अनूपपुर,@चुनावी है मौसम-माहौल है गरम,कोई नहीं-किसी से कम

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सिर्फ मुद्दों से नहीं बनेगी बात,जनता को देना होगा हिसाब


विधानसभा चुनाव तकरीबन चार महीने बाद हैं और इस बार नजर कोतमा विधानसभा चुनाव क्षेत्र पर होगी
माना जा रहा है जिले की तीनों सीटों में से यहा सबसे अधिक रोमांचक और बड़ा घमासान होने की संभावना है
प्रत्यक्ष तौर पर तीन चुनावी चेहरों के बीच मुकाबले का अनुमान है। वक्त आने पर संख्या बढ़ भी सकती है, जिसमें बीएसपी और आप की एंट्री भी अनुमानित है


-अरविंद द्विवेदी-
अनूपपुर,25 जुलाई 2023 (घटती-घटना)।
वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों में जिन बड़े चेहरों की बात की जा रही है उनमें मौजूदा कांग्रेस विधायक सुनील सराफ, भाजपा प्रदेश कार्य समिति सदस्य ब्रजेश गौतम और कांग्रेस के ही राकेश शुक्ला (गर्गू) हैं। तीनों ही टिकट के दावेदार हैं, ब्रजेश गौतम व राकेश शुक्ला दोनो हीं ब्राम्हण नेता के तौर पर जाने जाते हैं। जहां ब्रजेश व सुनील दलगत प्रतिद्वंद्वी हैं वहीं राकेश शुक्ला गर्गु कांग्रेस के दबंग नेताओं में गिने जाते हैं और व्यावसायिक तौर पर भी सक्षम हैं। सभी के अपने-अपने मुद्दे हैं जिसे समय-समय पर सियासी फायदे के लिए उछाला जाता है। अब चुनावी मौसम है, मुद्दे गरम हैं, सवाल ये है कि सिर्फ मुद्दे उछालने से काम नहीं चलने वाला। मतदाताओं को बताना होगा कि उनकी दिशा में धरातल पर समाधान कितना हुआ।


जनता को है हिसाब पूछने का हक


कोतमा विधायक सुनील सराफ के तीन प्रमुख मुद्दे स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा एवं क्षेत्र में रोजगार की पूर्णता रही हैं। जिसके लिए उन्होंने बाकायदा शपथ पत्र भी दिया था। अब समय है कि उनके कार्यकाल में हुए कामों की सार्वजनिक समीक्षा की जाए। नए चुनाव में जाने से पहले मुद्दों का आंकलन कर उनकी जमीनी हकीकत सामने लाई जाए। क्षेत्र में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था व शिक्षा के मुद्दे को उछाल कर महीनों सियासी सुर्खियां बटोरने के बाद हुआ क्या.? लाखों रुपए खर्च करने के बाद हासिल क्या हुआ.? जनजागरण के नाम पर हंगामाई राजनीति से क्या समाधान निकला.? यह जानने का हक आम मतदाता को है। कोतमा को स्मार्ट बनाने का सपना भी दिखाया गया। बतौर, विधायक कार्य की गति प्रगति की जानकारी आमजन को दी जानी चाहिए। महज कह देने से तो कोतमा स्मार्ट नहीं बन जाने वाला। इसके दो पक्ष हैं, पहला सरकारी और दूसरा जन भागीदारी। जब कोई विधायक किसी शहर के विकास की बात करता है तो उसका आशय सरकार की योजनाओं, शासकीय मद व स्वीकृति से होता है। उसके प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं, शहर की जरूरतों का जिक्र होता है। कोतमा क्षेत्र को स्मार्ट बनाने में इन सबकी क्या स्थिति है, चुनाव से पहले सामने आना चाहिए। बड़े पैमाने पर विधायक निधि का उपयोग कहां किया गया उसके फायदे जनता को मिले या नही, उसकी जानकारी तो कम से कम दी जानी चाहिए।


विकास को लेकर ब्रजेश के अपने मुद्दे


भाजपा के ब्रजेश गौतम कोतमा का प्रतिनिधित्व करते हैं। तीन बार जिला अध्यक्ष रह चुके हैं व इन दिनों प्रदेश कार्य समिति के सदस्य हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में सक्रिय रहने वाले ब्रजेश भाजपा में रहते हुए गत विधानसभा चुनाव में टिकट से महरूम रह गए थे। उनकी पुरानी अदावत पार्टी के ही पूर्व विधायक से है। इस विधानसभा चुनाव में उनके टिकट का दावा मजबूत रहेगा, बशर्ते टिकट वितरण में संगठन की चले। कोतमा के विकास को लेकर ब्रजेश के अपने मुद्दे है। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी मुझ पर विश्वास करती है तो क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की दिशा में काम करना मेरा प्रमुख उद्देश्य होगा साथ ही कोतमा को स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में भी प्रयास किए जाएंगे। आक्रामक सियासी शैली के ब्रजेश के पार्टी में उच्च स्तरीय संबंध भी हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में मंत्री बने बिसाहू लाल के काफी करीबी है, इसका लाभ भी उन्हें मिलता दिखाई दे रहा है। ग्रामीण विकास के प्रति उनकी रुचि जग जाहिर है। उनकी राह में सबसे बड़ा कांटा पूर्व विधायक है यदि संगठन ने ब्राम्हण चेहरे पर विचार किया तो ब्रजेश गौतम पार्टी का चेहरा बन सकते हैं।


तो.! कौन होगा सिरमौर,ब्रजेश वर्सेस गर्गू


विधानसभा कोतमा में तीसरे दबंग नेता कांग्रेस के राकेश शुक्ला (गर्गू) हैं जो अक्सर बेरोजगार नौजवानों को स्थानीय रोजगार देने के लिए बेरोजगारों की अलख जगाते हैं। माना जाता है कि इस वजह से उनके पीछे बेरोजगार युवाओं की बड़ी तादाद है और स्थानीय स्तर पर भी उनका दबदबा है। ब्रजेश वर्सेस राकेश मुकाबला ज्यादा कड़ा हो सकता है और बाहुबल में भी दोनों कमजोर नहीं हैं एवं दलगत प्रतिस्पर्धा भी सत्ता और विपक्ष की है। राकेश लगातार कांग्रेस में सक्रिय रहने वाले नेता है और टकराव की राजनीति से भी परहेज नहीं करते। कांग्रेस में उन्हे सभी बड़े नेताओं का साथ मिला हुआ है, आमतौर पर धारणा है कि ब्रजेश से मुकाबला करने में ज्यादा सक्षम हैं। तकरीबन सभी चुनाव लड़ने वाले नेताओं से यही सवाल है कि मुद्दे उछालने भर से कुछ नहीं होने वाला। विकास की गति का हिसाब दें मुद्दों की दिशा में समाधान की प्रगति की जानकारी उपलब्ध कराएं। गौरतलब है कि, इस विस चुनाव में बसपा, आप और दूसरे दलों की भी एंट्री अहम मुद्दों के साथ हो सकती है जिसका जवाब देना पड़ेगा। उस समय मतदाता के सामने अन्य विकल्प भी होंगे।


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