- डॉक्टर तिवारी की लापरवाही भूलकर एक वर्ग डॉक्टर तिवारी को गरीबों का मसीहा बता रहा
- डॉक्टर तिवारी अपने निजी क्लीनिक में ज्यादा… शासकीय अस्पताल में कम ध्यान देते हैं…फिर भी डॉक्टर तिवारी को चाहने वाले उनके बचाव में सामने हैं
- यदि डॉक्टर तिवारी नहीं आ पा रहे थे तो क्यों नहीं मना कर दिया था कि मैं नहीं आ पा रहा दूसरा डॉक्टर भेज रहा हूं?
- डॉक्टर तिवारी मामले में दो धड़ आपस में बटे एक जहां चाह रहा है बर्खास्तगी की कार्यवाही तो दूसरा बचाव में उसे गरीबों का मसीहा बता रहा
- डॉक्टर तिवारी किसी दूसरे डॉक्टर को नहीं भेज सकते थे आखिर 5 मिनट कहकर क्यों घंटे भर देर की उन्होंने,सवाल?
- यदि सही तरीके से जांच हो तो डॉक्टर तिवारी की लापरवाही साफ देखी जाएगी फिर भी बचाने का प्रयास किया गया,अगली लापरवाही का यह हो सकता है इंतजार?
- मामला मनेंद्रगढ़ समुदाइक स्वास्थ्य केंद्र में घटी घटना से जुड़ा हुआ,लापरवाही की वजह से गई थी एक व्यक्ति की जान
-रवि सिंह-
मनेंद्रगढ़ 25 जुलाई 2023 (घटती घटना)। मनेंद्रगढ़ अस्पताल में डॉक्टर के ना पहुंचने की वजह से एक घायल व्यक्ति की जान चली गई, अब जान जाने के बाद दो गुटों में बटे हुए लोग इस मामले को उलझा कर रख दिया है, जहां डॉक्टर के साथ मारपीट करने वालों के ऊपर एफआईआर की मांग हो रही है, ताकि वह दबाव में पीडि़त पक्ष मामले में आगे ना बढ़े और मामला यहीं पर ठंडा बस्ता में चला जाएं, कुछ ऐसा ही प्रयास हो रहा है, निष्पक्ष कार्यवाही की बात कोई नहीं कर रहा, जबकि मामला साफ है की आक्रोश तो डॉक्टर के प्रति लोगों का एक व्यक्ति की जान जाने की वजह से था, क्योंकि किसी का जान जाने का मामला था पर जान जाने के मामले में सभी आक्रोशित थे, और डॉक्टर के साथ मारपीट हुई उस बात को लेकर डॉक्टर के साथ सहानुभूति लिए कुछ लोग जांच को प्रभावित करने में जुट गए हैं। सवाल तो यहां उत्पन्न होता है कि आखिर जिसकी जान गई उसके लिए सहानुभूति कितनों ने दिखाई? यहां पर डॉक्टर की लापरवाही जिसने समझी उसने आक्रोश जाहिर किया, डॉक्टर की लापरवाही भूल के डॉक्टर को बचाने के प्रयास में जो लोग सामने आ रहे हैं और अपना अलग-अलग तर्क दे रहे हैं, उनकी सहानुभूति मृतक के साथ बिल्कुल भी नहीं, डॉक्टर के साथ सहानुभूति दिखाने वाले वह लोग हैं जिनसे उनकी दुकान चल रही थी, जैसे निजी दवाई दुकान निजी जांच की दुकान। और कुछ नेता किस्म के लोग जो डॉक्टर से किस कदर लाभ कमाते थे वह भी उसकी सहानुभूति में पढ़े हुए हैं। पर कोई यह नहीं सोच रहा कि इस बिगड़े हुए माहौल का भी जिम्मेदार डॉक्टर है, यदि डॉक्टर समय पर आ जाते तो यह भी विवाद जन्म नहीं लेता, विवाद को जन्म देने का श्रेय भी डॉक्टर साहब को ही जाता है, यदि वह चाहते तो किसी और डॉक्टर को वहां पर उपलब्ध करा सकते थे, पर वह भी जरूरी नहीं समझा, जब तक डॉक्टर उपलब्ध होता तब तक देरी हो चुकी थी। यदि इस विवाद के जन्म को देखें तो डॉक्टर की लापरवाही से ही हुआ। आक्रोश तो उस मृतक के जाने से उत्पन्न हुआ। घायल व्यक्ति की मृत्यु का आक्रोश तो भीड़ में था, और भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती, पर अब शक्ल देकर भीड़ पर कार्यवाही करने की मुहिम छेड़ कर दबाव का प्रयास है।
नवीन जिले एमसीबी में स्वास्थ्य व्यवस्था का क्या हाल है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है और हालिया घटी घटना जिसमे एक दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मौत हुई और मौत की वजह डॉक्टर की अस्पताल में गैर मौजूदगी साथ ही बुलाने पर भी देर से आना यह आरोप लगा,जिसमे उग्र लोगों ने मौके पर ही डॉक्टर की पिटाई की और किसी तरह डॉक्टर ने पुलिस थाने में जाकर जान बचाई। डॉक्टर भी कोई आम नहीं थे अविभाजित कोरिया जिले में भी वह मनेंद्रगढ़ समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारी सम्हाल रहे थे और जिला विभाजन के बाद वह जिला मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी के साथ साथ बीएमओ का भी कार्यभार सम्हाल रहे हैं। मृतक के परिजनों साथ ही उपस्थित लोगों के अनुसार जब दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल लाया गया तब वह जीवित था और वह घंटो जीवित रहा और यदि समय पर उसे इलाज मिलता तो वह बच सकता था लेकिन अस्पताल में डॉक्टर मौजूद नहीं थे, वहीं जब डॉक्टर सुरेश तिवारी जो सर्जन होने के साथ साथ सीएमओ बीएमओ दोनो हैं को फोन कर बुलाया गया तो वह यह कहकर देर से आए की उनके निजी क्लीनिक में मरीज हैं और उनको देखकर वह जल्द आएंगे और उनकी जल्दी ऐसी रही की बिना इलाज व्यक्ति की मौत हो गई और बाद में परिजनों के साथ उपस्थित लोगों ने जमकर अपना आक्रोश निकाला। मामले में अब तक किसी के ऊपर कार्यवाही नहीं हुई है और आगे कार्यवाही होगी या नहीं यह भी तय नही है।
सही से की जाए जांच तो डॉक्टर सुरेश तिवारी पाए जाएंगे दोषी,फिर भी उन्हें बचाने का किया जा रहा प्रयास,अगली लापरवाही को दिया जा रहा आमंत्रण
घायल व्यक्ति के मौत मामले में यदि सही जांच की जाए तो डॉक्टर सुरेश तिवारी का दोषी पाया जाना तय है,लेकिन अब मामले में उन्हे बचाने का प्रयास किया जा रहा है।मामले में उन्हे बचाने का साफ मतलब है की अब आगे फिर किसी लापरवाही का जिम्मेदार इंतजार करेंगे क्योंकि डॉक्टर तिवारी शासकीय अस्पताल की जगह अपने निजी क्लीनिक में ही व्यस्त रहेंगे यह तय है।
मामले में कार्यवाही होगी या कार्यवाही के नाम जारी है सौदेबाजी
पूरे मामले में अब दो धड़ा सामने है एक तरफ घायल एवम इलाज नहीं मिल पाने की वजह से मृत हो चुके व्यक्ति के परिजन हैं जो डॉक्टर सहित लापरवाह अस्पताल प्रबंधन पर कार्यवाही की मांग कर रहें हैं, वहीं दूसरा धड़ा है डॉक्टर सहित अस्पताल प्रबंधन का जो मृतक के परिजनों पर डॉक्टर से मारपीट किए जाने मामले में कार्यवाही चाहते हैं, अब इन दो धड़ों के बीच मामला उलझा हुआ है और जांच साथ ही कार्यवाही लंबित है और इस बीच मामले में सौदेबाजी की बात सुनाई दे रही है, जिसमे दोनो धड़े आपस में अपना अपना मामला वापस ले लें ऐसी संभावना बनाई जा रही है जिससे मामले को दबाया जा सके, अब पूरे मामले में सौदेबाजी की खबरों के बीच यह भी सवाल उठ रहा है की यदि मृतक के परिजनों ने मारपीट की है तो उनके खिलाफ जांच कर तत्काल कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? वहीं दोषी डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन जिसकी लापरवाही से घायल युवक की जान गई जैसा परिजनों का आरोप है उसके अनुसार क्यों जांच कर कार्यवाही नहीं की जा रही है? क्या मामले को रफा दफा करना ही उद्देश्य है और इसलिए मामले में अभी कार्यवाही को लेकर समय दिया लिया जा रहा है यह भी सवाल खड़ा हो रहा है।
स्वास्थ्य व्यवस्था आज ऐसे डॉक्टर के हांथ में है जो शासकीय सेवा की बजाए निजी लाभ के लिए निजी क्लीनिक में ज्यादा व्यस्त रहते हैं
वहीं अब मामले में मनेंद्रगढ़ में ही डॉक्टर सुरेश तिवारी को लेकर दो गुट बन गए हैं जहां एक कार्यवाही की मांग कर रहा है वहीं दूसरा उनके कसीदे पढ़कर उन्हे गरीबों का मसीहा बता रहा है, वैसे डॉक्टर सुरेश तिवारी गरीबों के वह मसीहा हैं जो शासकीय सेवक रहते हुए शासकीय अस्पताल में कम अपने निजी क्लीनिक सह अस्पताल में ज्यादा व्यस्त रहते हैं और लगभग ज्यादा समय निजी क्लीनिक को ही प्रदान करते हैं। मनेंद्रगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था साथ ही जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था आज ऐसे डॉक्टर के हांथ में है जो शासकीय सेवा की बजाए निजी लाभ के लिए निजी क्लीनिक में ज्यादा व्यस्त रहते हैं और उसके बावजूद कुछ उन्हे गरीबों का मसीहा बता रहें हैं। पूरे मामले में घायल व्यक्ति जिसकी मौत हो चुकी है उसकी जान तो वापस नहीं आने वाली लेकिन भविष्य में ऐसी कोई पुनरावृत्ता न हो अब इसको लेकर भी संशय उत्पन्न हो रहा है क्योंकि कुछ लोग ऐसे चिकित्सक के साथ खड़े हैं जो शासकीय अस्पताल की अव्यवस्था का कारण है।
डॉक्टर सुरेश तिवारी की लापरवाही भूलकर एक वर्ग उन्हे गरीबों का मसीहा बता रहा है
मनेंद्रगढ़ में दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मौत मामले में जो प्रारंभिक जानकारी परिजन और उपस्थित लोगों ने दिया है उसके अनुसार घायल व्यक्ति की जान बच सकती थी केवल यदि समय पर उसे इलाज मिल सका होता। समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से ही उसकी जान गई यह प्रारंभिक जानकारी है और जिसकी वजह से यह मृत्यु हुई,घायल को बचाने लोगों ने अस्पताल में डॉक्टर नहीं होने पर डॉक्टर सुरेश तिवारी को ही फोन किया था जो अस्पताल सहित जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था के मुखिया है लेकिन उन्होंने निजी क्लीनिक में मरीज होने की बात कहकर विलंब किया और घायल की जान चली गई,मामले जहां डॉक्टर सुरेश तिवारी की लापरवाही को देखते हुए उनके ऊपर कार्यवाही की जानी चाहिए थी वहीं उनके ऊपर कार्यवाही का अब कुछ लोग यह कहकर विरोध कर रहें हैं की वह तो गरीबों के मसीहा हैं। डॉक्टर सुरेश तिवारी के बारे में शहर नहीं पूरा जिला नहीं वरन अन्य सीमावर्ती राज्य के लोग भी जानते हैं की वह शासकीय अस्पताल की जगह निजी क्लीनिक पर ज्यादा ध्यान देते हैं और ऐसे में उन्हें गरीबों का मसीहा बताया जाना मसीहा शब्द का ही अपमान है जो कहा जा सकता है।
निजी क्लीनिक में ज्यादा देते है ध्यान,शासकीय अस्पताल में केवल हाजरी लगाने जाते हैं डॉक्टर सुरेश तिवारी, फिर भी उनके बचाव में खड़े हैं लोग
जिले सहित शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेदारी सम्हाल रहे शासकीय चिकित्सक डॉक्टर सुरेश तिवारी शासकीय अस्पताल में कम ध्यान देते हैं निजी क्लीनिक में ज्यादा ध्यान देते हैं यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है,वह निजी क्लीनिक में आए मरीजों का भी इलाज शासकीय अस्पताल में करते हैं और उनसे निजी शुल्क भी वसूलते हैं और एक तरह से अपनी सेवा से ही वह धोखेबाजी करते हैं इसके बावजूद आज कुछ लोग उनके पक्ष में खड़े हैं और उन्हें बचाने का प्रयास कर रहें हैं,यह लोग कहीं से जन हितैसी लोग नहीं हो सकते कहा जा सकता है।
जब डॉक्टर सुरेश तिवारी समय पर घायल के इलाज के लिए नहीं पहुंच पा रहे थे तो क्यों नहीं उन्होंने फोन पर मना किया,क्यों नहीं दूसरा डॉक्टर उन्होंने भेजा?
जिले सहित शहर के शासकीय अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था की संपूर्ण जिम्मेदारी डॉक्टर सुरेश तिवारी के जिम्मे है,,और वही जिले के स्वास्थ्य विभाग के सर्वे सर्वा हैं, ऐसे में जब उन्हें दुर्घटना में घायल युवक के अस्पताल पहुंचने की जानकारी हुई और उन्हे फोन पर घायल की हालत बताई गई तब उन्होंने यह क्यों कहा की वह निजी क्लीनिक के मरीज का इलाज करके जल्द आ रहें हैं जबकि वह समय पर नहीं पहुंच सके और एक घंटे विलंब से उनके आने की वजह से घायल की मौत हो गई,वह अपनी जगह किसी अन्य डॉक्टर को भेज सकते थे और जो उन्होंने नहीं किया और घायल और उसके परिजनों को खुद का ही इंतजार कराया जबकि घायल उनकी लेट लतीफी का शिकार हो गया काल कलवित हो गया,यह बड़ा सवाल है की वह चाहते तो किसी अन्य डॉक्टर को भेजकर घायल का इलाज करा सकते थे जो उन्होंने नहीं किया और क्यों नहीं किया यह भी सवाल है।