मुख्यमंत्री बघेल एक तरफ जहां अपने को छत्तीसगढ़ी अस्मिता का पोषक बताने में सफल रहे हैं तो वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग के बड़े पैरोकार
विभिन्न वर्गों की जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति,जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस के लोगों के लिए आरक्षण का संशोधित विधेयक विधानसभा से पारित किए जाने के बाद राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित है…
रायपुर/दिल्ली,23 अप्रैल 2023 (ए)। देश की सियासत में जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। बिहार में तो जातीय जनगणना का सिलसिला भी शुरू हो गया है मगर छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जो अलग-अलग तरीकों से जातीय आंकड़े जुटाने में लगा हुआ है। भले ही यहां जातीय जनगणना न हो रही हो, मगर जातीय आंकड़े सरकार की मुट्ठी में आते जा रहे हैं। राज्य में कांग्रेस को सत्ता में आए चार साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है। उसने सत्ता में आने के एक साल बाद ही पिछड़े वर्ग और गरीबों के आंकड़े जुटाने के लिए सितंबर 2019 में मंटिफायबल डाटा आयोग का गठन कर दिया था और उस पर जिम्मेदारी पिछड़े वर्ग की जातियों के साथ उनकी जनसंख्या का आंकड़ा तो जुटाना था ही, साथ में आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लोगों के भी आंकड़े इकटठे करना था। यह बात अलग है कि इस आयोग का लगातार कार्यकाल बढ़ता गया।
इस आयोग की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। मगर सरकार के पास इस बात के आंकड़े तो आ चुके हैं कि राज्य में ओबीसी की आबादी लगभग 41 फीसदी है। राज्य के 16 जिले ऐसे हैं जहां अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी ज्यादा है। यह 50 फीसदी से अधिक है। एक तरफ जहां पिछड़ा वर्ग के आंकड़े सरकार के पास आ चुके है तो वहीं राज्य में सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण का सिलसिला भी जारी है और आने वाले दिनों में यह भी आंकड़ा सरकार के पास होगा।
ज्ञात हो कि राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिए जाने संबंधी विधेयक दिसंबर में विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया और उसे पांच मंत्रियों ने राज्यपाल को सौंपा था। इस विधेयक को अब भी राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है। इस मामले को लेकर कांग्रेस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार सवाल उठाते रहे हैं। बिहार में जाति जनगणना शुरू होने और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी द्वारा जातीय जनगणना का मुद्दा उठाए जाने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बार फिर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है।
इस पत्र में कहा गया है कि विभिन्न वर्गों की जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और ईडब्ल्यूएस के लोगों के लिए आरक्षण का संशोधित विधेयक विधानसभा से पारित किए जाने के बाद राज्यपाल की मंजूरी के लिए लंबित है। इसमें अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और आर्थिक तौर पर गरीब को चार प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय विधानसभा ने लिया था।
बघेल ने आगे लिखा कि सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा ईडब्ल्यूएस वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय को वैध ठहराए जाने से आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। झारखंड और कर्नाटक विधानसभा में विभिन्न वर्गों हेतु आरक्षण का प्रतिशत 50 से अधिक करने के प्रस्ताव पारित किए गए हैं। लिहाजा छत्तीसगढ़ की विशेष परिस्थितियों को ²ष्टिगत रखते हुए संशोधित प्रावधान को संविधान की नवमी सूची में शामिल कराए जाने से ही वंचित और पिछड़े वर्ग के लोगों को न्याय प्राप्त हो सकेगा। कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि जनता के कल्याण के लिए जनगणना जरूरी है और जातीय जनगणना हर वर्ग के कल्याण के लिए आवश्यक है, ऐसा इसलिए क्योंकि जनगणना के आधार पर ही व्यक्ति, वर्ग और समाज की वास्तविक स्थिति का लेखा-जोखा सामने आता है और उसी के आधार पर ही सरकार योजनाओं को अमली जामा पहनाती है। आरक्षण संशोधन विधेयक का मामला जोर पकड़े हुए है, एक अफवाह हवा में तैरी कि राजभवन ने विधेयक को सरकार को वापस कर दिया है, फिर क्या था बीते रोज ही राजभवन को यह साफ करना पड़ा है कि यह विधयेक राजभवन में ही है, सरकार को वापस नहीं किया गया है। राज्य के राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यहां भले ही जातीय जनगणना नहीं हो रही है मगर मंटिफायबल डाटा आयोग और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण उसी दिशा में बढ़ते कदम ही हैं। इस तरह सरकार जहां इन वर्गों के लिए योजनाएं अमल में ला सकती है वहीं राजनीतिक तौर पर लाभ पाने का दाव खेलना उसके लिए आसान होगा। मुख्यमंत्री बघेल एक तरफ जहां अपने को छत्तीसगढ़ी अस्मिता का पोषक बताने में सफल रहे हैं तो वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग के बड़े पैरोकार।
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