- जिन्होंने मुआवजा वितरण राशि में लगाया था गड़बड़ी का आरोप वही दलाल पैसे लेकर राशि दिलवा रहे हितग्राहियों को
- हितग्राहियों के हितैषी बनने की खुल गई पोल 7 करोड़ की राशि मिली गेज बांध के पांच हितग्राहियों को 25 प्रतिशत राशि निकलवाने के नाम पर दलाल ने ले लिए…
- आईसीआईसीआई बैंक के मैनेजर की भूमिका भी संदिग्ध आखिर क्यों उसी बैंक के खाते में जा रहा है मुआवजे का पैसा?
- गेज बांध मुआवजा घोटाला मामले में शिकायत के 1 साल बाद शिकायतकर्ता व भ्रष्टाचार को उजागर करने का दवा करने वाले क्यों हो गए चुप?
- क्या दलाल ही थे गेज बांध घोटाले मामले की शिकायतकर्ता,रोक लगाने के बाद अब वही सिफारिश कर दिला रहे दबी में पैसा और ऐंठ रहे हैं कमीशन की बड़ी राशि?
- शासन को 17 करोड़ 34 लाख देना पड़े तो समझिये शासन के पैसो का दुरूपयोग कितना गुना होगा
- 1992 में अधिग्रहण हुये जमीन मुआवजा राशि का भुगतान 2022 में गड़बडी का आरोप
- तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी पर गड़बड़ी का लग रहा आरोप,आखिर कौन करेगा इसकी जांच
-रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर,11 जून 2023(घटती-घटना)। कोरिया जिले में गेज बांध मुआवजा राशि मामले में फिर एकबार भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है और इस बार गड़बड़ी का आरोप उन लोगों पर लगा है जिन्होंने पूरे मामले में पूर्व में खुद आरोप लगाया था और गड़बड़ी को लेकर मुखर हुए थे और मुआवजा राशि वितरण पर रोक लगवाया था, अब वही सामने से आकर मुआवजा का वितरण करवा रहे हैं और मामले में मोटा दलाली खा रहे हैं। बताया जा रहा है की 25 प्रतिशत की दलाली में सभी को मुआवजा वितरण हो रहा है और इसके लिए एक बैंक भी निश्चित किया गया है जिसके माध्यम से मुआवजे की राशि का भुगतान हो रहा है और कमीशन और दलाली का खेल खेला जा रहा है। पूरे मामले में पूर्व में जो लोग हितग्राहियों के हितैषी बनकर सामने आए थे और गड़बड़ी का आरोप लगाकर जिन्होंने मुआवजा वितरण पर रोक लगवाया था वह अब खुद पूरे भ्रष्टाचार में शामिल नजर आ रहें हैं और भुगतान धड़ल्ले से करवा रहे हैं। अब तक 7 करोड़ रुपए का मुआवजा वितरण हो चुका है और यह उन्ही लोगों के कारण हुआ है जो लोग यह कहते सुने जा रहे थे एक वर्ष से की वह गेज बांध मुआवजा वितरण मामले का भ्रष्टाचार उजागर करेंगे और घोटाले को समाने लायेंगे। अब वही लोग चुप हो गए हैं और पूरे मामले में संलिप्त होकर मुआवजा वितरण करा रहे हैं।
यह है मामला
अविभाजित मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले के बैकुण्ठपुर क्षेत्र के छरछा बैकुण्ठपुर में गेज बांध निर्माण जमीन अधिग्रहण 1992 का मामला जिसके मुआवजे में 30 साल के विलंब के बाद मुआवजे वितरण सूची में गड़बड़ी का आरोप लग रहा है, समय के साथ मुआवजा के असली हकदार भटक रहे कब्जा धारी मुआवजा राशि लेने की फेर में प्रशासन पर मिलीभगत कर मुआवजे का गलत वितरण कराने का गंभीर आरोप है और इस आरोप का जांच की मांग उठने लगी है और वर्तमान कलेक्टर ने मौखिक रूप से मुआवजा वितरण पर रोक तो लगा था है पर मामला ठंढ़ा पड़ने के बाद मुआवजा का फिर भुकतान होने लगा, पर इसमें से कुछ लोगों को मुआवजा मिल गया है और बंदरबांट हो चुका है। अब सवाल यह है कि सारे दस्तावेज सूची बनाने वाले जिम्मेदार अधिकारी की तरफ गड़बड़ी का इशारा कर रहे है आखिर गड़बड़ी मामले में जांच कब होगी? जिस पर गड़बड़ी का आरोप है उस जिम्मेदार अधिकारी को पद से पृथक कर जांच क्यों नहीं हो रहा है? क्या शासन के पैसो का बंदरबांट करने के लिये समय दिया जा रहा है? मामले में साक्ष्य भी मौजुद है और शिकायत भी हुयी है इसके बाद भी गड़बड़ी करने वालो के हौसले बुलंद है साथ ही कई गड़बड़ी होती जा रही है, मुआवजे सूची का प्रकाशन के बाद कुछ हितग्राहीयों को मुआवजा वितरण किया गया है पर गड़बड़ी की शिकायत होने पर बैंक से पैसा निकासी पर रोक नहीं लगायी गयी है।
2018 में शुरू हुये प्रकरण में आ रही घोटाले की गंध
1992 के प्रकरण को ही आगे लेकर बढ़ना था क्योंकि यह सारे प्रकरण मौजुदा विभाग के पास दस्तावेज के तौर पर पड़े थे और सारी जानकारियां पूर्णतः स्पष्ट थी पूर्व के अधिकारियों ने भू-स्वामीयों को संतुष्ट करने के बाद ही अधिग्रहण किया था, यही वजह था कि उस समय सिर्फ मौखिक आपत्ति ही आयी और उस मौखिक आपत्ति को गंभीरता से लेते हुये जांच के लिये वापस भेज दिया था, उन्हें क्या पता था कि बांध भी बन जायेगा और मुआवजे का प्रकरण अटका रह जायेगा। किसानों की सहमति व ईच्छा से कोरिया जिले को एक मध्यम परियोजना के तौर पर गेज बांध मिला जो आज कितने किसानों के लिये सिंचाई का साधन तैयार हो गया। आज उसी किसानों के धैर्य व त्याग का फायदा उठा 2018 में भू-माफिआ व जनप्रतिनिधि सक्रिय होकर नया प्रकरण शुरू करा दिया, जिस प्रकरण में सिर्फ खामिंया ही दिख रही है। खामियां भी छोटी नहीं काफी बड़ी है बांध तो कई एकड़ की भूमियों में तैयार हो गया पर उसमें से डूबान क्षेत्र के 95 एकड़ की भूमि थी वह भूमि किसानों की निजी थी जिसे बांध के लिये किसानों ने सरकार को दे दिया और इसके एवज में सरकार ने उन्हें मुआवजा का आबंटन किया पर यह राशि हितग्राहियों को समय पर नहीं मिली और जब दुबारा प्रकरण तैयार कर मौजुदा प्रशासन, शासन को ही करोड़ो का चुना लगा रहा है। पूर्व में जमीन मुआवजा के लिये 95 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें 39 एकड़ में 11 हितग्राहियों को 4 लाख 36 हजार 191 का मुआवजा वितरण हो गया था। जिसमें शेष 56 एकड़ भूमि के 38 हितग्राहियों को 6 लाख 27 हजार का शेष रकम बच गया था जो वर्तमान में बढ़कर यह अधिग्रहित भूमि 140 एकड़ हो गयी और 38 हितग्राहीयों की संख्या बढ़कर 61 हो गयी। वहीं 6 लाख 27 हजार की रकम बढ़कर 17.34 करोड़ हो गयी। रकम के अंतर राशि 278 गुणा हो गया, जिसे राशि में देखा जाये तो 17.27 करोड़ का ईजाफा हो गया। यह ईजाफा का वजह सिर्फ राजस्व के बड़ी लापरवाही है। इस बड़ी लापरवाही में यदि किसी को नुकसान हो रहा है तो सिर्फ शासन को, लापरवाही में जल संसाधन विभाग की भी मौन स्वीकृति से इंकार नहीं किया जा सकता।
1992 का प्रकरण कैसे हुआ खत्म?
अविभाजित मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले के बैकुण्ठपुर के छरछा ग्राम में किसानों की भूमि की सिंचाई के लिये गेज नदी पर गेज बांध का निर्माण करने का प्रस्ताव 1991 में तैयार हुआ, जिसके लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू हो गई, यह प्रक्रिया 1992 में पूरी कर ली गयी। उस समय इस बांध को बनाने के लिये किसानों की 95 एकड भूमि का अधिक्रहण किया गया। अधिग्रहण की भूमि में 49 हितग्राहीयों के नाम शामिल थे जिन्हें तकरीबन 10.66 लाख भुगतान होना था जो तत्कालिन समस्याओं की वजह से अधिकारीयों ने यह कार्य समय पर पूरा नहीं कर पाया और यह प्रकरण 26 साल ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और जब शासन-प्रशासन जागी तो इस प्रकरण को आगे बढ़ोने की बजाये नया प्रकरण शुरू कर दिया, इस 26 सालों में क्या भाजपा क्या कांग्रेस सभी आये और गये पर किसानों के अधिग्रहण के पैसो की चिंता किसी ने नहीं की। किसान भी एक समय के लिये इस पैसों को भूल बैठे थे पर कुछ जनप्रतिनिधि अपने निजी लाभ और अधिकारियों को प्रलोभन देकर मामले को 2018 में कुछ भू-माफिआयों के साथ मिलकर प्रकरण शुरू कराया पर सवाल यह है कि पुराने प्रकरण को दफ्न कर नया प्रकरण क्यों शुरू किया गया?
बैंक मैनेजर की भूमिका भी संदिग्ध,आखिर क्यों मुआवजे की राशि उन्हीं के बैंक से हो रहा भुगतान?
गेज बांध का मुआवजा आईसीआसीआई बैंक के माध्यम से वितरण कराने की बात सामने आ रही है,पूरे मामले में आई सी आई सी आई बैंक मैनेजर की भूमिका भी संदिग्ध है क्योंकि मुआवजे की राशि उन्ही के बैंक के माध्यम से भुगतान किया जा रहा है अन्य बैंक से नहीं। माना जा रहा है की कमीशन का खेल वहीं से हो रहा है और सबकुछ पहले से ही तय है। और यह भी तय है की भुगतान किस बैंक के माध्यम से किया जाएगा।
गेज बांध मुआवजा घोटाला मामले में शिकायत के एक साल बाद शिकायतकर्ता व भ्रष्टाचार को उजागर करने का दावा करने वाले क्यों चुप?
पूरे मामले में यह भी प्रश्न खड़ा हो रहा है की एक वर्ष पूर्व जो लोग शिकायतकर्ता बनकर गेज बांध मुआवजा मामले में घोटाले की बात कर रहे थे और जो लोग घोटाला उजागर करने की बात कर रहे थे वह क्यों चुप हो गए। बताया जा रहा है की एक वर्ष पूर्व के शिकायतकर्ता ही पूरे मामले में संलिप्त होकर मुआवजा भुगतान करवा रहे हैं और कमीशन ले रहे हैं।
कजे धारी को बिना दस्तावेज के कैसे मिल रहा मुआवजा?
1992 में रकबा व खसरा नं के साथ भूमि अधिग्रहण की जानकारी स्पष्ट रूप से प्रकाशित कर दी गयी थी, जिसकी जानकारी मौजुदा विभाग के पास मौजुद है फिर भी 2018 में नया कब्जेदार का नाम कैसे और किस आदेश के तहत आ गया और मुआवजे पाने का अधिकार कैसे उसे मिल गया। बिना दस्तावेज के प्रशासन क्यों पुराने मुआवजे सूची को विलोपित कर नयी सूची में नाम शामिल कर दिया। जबकि जमीन डूबान क्षेत्र की है तो फिर डुबान क्षेत्र की जमीन पर कजा कैसे? यह अति सूक्ष्मता से जांच का विषय है।
सहमति पत्र में रकबा और खसरा नंम्बर निरंक क्यों?
सहमति पत्र में भी राजस्व विभाग का बड़ा खेल हुआ है दस्तावेजों का अवलोकन करने से हितग्राहियों व कजाधारीयों के सहमति पत्र में नाम व हस्ताक्षर तो मौजुद है पर रकबा व खसरा का विवरण निरंक क्यों है। जब हितग्राही सहमति पत्र में हस्ताक्षर कर रहा है तो उसे यह जानने का अधिकार नहीं कि उसे किस रकबे व खसरा नं0 भूमि के लिये सहमति दे रहा है। यह भी एक जांच का विषय है पर शायद ही विभाग इसकी जांच कर पाये।
प्रकशित ईश्तहार में नाम क्यों नहीं?
1992 में जब भूमि अधिग्रहण संबधित प्रकरण का प्रकाशन समाचार पत्रों में कराया था, उसमें सारे जानकारीयां हितग्राहियों के लिये स्पष्ट तौर पर मौजुद था, जबकि देखा जाये तो उस समय सूचना व सम्पर्क की इतनी व्यवस्था नहीं रही। इसके बाद भी तत्कालीन जिम्मेदारों ने बड़ी ईमानदारी से यह कार्य कराया था। पर वहीं 2018 में इसी प्रकरण को दोबारा नया प्रकरण बनाकर इसे प्रारंभ किया गया तो इस प्रकरण में कई अनिमियता देखा जा रहा है, अखबारों में इसकी सूचना प्रसारित की जाती है तो हितग्राहियों का नाम व उसके पिता का नाम या फिर कब्जेदारों का नाम निरंक करके प्रसारित करायी जाती है जो कहीं न कहीं घोटाले को व्यापक तौर पर करना दर्शाता है और जानकारी छुपाने का संदेह भी प्रकट होता है।
मुआवजे मिले हुये जमीन का दुबारा मुआवजा क्यों?
1992 में प्रश्नकिंत भूमि का मुआवाजा जिस हितग्राहियों को मिल गया, उसी जमीन का मुआवजा फिर से 2022 में किसके कहने प्रस्तावित किया गया। उदाहरण स्वरूप दस्तावेज का आंकलन करने से पता चला कि 1992 में भूस्वामी हृदयलाल पिता मनरूप खसरा नं. 570/36 का रकबा 1.214 हे0 भूमि का मुआवजा राशि 33 हजार 807 रूपये मिल गया था पर इसी भूमि में वर्तमान में हृदयलाल कब्जाधारी बन गये और भूस्वामी सगीरनिशा पिता मो. ईषाक भू स्वामी बन गये और मुआवजा सूची में नाम आ गया और जो रकबा था वह वर्तमान में बढ़कर 2.426 हे0 हो गया जिसकी मुआवजा राशि 75 लाख 43 हजार बनायी गयी है। जबकि उक्त भूमि का 1992 में यह मुआवजा मिल गया था अब जो पैसा मिल रहा है वह हितग्राही के लिये उपहार स्वरूप है पर यह उपहार शासन क्यों दे रही है यह शासन पर बड़ा सवाल है।
अधिग्रहण के बाद कब्जा क्यों जबकि डुबान क्षेत्र का कब्जा नहीं किया जा सकता
जानकारों का मानना है कि एक बार यदि अधिग्रहण हो गयी और इसकी सूचना प्रसारित हो गयी तो इस भूमि बंटवारा, कजा यहां तक कि खरीदी-बिक्री नहीं हो सकता क्योंकि इस तरह की भूमि पर स्थगन आदेश जारी रहता है। इसके बावजुद यदि इसमें कोई राजस्व के जिम्मेदार छेड़छाड़ करते है तो उन्हें अपराधी न मानकर पदोन्नत कर दिया जाता है।
बिना भौतिक सत्यापन के 21 हितग्राहियों को मुआवजा राशि देने का मामला
21 हितग्राहियों में 4 करोड़ 75 लाख की राशि तो बंट गयी सवाल यह है कि जब यह पूरा मामले ही संदेह के घेरे में है तो राशि के भुगतान करने में प्रशासन ने इतनी हड़बड़ी क्यों दिखायी। हांलाकि राशि हितग्राहियों में बंटा पर इसमें भी एक गड़बड़ी दिखी जो हल्का पटवारी बिना भौतिक सत्यापन की चेक का वितरण करते हुये राशि दे दी गयी। बहरहाल इस पूरे मामले में भारी भ्रष्ट्राचार की बू आ रही है, इतना बड़ा खेल प्रशासनिक अधिकारियों के हस्तक्षेप के बिना संभवन नही है,राजस्व विभाग के निचले स्तर के कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी भी इस पूरे मामले से अंजान नही है और उनक संरक्षण में ही यह पूरा कारनामा किया जा रहा है। कोरिया जिले के प्रशासनिक प्रमुख को चाहिए कि वे उक्त गंभीर मसले पर संज्ञान लेते हुए पूरे मामले की सूक्ष्मता से जांच कराये जिससे कि एक बड़े भ्रष्ट्राचार पर रोक लग सके और इसके साथ ही दोषियों का चिन्हांकन कर उनके खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही का प्रावधान किया जाए।
अंत में मामले से जुड़े कुछ सवाल
सवालः गेज बांध मुआवजा घोटाले में राजस्व या जल संसाधन विभाग इनमे से किसका हो सकता है हाथ?
सवालः 1992 में 95 एकड़ भूमि का 49 हितग्राहीयों में मिलना था 10.63 लाख मुआवजा राशी, फिर 2022 में भूमि 140 एकड़ व मुआवजा राशी 17.34 करोड़ कैसे हो गई?
सवालः गेज बांध मुआवजे की गडबड़ी मामले में आखिर प्रशासन बिना जांच पूरा किए कैसे वितरण करने लगा मुआवजा राशि?
सवालः अविभाजित मध्यप्रदेश का 1992 का मुआवजा सूची सही या वर्तमान 2022 का मुआवजा सूची सही?
सवालः 1992 की मुआवजा सूची को प्रशासन क्यों नहीं दे रहा तवज्जो,नये सूची पर भरोसा क्यों?
सवालः तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी पर गड़बड़ी का लग रहा आरोप,आखिर कौन करेगा इसकी जांच?
सवालः मुआवजा गड़बड़ी मामले में एसपी, कलेक्टर सहित कई जनप्रतिनिधियों से शिकायत क्या होगी इसकी जांच?