नई दिल्ली@अनुच्छेद 370 को लेकर सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर

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अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की चुनौती पर हो रही सुनवाई


नई दिल्ली,13 अगस्त 2023 ( ए )
। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर, 2 अगस्त से संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार सुनवाई कर रही है।
संविधान पीठ में शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।
राजनीतिक दलों, निजी व्यक्तियों, वकीलों, कार्यकर्ताओं द्वारा बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की गई हैं, इसमें पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने वाले राष्ट्रपति के आदेश और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की संसद की कार्रवाई को चुनौती दी गई है।
अब तक, उनके तर्क का मुख्य जोर यह रहा है कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद संविधान के अनुच्छेद 370 ने स्थायी स्वरूप ग्रहण कर लिया है।
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने बार-बार इस स्थायित्व पर संदेह जताया और एक मौके पर टिप्पणी की कि यह कहना मुश्किल है कि अनुच्छेद 370 स्थायी है और इसे कभी भी निरस्त नहीं किया जा सकता है। इसने याचिकाकर्ता पक्ष से ऐसे परिदृश्य पर विचार करने को कहा, जहां पूर्ववर्ती राज्य स्वयं भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों को अपने क्षेत्र में लागू करना चाहता था।
दूसरे, यह तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 370 में अंतर्निहित संघवाद की अवधारणा को राष्ट्रपति या संसद की किसी भी कार्रवाई द्वारा निरस्त नहीं किया जा सकता है।
संविधान पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की है कि जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण सशर्त नहीं था, बल्कि भारत के साथ विशेष संप्रभुता निहित करने वाला एक पूर्ण आत्मसमर्पण था।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा है कि राज्यों के साथ सहमति की आवश्यकता वाले संविधान के प्रावधान जरूरी नहीं कि भारत संघ की संप्रभुता को कमजोर करते हों।वस्तुतः, जम्मू-कश्मीर के संविधान में ही प्रावधान है कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।
इसी प्रकार, संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है कि भारत ‘राज्यों का संघ’ होगा और इसमें संविधान की अनुसूची एक में जम्मू और कश्मीर राज्य शामिल है।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेता अकबर लोन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई की शुरुआत में कहा था कि भारत के साथ जम्मू-कश्मीर का एकीकरण निर्विवाद है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद रहेगा।
ब्रेकजिट जैसे जनमत संग्रह का जिक्र करने वाले सिब्बल के सुझाव को पसंद नहीं किया गया और अदालत कक्ष के बाहर संविधान पीठ और बड़े पैमाने पर जनता ने इस पर नाराजगी व्यक्त की।
शीर्ष अदालत के समक्ष उठाए गए तर्क की एक और पंक्ति यह है कि 1957 के जम्मू और कश्मीर संविधान में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति में बदलाव का कोई प्रावधान नहीं था।
हालांकि,याचिकाकर्ताओं ने स्वयं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष स्वीकार किया है कि निस्संदेह, भारतीय संविधान दोनों संविधानों के बीच श्रेष्ठ है।
लेकिन, याचिकाकर्ताओं ने संविधान पीठ के समक्ष आग्रह किया है कि मूल संरचना भारत और जम्मू-कश्मीर दोनों के संविधान से ली जानी चाहिए।
अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की सिफारिश करने में संसद द्वारा राज्य विधायिका की भूमिका निभाने का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष जोरदार ढंग से उठाया गया है।
यह तर्क दिया गया है कि संविधान शक्ति और विधायी शक्ति के बीच अंतर मौजूद है और एक विधान सभा को संविधान सभा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।


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