- मनमाने दामों पर निजी विद्यालय प्रबंधन स्वयं ही बेच रहे कॉपी, किताब, ड्रेस एवं अन्य सामग्री
- सामान्य दुकानों में उपलब्ध नहीं सामग्री,कमीशन और कमाई का सारा खेल
- अभिभावकों की जेब पर डाका, प्रशासन और सरकार भी नहीं ले रही इस ओर सुध
- अच्छी और अंग्रेजी शिक्षा के चक्कर में लूट रहे अभिभावक, मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहे स्कूल प्रबंधन
- रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 21 अप्रैल 2023 (घटती-घटना)। अच्छी शिक्षा की चाह किस अभिभावक को नहीं होती। इसी महत्वाकांक्षा को पूरी करने के लिए अभिभावक वर्तमान में किसी भी प्रकार के समझौते करने के लिए तैयार हो जाते हैं। जिसका जायज नाजायज फायदा निजी विद्यालय प्रबंधन उठा रहे हैं। बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दिलाने के लिए क्षेत्र के अभिभावक हर परिस्थिति से समझौता करने को तैयार हैं। अभिभावकों की यह मजबूरी अब परेशानी का सबब बनता जा रहा है, क्योंकि अच्छी शिक्षा के चाह में अभिभावक शासकीय विद्यालयों से जहां एक ओर दूरी बना रहे हैं, वहीं निजी विद्यालयों की ओर उनका आकर्षण बढ़ता जा रहा है। चाहे भले ही निजी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं हो या ना हो, परंतु अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। कहीं ना कहीं शासन भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है।
शासकीय विद्यालयों में उच्च स्तरीय वेतनमान देने के बाद भी शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। जिसके पीछे का मूल कारण यही समझ में आता है कि शासकीय विद्यालयों में शिक्षकों को शिक्षकीय कार्य करने के लिए अत्यंत कम समय मिलता है, जबकि अधिकांश समय शासकीय विद्यालयों के शिक्षक गैर शिक्षकीय कार्यों के संपादन के लिए बाध्य रहते हैं। जबकि निजी विद्यालयों में भले ही वेतनमान कम हो परंतु बेरोजगारी की पराकाष्ठा के कारण कम वेतनमान में भी शिक्षक उपलब्ध हैं, जो केवल शिक्षकीय कार्य में ही संलिप्त रहते हैं और उन्हें विद्यालय प्रबंधन द्वारा अन्य किसी प्रकार का कार्य और दायित्व नहीं सौंपा जाता। यही कारण है कि निजी विद्यालयों में दाखिले के लिए मारामारी मची रहती है। परंतु विद्यालय शासकीय हो या निजी, शासन प्रशासन की तमाम बंदिशों और कायदे कानून का पालन करना अनिवार्य होता है। लेकिन कोरिया जिले में एन इससे उलट परिस्थिति देखने को मिल रही है। जहां निजी विद्यालय प्रबंधन खुलेआम अभिभावकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं, और अभिभावक भी मन मसोसकर मौन स्वीकृति से स्वयं के जेब पर डाका पड़ने के लिए अपनी मनस्थिति को तैयार कर लेते हैं। गाहे-बगाहे विरोध का स्वर उठता भी है तो कहीं ना कहीं बच्चों की शिक्षा के आगे यह विरोध दब जाता है। प्रशासन भी इस ओर कभी सुध नहीं लेता इसलिए निजी विद्यालय प्रबंधन अपने मनमानी पर उतारू हैं। वास्तव में देखा जाए तो शिक्षण संस्थान अब व्यवसायिक प्रतिष्ठान बनकर रह गए हैं। जहां विभिन्न प्रकार के व्यवसाय पूरी तरह हावी हैं। शिक्षा अंतिम विकल्प के तौर पर मौजूद है, जबकि विद्यालय यूनिफार्म का व्यवसाय, जूते, कपड़े, टिफिन, बैग, किताब, कॉपियों का व्यवसाय सर्वोपरि है। निजी विद्यालय प्रबंधन को व्यवसायिक प्रतिष्ठान कहना इसलिए भी मजबूरी है कि अब सारी चीजों के विक्रेता वह स्वयं है। और अभिभावकों की मजबूरी है कि मनमाने दामों पर उनसे विद्यार्थियों के लिए आवश्यक सामग्रीया खरीदें। अन्यथा अन्य स्थान पर या अन्य दुकानों पर यह सामग्रियां उपलब्ध नहीं होती।
विद्यार्थियों के लिए आवश्यक सामग्रियां खुले बाजार में उपलब्ध क्यों नहीं? कोरिया जिले में मनमाने दामों का खुला खेल क्यों?
निजी विद्यालय प्रबंधन अपने विद्यालयों का ड्रेस कोड एवं किताबों का पैटर्न स्वयं तय करता है, एवं सारा स्टाक स्वयं से संग्रहित कर रखता है। जब अभिभावक अपने बच्चे को दाखिला दिलाते हैं, या बच्चा अगली कक्षा में क्रमोन्नत होता है, तो नई किताबों एवं ड्रेस के लिए उसे विद्यालय पर ही निर्भर रहना पड़ता है। क्योंकि खुले बाजार में यह सामग्रियां उपलब्ध नहीं होती। इसका कारण यह है कि अधिक लाभ कमाने के चक्कर में निजी विद्यालय प्रबंधन खुले बाजार के व्यापारियों को वांछित सामग्रियों की भनक लगने नहीं देता या यदि खुले बाजार के व्यापारी वांछित सामग्रियों का भंडारण कर भी लें तो विद्यालय प्रबंधन अचानक पूरी चीजों को परिवर्तित कर देता है। जिसे खुले बाजार के व्यापारी स्टाक रखना उचित नहीं समझते और अभिभावक विद्यालय प्रबंधन से सामग्रियां खरीदने को मजबूर होता है। जिसका परिणाम यह होता है कि अत्यंत अल्प दामों में बिकने वाली सामग्रियां मनमाने दामों में निजी विद्यालय प्रबंधन द्वारा बेची जाती हैं, और कई गुना लाभ कमाया जाता है। शासन प्रशासन का ध्यान इस ओर नहीं जाता, जबकि व्यापारी एवं अभिभावक सैकड़ों बार इसकी शिकायत शासन प्रशासन एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों के समक्ष कर चुके हैं। परिजनों के अनुसार कोरिया जिले में संचालित ग्लोबल प्राइड स्कूल जमगहना, किड्स वर्ल्ड इंग्लिश मीडियम स्कूल, श्याम लर्निंग टेंपल, इंद्रप्रस्थ इंग्लिश मीडियम स्कूल, एयरोकिड्स इंग्लिश मीडियम स्कूल, लिटिल मिलेनियम स्कूल यह ऐसे निजी विद्यालय प्रबंधन है जो खुद ही कॉपी, किताब, ड्रेस मोजा, जूता, टाई, बेल्ट बेच रहे हैं। जबकि नियमानुसार इन सब चीजों की लिस्ट और ड्रेस और किताबों का कोड ओपन होना चाहिए, जिससे जो व्यापारी इन सामग्रियों को बेचना चाहे वे बेच सकें। निजी विद्यालयों में पढ़ाई दीगर बात हो गई है, जबकि दिखावा प्राथमिकता में है। और इसी दिखावे का लोभ अभिभावक को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। प्रबंधन की शिकायत करना भी अभिभावक के लिए नागवार है। क्योंकि ऐसी दशा में उसके शिकायत के कृत्यों का फल छात्र की अनदेखी को लेकर भुगतना पड़ सकता है। यही कारण है कि अधिकांश अभिभावक अपने ऊपर हो रहे शोषण और अत्याचार को चुपचाप सहन कर लेते हैं। जिसका परोक्ष और अपरोक्ष रूप से शासन प्रशासन और शिक्षा विभाग भी बराबर जिम्मेदार है।