संपादकीय@कलेक्टर नाराज, एसपी नाराज और नाराज विधायकमंत्री…नाराजगी की वजह सिर्फ अपनी कमियों को ना पचा पाना

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क्या पुलिस विभाग के उच्च अधिकारी कान के कच्चे होते हैं?
उच्च अधिकारियों के कान भरने में निचले स्तर के कर्मचारी क्यो होते हैं माहिर।
क्या उच्च अधिकारी सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते..जिस वजह से निचले स्तर के कर्मचारी उनके कान भरने में सफल हो जाते हैं?
लेखा रवि सिंह:- राजनीति के बदलते परिवेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का स्थान खत्म होता दिख रहा, इसकी वजह सिर्फ है सत्ता का दुरुपयोग, आजादी से लेकर आज तक कई बार सत्ता परिवर्तन देखने को मिला, जिसमें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ जो की पत्रकारिता है जिसकी की भूमिका अहम हुआ करती थी, पत्रकारिता का उद्देश्य हमेशा ही लोकतंत्र को संतुलित करने का होता रहा है, यही वजह थी कि पत्रकारिता में सिर्फ कमियों का प्रकाशन हुआ करता था ना कि पत्रकार कोई कार्यवाही करता था, लेकिन पत्रकार के बताए गए कमियों पर संज्ञान जरूर लिया जाता था, पर आज के परिवेश में कमियों को दिखाने वाले पत्रकारों की खैर नहीं,कमी दिखाने पर कलेक्टर नाराज एसपी नाराज और नाराज सत्ता दल के विधायक मंत्री है और वजह सिर्फ उनकी कमियों को खबरों के माध्यम से उनके सामने रखने मात्र से पत्रकार के प्रति उनकी नाराजगी और द्वेष की भावना पनप रही है, इसके पीछे की एक मुख्य वजह यह भी है इनका कच्चे कान का होना, क्योंकि यह कानो के कितने कच्चे हो चुके हैं कि इन्हें इनकी कमियां दिखाने पर इनके लोग ही उन्हें उनकी कमियां देखने नहीं देते, उन्हें सिर्फ पत्रकारों के प्रति भड़काते हैं और उन्हें यह बताते हैं कि आप तो कुछ भी कर सकते हैं, आप पत्रकार पर अपराध भी पंजीकृत करा सकते हैं, पत्रकार को जेल भी भेज सकते हैं, सब कुछ आपके हाथ में है, आप क्यों यह सब नहीं करते। कुछ ऐसा ही प्रचलन इस समय देखने को और सुनने को मिल रहा है, उदाहरण के तौर पर कई है जो किसी से छुपा नहीं है। कमियों को ना तो बड़े अधिकारी पचा पा रहे हैं और ना ही सत्ता पक्ष के विधायक व मंत्री बचा पा रहे हैं और कमी में सुधार लाने के बजाए कमियों का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं जो कहीं ना कहीं इन्हें आगामी चुनाव में नुकसान ही पहुंचाएगा पर नुकसान तो सिर्फ जनप्रतिनिधियों का होगा अधिकारियों के तो दोनों हाथों में लड्डू है।
आईएएस आईपीएस क्यों होते हैं कान के कच्चे?
सभी लोग जानते हैं कि आईएएस और आईपीएस की पढ़ाई काफी कठिन है और इस पढ़ाई को पूरी कर जो आईएएस और आईपीएस बनते हैं उनमें कुछ तो अलग होता होगा, जिस कारण वह  इस मुकाम को हासिल कर पाते हैं पर यदि इतने पढ़े लिखे अधिकारी ही कान के कच्चे हो तो फिर सवाल उठता है, इस समय जो चलन में देखने यह सुनने को मिल रहा है उसमें निचले क्रम के अधिकारी व कर्मचारी अपने आईएएस व आईपीएस अधिकारी को बरगलाने में महारत हासिल कर चुके हैं, पर समझ में यह नहीं आता कि यह आईएएस और आईपीएस अधिकारी कैसे इनके बातों में आ जाते हैं, जबकि इनके पास गलत व सही निर्णय लेने की अपार क्षमता होती है, फिर क्यों यह कान के कच्चे होते हैं जिस वजह से इन्हीं के नीचे के लोग इन्हें सही को गलत और गलत को सही साबित करा देते हैं। कुछ ऐसा ही सरगुजा रेंज के आईपीएस अधिकारियों में देखा जा रहा है जहां पर उनके निचले अधिकारी जो लंबे समय से टिके हुए हैं वह अपने प्रभावित बातों से सही व्यक्ति के लिए भी गलत मैसेज देकर अधिकारी को मजबूर कर देते हैं, उस व्यक्ति के लिए उसकी सोच को बदल देते हैं। खबरों पर संज्ञान लेने वाले अधिकारी कर्मचारियों की बातों पर संज्ञान लेना ज्यादा मुनासिब समझते हैं, जब की खबरों से सीख लेने के बजाय खबर लिखने वाले के प्रति क्रोधित हो जाते हैं और बदला लेने की चाह रखने लगते हैं जो इस समय लोकतंत्र में एक अलग ही चलन पैदा हो गया है।
जबकि पत्रकार अधिकारियों को सचेत करते हैं
खबरों के माध्यम से किसी पत्रकार का मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को सचेत करना होता है जिससे की अधिकारी सचेत होकर उन कमियों को दूर कर सकें जिन्हे किसी समाचार में बताया गया है। पत्रकार समाचार के माध्यम से उन कमियों को ही सामने रखता है जो दूर की जानी आवश्यक होती हैं। कमियां भी वह होती हैं जो जनता से जुड़ी हुई होती हैं और जिसका दूर होना आवश्यक होता है।
पत्रकारों के प्रति खबर प्रकाशन के बाद अधिकारियों का विचार बदला लेने का क्यों होता है?
आजकल प्रायः देखा जाता है की किसी भी ऐसी खबर जो शासन प्रशासन को सचेत करने के उद्देश्य से जुड़ी हुई होती है के प्रकाशन के बाद अधिकारियों का विचार पत्रकार से बदला लेने की तरफ आकर्षित होता है जबकि अधिकारी कमियों को दूर कर खबर को बेअसर कर सकते हैं, लेकिन अधिकारी आजकल ऐसा नहीं करते है और पत्रकार से द्वेष रखते हुए उससे बदला लेने का अवसर तलाशने लगते हैं। वैसे पत्रकारों के खिलाफ अधिकारियों को कोई भी कानून कार्यवाही करना भी आसान है, क्योंकि पूरी व्यवस्था का ही वह संचालन करते हैं, जिसमे कानून व्यवस्था भी शामिल है और वह जब चाहे जैसे चाहे पत्रकार को कानूनी दांव पेंच में उलझा देते हैं और बदला लेकर ही मानते हैं।
पत्रकार कभी भी अपने लिए खबर नहीं लिखते
खबरों का प्रकाशन पत्रकार कभी अपने लिए नहीं करते। पत्रकार समाज में व्यवस्था में घट रही घटनाओं को सभी के समाने लाने के लिए ही खबर प्रकाशित करते हैं। खबरों में पत्रकार अपने लिए अपने लाभ के लिए कुछ भी प्रकाशित नहीं करता है। व्यवस्था में सुधार की कैसी जरूरत है और क्या गलत समाज में घट रहा है व्यवस्था में घट रहा है यही खबर प्रकाशन में मुख्य होता है।कमी दिखाने पर पत्रकार प्रशासनिक अधिकारियों को दुश्मन क्यों हो जाते हैं?
आजकल शासन प्रशासन की कमियां दिखाने वाले समाचार प्रकाशित करना बड़ा मुस्किल हो गया है। कमियां यदि प्रकाशित हुईं तो अधिकारी उससे सिख लेने उन्हे दूर करने की बजाए पत्रकार को दुश्मन मान बैठते हैं और वह फिर पत्रकार को ठिकाने लगाने की जुगत में लग जाते हैं। कुल मिलाकर जिन अधिकारियों को लोगों के हित संवर्धन के लिए भेजा गया है वही लोगों के हित संबंधी मामलों में खबर प्रकाशित होते ही नाराज हो जाते है और हितों के संवर्धन की बजाए कमियों को दूर करने की बजाए वह पत्रकार से दुश्मनी भुनाने की जुगत लगाते हैं जिसमे वह सफल भी होते हैं।


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