मंशा थी।।
पहुंच,पकड़ वालों के लिए नहीं है समस्या,उन्हे नहीं करना पड़ता इंतजार
लोगों सहित ग्रामीणों की माने तो तहसील में पहुंच पकड़ वालों के काम जल्द निपटा दिए जाते हैं,वहीं उनके कहने पर भी काम हो जाते हैं औरों के लेकिन आम ग्रामीण चक्कर लगाने ही मजबूर रहता है।ग्रामीण कहते सुने जाते हैं की कई मामलों में तहसील के अधिकारी कर्मचारी के पास फरियाद करने की बजाए पहुंच पकड़ वालों के पास जाना पड़ता है तब जाकर उनके समस्या का निराकरण होता है।


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