अहमदाबाद,@नरोदा गाम दंगा केस में आया बड़ा फैसला

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पूर्व मंत्री माया कोडनानी समेत सभी आरोपी बरी
अहमदाबाद,20 अप्रैल 2023 (ए)।
साल 2002 गुजरात दंगे के नरोदा गाम दंगा मामले में सभी आरोपी बरी कर दिए गए हैं। 2002 में हुए इन दंगों में 11 लोगों की जान चली गई थी। गुजरात की पूर्व मंत्री और भाजपा नेता माया कोडनानी इसके अलावा बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत 86 आरोपियों पर यह केस चल रहा था। 86 अभियुक्तों में से 18 की बीच की अवधि में मृत्यु हो गई।
क्या था मामला?
28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद शहर के नरोदा गाम इलाके में सांप्रदायिक हिंसा में 11 मुसलमान मारे गए थे। लोगों ने एक दिन पहले गोधरा ट्रेन में आग लगने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान इस घटना को अंजाम दिया था। बता दें कि गोधरा ट्रेन में लगाई गई आग में 58 हिंदुओं की हत्या हो गई थी।
विशेष अभियोजक ने क्या कहा?
विशेष अभियोजक सुरेश शाह ने कहा कि अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष ने 2010 में शुरू हुए मुकदमे के दौरान क्रमशः 187 और 57 गवाहों की जांच की और लगभग 13 साल तक चले, जिसमें छह न्यायाधीशों ने लगातार मामले की अध्यक्षता की। सितंबर 2017 में, भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह, माया कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए। कोडनानी ने अदालत से अनुरोध किया था कि उसे यह साबित करने के लिए बुलाया जाए कि वह गुजरात विधानसभा में और बाद में सोला सिविल अस्पताल में मौजूद थी, न कि नरोडा गाम में जहां नरसंहार हुआ था।
अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूतों में पत्रकार आशीष खेतान द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो और प्रासंगिक अवधि के दौरान कोडनानी, बजरंगी और अन्य के कॉल विवरण शामिल हैं। जब मुकदमा शुरू हुआ, एस एच वोरा पीठासीन न्यायाधीश थे। उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया था। उनके उत्तराधिकारी, ज्योत्सना याग्निक, के के भट्ट और पी बी देसाई, परीक्षण के दौरान सेवानिवृत्त हुए।
सुनवाई करीब चार साल पहले पूरी हो गई थी, लेकिन जज हो गए रिटायर
सुनवाई (गवाहों के बयान) करीब चार साल पहले पूरी हुई थी। अभियोजन पक्ष की दलीलें समाप्त हो गईं और बचाव पक्ष अपनी दलीलें दे ही रहा था कि तत्कालीन विशेष न्यायाधीश पी बी देसाई सेवानिवृत्त हुए। इसलिए जज दवे और बाद में जज बक्शी के सामने नए सिरे से बहस शुरू हुई, जिससे कार्यवाही में देरी हुई।
आरोपियों के खिलाफ इन धाराओं में दर्ज था मुकदमा
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी सभा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस दंगा), 120 (बी) (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए थे। और 153 (दंगों के लिए उकसाना), दूसरों के बीच में। इन अपराधों के लिए अधिकतम सजा मौत है। कोडनानी, जो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार में मंत्री थीं, को नरोदा पाटिया दंगा मामले में दोषी ठहराया गया और 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई, जहां 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी। बाद में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय ने छुट्टी दे दी थी।


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