- वायरल वीडियो में अभद्रता स्पष्ट झलक रही,शिक्षकों की आपçा सुनने को तैयार नहीं थे संयुक्त संचालक
- आपत्ति दर्ज कराने गए शिक्षकों के साथ अभद्रता पर आखिर शिक्षक संघ और कर्मचारी संगठनों ने क्यों साधी चुप्पी?
- क्या सिर्फ सदस्यता लेने तक ही संघ व संगठन का काम,शिक्षकों के साथ होने वाले अन्याय से नहीं है कोई वास्ता?
- शिक्षा का दीप जलाने वाले शिक्षकों को लूटने में विभाग की भूमिका आई सामने
- काउंसलिंग प्रक्रिया के बावजूद ठगे गए शिक्षक,काउंसलिग प्रक्रिया भी चढ़ गया भ्रष्टाचार की भेंट
- एक तरफ कनिष्ठ शिक्षकों की जेब पर डाका,दूसरी तरफ वरिष्ठ शिक्षकों के साथ अन्याय
–रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 16 अप्रैल 2023 (घटती-घटना)। काउंसलिंग में अनियमितता की शिकायत लेकर संयुक्त संचालक सरगुजा के समक्ष पहुंचे शिक्षकों से संयुक्त संचालक ने अभद्रता की थी, जिसका स्टिंग भी हुआ था। स्टिंग वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था और पत्रकारों तक भी पहुंच गया था। जिसमें शिक्षक व संयुक्त संचालक के बीच हुई बातों का जिक्र था। प्रधान पाठक पूर्व माध्यमिक शाला पदोन्नति पदस्थापना काउंसलिंग में अनियमितता की सबूत सहित शिकायत करने संयुक्त संचालक सरगुजा के समक्ष पहुंचे, शिक्षकों के साथ संयुक्त संचालक ने पहले तो अभद्रता की, बाद में उन्होंने शिक्षकों को देख लेने की और निपटाने की धमकी भी दी। बड़े ही तमतमाए अंदाज में उन्होंने शिक्षकों को जिस तरह धमकी दी उससे शिक्षक भी भयभीत हुए। वहीं मीडियाकर्मियों के आने के बाद संयुक्त संचालक जरा नरम हुए और शिक्षकों को आपत्ति आवेदन पर पावती प्रदान करने की सहमति उन्होंने दी। संयुक्त संचालक कार्यालय की स्थापना शासन ने शिक्षकों की समस्याओं का निराकरण करने के लिए की है। जबकि वायरल वीडियो में वर्तमान संयुक्त संचालक शिक्षकों को ही धमकी देते नजर आ रहे हैं। शिक्षकों ने पूरे वार्तालाप का विडियो भी बनाया है और उसमें स्पष्ट रूप से देखा और सुना जा सकता है की संयुक्त संचालक किस तरह आपçा नाम पर बिफर रहें हैं और किस तरह शिक्षकों को धमकी दे रहें हैं। इस पूरे मामले में शिक्षक संघ साथ ही अन्य कर्मचारी संगठन चुप्पी साधे बैठा है। जबकि शिक्षक संघ एवं कर्मचारी संगठनों को भी इन सभी विषयों की जानकारी थी। उसके बाद भी शिक्षकों के साथ हुए अभद्रता पर उसने एक भी शब्द बोलना जरूरी नहीं समझा। ऐसा लगा कि कहीं न कहीं शिक्षकों के साथ जो हुआ वह सही था, इस पर उन्होंने मौन स्वीकृति देते नजर आए। शिक्षक भी इस घटना के बाद संघ से नाराज नजर आ रहे हैं। जहां पर संघ का काम शिक्षकों के मान सम्मान की रक्षा करना है, वहां पर उनके साथ हुए अभद्रता पर संघ की चुप्पी समझ के परे नजर आई। इतने गंभीर विषय पर भी संघ के किसी भी बड़े या छोटे पदाधिकारी ने कोई भी स्टेटमेंट आज तक जारी नहीं किया। जिसको लेकर आम शिक्षक और कर्मचारियों में रोष व्याप्त है और ये शिक्षक और कर्मचारी समय आने पर संगठन के नेताओं को सबक का पाठ पढ़ाने को आतुर हैं।
ज्ञात हो कि पूर्व माध्यमिक शालाओं में प्रधान पाठक पदोन्नति की प्रक्रिया काउंसलिग के बावजूद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। जिसकी सुगबुगाहट सुनाई देने लगी और अब भ्रष्टाचार के कारण पदोन्नति प्रक्रिया में प्रभावित हुए शिक्षक आक्रोश में हैं और अपने ही विभाग के अधिकारियों पर वह आरोप लगा रहें हैं, और खुद के साथ अन्याय की कहानी बयान कर न्याय की गुहार लगा रहें हैं। पूर्व माध्यमिक शालाओं में शिक्षकों को प्रधान पाठक पद पर पदोन्नति मिलनी थी और पूर्व में यह पदोन्नति और पदस्थापना काउंसलिंग के बगैर की जानी थी, जो भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए इसलिए काउंसलिंग की प्रकिया शासन ने तय की। शासन की काउंसलिग प्रकिया को भी विभागीय अधिकारियों ने भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया और शिक्षकों से जमकर पदस्थापना के नाम पर वसूली की गई। जिसका खुलासा अब होने लगा और अब पदोन्नति में भ्रष्टाचार के कारण पदोन्नति से वंचित और पदोन्नति में दूसरे जिले या ब्लॉक में पदस्थापना प्राप्त किए शिक्षक लामबंद होकर विरोध में नजर आ रहें हैं और वह चुप रहने को तैयार नहीं हैं।
सोशल मीडिया में बधाई संदेश बना मामले को उजागर होने का कारण
सामान्यतः बधाई और शुभकामनाएं संदेश लोगों के जीवन में उत्साह लेकर आते हैं। परंतु यह पहला मामला होगा जब अति उत्साहित शिक्षक कर्मचारी द्वारा समय पूर्व भ्रष्टाचार पूर्वक प्राप्त पदस्थापना स्थल को लेकर दिया गया सोशल मीडिया में बधाई संदेश उनके गले की फांस बन गया। इसी बधाई संदेश के द्वारा वरिष्ठ शिक्षकों को जानकारी हुई कि नियमानुसार जो पदस्थापना स्थल उन्हें प्राप्त होने थे, सेटिंग द्वारा वे स्थल कनिष्ठ शिक्षकों को प्राप्त हो गए हैं। यही उनके आक्रोश का कारण बना और पूरी पदोन्नति प्रक्रिया पर सवालिया निशान खड़ा हो गया। यदि यह शुभकामना संदेश सोशल मीडिया में प्रसारित नहीं होते और कुछ दिनों बाद संयुक्त संचालक कार्यालय से आदेश जारी हो जाता, तो शायद भ्रष्टाचार के इतना बड़ा मामला उजागर नहीं हो पाता। बहरहाल पूरी पदोन्नति प्रक्रिया के पदस्थापना में लेकर जो गड़बड़ी हुई है, उसके लिए जिम्मेदार कौन है, यह जांच करना और तय करना संयुक्त संचालक का विषय है। यदि गड़बड़ी की और भ्रष्टाचार की जानकारी उनके संज्ञान में नहीं थी, तो उनके अधीनस्थ ऐसे कौन कर्मचारी, अधिकारी थे जिन्होंने व्यापक पैमाने पर इतना बड़ा भ्रष्टाचार किया। यह उजागर करना उनकी जिम्मेदारी पर आयद है। यदि पूरे मामले में वे पाक साफ हैं तो मामले की जांच कर निष्पक्ष पदस्थापना सूची जारी करें। तथा ऐसे कर्मचारी जो पदोन्नति से वंचित हो रहे हों या जिन्हें असुविधा अनुसार पदोन्नति स्थल मिला हो, उन्हें दोबारा मौका दिया जावे तब तो मामले का पटाक्षेप संभव है। अन्यथा असंतुष्ट शिक्षकों द्वारा न्यायालय का रुख करना पूरी पदोन्नति प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। मामले में यह एक बड़ा सवाल और भी है कि जिन लोगों ने सेटिंग के जरिए कनिष्ठ होते हुए भी मनचाहा पदस्थापना स्थल के लिए विकल्प पत्र भरा है, वह काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित थे। यह प्रमाणित है, और बार-बार अनाउंसमेंट करने के बावजूद भी काउंसलिंग के लिए उपस्थित नहीं हुए तथा काउंसलिंग समाप्त होने के पश्चात सेटिंग के जरिए अपना विकल्प पत्र भरा है। उन्हें नियमानुसार काउंसलिंग में अनुपस्थिति के कारण पदोन्नति से वंचित करना न्याय उचित होगा। अन्यथा उनके लिए आदेश जारी करने पर यह भी निकट भविष्य में विवाद का विषय बनेगा।
निचले क्रम के शिक्षकों को मिली मनचाही पदस्थापना,ऊपर क्रम के शिक्षकों को नहीं मिली जिले और विकासखंड में पदस्थापना
पदोन्नति में पदस्थापना काउंसलिंग के माध्यम से की जाए इसके लिए स्वयं शिक्षा मंत्री ने विभाग को पत्र लिखा था जिससे पदस्थापना में भ्रष्टाचार न हो। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने इसमें भी भ्रष्टाचार का रास्ता ढूंढ निकाला और उन्होंने वरिष्ठता में निचले क्रम के शिक्षकों को मनचाही पदस्थापना प्रदान करने में उनकी मदद की। वहीं इसके लिए उगाही भी की गई। ऊपर क्रम के वरिष्ठता क्रम में शीर्ष पर आने वाले शिक्षकों को या तो मनचाही पदस्थापना नहीं मिलने पर पदोन्नति से इंकार करना पड़ा या उन्हे अन्य जिले और लॉक में पदस्थापना लेनी पड़ी। कुल मिलाकर जो जिस पद के लिए योग्य व वरिष्ठ था उसे वह पद प्रदान नहीं किया गया और जो निचले क्रम पर थे उन्हे वह पद प्रदान कर दिया गया। जो साफ साफ भ्रष्टाचार का मामला है।
विद्यालयों के नाम वरिष्ठ शिक्षकों की काउंसलिंग के समय छिपाए गए
वरिष्ठता क्रम में ऊपर आने वाले शिक्षकों ने आरोप लगाया की काउंसलिंग के लिए उन्हे पूरे पद नहीं दिखाए गए और अधिकांश पदों को उजागर ही नहीं किया गया। जबकि वही पद निचले क्रम के लोगों को मिल सके और उन्हे मनचाही पदस्थापना मिल सके इसके लिए पदों को आरक्षित रख सुविधानुसार काउंसलिंग के बाद सेटिंग वाले कर्मचारियों से विकल्प पत्र भरवाया गया। जबकि काउंसलिंग के दरमियान कनिष्ठ शिक्षक काउंसलिंग प्रक्रिया में अनुपस्थित थे, जो अब प्रमाणित भी है, और जो सीधा सीधा भ्रष्टाचार का मामला है। शिक्षकों ने आरोप लगाया की वरिष्ठता सूची में उनका नाम ऊपर था, और उन्होंने पैसा नहीं दिया इसलिए उन्हे पूरे पद पदस्थापना के लिए चुनने के लिए नहीं दिखाए गए, जबकि संभाग में प्रधान पाठक के लिए रिक्त पदों की सूची में वह स्थान दर्शित किए गए थे और जिन्होंने पैसा दिया उन्हे बाद में वही पद दे दिए गए। जबकि वह कनिष्ठ थे वरिष्ठता सूची में। वरिष्ठ शिक्षकों का यह भी आरोप है की काउंसलिंग के पहले और काउंसलिंग के समय जो पद उन्हे दिखाए गए और जो दीवार में जो चस्पा किए गए उनमें अधिकांश रिक्त पद उन्हे नहीं दिखाए गए और शाम होते ही वह पद कनिष्ठ शिक्षकों से भर दिए गए जो की गलत है।
शिक्षक व संचालक के आक्रोश से मामला पहुंचा था अभद्रता तक
राज्य शासन की विशेष योजना वन टाइम रिलैक्सेशन के तहत पदोन्नति की पूरी प्रक्रिया संपन्न हो रही है, जो विगत डेढ़ वर्ष तक हाईकोर्ट में लंबित रहने के कारण संभव नहीं हो पाई थी। मामले का निराकरण होने के बाद प्रक्रिया पुन: प्रारंभ हुई, जिसमें वरिष्ठ क्रम के शिक्षकों को प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति मिलना है, जिनमें से सैकड़ों शिक्षक अपने शासकीय सेवा के अवसान पर हैं। और इसके बाद उन्हें किसी प्रकार की पदोन्नति की उम्मीद भी नहीं है। उन्हें बड़ी आशा और उम्मीद थी कि अपनी सेवा काल के दौरान उन्हें यह पदोन्नति निर्बाध प्राप्त होगी, परंतु भ्रष्टाचार के कारण जब उन्हें अंतिम पदोन्नति में बाधा उत्पन्न नजर आई तो वे आक्रोशित हो गए और संयुक्त संचालक के निरर्थक आक्रोश ने चिंगारी को और हवा दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि विवाद की स्थिति निर्मित हुई, अन्यथा सामान्य से दिखने वाला यह मामला केवल छोटी सी जांच से ही निपट सकता था।
संयुक्त संचालक शिक्षको की आपत्ति को देख, सुन व समझ कार्यवाही का दे सकते थे आश्वासन, पर कर बैठे अभद्रता
क्योंकि मामला शिक्षक पदोन्नति के गंभीर मसले से जुड़ा था और वर्षो के अथक प्रयास से जिन शिक्षकों की पदोन्नति होना था, भ्रष्टाचार के कारण या तो उन्हें पदोन्नति से वंचित होना पड़ रहा था या दुर्गम स्थान में पदस्थापना लेना मजबूरी बन रही थी। इस शिकायत को संयुक्त संचालक गंभीरता पूर्वक सुन सकते थे, और जांच तथा निराकरण का आश्वासन देकर मामले का पटाक्षेप कर सकते थे। वहीं उनके भड़कीले व्यवहार ने मामले को और संदेहास्पद बना दिया। जिसका परिणाम यह है कि यदि निष्पक्ष सूची जारी नहीं होती है तो वंचित शिक्षक समुदाय आंदोलन और न्यायालय का रुख कर सकते हैं। जो मामला सौहार्दपूर्ण वातावरण में आसानी से निपट सकता था, उसे संयुक्त संचालक द्वारा विवादित स्थिति में लाकर छोड़ना पूरे पदोन्नति प्रक्रिया में पदस्थापना को लेकर संदेह उत्पन्न करता है।