नई दिल्ली ,09 मई 2023 (ए)। सेम सेक्स मैरिज के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूछा कि क्या किसी को शादी करने का मौलिक अधिकार है, या क्या शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है और इस बात पर जोर दिया कि संविधान खुद परंपरा तोड़ता है। भारत के चीफ जस्टिल डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से पूछा, समान लिंग के मुद्दे को भूल जाइए, क्या किसी को शादी करने का मौलिक अधिकार है?
द्विवेदी ने कहा कि अब तक शादी दो विषम लैंगिक व्यक्तियों के बीच होती आई है। बेंच में शामिल जस्टिस एस.के. कौल, एस. रवींद्र भट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि यह विषमलैंगिकता पर नहीं है, क्या इस देश के किसी भी नागरिक को ये अधिकार है? हमने इतने सारे अधिकार खोज लिए हैं।
न्यायमूर्ति भट ने पूछा: क्या यह अनुच्छेद 21 का हिस्सा है या इसका हिस्सा नहीं है? फ्री स्पीच का अधिकार, संगठन बनाने का अधिकार.. कोई अधिकार अपने आप में पूर्ण नहीं है। अगर हम उस आधार से शुरू करते हैं। क्या जीवन के अधिकार में शादी करने का अधिकार है? पीठ ने द्विवेदी से बहस इस विषय पर शुरू नहीं करने को कहा कि समान लिंग के लोगों को शादी करने का अधिकार नहीं है। द्विवेदी ने कहा कि विषमलैंगिक जोड़ों को अपने रिवाज, व्यक्तिगत कानून और धर्म के अनुसार शादी करने का अधिकार है और यही उनके अधिकार की नींव है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, इसलिए, आप इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि संविधान के तहत शादी करने का अधिकार है, लेकिन यह केवल आपके अनुसार विषमलैंगिक व्यक्तियों तक ही सीमित है।
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